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शुतुरमुर्ग की बेवकूफी बहुत पहले की बात है जब ईश्वर सृष्टि के निर्माण में अब भी व्यस्त थे। ईश्वर का एक सहयोगी था वह संसार को अग्नि देने के पक्ष में नहीं था। उसे लगता था कि इस अग्नि से सांसारिक जीव स्वयं का ही ना नष्ट कर लें। पर आग तो पांच तत्वों में एक है और उसे संसार को देना आवश्यक था तो उन्होंने निर्णय लिया कि आग तो दे दी जाए संसार को लेकिन शुतुरमुर्ग को आग की रखवाली के लिये तैनात कर दिया जाए ताकि कोई आग से न खेल सके। उसने सोचा कि जो भी शुतुरमुर्ग जैसे बहुत वफादार और अनुशासन प्रिय जानवर से किसी तरह आग ले जाने में सफल भी हो गया तो वह इतना चतुर अवश्य होगा कि आग को संभाल लेगा। उसने शुतुरमुर्ग को जरूरी हिदायतें दीं और वह अपने इंतजाम से संतुष्ट हो कर स्वर्ग लौटकर दूसरे रचनाओं के काम में लग गया। शुतुरमुर्ग ने आग को खूब छिपा कर रखा अपने एक पंख के नीचे। लेकिन जो पहला आदिमानव था उसे पता चल गया कि वह आग को कहां छिपा कर रखता है और उसे अनुमान हो गया कि वह छिपा कर रखी गई आग कितनी काम की चीज है। वह आग पाना चाहता था, वह उसमें अपना भोजन पकाना चाहता था, उसकी गर्मी से वह रातों को अपनी गुफा गर्म करना चाहता था, और उसके प्रकाश से डरावने शिकारी जानवरों को भी वह अपने से दूर रख सकता था। कितना अच्छा होगा उसके और उसके परिवार के लिये कि उनके पास थोडी सी आग हो। आदिमानव ने सोच समझ कर शुतुरमुर्ग से आग चुराने की योजना बना ली। अगले दिन आदिमानव जो कि जानवरों से बात करना जानता था शुतुरमुर्ग के पास पहुंचा, उसे विनम्रता से अभिवादन किया, शुतुरमुर्ग ने उसे घूर कर शक की निगाहों से देखा।
''
ओह महान
और बुध्दिमान शुतुरमुर्ग जीसारे पक्षियों के महाराज,
मेरे पास आपके लिये एक अच्छी खबर है।'' शुतुरमुर्ग को लगा वह मजाक बना रहा है तो उसने आंखें तरेर कर उसे देखा।
''
वो कैसे?
'' शुतुरमुर्ग को एक यही बात तो अखरती थी कि सबसे बडा पक्षी होने के बावजूद भी वह उड नहीं पाता, जबकि उसके पंख इतने बडे और शक्तिशाली हैं। वह इस बात को मानने के लिये विवश हो गया, क्योंकि यही तो उसकी प्रिय इच्छा थी। अगले ही दिन वह सूर्योदय के पहले एक ऊंची पहाडी पर ठंड में आखें कस कर बन्द करके और पंख फैला कर खडा हो गया। उसे खडे ख़डे ज़ब कुछ देर हो गई तो आदिमानव चुपके से आया और उसके पंखों के नीचे से आग चुरा ली और तेज रफ्तार में भाग खडा हुआ। शुतुरमुर्ग पूरे दिन खडा रहा पर उडना उसे नहीं मिला उपहार में। इस तरह आदिमानव ने हम मानवों को आग लाकर दी जो कि इतनी काम की चीज़ है, पर ईश्वर के सहयोगी को जो डर था कि आग का गलत इस्तेमाल न हो वह गलती कभी कभी इन्सान कर बैठता है। हमें उसकी हिदायत याद रखनी होगी कि हम कितने भी समझदार हो जाएं किन्तु इस आग से दुनिया ही न नष्ट कर बैठें। खैरहां उस दिन शुतुरमुर्ग बडा दुखी हुआ कि उडना तो उसे आया ही नहीं और उसकी बेवकूफी से उससे आग और छिन गई। तब से इस सदमे से उसका दिमाग कमजोर हो गया और याददाश्त कमजोर हो गई।
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गरिमा
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