22 दिसंबर यानी कि विंटर सोलस्टिस और कोरियाई संस्कृति की एक बानगी
===========
यूँ ही कुछ पढ़ते नज़र तारीख़ पर पड़ी और देखा कि आज तो 22 दिसंबर है। कामकाजी जीवन में आने के बाद से 20 दिसंबर के बाद की तारीख़ों पर ध्यान और नज़र इसलिए बनी रहती है कि कुछ दिन की छुट्टियाँ मिलने की संभावना होती है। लेकिन इससे पहले 22 दिसंबर को NCERT की किताबों में पढ़ा करते थे। दरअसल आज के दिन को विंटर सोल्टिस कहा जाता है, मतलब कि आज साल के बाक़ी के 365 दिनों की अपेक्षा दिन छोटा और रात बड़ी होती है। दूसरे शब्दों में कहें तो बारह-बारह घंटे का हिसाब आज के दिन कुछ बदल सा जाता है। इंटरनेट की दुनिया ने इसे शीतकालीन संक्रांति जैसा हिन्दी नाम दिया है। इसके वैज्ञानिक पहलू पर बात करें तो होता यह है कि आज के दिन सूरज सीधे मकर रेखा (ट्रॉपिक ऑफ कैप्रिकर्ण) पर होता है, एक रेखा जो भूमध्य रेखा के 23.5 डिग्री दक्षिण में स्थित होती है और चिली और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों से होकर गुजरती है, और सूर्य से सबसे दूर होती है। सूरज से आई इसी दूरी के कारण तापमान और रोशनी दोनों में कमी आ जाती है।
लेकिन ये बात तो विज्ञान और वैज्ञानिकों की है। हमारे यहाँ (बिहार- पूर्वी उत्तर प्रदेश) में सूर्य के उत्तरायण होने पर संक्रांति मनाई जाती है जिसे लोहड़ी, संक्रांति आदि नामों से जाना जाता है। लेकिन उत्तर-पूर्वी एशियाई देशों में यह संक्रांति इसी विंटर सोल्टिस वाले दिन मनाया जाता है यानी कि 22 दिसंबर को। दक्षिण कोरिया में भी यह त्योहार 22 दिसंबर को ही मनाया जाता है जिसे दोंग्जी कहते हैं। कोरियाई लोग यह त्योहार बड़े ही चाव और उत्साह से मनाते हैं और ‘छोटा नया साल’ भी कहा जाता है। यानी कि नये साल का स्वागत कोरियाई लोग इसी दिन से शुरू कर देते हैं। 22 दिसंबर को दोंग्जी, 25 दिसंबर को क्रिसमस मनाते हुए साल का अंतिम सप्ताह उत्सवों का सप्ताह होता है। दुनिया के बाक़ी देशों की तरह ही कोरिया में भी हर त्योहार पर कुछ ना कुछ विशेष खाया और पकाया जाता है। और इस विशेष व्यंजन के पीछे उनके अपने पारंपरिक कारण जो अमूमन चिकित्सीय होता है जिसे हम आम जनभाषा में ओरिएंटल मेडिसिन कहते हैं। चाहे जन्मदिन हो या बच्चे के जन्म का सौवाँ दिन, कोरियाई परंपरा में ऐसे हर विशेष दिन के लिए एक विशेष प्रकार का व्यंजन खाने का महत्व है।
डोंगजी (शीतकालीन संक्रांति) के दिन कोरियाई लोग फाथजुक नाम का एक व्यंजन पकाते और खाते हैं। यह व्यंजन दरअसल अज़ुकी नाम की एक फली से तैयार होता है। अज़ुकी को अलग-अलग भाषाओं में विभिन्न नामों जैसे एडुकी, अडुकी, एडज़ुकी, रेड बीन या लाल मूंग के नाम से भी जाना जाता है। यह एक वार्षिक बेल है जो पूर्वी एशियाई देशों जैसे चीन, जापान, ताइवान और कोरिया में व्यापक रूप से पैदा होती है। शायद यही कारण है कि कोरिया में इस मौसम में पड़ने वाली कड़ाके की ठंड में इस फली को खाने का रिवाज है।
कोरिया के लोग 22 दिसंबर को इसी एडुकी फली से बनी दलिया या राइस केक या सूप जैसे व्यंजनों का आनंद लेकर मनाते हैं। इसका कारण यह है कि एडुकी से बने व्यंजन जल्दी ख़राब नहीं होते और ठंडे तापमान के कारण लंबे समय तक इसका भंडारण संभव होता है।
कोरियाई भाषा में एक कहावत है कि दोंग्जी के दिन एक कटोरा फ़ाथजुक खाने से केवल एक ही साल उम्र बढ़ती है। ऐसा नहीं है कि एडुकी से बने फाथजुक के खाने के पीछे केवल चिकित्सीय और पर्यावरणीय करण ही हैं। दरअसल, पुराने समय में यहाँ के लोगों का ऐसा विश्वास था कि भूतों को लाल फली का यह रंग पसंद नहीं होता है। और अपने इसी विश्वास और भूतों (नकारात्मक और बुरी ऊर्जा) को अपने और अपने परिवार से दूर रखने के लिए कोरियाई लोग एडुकी से फ़ाथजुक बनाकर घर के देवता के सामने परोसते और फिर उसे घर के कोने-कोने में छिड़कते थे। इस पारंपरिक अनुष्ठान को डोंग्जीकोसा कहा जाता है। ऐसा करके वे अपने घर को बुरी आत्माओं या फिर कहें कि नकारात्मक ऊर्जा से बचाते थे।
कोरिया में आज भी कुछ अच्छा या बुरा घटने पर घरों में फ़ाथजुक और अडुकी से बने कई तरह के व्यंजन पकाये और खाये जाने की रस्म अपने आधुनिक रूपों में देखने को मिलती है। आज युवाओं की माँग को देखते हुए कोरियाई बाज़ार एडुकी से बनने वाले सूप, मफ़िन्स, केक, जेली, आईसक्रीम आदि जैसे उत्पाद से भरे हुए हैं।
अगर आप सियोल में हैं और आपको दोंग्जी की झलक पानी है तो आप वहाँ के नामसानगोल हानओक विलेज (पारंपरिक कोरियाई गाँव) में 22 दिसंबर को पारंपरिक लोक नृत्य छ्यंगमू देखने जा सकते हैं। छ्यंगमू, मास्क डांस का कोरियाई स्वरूप है और ऐसी धारणा है कि इस नृत्य को करने से नुक़सान पहुँचाने वाली आत्माएँ दूर भागती हैं। वहाँ फाथजुक और लकी चार्म एक्पीरिएंस बूथ भी लगे होते हैं जहां आगंतुक इस व्यंजन को पकाने और फूस से बनने वाली चीजों को बनाने का लुत्फ़ उठा सकते हैं।
कोरिया के नैशनल फोक म्यूज़ियम में भी इस अवसर पर तरह-तरह के पारंपरिक लोक नृत्य और फ़ूड एक्सीबिशन लगाये जाते हैं।
इसके अलावा, कोरिया के दक्षिणी प्रांतों जैसे योंजिन, ग्यंगी-दो आदि में दिसम्बर के अंतिम सप्ताह के आसपास पारंपरिक लोक नृत्य का आयोजन भी किया जाता है।
चलते-चलते एक रोचक तथ्य बताते चलूँ कि कोरिया के ग्रामीण इलाक़ों में लोग दोंग्जी वाले दिन एक साथ जमा होते हैं और आने वाले साल के लिए तरह-तरह की चीजें बनाते हैं। ये लोग साल की सबसे लंबी रात को पुआल के जूते, टोपी, कमरबंद, झोले जैसी चीजें बनाते हुए गुजारते हैं।