मुखपृष्ठ  |  कहानी कविता | कार्टून कार्यशाला कैशोर्य चित्र-लेख |  दृष्टिकोण नृत्य निबन्ध देस-परदेस परिवार | फीचर | बच्चों की दुनिया भक्ति-काल धर्म रसोई लेखक व्यक्तित्व व्यंग्य विविधा |  संस्मरण | साक्षात्कार | सृजन स्वास्थ्य | साहित्य कोष |

 

 Home | Boloji | Kabir | Writers | Contribute | Search | FeedbackContact | Share this Page!

 

बाल कविताएं

धूप तौलिया

क्या वर्षा पर्वत की माँ है
क्या वह
माँ पूरी धरती की
क्या वह सागर की भी
माँ है
क्या वह
माँ पेड-पौधों की
देख न
माँ जैसे तू मुझको
प्यार प्यार से नहलाती है
वैसे ही तो
माँ वर्षा भी
इन सबको
हाँ नहलाती है
पर
माँ इनके पास तौलिया
नहीं न फिर ये कैसे पोंछें
 धूप तौलिया भी तो है ना
बस उससे ही ये सब पोंछें.

- दिविक रमेश


 

   


 

अगर
पेड भी
चलते होते

अगर पेड भी चलते होते
कितने मजे हमारे होते
बांध तने में उसके रस्सी
चाहे ज
हाँ कहीं ले जाते

जहाँ कहीं भी धूप सताती
उसके नीचे झट सुस्ताते
जहाँ कहीं वर्षा हो जाती
उसके नीचे हम छिप जाते

लगती भूख यदि अचानक
तोड मधुर फल उसके खाते
आती कीचड-बाढ क़हीं तो
झट उसके उपर चढ ज़ाते

अगर पेड भी चलते होते
कितने मजे हमारे होते

  

- दिविक रमेश
 

Hindinest is a website for creative minds, who prefer to express their views to Hindi speaking masses of India.

 

 

मुखपृष्ठ  |  कहानी कविता | कार्टून कार्यशाला कैशोर्य चित्र-लेख |  दृष्टिकोण नृत्य निबन्ध देस-परदेस परिवार | बच्चों की दुनियाभक्ति-काल डायरी | धर्म रसोई लेखक व्यक्तित्व व्यंग्य विविधा |  संस्मरण | साक्षात्कार | सृजन साहित्य कोष |
 

(c) HindiNest.com 1999-2021 All Rights Reserved.
Privacy Policy | Disclaimer
Contact : hindinest@gmail.com