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एक बुरे लड़के की हॉस्टल डायरी का एक पन्ना

डॉ. अनुराग पेशे से डर्मेटोलॉजिस्ट हैं , लेकिन उनकी लेखनी में आज का समय सांस लेता है। अनुराग के ढेर सारे प्रशसंक हैं, खासतौर पर महिलाए और लड़कियाँ। प्रेम पर वे बहुर संवेदनशील ढंग से अपने जीवन के पन्नों को सोशल मीडिया पर उतारते हैं। हिंदीनेस्ट के आग्रह पर उनसे हमें भी ‘बुरे लड़के की हॉस्टल डायरी का एक पन्ना’ हासिल हो गया है। आनंद लें।

मै तुम्हे  पसंद करता था और तुम  कबीर को। कबीर हमारा सीनियर था , तुम्हे  मेरी पसंदगी का इल्म था और तुम्हारी शायद  कबीर को।  जैसे मैंने तुम्हे  अपनी पसंदगी की जिक्र नहीं किया था तुमने  अपनी पसंदगी का कबीर को। कबीर पढाई में अच्छा था ,सीरत में भी और सूरत में भी।  सूरत में वो कुछ ज्यादा ही अच्छा था।  पढ़ाई और सीरत में आप उससे मुकाबला कर लेते पर सूरत वो मुमकिन नहीं था।  खुदा के रजिस्टर में ऐसा ही कानून था रकीब हमेशा हैंडसम होता। यूँ भी मुझे वो हर उस  शख्स से नापसंदगी हो जाती जिसकी तुम  तारीफ करती।  तुम्हे  जॉर्ज क्लूनी भी पसंद था एक रोज क्लूनी को नापसंद करने के लिए मै हॉल में क्लूनी से वाकिफ होने गया। शुक्र था वो शख्स बहुत दूर था। साला वो भी बहुत हैंडसम निकला !

मै ढूंढ ढूंढ  कबीर के ऐब तुम्हे बताता ,तुम इग्नोर  कर देती। एक बात सकून भरी थी कबीर तुम्हे तवज्जो नहीं देता था।  सबब ढूंढने की जितनी तलब तुममे थी उससे कही ज्यादा मुझमे।  फिर बॉयेज़  हॉस्टल में एक उड़ती  खबर आयी के कबीर का अफेयर  इंजीयरिंग कॉलेज की किसी  लड़की से  है। मन में एक अजीब सी ख़ुशी हुई मैंने ऊपर वाले का शुक्रिया अदा किया  दुआ की  इस खबर में  सच्चाई हो।

कई रोज गुजरे इस खबर की तस्दीक़ी नहीं हुई  पर मन अजीब से सकून में था यूँ भी इश्क़ में दो चीज़े होती है छोटी छोटी वजाहत उम्मीदे देती है और  वक़्त का पहिया बहुत तेजी से घूमता है

कुछ सुबह ऐसे बिहेव करती है जैसे रात सेडेटिव लेकर सोयी हो , बेखबर सी.  हरारत में हो जैसे  ,जो किसी शै में शिरकत नहीं करनी चाहती। वो ऐसी ही एक इतवार की  हैंगओवर  वाली  सुबह थी।  नीलेश मुझे किसी खींच कर खाने के लिए दूर उस रेस्ट्रोरेंट में ले गया था इंजीयरिंग कॉलेज के नजदीक।मै  सोया सोया सा गया था।   वहां कबीर किसी लड़की के साथ बैठा था ,उस लड़की में कुछ ख़ास नहीं था  हाँ अपने चश्मे से  वो पढ़ने लिखने वाली जेहनी लड़की सा अहसास दे रही थी। मेरा हैंगओवर उतर गया था। हमें देखकर कबीर मुस्कराया था। कोई दस मिनट गुजरे चार पांच लड़के हॉकी स्टिक लिए रेस्ट्रा में घुसे थे। सीधा कबीर की और बढे थे। कुछ मिनट गहमा गहमी हुई ,वो अड्डा इंजीयरिंग कॉलेज के लड़को का था। बहस तल्ख़ होने लगी  थी वो लड़की  उनके सामने खड़ी हो गयी थी। ऐसे वक़्त में बाते ज्यादा देर नहीं होती। कुछ गाली गलौच हुई फिर वे सब कबीर पे टूट पड़े। पता नहीं कब और कैसे बिना एक दूसरे से मशवरा किये   मै और नीलेश उस लड़ाई में शामिल हो गये। ऐसी लड़ाई में तीन चार मिनट भी बहुत ज्यादा होते है। किसी ने  शोर मचाया  पोलिस आने वाली है

वे पांचो हॉकी घुमाते हुए गायब हो गए। कबीर गिरा पड़ा था ,उसके माथे और बाजू से खून बह रहा था।

वो अनकांशियस था। लड़की रोये जा  रही थी।  कुछ मिनट में कबीर को होश आया था। मै और नीलेश उसे मोटरसाइकिल में बिठा कर जैसे  तैसे अपने हॉस्पिटल दौड़ पड़े थे। उसकी सीधी बाजू और दो रिब में फ्रेक्चर निकला  ,सर में  और यहाँ वहां कई गुम चोटे निकली। दोपहर तक हॉस्टल गुस्से में आ गया था बात मेडिकल बनाम इंजीरिंग कॉलेज में तब्दील हो गयी थी। नीलेश और मुझे भी कुछ चोटे लगी थी जिनका इल्म वक़्त बीतने पर बढ़ते दर्द के साथ हुआ था।  कोई जा कर कबीर की मोटरसाइकिल ले आया था। बड़ी मुश्किल से शाम तक जाकर लड़को में उबाल ख़त्म हुआ था ,कबीर का  उसमे  ख़ासा रोल था

शाम 7 बजे कोई मुझे कमरे में  बुलाने आया था ,कबीर  मिलना चाहता था। जाहिर था  वो  एडमिट था।  नीलेश सो रहा था। दिसंबर की वो शाम चोट में ज्यादा सर्द मालूम पड़ रही थी।  मैंने हॉस्पिटल में घुसने से पहले अपनी मोटरसाइकिल पार्क की और सिगरेट ढूंढी ,वो आखिरी सिगरेट थी   सुबह से हंगामो में पूरा पैकेट खर्च हो गया था  ,जैकेट पर मफलर लपेट कर मै अंदर घुसा तो तुम वहां बैठी हुई थी । एक गुलाब से भरा  बुके तुम्हारे हाथ में था    जिससे लिपटे  कागज पर  काफी कुछ लिखा हुआ था।

कबीर मुझे देख मुस्कराया था।

कुछ सेकण्ड गैर इत्मिनानी ख़ामोशी में गुजरे ही थे के वो चश्मे वाली लड़की किसी दूसरी लड़की के साथ कमरे में दाखिल हुई।

"दिव्या तुम्हे शुक्रिया कहना चाहती है "

तो उसका नाम दिव्या था

कुछ मिनट इन्ही शुक्रिया में गुजरे के तुम बैचेन से खड़ी हो गयी थी।

तुमने मुझे आवाज दी थी ,तुम्हारा चेहरा लाल सुर्ख हो गया था। तुम उसी वक़्त उसी कमरे से जाना चाहती थी मुझे लेकर।

कबीर ने अपनी बांहे मेरी तरफ फैलायी मै उससे लिपट गया था।

"नीलेश को भी शुक्रिया कहना भाई "वो बुदबुदाया था

उन लफ्ज़ो में एक किस्म की गरमाहट थी ,जो अमूमन सच बोलते लफ्ज़ो में होती है !

तुमने दरवाजे पे खड़े होकर फिर मुझे जोर से पुकारा था। 

तुम्हारे उस बिहेवियर से मै हैरतजदा था। तुम लगभग  मुझे घसीटती हुई हॉस्पिटल से बाहर आयी थी, बुके समेत।

तुम्हारी साँसे उखड़ी हुई थी ,तुमने अंग्रेजी में कुछ गाली दी फिर कहा

"इस चश्मे वाली छिपकली के लिए सर फुड़वाना था ,दोनों का फूटना चाहिए था  *** यू डिज़र्व इट "

तुमने बूके सड़क पर फेंक किया था ,तुम्हारे लहज़े में एक अजीब सी तल्खी थी।

"तुम मुझे हॉस्टल छोड़ दो " तुमने उसी अधिकार वाले अंदाज में मुझे कहा था जैसे तुम बाते करती थी

"पेट्रोल नहीं है ",मैंने कहा और अपनी सिगरेट लेने लारी पर पैदल चल दिया था।

तुम मेरे  दिल से उतर गयी थी !

 

#बुरेलड़कोंकीहॉस्टलडायरी

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