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मीरां का भक्ति विभोर काव्य-3

माई री म्हाँ लिया
 गोविन्दा मोल

थें कह्
याँ छाणे म्हाँ काँ
 चोड्डे लि
याँ बजन्ता ढोल
थें कह्
याँ मुँहघो म्हाँ कह्याँ सस्तो
 लिया री तरा
जाँ तोल
तण वारां म्
हाँ जीवण वारां,
 वारां अमोलक मोल

मीरां कूं प्रभु दरसण दीज्
याँ,
 पूरब जनम को कोल

 

- मीरां   

प्रसंग -
प्रस्तुत पद में मीरां के समर्पण की पराकाष्ठा देखी जा सकती है। इस पद में मीरां दर्शन देने के पूर्व जन्म के वचन की ओर संकेत करती हैं।

व्याख्या -
मीरां अपनी
माँ को सम्बोधित कर कहती हैं, हे माँ मैं ने तो अपने प्रिय कृष्ण को मोल ले लिया है, यानि अब मेरा पूरा अधिकार है उन परतुम कहती हो छिपकर अपने अराध्य से प्रेम करो, पर मैं ने तो सबके सामने उन्हें स्वीकारा है वह भी ढोल बजाकर, क्योंकि सच्चा प्रेम लुक-छिप कर नहीं होताअब चाहे तुम इसे मँहगा सौदा कहो, मेरे लिये तो यह तन-मन जीवन वार कर भी सस्ता सौदा हैक्योंकि कृष्ण तो अनमोल हैंअब तो गिरधर नागर दर्शन दे दो, क्योंकि पिछले जन्म में आपने मुझे दर्शन देने का वचन दिया था 

पाठान्तर -
माई री,
मैं तो लीन्हो गोविन्दा मोल

कोई कहे
मँहगा, कोई कहे सस्ता, लियो तराजू तोल
ब्रज के लोग करै सब चर्चा, लियो बजा के ढोल

सुर नर मुनि जाकि पार न पावै, ढक लिया प्रेम पटोल

जहर पियाला राणा जी भेज्यां, पिया मैं अमृत घोल

मीरां प्रभु के हाथ बिकानी, सरबस दीना मोल

manaIYaa kulaEaoYz
jaulaa[- 22‚ 2001

मीरां का भक्ति विभोर काव्य
123   


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