उसका कर्ण

एम.आई.टी. के खचाखच भरे प्रागंण में बैठी ममता भीड़ में खोयी सी थी। उसके चारों तरफ अजनबी लोगों का हुजूम था। गर्व के साथ साथ करुणा का कोमल रस उसके भाव जगत में तिर रहा था। अपने बेटे को ग्रेजुएशन की काली पोशाक में देख कर वह फूली नहीं समा रही थी। उसका गोरवर्ण बेटा निपट काली पोशाक में खूब जँच रहा था। आज उसका बेटा दुनिया के एक मशहूर शैक्षिक संस्थान से इंजीनियरिंग की डिग्री प्राप्त कर रहा है। वह टेक्सास से अकेले अपने बेटे के ग्रेजुएशन के उत्सव में शामिल होने बोस्टन आई थी, यानी उत्तरी अमेरिका के पश्चिमी छोर से दक्षिणी छोर। पति नौकरी की व्यस्तता के कारण नहीं आ पाए।
कितनी सीढियां बेटे ने चढीं, कितने मील के पत्थर पार किये। प्राथमिक से जूनियर स्कूल, फिर हाईस्कूल। उसके बाद इंटर कालेज, फिर यूनिवर्सिटी की पढाई। इंटर्नशिप, नौकरियों के लिए आवेदन, इंटरव्यूह… । तीन नौकरियों के ऑफर मिलने पर उसने इंटरव्यूह देने बंद कर दिए थे। तीनों में से कौन सी नौकरी चुने, चयन मुश्किल जो हो गया था।
प्रभावशाली भाषणों के दौर चल रहे थे। चीफ के बाद डीन, फिर संस्थान के अन्य अधिकारी। भाषणों के कुछ अभिभूत कर दिया। यह शैक्षिक संस्था जिसने तुम्हारी योग्यताओं को तराशा, गुरु, जिन्होंने तुम्हें ज्ञान दिया, अभिभावक जो तुम्हें इस संस्था तक लाये, सभी आज एक छत तले हैं। यह एक दुर्लभ सुनहरा क्षण हैं…. तुममे से कोई इंजीनियर बना है, कोई डाक्टर तो कोई अकाउंटेंट… । यह पल तुम्हारा है, भविष्य तुम्हारा है। विश्व और समाज में मौजूदा समस्याओं का निवारण करो और इस जग को और हसीन बनाओ… । तुम्हारी शिक्षा कभी खत्म नहीं होगी, इस संस्थान के बाहर भी तुम्हारी शिक्षा जारी रहेगी…।
अभिभावकों का कई बार आभार प्रकट किया गया। छात्रों को अपने माता-पिता के सम्मुख शीश झुकाने के लिए कहा गया। कइयों की आँखें भर आईं। कुछ माताएँ भावावेश में अपनी कुर्सियों से उछल कर, अपनी संतानों के करीब जाकर उनकी बलैंया लेने लगीं। ममता भी अपने बेटे के करीब गई। उसके छह-फुट-दो-इंच लंबे बेटे को अपनी ठिगनी माँ के गले लगने के लिए काफी झुकना पड़ता है। उन्हें एक दूसरे के गले लगते देख, एक अमेरिकन आदमी ममता से बोला, “तुम छोटी हो मगर तुम्हार बेटा बहुत लम्बा है। अपने पापा पर गया होगा।”
ममता मुस्कुरा कर रह गयी। वह और उसके पति दोनों छोटे कद के हैं, रंग भी उनका दबा हुआ है। उनका बेटा इतना गोरा और लम्बा कैसे हो गया… हर कहीं इसका जिक्र हो जाता है।
‘मेरी एक ही इच्छा है… इसको खूब पढ़ाना-लिखाना…’ जब भी उसका बच्चा शिक्षा में कोई मुकाम हासिल करता, ये शब्द उसके मस्तिष्क में जोरों से बजने लगते। उसे लगता, जैसे यह कल की बात है। लगता ही नहीं इक्कीस वर्ष गुजर गये…।
उसकी भाभी की सखी की ननद अनीता… कुछ पलों के लिए उनकी जिन्दगी में आई और हमेशा के लिए उनकी जिन्दगी बदल दी। पंचकुला के एक नर्सिंग होम में वह नर्स थी। उसने ही उनको सुझाया था… । बारह सालों से मातृत्व सुख से वंचित ममता के रोंगटे खड़े हो गये थे, दिल बेकाबू हो गया था।।
एक कुँवारी लड़की माँ बन रही है…। समाज के लांछनों से बचने के लिये वह अपना बच्चा किसी को देना चाहती है। पढ़ी-लिखी लड़की है। यूनिवर्सिटी में एम.एससी कर रही है। अपने बॉयफ्रेंड से प्रेग्नेंट हो गयी। केवल उसके मातापिता जानते हैं उसकी गर्भावस्था के बारे में, अन्य सभी से यह बात गुप्त है। अगर लोगों को यह पता चल जाएगा तो वह बर्बाद हो जायेगी।
“कितना महीना चल रहा है?”
“सातवाँ।”
“हमें क्या वह अपना बच्चा गोद देगी?” ममता ने अपनी भाभी, जोकि मध्यक्षता की भूमिका निभा रही थी, से पूछा।
“नहीं, ममता, गोद लेने-देने का चक्कर ही नहीं। अस्पताल और म्युनिसिपेलिटी के सरकारी रिकोर्ड में माँ की जगह तुम्हारा और पिता की जगह तुम्हारे पति का नाम चढ़ेगा। नर्स कह रही है, उन्होंने ऐसे काम पहले भी कर रखे हैं। बच्चा चाहिए तो बताओ… बाकी बातें वे सम्भाल लेंगे।”
“पर भाभी, यह तो धोखाधड़ी से बच्चा लेना हुआ… ।”
“इसमें सभी की जीत है। लड़की कलंक से बच जायेगी। बच्चे को माँ-बाप मिल जायेंगे और तुम्हें औलाद… ।” उसे मूक देख भाभी ने उकसाया, “यह सुनहरा मौका मत गंवाओ, ममता। एकदम नवजात बच्चा मिलेगा तुम्हें… । गोद लेने का झंझट ही नहीं। “
ममता और मनोज का दिल घबरा रहा था मगर वे तैयार हो गये। आज अगर जिन्दगी उन्हें कुछ दे रही है तो उन्हें पीछे नहीं हटना चाहिए। वह दिन आज भी ममता को अच्छे से याद है…। दिन शुक्रवार था…। सुबह चार बज कर दस मिनट पर उनके घर का फोन बजा था। वे सो रहे थे। फोन की घंटी से नींद टूटी। हैरत हुई कि इतनी सुबह कौन फोन कर रहा है। पंचकुला से नर्स अनीता का फोन था, बता रही थी, “लड़की कल शाम यहाँ नर्सिंग होम में भर्ती हो गयी है। वह दर्द में है। डिलीवरी तीसरे चरण पर पहुंच गयी है। बच्चा अब कभी भी हो सकता है। आप भी आ जाइए… ।”
ममता फिर असमंजस में पड़ गयी। मनोज झल्लाया, “अब यह कुछ सोचने-विचारने का समय नहीं है। हमने उनसे वादा किया है कि हम बच्चे को लेंगे। वे हमारी रहा ताक रहें हैं…। “
वाकई अब सोचने-विचारने का समय नहीं रह गया था। अब तो जो परिस्थितियाँ करवा रही है, वही करें।
जल्दी से तैयार होकर ममता और मनोज अपनी कार में सवार हुए और पंचकुला की तरफ निकल गये, तड़के। ट्रैफिक नहीं था। दिल्ली से सोनीपत, फिर पानीपत, कुरुक्षेत्र पार करते हुए वे पंचकुला सिर्फ ढाई घंटे में पहुंच गये। उन्हें लड़की के परिवार के बारे में कुछ नहीं मालूम था, उसके नाम तक से परिचित नहीं थे। वे सभी उसे सिर्फ ‘लड़की’ पुकारते थे।
स्त्री रोग विशेषज्ञ डाक्टर अलका जैन अपने नाम से ही अपना मैटरनिटी एंड डिलीवरी नर्सिंग होम चला रही थी। बहुत छोटा सा नर्सिंग होम था। एक ओपीडी रूम, एक जनरल रूम में छह बिस्तर लगे हुए। एक स्पेशल वार्ड सम्पन्न घरों की औरतों के लिए। एक कमरा नर्सों के लिए, एक लेबर रूम और एक ऑपरेशन रूम सर्जरी डिलीवरी के लिए। जब वे पहुंचे तो उन्हें कहा गया कि वे ओपीडी रूम के बाहर लगे बेंच पर बैठ कर इंतजारी करें।
वहाँ अधेड़ उम्र का एक ग्रामीण सा युगल पहले से ही बैठा था। उनके चेहरों पर मायूसी के भाव थे। वे समझ गये कि ये लड़की के माता-पिता हैं। खैर बीतती घड़ियों का किसी तरह सामना किया। आधे घंटे बाद नर्स बाहर प्रकट हुई, उनसे बोली, “लड़का हुआ है… ।”
वह अधेड़ उम्र का युगल उदासीन भाव से बैठा रहा, मगर ममता और मनोज चहक उठे। नर्स बोली कि ओपीडी रूम में डाक्टर उनको बुला रही हैं। वे पहले डाक्टर से मिल लें। वे ओपीडी रूम अंदर घुसे। डाक्टर अलका जैन अपनी कुर्सी पर विराजमान थी। उन्होंने हाथ जोड़ कर नमस्कार किया और चुपचाप बैठ गये।
अलका जैन ने वार्तालाप शुरू किया, “आपको पता चल गया होगा कि लड़का हुआ है… । बिलकुल स्वस्थ है। बच्चे का वजन चार पौंड है, लम्बाई भी बहुत अच्छी है.” अलका जैन ने बच्चे से सम्बन्धित अन्य जानकारी भी दी। बच्चे का बर्थ सर्टिफिकेट बना कर दिया। ममता और मनोज सुखद आश्चर्य से भर गये, जब माता और पिता के कॉलम में उन्होंने अपना नाम देखा। एक कॉलम था – बच्चे के जन्म समय माता की आयु।
“आपकी उम्र क्या है?” अलका जैन ने पूछा।
ममता अचकचाते हुए बोली, “चालीस।”
“चालीस साल में भी औरतों के बच्चे होते हैं,” अलका जैन बोली। अलका जैन ने बताया कि उनके नर्सिंग होम में अभी तक सबसे कम उम्र की, पन्द्रह वर्ष की लड़की माँ बनी है, और सबसे अधिक पैंतालीस वर्ष में एक औरत माँ बनी है।
“हम म्युनिसिपेलिटी को सूचित कर देगें बच्चे के जन्म के बारे में। आपको खुद वहाँ जाना पड़ेगा यह बर्थ सर्टिफिकेट लेकर, ताकि उनके रिकोर्ड में भी बच्चे और उसके माता-पिता का नाम चढ़ जाए।”
ममता और मनोज अलका जैन के प्रति इतनी कृतज्ञता से भरे थे कि बोले, वे उनके नर्सिंग होम को कुछ चंदा देने चाहेंगे। उन्होंने देख लिया था कि उनके नर्सिंग होम में सारी गरीब औरतें ही डिलीवरी के लिए आयी हुई थी, सम्भवतः उनकी फीस बहुत कम हो।
स्प्ष्ट इनकार करते हुए अलका जैन बोली, “यह तो बच्चा बेचने वाली बात हो जायेगी। यह हम सिर्फ उस लड़की को कलंक से बचाने के लिए और उसके बेटे को एक सुरक्षित घर देने के लिए कर रहे हैं।”
“हम कम से कम डिलीवरी का खर्चा देना चाहेंगे…” मनोज बोले।
“मैं लड़की से डिलीवरी को कोई खर्चा ले ही नहीं रही हूँ। वह तो एक छात्रा है, उसके माता-पिता भी कोई अमीर नहीं है…” अलका जैन ने बताया।
कौन कहता है, यह दुनिया बेईमानों से भरी है…?
“आप महान है… मगर यह बच्चा अब हमारा है। हम इसके जन्म का सारा खर्चा उठाना चाहेंगे। हमें ख़ुशी होगी,” मनोज बोला।
बहुत आग्रह पर अलका जैन मान गयी।
नॉर्मल डिलीवरी हुई थी, फिर डाक्टर अलका जैन की फीस भी कोई बहुत अधिक नहीं थी। तीन हजार रूपये का बिल उनके सामने आया। दो हजार उन्होंने नर्सिंग स्टाफ और सफाई कर्मचारियों को नेग देने के लिए अपनी तरफ से छोड़ दिए।
“अभी आप बच्चे को सीधे दिल्ली ले जायेंगे?” अलका जैन ने पूछा।
ममता और मनोज फिर अचकचा गये, बोले, “हाँ, घर हमारा दिल्ली ही है। अगर आप कहो तो कुछ दिन हम यहीं पंचकुला में ही ठहर सकते हैं।”
“नहीं, आप बच्चे को सीधे दिल्ली ले जा सकते हो। दिल्ली पहुंच कर किसी चाईल्ड स्पेशलिस्ट से सम्पर्क कर लेना। वह आपको बच्चे की खुराक, पोषण, टीके वगैरह के बारे में गाइड करता रहेगा। फिलहाल, सफर के लिए हम आपको अपने नर्सिंग होम से ही कुछ आवश्यक सामान दे देते हैं।”
अलका जैन ने नर्स से कह कर उन्हें बच्चे के लिए कुछ कपड़े, एक फीडिंग बोतल में कुछ द्रव व एक में दूध के अतिरिक फार्मूला मिल का एक डिब्बा भी दे दिया।
“रास्ते व एक हफ्ते के लिए बच्चे के लिए इतनी खुराक काफी होगी, फिर आप देख लेना,” अलका जैन बोली।
“थैंक यू…” वे बुदबुदाए।
उन्होंने डिलीवरी के खर्चे के अलावा जो कुछ अलका जैन ने थमाया, उसका भी भुगतान कर दिया।
थोड़ी देर में नर्स अनीता अंदर दाखिल हुई, बच्चे को लेकर। ममता और मनोज अपनी जगह से उठ गये। उत्सुकता से बच्चे को निहारने लगे। नर्स ने बच्चा उनके हाथों में थमा दिया। कोमल, सुंदर, स्वस्थ शिशु… बिलकुल कृष्ण कन्हैया लग रहा था। बच्चे की कलाई में बंधे पट्टे पर अपना नाम – ‘बेबी ऑफ़ ममता’ – देख कर ममता बेहद खुश हो गयी।
नर्स डाक्टर से बोली, “लड़की अपने घर जा रही है… ।
“तो जाने दो…” अलका जैन बोली।
“इनसे मिलना चाहती है…” नर्स ममता और मनोज की तरफ इशारा करते हुए बोली।
अलका जैन सोच में पड़ गयी, बोली, “मैं इसके पक्ष में नहीं हूँ। मगर ये भी चाहते हैं तो मुझे कोई आपत्ति नहीं….” अलका जैन ने ममता और मनोज से पूछा, “क्या आप लड़की से मिलना चाहोगे?”
वे भी सोच में पड़ गये। अलका जैन ने पहले ही उन्हें कह दिया था, लड़की का परिचय उनसे गुप्त रखा जाएगा। लड़की और उनके बीच किसी तरह का सम्पर्क नहीं रहेगा। पर अब तो लड़की खुद ही उनसे मिलना चाहती है। डाक्टर अलका जैन को भी आपत्ति नहीं है, सो उन्होंने हामी भर दी।
ममता बोली, “ठीक है मिल लेते हैं… देखे तो सही किसने इतना सुंदर बच्चे पैदा किया है.. ।”
अलका जैन मुस्कुराने लगी।
नर्स ने दरवाजा खोला, और लड़की को अंदर आने के लिए संकेत किया। एक उन्नीस-बीस साल की लडकी कमरे में प्रविष्ट हुई, साथ में उसके माता-पिता। प्रसव की थकान उसके बदन में समाई थी, चेहरा कुम्हलाया हुआ, देह बलहीन। सलवार-कमीज पर सिलवटें पड़ी हुई। ढीला-ढाला स्वेटर, मुड़ा-तुड़ा दुपट्टा उसके गले में बंधा हुआ। इस सबके बावजूद वह सुंदर लग रही थी। एक अपराधी की तरह वह उनके सम्मुख बुत की तरह खड़ी हो गयी।
“घर में यह सबसे छोटी है…। चार भाइयों बाद पैदा हुई थी, हमारे लाड़-प्यार ने इसे बिगाड़ दिया,” पिता बोले।
“हिप्पी की तरह रहती थी यह। गलती कर बैठी। वह छोरा तो आराम से घूम रहा है… । यह फंस गयी। यह पूरा साल इसका पढ़ाई का बर्बाद हो गया,” माँ बोली।
मोटे-मोटे आँसू लड़की की आँखों से टपकने लगे। उसकी माँ भी उसके संग रोने लगी।
स्त्रियों के उत्पीड़न की अनन्त कथा है, हरिकथा की तरह। ममता और मनोज का दिल पसीज गया। मनोज, जोकि उसकी दुगुनी उम्र का था, बोला, “बेटा, तुमने कोई पाप, कोई अपराध नहीं किया। तुमने वही किया जो सृष्टि का नियम है। हम तुम्हारा आभार प्रकट करना चाहते हैं। अपनी अमानत को हमें सौंपने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद,” कहते हुए मनोज के हाथ जुड़ गयें।
“अरे आप शर्मिंदा न करें। यह तो इसके लिए एक अभिशप्त पुत्र है,” लड़की का पिता दुखी भाव से बोला। “इससे छुटकारा पाने में ही इसकी भलाई है। भला है आप लोगों का जो इसे ग्रहण कर लिया, नहीं तो हमें इसे किसी नदी-नाले में बहाना पड़ता… ।”
“कृपया बच्चे को अभिशप्त मत कहिये,” ममता ने लड़की के पिता को टोका।
“इतनी घिनोनी बाते मत करिये,” अलका जैन ने उन्हें फटकारा।
लड़की और जोरो से रोने लगी। सभी मिलकर लड़की को सहलाने-पुचकारने लगे। मनोज बोला, “बेटी, मन में कोई गुनाह न पालो। कुंवारी माताओं के गर्भ से महापुरुषों ने जन्म लिया है।”
थोड़ी देर में जब लड़की संयत हो गयी तो ममता ने उससे प्यार से पूछा, “तुम कुछ कहना चाहती हो?”
व्यथित नयनों से उसने अपने पुत्र को निहारा। होंठ फड़फड़ाये। बच्चे को दुलारते हुये, कपंकंपाते स्वर में बोली, “मेरी बस एक ही इच्छा है… इसे खूब पढ़ाना-लिखाना…। बड़ा अफसर बनाना…। “
“हम तुन्हें वचन देते हैं कि हम इस शिशु को दुनिया के नामी स्कूल-कालेजों में शिक्षा के लिए भेजेंगे…” ममता और मनोज लड़की का हाथ पकड़ते हुए भावुक स्वर में बोले।
सभी की आँखे नम हो गयी। अलका जैन लड़की से बोली, “तुम्हारी उम्र भी अभी पढ़ने-लिखने की है, बेटा। एक साल बर्बाद होने से जिन्दगी थमती नहीं। खूब पढों-लिखो, अपने पैरों पर खड़े हो। अपने माता-पिता का सम्बल बनो।”
आंसू पोंछते हुए लड़की ने अपना सिर हिलाया। भले ही वह कमजोर लग रही थी मगर उसमें एक दृढ़ता भी सभी को नजर आयी।

अलका जैन का आभार प्रकट कर सभी उनके नर्सिंग होम से बाहर निकल आये। लड़की ने अश्रुपूर्ण नयन से अपने पुत्र को विदा किया, फिर वह अपने माता-पिता के साथ आगे बढ़ ली। ममता और मनोज, उस लड़की का परिचय जाने बगैर, ख़ुशी से चमकते नेत्रों से उसके नवजात बेटे को अपनी बाँहों में समेट अपनी कार में सवार हो गये।

 कार का इंजन स्टार्ट करते हुए मनोज ममता से बोले, "तुमने एक बात गौर की... लड़की बड़ी लम्बी है। अगर उसका ब्वॉयफ्रेंड भी लम्बा हुआ तो यह बच्चा भी लम्बा जायेगा... और हम दोनों नाटे कद के...। "

“यह जैसा भी जाएगा, अब यह हमारा है…” ममता बच्चे को अपनी आँखों से लगाते हुए बोली।

    'इसे खूब पढ़ाना-लिखाना... बड़ा अफसर बनाना...' ममता के मन-मस्तिष्क में शब्द हमेशा के लिए बंध गये और जब तब ये शब्द उसके मस्तिष्क में प्रतिध्वनित करते हैं। पंचकुला से दिल्ली की वह कार यात्रा इतनी सुखद व संवेदना से परिपूर्ण थी कि ममता कभी भी उन लमहों को भूल नहीं सकती। उसकी गोदी में, उसके शौल से ढका नया-नया जन्मा बच्चा, जिसे लेकर वह तरह-तरह के सपने बुनने लगी थी। मन में अपार प्रसन्नता थी। ऐसा लग रहा था जैसे कोई खजाना मिल गया हो।   
 आठ बज चुके थे। धूप खिल गयी थी। ठंडी हवाएं चलनी बंद हो गयी थी। आसमान में उड़ते  रुपहले बादल अद्भुद छटा बिखेर रहे थे। ऐसा लग रहा था था जैसे जितने भी महादेव हैं इस शरद् ऋतु में आज धरती पर उतर आये हैं।
 नवजात को लेकर वह पहले मन्दिर दर्शन के लिए गये, जहाँ वे अक्सर बच्चे की मुराद मांगने जाते थे। आज वे ईश्वर का शुक्रिया अदा करने के लिए गये। फिर अपने घर आये। छह हफ्तों तक उन्होंने बच्चे के विषय में किसी को कुछ नहीं बताया। बच्चे के साथ ममता घर में कैद रही। यहाँ तक कि घर में काम करने वाली बाई को भी छुट्टी दे दी। सिर्फ पड़ोस के पोलीक्लिनिक के चाईल्ड स्पेशलिस्ट डाक्टर कक्कड़ से उन्होंने सम्पर्क स्थापित किया। डाक्टर कक्कड़ ने हरेक हफ्ते उनके घर में ही विजिट दी। वह भी जरूरत पड़ने पर उसे अपने आंचल से ढक कर बच्चे को उनकी क्लिनिक में ले गयी।

इस परिसर में रहने वालों के उदासीन व्यवहार को ममता जब तब कोसा करती थी, अब सराह रही थी। यहाँ के लोग बसे अपने काम से काम रखते हैं। किसी के घर में ताक-झाँक नहीं करते। बहुत अच्छा।
जब छह हफ्ते गुजर गये तो उन्होंने सबसे पहले अपने ऊपर वाले पड़ोसी सुनीता नौटियाल, जिससे उनके अच्छे सम्बन्ध थे, सूचित किया, “हमारे बेटे को देखने हमारे घर आइये… । “
मिसेज सुनीता नौटियाल भी हैरत से भर गयी, “आपका बेटा? क्या तुम प्रेग्नेंट थी? तभी कहूँ तुम दिखाई क्यों नहीं दे रही थी…। “
“आप नीचे आइये तो सही, सब पता चल जाएगा.”
सुनीता नौटियाल जब नीचे आई तो बच्चे को देख कर और हैरत से भर गयी। तमाम सवाल उनके चेहरे पर, बोली, “डाक्टर कक्कड़ को मैंने दो-तीन बार अपनी बिल्डिंग के बाहर देखा, मैं सोच रही थे कि ये किसके बच्चे को देखने यहाँ आये हैं…?”
मनोज बोले, “हमारे बच्चे को देखने आते हैं डाक्टर कक्कड़।”
कुछ क्षण पश्चात लंबी सांस खींचते हुए वे बोले, “ईश्वर ने इसे हमारे लिए एक कुँवारी माता द्वारा पैदा किया।”
“ओह तो आपने इसे गोद लिया…?”
“ऐसा ही कुछ समझ लो… ।”

बस यह कहानी ममता और मनोज के सगे-सम्बन्धियों के बीच फ़ैल गयी कि उन्होंने छह माह के एक शिशु को गोद लिया है। सिर्फ ममता के भाई-भाभी सच्ची कहानी जानते थे।

शिशु के सभी रिवाज हुए। नामकरण संस्कार, अन्नप्राशन, दीक्षा... । कर्ण नाम दिया उन्होंने अपने बेटे को। घर में प्यार से उसे राधेय पुकारने लगे। कर्ण जब तीन साल को हो गया तो उसे स्कूल में भर्ती किया गया। स्कूल के रजिस्टर में भी माता-पिता के कॉलम में उनका नाम चढ़ गया तो उन्होंने राहत की सांस ली। 
बड़े चाव से ममता उसका लालन-पालन कर रही थी।  वह उनका कुलदीपक था। जीवन भर की निराशा का घना अन्धकार तिरोहित हो गया था। मगर दिल के एक कोने में यह भय निरंतर समाया था कि कहीं कभी किसी को कुछ संदेह न हो जाए। लोगों को यह न खटके कि उनका बेटा उनसे इतना भिन्न क्यों है।  

शिशु तस्करी को लेकर आजकल सरकार बहुत चौकन्नी है। पुलिस को अगर पता चल गया कि उन्होंने धोखाधड़ी की है, बच्चा उनका अपना नहीं है, उस गुमनाम लड़की का है, पुलिस उन्हें हिरासत में ले लेगी। जब कभी उसे कहीं पुलिस खड़ी दिखती या पुलिस की गाड़ी नजर आती काँप जाती वह। अपने मन का भय ममता बार-बार अपने पति के सम्मुख व्यक्त करती: “कहीं पुलिस हमसे राधेय को छीन न ले!”
“हमने इसे चुराया नहीं, इसकी माँ ने खुद ही हमें सौंपा है,” मनोज पत्नी पर झल्लाया।
“हम यह कैसे समझाते फिरेंगे…? पुलिस तो यह ही कहेगी कि हमने इसे लीगल तरीके से नहीं अपनाया है। हमारे पास कागजात जाली हैं “
“मैं कुछ करता हूँ… ” एक दिन मनोज कुछ सोचते हुए बोला।
“क्या करोगे?”
“यहाँ से हम बहुत दूर चले जायेंगे… ।”
“कहाँ…?” ममता ने सहमते दिल से पूछा।
“बहुत सारे देश हैं दुनिया में…। दुनिया-भर में कुछ ऐसे पेशे हैं जिनमें लोगों की माँग लगातार बनी हुई है…।”

मनोज एक शिक्षित, टेक्निकल पृष्ठभूमी का था, जो अमेरिका में नौकरी खोजने का एक मददगार कारक बन गया। थोड़े ही प्रयत्नों से उसे अमेरिक के स्टेट टेक्सास के डाउनटाउन ह्यूस्टन में एक तेल कम्पनी में नौकरी मिल गई। वीजा के लिए अमेरिकन एम्बेसी गये तो भी दिल में धुकधुकी थी कि कहीं यहाँ राज न खुल जाए। कोई तहकीकात न हो और यह रहस्य खुल जाए कि यह उनका खुद का बच्चा नहीं है, न ही उन्होंने इसे गोद लिया है…।
मगर उनके साथ जब राधेय का भी अमेरिका का वीजा लग गया तो उन्होंने चैन की सांस ली, इत्मीनान हो गया कि अब कर्ण को उनसे कोई नहीं छीन सकता। वह उनका है, सिर्फ उनका है।
वे चार वर्ष के राधेय को लेकर अपने वतन से बहुत सूदूर अमेरिका आ गये। राधेय यहाँ प्राइमरी स्कूल में भर्ती हुआ। यहाँ उसका लालन-पालन होने लगा। जो क़शमक़श उन्हें होती रहती थी, यहाँ आकर ख़त्म हो गयी थी।
हर देश के अपने अलग रीतिरिवाज होते हैं। कानून भी उसी तरह से बने हैं। वे पश्चिमी जीवन शैली से रूबरू हुए। भारत में अनब्याही मांए तिरस्कार और लांछन का शिकार बनती हैं। नारी की स्थिति सभी देशों में एक सी नहीं है। उन्हें अमेरिका में नारी ज्यादा स्वतंत्र तथा अपने अधिकारों के प्रति सजग दिखी, और यहाँ संतानोत्पत्ति के लिए विवाह का होना अनिवार्य नहीं है।
कुंवारा और ब्रह्चारी की परिभाषायें अलग है। अनब्याहें लड़के-लड़कियां सेक्स से वंचित क्यों रहें। यहाँ भी टीनएजर प्रेगनेंसी होती हैं, यहाँ भी छात्र लड़कियां अपने बच्चों को एडोप्शन के लिए डालती हैं। मगर उसकी वजह अक्सर आर्थिक होती है, समाज के कलंक से बचना नहीं।
बिना नारी के इस दुनिया की कल्पना नहीं की सकती, लेकिन भारत में आज भी समाज में नारी को अपने अधिकार के लिए अथक संघर्ष करना पड़ता है। उन्हें उस परिचय विहीन कुँवारी लड़की पर बेहद दया आती, इतने वर्षों बाद भी उसके प्रति उनका मन करुणा से भर जाता। कर्ण उसके लिए एक अभिशप्त पुत्र था। लोकाचार के भय से कैसे उसे अपने बच्चे से वंचित होना पड़ा। गैरों को सौंपना पड़ा। खैर भगवान ने इसे उनके लिए भेजा है, यह सोच कर वे प्रसन्नचित हो जाते। हंस कर स्वयं से ही कहते, ये तो कुंती का कर्ण है। हम तो मात्र इसके पालक मातापिता अधिरथ और राधा हैं।
वे यह भी विचारते, वह लड़की पढ़-लिख कर अपने पैरों पर खड़ी हुई होगी। किसी नेक आदमी से उसका विवाह हुआ होगा। और भी उसके योद्धा पुत्र हुए होंगे। वह मजे में अपनी जिन्दगी बसर कर रही होगी। उसका सबसे बड़ा पुत्र अच्छे मातापिता के साथ पल रहा है, इस बात का अहसास उसे अवश्य इत्मीनान देता होगा।

दिन, महीने, साल… यूं ही बीतते चले गए। उस दिन अलका जैन नर्सिंग होम से ममता अपने नवजात शिशु को शौल में लपेटे बाहर आई थी। नन्हा बच्चा जैसे ही उसकी गोद में समाया, समय ने अपनी रफ्तार पकड़ ली। उसके आंचल के साये में पलकर वह मासूम धीरे-धीरे बड़ा होता गया, और आज वही नन्हा बच्चा छह फुट का कद्दावर नौजवान बन चुका है। गोरा रंग, प्रशस्त ललाट, चौड़े कंधे, और बलिष्ठ देह… उसकी हर अदा में एक अनोखी शक्ति और आत्मविश्वास झलकता है। जब भी वह उसे ‘माँ’ कहकर पुकारता है, ममता का रोम रोम पुलकित हो उठता है, जैसे उसने दुनिया की सबसे बड़ी उपलब्धि हासिल कर ली हो।
वह उसकी आँखों के सामने ही प्राइमरी से सेकेंडरी, फिर हायर सेकेंडरी, और अंततः विश्वविद्यालय की ऊंचाइयों तक पहुँच गया। आज उसका कर्ण एमआईटी से इंजीनियरिंग की डिग्री लेकर उसे गौरवान्वित कर रहा है। महाभारत के कर्ण की तरह, उसका कर्ण भी बुद्धिमान, दानशील, साहसी और पराक्रमी है। ममता को अपने बेटे पर गर्व है, क्योंकि वह केवल उसका पुत्र नहीं, बल्कि उसका संपूर्ण संसार है, उसकी हर आशा और हर सपना उसी में साकार होता है।
वह जानती है, उसकी तपस्या का फल आज उसके सामने खड़ा है, जो न सिर्फ उसकी आकांक्षाओं का प्रतीक है, बल्कि उसके जीवन का सबसे बड़ा गौरव भी।

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आज का विचार

मोहर Continuous hard work is the cachet of success in the life. निरंतर परिश्रम ही जीवन में सफलता की मोहर है।

आज का शब्द

मोहर Continuous hard work is the cachet of success in the life. निरंतर परिश्रम ही जीवन में सफलता की मोहर है।

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