जिराफ की लम्बी गर्दन के लिये पूर्व अफ्रीका में एक कहानी प्रचलित है।

सृष्टि की शुरुआत के समय ईश्वर ने जिराफ को दूसरे जानवरों की तरह ही सामान्य पैर और गर्दन दी, उस समय जिराफ बहुत कुछ बडे सांभर से मिलता जुलता सा था। सब कुछ अच्छा चल रहा था, जिराफ भी संतुष्ट था। किन्तु एक वर्ष भयंकर अकाल और सूखा पडा। सारे जानवर भूख और प्यास से बिलबिलाने लगे क्योंकि सारा पानी सूख चुका था और सारी घास पहले ही चर ली गई थी बाकि सूख गई थी। यहाँ तक कि सूखी घास भी खाकर जानवरों ने खत्म कर ली। बस सूखी कंटीली टहनियों और पीली और कडवी टर्पेन्टाईन घास के अलावा कुछ न बचा था। जानवर पानी और भोजन की तलाश में हर रोज मीलों दूर चल कर जाते जहाँ पानी के कुछ गङ्ढे बचे थे। यह वह समय था जबकि सबसे स्वस्थ और शक्तिशाली जानवर ही बच सकते थे।

एक दिन जिराफ सूखे मैदानी इलाके में जहाँ रेतीले चक्रवात राक्षस की तरह घूमते थे और क्षितिज पर गर्म धूप चमकती थी, अपने दोस्त गैंडे से मिला। वे दोनों साथ साथ पानी के गङ्ढे की तलाश में आए थे। दोनों इस कठिन समय और भोजन पानी के अकाल की बातें करने लगे।

”ओह मित्र देखो सारे जानवर कैसे इस सूखे मैदान में भोजन ढूंढते हुए व्याकुल घूम रहे हैं। लेकिन देखो वहाँ पलाश के उन पेडों को।” जिराफ ने कहा
” हूँ! ” गैंडे ने बस सर हिलाया क्योंकि वह आज भी ज्यादा बातूनी नहीं है।
” कितना अच्छा होता अगर हम उन पेडों की सबसे ऊंची डालियों तक पहुँच पाते जहाँ कोमल नाजुक नई पत्तियाँ हैं। वहाँ हमें पर्याप्त भोजन मिल सकता है किन्तु न तो मैं पेड पर चढ सकता हूँ, और ना ही तुम।” जिराफ कहता रहा।

गैंडे ने सर उठा कर देखा, सचमुच उन पेडों पर हरी भरी कोमल पत्तियों का घना छतनार था।

” अँशायद हमें जादूगर के पास जाना चाहियेवह एक आदमी है जो कि बहुत शक्तिशाली और बुध्दिमान है।” गैंडे ने सूखी डाली चबाते हुए सोच समझ कर कहा।
” वाह क्या सूझी है तुम्हें भी। चलो दोस्त चलें, किधर से चलें? क्या वह सच में हमारी मदद कर सकेगा?” जिराफ उत्सुक हो उठा।

दोनों मित्र सूर्य डूबने तक चलते रहे, बस एक दो बार कीचड भरे गङ्ढे में पानी पीने को पल भर रुके होंगे। एक लम्बी यात्रा के बाद मध्य रात्रि को वे आधे रास्ते तक ही पहुँचे। ज़रा विश्राम के बाद वे फिर चल पडे अब सुबह हो चली थी और अन्तत: वे जादूगर तक पहुँच ही गये और अपनी समस्या उसके सामने रखी।

जादूगर ठठा कर हंस पडा, ” ओऽ ह यह तो मेरे लिये बहुत आसान है। तुम कल दोपहर यहाँ फिर आना और मैं तुम्हें जादूई जडीबूटी खाने को दूंगा। जो कि तुम्हारी टाँगों और गर्दन को इतना लम्बा बना देगी कि तुम पेडों के शिखर तक पहुंचने के काबिल हो जाओगे।” जादूगर जडी बूटी ढूंढ कर तैयार करने में व्यस्त हो गया और प्रसन्नता से भरे गैंडा और जिराफ पास के पानी के गङ्ढे पर विश्राम के लिये चले आए।

सुबह तयशुदा समय पर जादूगर की कुटिया पर केवल जिराफ पहुँचा और गैंडा कहीं पीछे छूट गया, क्योंकि उसे कहीं पीछे हरी घास का एक टुकडा मिल गया था जो कि किसी तरह अन्य जानवरों की नजर से बचा रह गया था। और लालची गैंडा उस घास को हबड हबड ख़ाने में इतना मशगूल हो गया कि वह जिराफ से पीछे तो छूट ही गया और उसे दोपहर तक भी जादूगर की कुटिया तक पहुँचने की याद न आई।

काफी देर के इंतजार के बाद जिराफ के बहुत कहने पर भी जादूगर ने इंतजार नहीं किया, उसने जिराफ को सारी तैयार जडी बूटी दे दी और स्वयं अपनी कुटिया में चला गया यह कह कर कि , ”जल्दी खा लेना, वरना इसका असर खत्म हो जाएगा।”

बेचारे जिराफ ने न चाह कर भी पूरी जडी बूटी खा ली। खाते ही उसकी गर्दन और टाँगों में एंठन होने लगी और अचानक उसे लगा कि पृथ्वी से वह उपर उठा जा रहा है। कितना अजीब मगर मजेदार अनुभव था। जिराफ ने रोमांच से आंखे बंद कर लीं, जब खोलीं तो सारा संसार बदला सा लगा। वह बहुत उपर था हवा में, मीलों तक देख पा रहा था। उसने अपने लम्बे लम्बे पैरों और गर्दन को देखा और मुस्कुरा दिया। जादू काम कर गया! उसने पाया कि उसकी ही लम्बाई पर पलाश के पेडों की हरी पत्तियों का छतनार शीर्ष था। उसकी खुशी का पारावार न था।

उधर गैंडे को जब याद आया शाम ढले जब वह घास का वह पूरा टुकडा चर चुका था तब वह भागा भागा जादूगर की कुटिया पर पहुंचा। वहाँ दरवाजा बन्द था। उसे देर हो चुकी थी। उसने वहाँ देखा नये लम्बे सुन्दर जिराफ को, जो कि मजे से उपर की डालियों की पत्तियां खा रहा था, दूसरे जानवरों से उसका कोई लेना देना न था, उपर की डालियों का सारा का सारा भोजन उसका ही था।

तब उसने कुटिया का दरवाजा खटखटाया। अन्दर से निकल कर जादूगर ने कहा कि, ”तुम देर से आए सारी जडी बूटी खत्म।” गैंडे को लगा कि उसके साथ जादूगर ने धोखा किया है तो उसे गुस्सा आ गया, उसने अपनी नाक का सींग उठाया और आदमी पर हमला करने भागा और तब तक उसके पीछे भागता रहा जब तक कि वह झाडियों में न जा छिपा।

वह दिन और आज का दिन कि गैंडा बहुत गुस्सैल हो गया, जब भी वह लोगों को देखता है उसे जादूगर की जिराफ को दी गई लम्बी टाँगे और गर्दन याद आ जाती है और वह अपनी नाक का सींग उठा कर आदमियों के पीछे भागता है।

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आज का विचार

जो अग्नि हमें गर्मी देती है, हमें नष्ट भी कर सकती है, यह अग्नि का दोष नहीं हैं।

आज का शब्द

जो अग्नि हमें गर्मी देती है, हमें नष्ट भी कर सकती है, यह अग्नि का दोष नहीं हैं।

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