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यात्रा
वृत्तान्त
नीली गुफा
:
वीनस का जन्म
गत्युकंपादलकपतितैर्यत्र मन्दार पुष्पैः
पत्रच्छेदै : कनक कमलै
: कर्णविभ्रंशिमिश्च।
मुक्ता जालै :
स्तनपरिसरत्रसुत्रैश्चहारैर्नैशे
मार्गः सवितुरुदये सुच्यते कामिनीनाम्।।
कालिदास,
मेघदूत
अर्थात् यहां (उज्जयिनी) रात्रि के अंधकार में
जब प्रणयमुग्धा कामिनियां तेजी से अभिसार यात्रा पर निकलती हैं तब उनके
जूडों में चाव से गुंथे हुए पुष्प और किसलय खिसककर सडक़ों पर चू पडते
हैं। कानों में लगे हुए मनोहर स्वर्ण कर्णफूल गिर जाते हैं और वक्षस्थल
पर हिलती हुई मोतियों की माला भी कभी कभी टूटकर बिखर सूर्योदय में इस
रहस्य को खोलते हैं
ऊपर से समुद्र नीलम सा चमक रहा था,
कप्री द्वीप की चोटी (अना कप्री) से हम लोग विशाल
तिरेनियन समुद्र के धरातलीय फैलाव से उपजी शांति को समेटने का प्रयास
कर रहे थे और गाइड बतला रहा था : वह नीचे जो
विशाल स्विमिंग पुल वाला बंगला दिखा रहा है विश्वविख्यात एक्ट्रैस रीता
हैवर्थ का है, ऊपर आसमानी नीला,
नीचे चारों तरफ क्षितिज के छोर तक फिरोजी,
और
द्वीप पर हरीतिमा-इन रंगों की दुनियां में गुलाबी और सफेद बंगले सचमुच
लुभावने लग रहे थे।
ठंडी ठंडी हवा चल रही थी।
18 कि मी समुद्रपार नापोली में
(नेपल्स)
35 डिग्री के ऊपर पारा चढ रहा था और स्थानीय लोगों
के लिए वह कष्टदायक हो रहा था।
ऊंचाई से ज्यादातर प्राकृतिक दृश्य और अधिक सुन्दर लगते हैं बडी देर तक
उनमें मन रमा रहता है।
किन्तु समुद्र पर ऐसा नहीं हो पाता,
एक तो चारों तरफ एक रस समुद्री विस्तार और दुसरे वह
भी चट्टान जैसा अभेद्य।
पर
हाँ,
विशेषकर आज के आपाधापी से भरे,
औद्योगिकी से घिरे कंक्रीट जंगलों में रहने वालों
के लिए इस दृश्य की सरलता, क्षैतिज विस्तार
और अनुद्वेग नीले रंग से शांति की भावना मन में आती है।
संभवतः इस शांति,
सुखद शीतलता और सुलभ नरम घूप के लिए कप्री
करोडपतियों का अवकाश स्थल बन गया है।
वैसे सूर्यास्त बहुत सुन्दर होता है जो नवरंगों से मनोरम और विविध
दृश्यों की रचना कर संभवतः सारे दिन की एकरसता को दूर भगा देता है।
मूंगा जो आभूषण के लिए प्रसिध्द तथा लोकप्रिय है मुख्यतया भूमध्य सागर
में पाया जाता है,
इसमें भी कप्री में पाया जाने वाला मूंगा बेजोड
माना जाता है।
मूंगा तथा प्रवाल (कोरल) असंख्य पालिप जंतुओं के ढांचों से बनता है,
आस्ट्रेलिया की प्रसिध्द प्रवाल प्राचीर भी पालिप
जंतुओं के ढांचों से बनी है।
किन्तु मूंगा और प्रवाल भिन्न-भिन्न जातियों के प्रवाल हैं।
''इस
मूंगे के हार की कीमत-1,25,000
लीरे-कुछ ज्यादा लग रही है,
1,00,000
लीरे में नहीं देंगी आप?''
मैंने यों ही बात छेडने की गरज से उस छोटी सी दुकान पर बैठी युवती से
पूछा। हमारे गाइड ने कुल
30
मिनट के लिए हम लोगों को इस विश्व प्रसिध्द
'अना'
कप्री के मूंगे के बाजार में छोड दिया था। हमारे यहां के मेलों में
जैसे लाख की चूडियों की छोटी छोटी दुकानें आमने सामने पंक्तियों में लग
जाती हैं,
बिलकुल वही वारावरण यहां लग रहा था। यूरोप में कहीं भाव-भाव नहीं होता
किन्तु कई अर्थों में इटली भारत और यूरोप के बीच में आता है।
कप्री का मुख्य आकर्षण नीली गुफा है जिसे देखने के लिए सौभाग्य की
आवश्यकता होती है।
नीली गुफा का द्वार समुद्र सतह से मात्र
1 मीटर ऊंचा है।
ज्वारभाटे के रूख के अलावा हवा का रूख भी देखना पडता है।
पिछली बार जब मैं कप्री आया था तब वरुण देव (या नेप्च्यून कहूं?)
असांत थे, हो सकता है
वरुण देव और पवन देव में किसी वीनस के लिए कहा सुनी हो गई हो।
वरुण कह सकते थे कि वीनस का जन्म उन्हीं से हुआ है और पवन कह सकते थे
कि वीनस के प्राण तो वही हैं।
और सांद्रो बॉतिचेल्ली ने अपनी रंगीन रेखाओं से जिस वीनस को उकेरा है
लगता है कि नीली लहरों पर जीवन का सुन्दरतम स्वरूप है।
इतनी रम्य वीनस इतने भोलेपन से इस विशाल नील सागर से जीवन की तरह
उद्भूत होकर,
स्वयं अपने रहस्य के खुल जाने की चिन्ता न कर गुफा
के द्वार बन्द कर स्वयं जीवन का सौंदर्यपान करने गुफा के बाहर आ जाए तब
नीली गुफा के बन्द होने पर किसे एतराज हो सकता है।
ऐसा सोचकर मैंने कहा,
इसी नीली गुफा के दर्शन के बहाने मैं,
फिर कप्री आ जाऊंगा।
दोपहर में,
जब उस गुफा के द्वार पर पहुंचे तो देखा कि छोटी
छोटी नावों की बेशुमार भीड लगी थी।
गुफा का द्वार उस पहाड में एक मीटर ऊंचे एक मीटर चौडे वातायन सा था।
बडी नावों से उतरकर लोग छोटी नावों में बैठकर बारी बारी से जा रहे थे।
गुफा द्वार में से नाव अन्दर ले जाते समय तगडे नाविक ने झुकने की
चेतावनी दी।
जब नाव से गुफा के अन्दर प्रवेश किया तब एकदम अंधेरा घुप्प ही नजर आया
और पतवार की हल्की छप छप के अलावा सब शांत।
किन्तु थोडी ही देर में जब आखें मध्दिम प्रकाश के अनुकूल हो गई तब जो
दृश्य दिखा तो जैसे शरीर डुब गया और (चाहे यह विरोधाभास हो) लगा कि
जैसे वह संवेदना हमें शरीर के परे ले गई क्योंकि हमें शरीर की सुध ही न
रही,
ऐसा लगा कि सूर्योदय पूर्व का नीलाभ आकाश सिमिटकर
उस गुफा में समा गया हो, मेरी अनुभूति का
विश्व भी उस नील गुफा में सिमिट गया।
ऐसा लग रहा था कि जैसे वास्तव में गुफा आकाश जैसी विशाल है किन्तु किसी
चमत्कार के कारण मैं उसके ब्रह्माण्डों की गहराई तक देख सकता था और
इसलिए गुफा छोटी लग रही थी,
अथवा मुझ पर किसी तीव्र मादक द्र्रव्य का प्रभाव था
जिसके फलस्वरूप मेरी दृष्टि साइकेडेलिक हो गई थी और जिसके कारण वह गुफा
छोटी लग रही थी।
तब उस नाविक ने सलाह दी कि जरा घूमकर पीछे तो देखिए।
हम लोग गुफा में प्रवेश करने के बाद सीधे भीतर चले जा रहे थे।
गुफा लगभग
120 मीटर लम्बी होगी।
जब पीछे घूमा तो देखा कि सुर्योदय हो रहा था और सुरज झील के वक्षस्थल
पर सिर रखे हुए हैं और उठने ही वाला है।
सारी गुफा का प्रकाश एक रहस्यमय नीलापन लिए था।
उस नीले प्रकाश की प्रभा बडी मनहर लग रही थी।
उस नीले भ्राशमान वातावरण में एक एक कण जैसे नीलम सी ज्योति से आलोकित
था।
क्या आश्चर्य कि हमारे ॠषियों ने भगवान राम और कृष्ण को मात्र सांवला
कहकर संतोष नहीं किया वरन उन्हें विश्व को छाया देने वाले आकाश के नील
वर्णवाला माना,
यथार्थ के स्तर पर, उस
नीले रंग का हम सांवलों (कालों 9) पर मात्र
एक कमनीयता देने के और कोई प्रभाव नहीं दिख रहा था किन्तु श्वेत वर्ण
वाले व्यक्ति कुछ अजीब अवश्य दिख रहे थे।
जब दृष्टि पानी पर पडी तो हृदय में हिलोरें उठने लगीं,
लगा कि इस कान्तिमय नील जल से युगों का परिचय हो।
पता नहीं हृदय के किस किस कोने के कौन कौन से तार झंकृत हो रहे थे,
किन्तु हृदय में वह अश्रव्य धुन उमडी क़ि संभवतः कुछ
वैसी ही धुन में से राग मल्हार उद्भूत हुई होगी।
सब तरफ ऐसा ललित प्रकाश था कि
'तमसो मा ज्योर्तिगमय'
भी अनावश्यक लगे।
सभी तरफ सूर्योदय-पूर्व का प्रकाश ही प्रकाश बिखरा हुआ था।
कोई भी छाया नहीं पड रही थी।
सारा वातावरण उस नीली आभा से दमक रहा था।
सचमुच कुछ ऐसे ही जीवन्त और ज्योर्तिमय सागर से
'वीनस' का जन्म हुआ होगा।
आचानक वह स्वप्न टूट गया,
नाविक हमें वापिस गुफा द्वार पर ले आया था और हमारी
आंखें उस दोपहरी के प्रखर सूर्य से एकदम चकाचौंध हो गई थीं।
उस नाव यात्रा के लिए लगभग
2000 लीरे (28 रुपए) का
टिकिट था।
बाहर निकलने पर उस नाविक ने बख्शीश मांगी,
जब मैं उसे 500 लीरे
देने लगा तो उस तगडे नाविक ने अभद्रता पूर्वक नाहीं कर दी।
अपनी मुस्थिति न बिगाडने के लिए मैंने तुरन्त ही उसे
1000 लीरे दे दिए।
–
विश्वमोहन तिवारी,
पूर्व
एयर वाईस मार्शल
जुलाई 1,
2004
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