प्रिय बच्चों,

इस बार हम आपको पानी तथा पानी के आस पास पाये जाने वाले पक्षियों में स्टॉर्क परिवार के पक्षियों से मिलवाते हैं।

सॅर्क पक्षी(परिवार सिकोनाइडी) ऊपरी तौर पर बडे अंजन से मिलते जुलते होते हैं। इनकी टांगे लम्बी और टांगो का निचला भाग कुछ बाल रहित खुला होता है ग़र्दन लम्बी और भारी और आगे को पतली पडती नुकीली चोंच होती हैं। उडते हुए ये अंजनो से बिल्कुल अलग पहचाने जा सकते हैं। इनकी गर्दन आगे को खिची रहती है और इसके खिलाफ बगुलो की गर्दन अंग्रेजी अक्षर एस के आकार मे चपटी और मुडी होती है। सारसो के स्वर पेशियाँ नहीं होती ऌसलिए ये आमतौर पर चुप ही रहते है। ये सिर्फ कभी किसी मौके पर गले से हल्की घुरघुराहट की सी आवाज या प्रजनन काल मे नर-मादा दोनो ही खूब खुल कर अपने जबडों से फटफटाहट की सी आवाजे क़रते है।

भारत मे इस स्टॉर्क परिवार की जो सबसे अधिक आम और आकर्षक प्रजाति पाई जाती है वह है जंगहिल दांख क़ंकारी – ये लगभग गिध्द के आकार का और सिर तक लगभग साढे तीन फुट ऊंचा होता है। इसके पर सफेद होते है जिनपर ऊपर की तरफ चमकदार हरापन लिए काले रंग के पास पास निशान और पट्टियां पडी होती है और छाती पर काली पेटी सी बनी होती है। अंग्रजी मे इसे  पेन्टेड स्टार्क ‘ कहते है। इसका कारण ये है कि इसकी पूंछ के पास मुलायम हल्के गुलाबी रंग के पर(असली नहीं ऊपरी) होते है। मुंह कुछ चिकना पीला होता है और उसपर बाल नहीं होते तथा चोंच पीली तथा भारी नोंक पर कुछ मुडी होती है। यह चिडिया झीलों और दलदलों के पास छोटे मोटे दलों या बडे झुंडों मे पाई जाती है। ये और स्टॉर्क के साथ सारा दिन या तो कूबड निकाले चुपचाप खडे रहते है या दलदली भूमि या उथले पानी में मछलियां और मेंढक ढूंढ़ते बडे धैर्य के साथ घूमते रहते है।

मछलियां और मेंढक उसका खास भोजन है। खाने को ये पानी के कीडे क़ेंकडे और घोंघे भी खाते है। जंगहिल खाना ढूंढने के लिए उथले पानी में घुस जाता है फिर गर्दन झुकाए चोंच खोले और कुछ भाग पानी में डुबाए धीरे धीरे चलता रहता है। चोंच को या तो कुछ पाने की आशा में बिल्कुल निश्चिल रखता है या एक टांग उठाए हुए इधर उधर बाजुओं की ओट घुमाता रहता है। टांग को इस तरह घुमाकर वह पानी को चलाता है और शिकार को हांक कर खुले जबडों की ओर ले आता है। कभी कभी टांग चलाने के साथ ही वह उसी ओर का पंख भी फडफ़डाता है ऌस प्रकार उसकी छाया भी पानी में पडती है इससे शिकार और जल्दी उधर की ओर आ जाता है।

जंगहिल पानी में या उसके पास स्थित पेडों पर निस्संकोच होकर बैठते और बसेरा करते है। उडने में ये पहले कई बार जोर जोर से पंख मारते है और फिर थोडी दूर पंख मारना बंद करके तिरते है और इनमें भी दिन की गर्मी में ऊंचे आसमान में चढने और बहुत देर तक गोल मंडराने की अन्य सारसों की सी आदत पाई जाती है। इनका घोंसला पतली लकडियों का बना बडा चबूतरा सा होता है। उसके बीच में खम होता है और उसमें डंठल और पानी में पाई जाने वाली खर पतवार बिछी होती है। घोंसला पानी में या उसके निकट स्थित पेडों पर होता है। एक एक पेड पर 10 से 20 तक घोंसले पनकौऔं बगुलों इत्यादि के घोंसलों के साथ होते है। इसके अंडे 3 से 5 तक मटमैले सफेद रंग के होते है और कभी कभी उन पर दूर दूर चित्तियां या लकीरें पडी होती हैं।

र्स्टाक्स में गुंगला या घूंगिल याने ओपन बिल स्टार्क काफी छोटा लेकिन आम और व्यापक रूप में पाया जाता है। यह सिर तक लगभग ढाई फुट ऊंचा होता है। यह सफेद या भूरापन लिए सफेद रंग का होता है और परो में काला रंग होता है। कभी कभी दूर से देखने पर
प्रवासी सफेद सारस का धोखा होता है। इसकी चोंच अजीब ललछर काली होती है ज़बडे थोडे ग़ोलाई लिए हुए जिसमें थोडी ज़गह छूट जाती है और इसको पहचानने की यहीं सबसे बढिया निशानी है। ये दो दो तीन तीन के गिरोहों में या झुंड के झुंड झीलों या दलदलों में पाए जाते हैं। इसकी आदतें और स्वभाव सब स्टॉर्क परिवार जैसे ही होते है लेकिन इसकी इस अजीब बनी चोंच का क्या महत्व अथवा काम है पूरी तरह समझ में नहीं आता है। मुख्य रूप से यह इस तरह की इसलिए बनी होती है कि घोंघों का ज़े इसका खास खाना है ऌसी चोंच की सहायता से शिकार कर सके। चोंच में जो छूटी जगह होती है उसमें रखकर यह घोंघे के मुंह के किनारे को तोड लेता है; उसके बाद घोंघा खुल जाता है। इसके बाद खोल के अम्दर से घोंघे को पूरा का पूरा निकाल कर निगल जाता है। यह मेंढकमछलियां क़ेकडे बडे क़ीडे और दूसरे जीव भी खाता है।

घूंगिल पनकौऔं बगुओं सारसों और दलदली जमीन में रहने वाली दूसरी चिडियों की बडी बडी बस्तियों के बीच ही अंडे बच्चे पालता है। घोंसला टहनियों का बना गोल चबूतरा सा बीच में थोडा सा खमदार होता है।उस पर पानी में पाई जाने वाली खरपतवार की पत्तियां वगैरह बिछी होती है। घोंसले झीलों के भीतर या उसके किनारे या गांव के पास स्थित पेडों पर होते है; कभी कभी एक पेड में कई घोंसले होते है। अंडे संख्या में 3 या 4 और मटमैले रंग के होते है।

स्र्टॉक्स में सबसे बडा हरगिल ग़रूर या ढेंक याने एडजूटेन्ट स्टॉर्क होता है। यह लगभग 4 फुट ऊंचा होता है। हरगिल विशालकाय क़ुछ उदास काले रंग का भूरा और गंदला सफेद पक्षी होता है। उसकी चोंच पीली लगभग चार कोने की पच्चडनुमा होती है। इसके भूरे लाल रंग की लगभग 12 इंच लंबी एक अलग थैली होती है; यहीं इसकी पक्की पहचान है। ये कुछ
इलाकों में ज्यादातर कीचडदार पानी में या म्यूनिस्पलिटी के कूडा डालने की जगहों में अकेले य दो तीन साथ रहते हैं। अंग्रेजी में इसे  एडजुटैंट  इसलिए कहा गया है कि यह खाने की तलाश में इधर उधर जैसे बहुत सोच विचार कर बडे फ़ौजी डग भरता हुआ घूमता रहता है। इसकी लटकी हुई थैली का वास्तविक महत्व क्या है यह तो समझ में नहीं आता पर ऊपरी तौर पर लगता है कि यह एक हवा की थैली है जो उसकी नाक की गुहा से जुडी होती है न कि पेट की थैली से।इसलिए आमतौर पर जो कहा जाता है कि यह अपना खाना इसमें पहुंचाता है और जमा किए रखता है सही नहीं मालूम होता। जूठन और सडी ग़ली चीजे ख़ाने के अलावा अकसर यह गिध्दों के साथ पडी हुई लाशें भी खाता है। यह मरी हुई या कोने कोतरे में फंसी मछलियां मेंढक सांप छोटे मोटे जीव और टिड्डे या दूसरे कीडे भी खाता है।

इसकी उडान भारी होती है और उडते समय शोर होता है। उडने के लिए पहले इसे थोडा दौडना फिर तेजी से फडफ़डाना पडता है।अपने जैसी अन्य चिडियों की भांति ही इसे भी खुले दिन में आसमान की तरंगों में पहुंच ऊंचे पर मंडराना अच्छा लगता है। इसकी शांत बैठने की मुद्रा ऐसी लगती है कि हंसी ही आ जाए। यह घोंसला चट्टानों की चोटियों या जंगल के ऊंचे पेडोंं पर या कभी कभी छुटपुट बस्तियों में बनाता है। टहनियों तिनकों इत्यादि से बना यह घोंसला काफी बडा होता है। एक बार में 3 या 4 अंडे देता है जो प्राय: काफी मटमैले होते है। इसी से मिलता जुलता छोटा हरगिल केरल और श्रीलंका के क्षेत्रों में व्याप्त रूप से पाया जाता है। इसकी ऊपरी भाग मुख्य रूप से काला चमकदार और निचला भाग सफेद होता है और इसके लटकने वाली थैली नहीं होती है।

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