एक रात धूप उतर आती थी मेरी कोख में
एक रात मैं ने नहीं देखा अंधेरा
वह उजलाती रोशनी थी
हमारी देह की
एक रात तारों से भरा आसमान
फट गया गुलाबी गुब्बारे सा
और हमने जाना
सृष्टि की एकरूपता का रहस्य
एक रात हमें यीशू ने
वहीं खड़े खड़े अशीषा
एक रात हमने खाया सेब
और नहीं निकाले गये बहिश्त से
एक रात हम गिरे
इच्छाओं के जोहड़ में
झरने की तरह
फिर नदी की तरह बहने लगे
एक रात पंचतत्वों से
उसे गढ़ा मैं ने
और खड़ी हो गयी
शृष्टिदाता के समकक्ष
फिर पहरे बिठा दिया
सभ्यताओं के

उस रात यही एक
गलत काम किया मैं ने।

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आज का विचार

जब तक आप खुद पर विश्वास नहीं करते तब तक आप भागवान पर विश्वास नहीं कर सकते।

आज का शब्द

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