प्रिय बच्चों,

तुम रोज सुबह उठकर अपने आस-पास कई रंग-बिरंगे पक्षियों को देखते होगे, हैं ना! कोई नन्हा सा, कोई बडा, कोई नीला तो कोई पीला, हरा। किसी की चोंच कैसी किसी की कैसी। किसी का घोंसला पत्ते सिल कर बनाया हुआ किसी का बस तिनकों का ढेर सा, कोई बेहद ऊँचा उडता है तो कोई जरा सा उड क़र थक कर बैठ जाता है। क्या तुम इनके नाम जानते हो? जानते हो ये कब और कहाँ अण्डे देते हैं? इनका रंग आकार, व्यवहार कैसा होता है? जानने की उत्सुकता तो होगी ये कहाँ से आते हैं और कहाँ जाकर सो जाते हैं? तो मैं आपको बताउंगा। आज एक पक्षी के बारे में बताउंगा जो अकसर आपके बैकयार्ड में आता है और अपनी तीखी चोंच से जमीन पर से कीडे चुन कर खाता है।उसके सिर पर फैन जैसा क्रेस्ट होता है, भूरे और सफेद-काले रंग के इस मध्यम आकार के पक्षी का नाम समझे? नहीं ? सोचो! हाँ! हूप्पो और हिन्दी में हुदहुद।

यही ना। देखा है ना इसे। आओ अब इसके बारे में तुम्हें विस्तार से बताऊं।

जैसा कि तुमने भी देखा होगा इसका आकार लगभग मैना जैसा होता है। इसका रंग हलका भूरा होता है और परों और पूँछ पर काली-सफेद जेब्रा जैसी धारियाँ होती हैं। पंखे के आकार की सर पर कलंगी जिसे हम क्रेस्ट कहते हैं, होती है। इस पक्षी में नर और मादा देखने में एक से ही होते हैं। इसकी फोरसेप यानी चिमटी जैसी जरा सी खुली लम्बी पतली चोंच हलकी सी मुडी हुई होती है, जिससे कि इसे कीडे पकडने में आसानी रहती है। इसे तुम अकेला या अपने साथी के साथ सदा ज़मीन पर ही चुगता पाओगे। कई बच्चे इसे वुडपैकर यानि कठफोडवा समझने की गलती करते हैं।

यह हुप्पो पूरे भारत में पाया जाता है। इसे आपका गार्डन, बैकयार्ड और हरी घास के मैदान पसंद आते हैं, इसे शहरों, गाँवों में और हमारे आस-पास ही रहना अच्छा लगता है। इसकी उडानें छोटी होती हैं, और कई बार यह फुदक-फुदक कर दौड क़र भी काम चला लेता है। जब यह मिट्टी खोद कर कीडे चुनता है तब इसकी पंखेनुमा क्रेस्ट बंद रहती है, बाकि वक्त वह इसे खोलता-समेटता रहता है। यही इसकी खूबसूरती है। इसकी आवाज बडी अच्छी और सुरीली होती है जो कि इसके नाम से मिलती है, दरअसल इस आवाज से ही इसका नाम हूप्पो पडा होगा। यह हू-पो या हू-पो-पो की लगातार आवाज निकालता है और अकसर कुछ पलों के अन्तर से पाँच मिनट तक यह आवाज क़रता रहता है।

इसका भोजन कीडे और उनके अण्डे और लार्वा-प्यूपा होते हैं। इसलिए हम कह सकते हैं कि यह किसानों का मित्र होता है।

यह बसंत में यानि फरवरी से अप्रेल माह में घोंसला बनाता है। इसके घोंसले बस यूं ही कभी पेड क़े खोखले कोटर में या किसी पुरानी इमारत की दीवारों, छतों के होल्स में बने होते हैं। यह घोंसला बनाने में कोई खास मेहनत नहीं करता बस तिनकों, कूडे-क़रकट से अपना घोंसला बनाता है। इसका घोंसला गन्दगी और बदबू से भरा होता है। इसके अण्डे सफेद होते हैं और मादा हूप्पो एक बार में 5 या 6 अण्डे देती है। नर और मादा दोनों मिलकर बच्चों को पालते हैं, उन्हें भोजन लाकर खिलाते हैं और शत्रुओं से रक्षा करते हैं।

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आज का विचार

मोहर Continuous hard work is the cachet of success in the life. निरंतर परिश्रम ही जीवन में सफलता की मोहर है।

आज का शब्द

मोहर Continuous hard work is the cachet of success in the life. निरंतर परिश्रम ही जीवन में सफलता की मोहर है।

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