यात्रा
वृत्तान्त
डीलक्स सूट
नं. -102
सन् 2019 में इस बार इलाहाबाद अब प्रयागराज में कुंभ मेला लगने पर भारतवर्ष
ही क्या पूरा विश्व कुंभमय हो गया था। आखिर क्यों न हो, कुंभ आता भी बारह साल
में एक बार। इस मेले की भव्यता साधारण लोगों की नजर में भले ही विशेष न हो,
पर आस्था रखने वालों के लिए यह असाधारण महत्व का ही होता है। अब तो पाश्चातय
देश भी अपनी भौतिक सम्पन्नता एवं उससे उपजे अवसाद के कारण भारतीय संस्कृति,
संस्कार एवं धार्मिक आस्थाएं अपना रहे हैं।
गत वर्ष अपनी दोनों बेटियों के विवाह कर हम लोग एक तरह से अपने दायित्वों को
पूरा कर चुके थे। कुछ परिचितों ने बेटियों के विवाह के बाद गंगा स्नान करने
की नेक सलाह दी। इलाहाबाद (अब प्रयागराज) में 2019 में कुंभ लगना था तो हमने
सोचा कुंभ स्नान करने से तो हमारा पुण्य दस गुना हो ही जाना है। हमारे पतिदेव
आर्य समाजी विचारधारा के होने के कारण इन आस्थाओं में कम विश्वास रखते हैं पर
इस बार हमसे एकमत होने के कारण उनके मित्र समान मौसेरे भाई का अस्पताल होना
भी था। बचपन में जब भी इस तरह के भीड़भाड़ वाली जगह पर जाना होता था तो परिवार
के लोग हमेशा भयभीत रहते थे।
मुझको बचपन से ही नागा साधुओं की विचित्र दिनचर्या, हाथियों की कातार, साधुओं
का नाराज होकर विभिन्न प्रकार के विरोध मंत्रमुग्ध करते थे।
खैर भैया को सूचित कर दिया गया। भैया-भाभी दोनों ही बहुत खुश हुए। नियत समय
पर हम लोग सड़क मार्ग से इलाहाबाद पहुँचे। डा. साहब के भव्य बंगले पर दरबान ने
रोक कर हॉस्पिटल के गेट की तरफ इशारा किया, वह हमें पेशेन्ट समझ रहा था।
खैर, डा. साहब से कन्फर्म करके उसने गेट खोला तो ऐसा लगा, मानो हम भी कोई अति
विशिष्ट व्यक्ति हैं। अन्दर घर में इनके मौसा जी (डा. साहब के पिता जी, जो
मम्मी-पापा को मेरी शादी से पहले से जानते थे, इस कारण मुझे पुत्रीवश स्नेह
देते थे) दिखाई नहीं दिए तो बड़ा आश्चर्य हुआ। पूछने पर पता लगा कि वे
आई.सी.यू. में हैं, हमें झटका सा लगा कि अभी आठ दिन पहले तो उनसे बात हुई थी,
अचानक क्या हो गया? नौकरानी ने विस्तार से बताया कि भैया-भाभी तो अस्पताल से
लंच का समय भी बड़ी मुश्किल से निकाल पाते हैं तो उनकी तबीयत की फिक्र कैसे
होती, आई.सी.यू. में डा. और नर्स उनको देख लेते हैं। राउण्ड पर जाते समय डा.
भी अन्य मरीजों के साथ-साथ उनको भी देख लेते हैं। वृद्ध पिता एवं अति व्यस्त
बेटे-बहु का सामंजस्य दोनों के लिए ही सुविधाजनक था। चाय-नाश्ते की व्यवस्था
तो नौकरों एवं आयाओं ने ही कर दी। शायद उनको इस बात की ट्रेनिंग दी गयी थी कि
किसको किस प्रकार सत्कार करना है।
भैया-भाभी जी आपरेशन थियेटर से समय निकाल कर आए और बड़े प्रेम से मिले। करीब
एक घण्टा बातों में कब निकल गया, पता ही नहीं चला। किसी की अतिआवश्यक काल आने
पर हमसे क्षमा माँगकर जाते-जाते नौकर से कहने लगे ‘‘इनका सामान अस्पताल के
डीलक्स रूम नं0-102 में पहुँचा दो।’’ सुनते ही मुझको एक झटका सा लगा। अभी
भैया को कमर में दर्द एवं पैरों में सनसनाहट के विषय में बताया था, पर
उन्होंने छोटे-मोटे उपाए बताए एवं अधिक गम्भीरता से नहीं लिया। अब ये तो
हॉस्पिटल में भर्ती करने का ही प्लान बनाने लगे, कहीं आपरेशन ही न कर डालें।
अस्पताल एवं डाक्टर्स की ऐसी अफवाएं तो रोज सुनते हैं, पर भैया ऐसे
..........। मेरे चेहरे पर विस्मय देखकर उन्होंने खुलासा किया ‘‘भाभी जी वह
कमरा हमारा गेस्ट रूम है। लंच तैयार हो जाने पर बेल से नौकर बुला लेगा, आपको
किसी चीज की दिक्कत नहीं होगी। कमरे में जाकर देखा तो ऐसा लगा मानो फाइव
स्टार होटल में आ गए हों। अटैच बाथरूम में साबुन, शैम्पू, फेसवाश, कुछ
सौन्दर्य प्रसाधन एवं दो साफ तौलिए रखे थे। कमरे में एक छोटा फ्रिज भी था।
कैंटीन कर्मचारी पानी की बोतलें एवं चाय भी रख गया।
‘कुम्भ-स्नान का कार्यक्रम अगले दिन था और उस दिन कुछ अति-विशिष्ट लोग आने
वाले थे, अतः पब्लिक या निजी गाड़ियाँ तो काफी दूर पार्क करनी थी। मार्च के
महीने से ही भीषण गर्मी पड़ने लगी थी। दूर-दूर तक मैदान में पैदल चलना काफी
दुश्कर था। इस समस्या का समाधान भी भैया ने कर दिया, अपनी एम्बुलेन्स में
जाने का सुझाव देकर, जो हम सबको भा गया। एम्बुलेन्स बिना किसी रोक-टोक के आगे
बढ़ गयी। पुलिस एवं प्रशासन एम्बुलेन्स में किसी मरीज के होने के शक में हमको
रोक न पाए। गंगा का पानी दूर-दूर तक नजर आ रहा था, तट के किनारे रंग-बिरंगी
दुकानें सजाकर दुकानदार ग्राहकों को लुभा रहे थे, तो एक ओर लोगों की आस्था
भुनाकर पण्डित एवं पण्डे अपना उल्लू सीधा कर रहे थे। कोई भक्त गंगा में
सिक्के डालकर पुण्य कमा रहा था। कुछ लोग गंगाजल को सामने देखकर मरते समय किसी
ने गंगाजल न डाला, इस आशंका से गंगाजल का अचामन कर रहे थे। नाव बाला मधुर
आवाज में माझी गीत गा रहा था। साहब लोग एवं उनके साथ आए नौकर, ड्राइवर लोग
साहब के आसपास ही कच्छे में नहा रहे थे। इस आस्था के गोते में छोटे-बड़े का
फर्क मिट गया था। सुन्दरी, महिलाएं एवं लड़कियाँ भी बिकनी पहनने का शौक पूरा
कर रही थीं। ऐसी जगह अगर कोई उनके अप्रतिम सान्दर्य का दर्शन भी कर रहा होगा
तो उनकी निगाहों में देवी स्वरूप ही आ रहा होगा। घण्टों नहाने में पाप तो
पूरी तरह गंगा में ही समा गए होंगे। अब प्रश्न था कि गंगा मैया कैसे उन पापों
का निस्तारण करेगी।
हम लोग गंगा-स्नान का पुण्य प्राप्त
कर घर वापस आ गए। सुबह ही प्रस्थान करना था सो देर रात तक पुराने-पुराने
किस्सों का आनन्द लिया।
भैया-भाभी ने भी व्यस्तता में से कुछसमय निकाला। बाकी कसर उनके प्यारे से
बेटे और डागी ने प्रेम से स्वागत कर पूरी कर दी।
हम अति प्रसन्न भाव से लौटे। हमेशा याद रहेगा डीलक्स सूट 102
-अलका कुलश्रेष्ठ
21/1107 इन्द्रा नगर,
लखनऊ-226016
मो0- 9839605598
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