मीठा होने का नुकसान कितना होता है
कौन जानता है गन्ने से बेहतर
बूंद-बूंद निचोड़ लेते हैं लोग
जो भोले होते हैं
गरल ही आता है उनके हिस्से
सागर मंथन से निकला गरल
(अभोले) देवताओं ने
पीने से कर दिया साफ-साफ इनकार
जिन्होंने किया गरलपान
वे भोले थे/ अब भी भोले हैं
भोलेनाथ!
जेठ की तपती दोपहरी में
हरियाता है गन्ना
और वसंत आते ही
उसकी बूंद-बूंद की मिठास
निचोड़ लेते हैं लोग
सचमुच होता है कितना त्रासद
मीठा होना
भोला होना तो होता है
महादेव की तरह!
— अनिल विभाकर
परिचय
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अनिल विभाकर
अनिल विभाकर नौवें दशक के महत्वपूर्ण कवि हैं। लोकतंत्र और आजादी के इस पहरुआ कवि का जन्म 5 जून 1954 को बिहार के पुराने गया जनपद , वर्तमान में नवादा जिले के परोरिया गांव में हुआ। चार दशक से भी अधिक समय से पत्रकारिता और निरंतर लेखन कर रहे विभाकर सच कहने के आदी और स्मृतिलब्ध कवि हैं। ‘ जनसत्ता’ (रायपुर , छ.ग.) और ‘ नवभारत ( भुवनेश्वर , ओडिशा ) के कई वर्षों तक स्थानीय सम्पादक रहे। प्रारंभ के बीस साल ‘आज’ (पटना) और ‘ हिन्दुस्तान ‘ ( पटना ) में फीचर संपादक और अन्य वरिष्ठ संपादकीय पदों पर सेवारत।
प्रकाशन/प्रसारण : चार कविता संग्रह ‘ शिखर में आग ‘ , ‘ सच कहने के लिए ‘ ‘ अंतरिक्षसुता’ , सद्यः प्रकाशित कविता संग्रह ‘ अवज्ञा का समय ‘।
देश की सभी महत्वपूर्ण पत्र-पत्रिकाओं में कविताएं , लेख , रिपोर्ताज और समीक्षाएं प्रकाशित और प्रशंसित । कई महत्वपूर्ण काव्यसंग्रहों में कविताएं सम्मिलित।
पुरस्कार/ सम्मान : हिन्दी कविता में विशिष्ट योगदान के लिए प्रतिष्ठित बनारसी प्रसाद भोजपुरी सम्मान
गया जिला हिन्दी साहित्य सम्मेलन का ‘ वागीश्वरी सम्मान ‘।
साहित्यकार संसद की ओर से 1998 में
‘ रामधारी सिंह दिनकर राष्ट्रीय शिखर साहित्य पुरस्कार’ ।
पत्रकारिता में विशिष्ट योगदान के लिए प्रतिष्ठित ब्रजकिशोर सम्मान।
सम्पर्क : फ्लैट नं.402 , अन्नपूर्णा अपार्टमेंट , बलदेव भवन रोड, पुनाईचक , पटना : 800023
बिहार। मोबाइल नं. 9431076677
मेरे अब तक चार कविता संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। ये कविता संग्रह हैं – 1.शिखर में आग ,2. सच कहने के लिए ,3. अंतरिक्षसुता और 4 अवज्ञा का समय।
इसमें मेरा बहुत पुराना परिचय दिया गया है। –
अनिल निभाकर , पटना, बिहार।