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नागालैंड : जिसके सफर में आत्माएं तक ठिठककर रह जाती हैं!


लॉन्गैखुम एक बार फि‍र लौटना होगा। नागा किंवदंती के अनुसार हमारी आत्माओं वहीं ठहर गई है, उस पहले सफर में वो लॉन्गटखुम की पहाड़ी ढलानों पर उगे बुरांश के पेड़ों और उनके सुर्ख फूलों के मोहपाश में फंस चुकी है। और उसे वापस लाने के लिए हमें लौटना ही होगा!मोकोकचुंग जिले के इस आओ जनजाति प्रधान गांव ने अपने मेहमानों को दोबारा बुलाने के लिए यह कथा गढ़ी या सचमुच मन का कोई कोना वहां ठिठककर रह जाता है, यह फैसला करना मुश्किल है। समुद्रतल से 1864 मीटर की ऊंचाई पर बसे लॉन्गंखुम की पहाड़ियों से सुदूर अरुणाचलप्रदेश में पूर्वी हिमालय और उसके पार कीभी धवल चोटियों के दर्शन होते हैं। पहाड़ों पर फूलों की क्यांरियां किसी ने सजायी हैं या बस यों ही मनमाने ढंग से वो रंगीन आभा चारों तरफ फैल गई है, इसे बताने वाला वहां कोई नहीं है। अलबत्तान, किस्सें हैं, कहानियां हैं, विश्वालस है, आस्थाा है और वो खोयी-खोयी-सी, चुप-चुप-सी पगडंडियां हैं जिन पर हमें बढ़ना होगा – उस सुदूर नागा गांव में किसी मोड़ या पहाड़ी के मुहाने पर, किसी झरने के सुरताल में खोयी अपनी आत्मा को वापस लाने की खातिर ….
एक लोकविश्वास यह भी है कि मृतात्मा एं अपने अंतिम सफर में इस गांव में ठहरती हैं, सुस्तावती हैं और फि‍र स्व्र्ग की राह पर आगे बढ़ती हैं। यानी कुछ तो है यहां जो मन की गहराइयों तक को लुभाता है, आकर्षित करता है और बिना यहां ठहरे आगे बढ़ने नहीं देता। आओ कबीलाई समाज की दंतकथाओं, रीतियों-रिवाजों और परंपराओं में झांकने के लिए मोकोकचुंग के ही उंगमा गांव तक चले आए हैं हम। कहते हैं आओ जनजाति ने त्वेरनसांग जिले से निकलकर पहली-पहल दफा इसी गांव को अपना ठौर बनाया था और फि‍र यहीं से दूसरी बस्तियों का रुख किया था। आज उंगमा एक सजीव संग्रहालय की तरह हैजहां वक्ते भी जनजातीय रवायतों को धुंधला नहीं पाया है।
कुछ मिथक हैं जो नागालैंड आकर चटकते हैं।राजधानी कोहिमा को इस लिहाज से सबसे ऊपर रखा जा सकता है। इसकी तंग सड़कों पर जैसे हर घड़ी फैशन परेड गुजरती है, खूबसूरत नागा युवतियां चुस्त। फैशनेबल वेस्टैर्न ड्रैस में आधुनिकता की मिसाल की तरह घूमती हैं और लड़के भी कहां पीछे हैं उनसे। एक से एक हेयर स्टा इल, टैटू, पियर्सिंग से सजे-धजे चलते-फि‍रते मॉडल। इसलिए जो टूरिस्ट यह सोचकर नागालैंड आते हैं कि सड़कों पर तीर-कमान, भाले ताने और पारंपरिक परिधानों में लिपटे आदिवासी दिखेंगे उन्हेंै जोर का झ्टाका लगता है। अलबत्ता , ट्राइबल जनजीवन देखने के लिए सूदरवर्ती जिलों की बस्तियां कम नहीं हैं। नागा समाज अपनी गर्मजोशी और मेहमाननवाज़ी के लिए विख्या त है। लेकिन स्थांनीय परंपराओं और आचार-व्यमवहार, रवायतों की जानकारी के अभाव में कई बार आपको लग सकता है कि नागालैंड को कैसे टटोला जाए। ऐसे में बेहतर होगा टूर ऑपरेटरों से पैकेज टूर लेकर ही नागालैंड की सैर पर निकलें। (यहां से लें जानकारी विस्ता र से http://tourismnagaland.com/)।
टूरिज़्ोम की जड़ें राज्यर में बहुत गहरी नहीं हैं मगर यहां का उत्सुकक समाज आपको अकेला या बेगाना महसूस नहीं होने देगा। नागा समाज की भाषा और बोलियां अनजानी हो सकती हैं लेकिन हर किसी की कोशिश रहती है कि वो आपकी बात को भरपूर समझे और आपके सवालों के जवाब दे। कोहिमा के सुपर मार्केट में हमने इस समीकरण को समझा और सराहा। किसी भी दूसरे हिल स्टेाशन की तरह कोहिमा की तंग सड़कें भी दिनभर ट्रैफि‍क जाम से उलझती हैं, और सुपर मार्केट जैसे इलाके में भीड़-भाड़भी कुछ ज्या दा रहती है। किराने, कपड़ों और कुछ देसी-विदेशी आइटमों से पटी पड़ी दुकानों को लांघकर हम पहुंच गए थे इस बाजार के सबसे आकर्षक कोने में, यह था कीड़ा मार्केट। बिल्कु ल सही सुना-समझा आपने,नागासमाज की धड़कनों को यहां सलीके से महसूस किया जा सकता है। कीड़ा मार्केट की कमान मुख्यर रूप से औरतों के हाथों में है और रेशम के कीड़ों से लेकर सांप, मेंढक, मछलियां,मधु‍मक्खियां, लकड़ी के कीड़े या केले के पत्तोंर में घरौंदा बनाने वाले दुर्लभ किस्मन के जिंदा कीड़ों को ट्रे में सजाकर बेचने के लिए रखा गया है। कच्चेे हरेरंग के शहतूत से दिखते कीड़े, चेरी की-सी लाली लिए मांसल कीड़े, एक कोने में रखे ड्राम में पानी में कुछ औंधे-से और कुछ लहराते-तैरते सांपों से लेकर बांस की पतली खपच्चियों से बुनी टोकरियों में केकड़ों को बेचती औरतेंअपनी मुस्का न से पूरा संवाद कर लेती हैं। कीड़ों के साथ ही बिछी है फलों और सब्जियों की दुकानें, बांस का सिरका, बांस का अचार और हर सब्जीस, शोरबे में मिलाकर पकाने के लिए ताज़ा बैम्बूि शूट। नागा रसोई के राज़ उगलते इस बाजार में मिर्चियों की तो जैसे बहार है, हर कोने में लाल-हरी, मोटी-ठिगनी मिर्चें करीने से सजायी गई हैं। उत्सैवधर्मी नागा समाज की रसोई मिर्च के बगैर अधूरी है, और मिर्च भी कोई ऐसी-वैसी नहीं, सचमुच की विस्फोोटक मिर्च। हमारी उत्सुंकता देखकर हमारी नागा गाइड एलमला ने बताया कि इस “हॉट" मिर्च का 50 ग्राम का पैकेट हम “साधारण” प्राणियों के लिए अगले दो साल का स्टॉक है!
इस कीड़ा मार्केट से निकलते ही हम कुश्तीक मैदान के प्रवेशद्वार पर थे जहां रैसलिंगमैनिया की धूम थी। नागालैंड के अलावा पड़ोसी राज्योंे मणिपुर और मिज़ोरम से आए आदिवासी पहलवानों की पटखनियों को देखने के लिए हमने भी दर्शक दीर्घा का टिकट कटा लिया। कोहिमा का यह लोकल ग्राउंड तरह-तरह की गतिविधियों से हमेशा गुलज़ार रहता है,मैदान के बीचों-बीच कुश्तीउ का स्टेरज सजा है, एक कोने में रसोई चालू है जिसमें सिवाय मांस के कुछ भी दिख पाना नामुमकिन लगता है।नागा समाज मांसभक्षी है, इतना तो अंदाजा था लेकिन इस हद तक होगा यह यहीं आकर जाना, वाकई हैवी मीट ईटर होते हैं नागावासी जो पोर्क, मटन, चिकन, बीफ और मिथुन का मांस खूब पसंद करते हैं। भोजन में मांस जरूर होता है, उसके अलावा चावल, एकाध उबलीसाग-सब्जीं और साथ में राइस बियर। बिंदास नागा समाज को जानने-समझने के लिए उनके खान-पान को देख लेना काफी होगा। कुल-मिलाकर मस्त मौला, कुछ भोला-भाला सा, सीधा-सादा पहाड़ी आदिवासी समाज है नागालैंड का जो बाकी संसार से समरस होने के लिए बहुत बेताब नहीं दिखता।


पूर्वोत्तर के सुदूर पूर्व में, म्यां मार, असम, मिज़ोरम और अरुणाचल से घिरे नागालैंड के निवासी मंगोलियाई नस्लं के हैं जो तिब्बैती-बर्मी परिवार की भाषाएं बोलते हैं। राज्यय के ग्या रह जिलों में यही कोई सोलह-सत्रह प्रमुख आदिवासी जातियां जैसे आओ, अंगामी, लोथा, संगताम, सेमा, रेंगमा, कुकी, कोनयक जनजातियों के ठिकाने हैं। ज्या दातर आदिवासी धर्मांतरित ईसाई हैं लेकिन अपने मूल प्राकृतिक धर्म और पुरानी परंपराओं से आज भी जुड़े हैं। यही कारण है कि पूरे बारह महीने नागालैंड की धरती पर उत्सपवों के गान सुनायी देते हैं, ज्यावदातर पर्व खेती-बाड़ी से जुड़े हैं और खाने-पीने, नाचने-गाने से लेकर सुरूर और मौज-मस्तीा के लिए जाने जाते हैं। नागा समाज की मुक्ते जीवनशैली को भी दर्शाते हैं ये पर्व लेकिन उनके खुलेपन को किसी आमंत्रण की तरह लेने की भूल कतई नहीं करनी चाहिए। और यह जानने के बाद तो बिल्कुपल नहीं कि एक जमाने में सिर कलम करने के लिए कुख्या त थे नागा आदिवासी !बीते दौर में जब नागा जातियां आपस में भिड़ा करती थीं तो उनका मनपसंद खेल हैडहंटिंग हुआ करता था। दुश्मगन की गर्दन उड़ाकर जब नागा योद्घा अपने गांव लौटता था तो उसका रुतबा काफी बढ़ जाया करता था। यह खेल इतना लोकप्रिय था कि उस समय किसी भी ऐसे नागा युवक के लिए दुल्हहन मिलना लगभग नामुमकिन हुआ करता था जो दुश्मवन का सिर न उड़ा पाया हो। यह परंपरा बेशक अब समाप्तह हो चुकी है और आखिरी बार हैडहंटिंग की घटना का रिकार्ड त्वेरनसांग के चिलीसे गांव में अगस्तह 1978 में मिलता है, तो भी आप यकीनन यहां किसी से पंगा तो नहीं लेना चाहोगे, है न!
पर्यटन का अलग ढर्रा और अंदाज़
पूर्वोत्त र के दूसरे राज्योंो की तरह नागालैंड में भी जब आएं तो टूरिज़्मम की उस रटी-रटाई लीक से अलग हटकर सोचें जो देश के दूसरे पर्यटन ठिकानों में आम होती है। मसलन, यहां लग्ज़ री ट्रैवल नाम की कोई चीज़ नहीं होती लेकिन उसके बावजूद कुछ होता है जो वाकई अलग और खास आकर्षण लिए होता है। इतने सुदूरवर्ती राज्यक में सफर करना ही अपने आप में किसी चुनौती से कम नहीं है, ऐसे में फाइव स्टाार सुविधाओं की अपेक्षा करना तो बेमानी होगा।दिल और दिमाग खुले रखें और स्थाननीय लोगों की मेहमाननवाज़ी का आनंद लें। यहां के हिसाब से ट्रैवल करें, सवेरे जल्दी शुरूआत करें और अंधेरा होने के बाद सड़कों की बजाय अपने होटल में लौट जाएं। महानगरों की तरह यहां नाइटलाइफ नहीं होती, प्रकृति की लय-ताल के संग चलने वाले इस समाज के सुर से सुर मिलाकर चलने में सचमुच आनंद भी है। ऐसा नहीं है कि यहां आप बोर हो जाएंगे, सच तो यह है कि देश के बाकी भागों में अगर आपको उत्स व मनाने के लिए किसी बहाने का इंतजार करना होता है तो नागालैंड में आपको महसूस होगा जैसे पूरा जीवन ही एक उत्सकव है। और राज्यो का हर इलाका, हर आदिवासी समाज अपनी-अपनी परंपराओं का शिद्दत से पालन करते हुए इतने किस्म के पर्व मनाता है कि नागालैंड को उत्सेवों का राज्या कहना गलत नहीं होगा। इस लिहाज से यहां साल के किसी भी महीने आया जा सकता है, किसी न किसी प्रांत में, कोई न कोई उत्समव चल ही रहा होगा जिसका साक्षी बना जा सकता है।
नागालैंड की पश्चिमी सीमा पर असम से घिरा है वोखा जिला जहां लोथा नागा जाति की रवायत आपको हतप्रभ कर देगी। वोखा समाज हर साल फसल कटाई के बाद नवंबर में तोखू इमोंग पर्व मनाता है जो पूरे नौ दिनों तक चलता है। नागा जनजीवन का हिस्सात बनने का यह अच्छाग मौका हो सकता है। अगर आप पर्व शुरू होने से पहले दिन वोखा में होंगे तो आपको दो विकल्पो दिए जाएंगे, एक उसी शाम सूरज ढलने से पहले वोखा की सीमा से बाहर निकल जाने का और दूसरा, रुकने पर अगले नौ दिनों तक वहीं रुके रहने का। दूसरा विकल्पब चुनना बेहतर होगा क्योंाकि वो आपको देगा कुछ ऐसे यादगार लम्हेे जो नागा जीवनशैली, रस्मोंह-रवायतों,परंपराओं और उनके चरित्र को करीब से दिखाएंगे। हर गांव का धार्मिक प्रमुख पर्व के शुरू होने का रस्मीं ऐलान करता है और घर-घर जाकर धान की ताजा कटी फसल का हिस्सा् मांगता है, हर कोई इसमें बढ़-चढ़कर अपना योगदान करता है क्योंसकि यह माना जाता है कि दिल खोलकर फसल का हिस्साक नहीं देने से अगली बार खेतों में बर्बादी चली आती है। इस तरह जमा हुई कुछ फसल को बेचकर गांवभर में सजावट, साफ-सफाई और दूसरे सामुदायिक काम कराए जाते हैं और बाकी बची फसल राइस बियर बनाने के काम आती है जिसे तोखू इमोंग में मिल-बांटकरपिया जाता है। बाहर से आए मेहमान के लिए यह त्योसहार अद्भुत होता है। पुरानी बीती कड़वाहटों को बिसराने, नई शुरूआत करने, दोस्ती को प्रगाढ़ बनाने, और दोस्तीओ का हाथ बढ़ाने का पर्व है तोखू इमोंग। वोखा समाज इसी दौरान अपने उन लोगों को अंतिम विदाई भी देता है जिनकी मृत्युू इस साल भर में हुई थी। उन्हेंग औपचारिक रूप से गांव की सीमा से कहीं किसी अनजाने अबूझे प्रदेश के लिए रवाना कर दिया जाता है, यानी अब कोई उदासी नहीं, गम नहीं और एक बार फि‍र पूरा समाज हर्षोल्ला स में डूब जाता है।
नागालैंड में बिना किसी पूर्व योजना के चले आएं। एकदम जमीनी होकर समय बिताएं। ज़रा याद करो पिछली बार कब आपने जी-खोलकर, कैलोरी की परवाह किए बगैर व्यं जनों का लुत्फन उठाया था, या रस्साीकशी जैसे खेल को खेला था, कब हुआ था ऐसा कि किसी मंजिल पर पहुंचने की जल्दी में सैंकड़ों बार घड़ी पर नज़र नहीं दौड़ायी थी? नागालैंड इन शहरी जटिलताओं से मुक्तक करता है।यहां एडवेंचरस बनें लेकिन कुछ अलग अंदाज में। होटल में आपको सिर्फ चाइनीज़, कॉन्टीयनेंटल खाना परोसा जाएगा लेकिन लोकल नागा से दोस्तीो कर घर की रसोई में बने भोजन का लुत्फ लेने का ख्यालल बुरा नहीं है। खास नागा पेय और नॉन वेज व्यंकजनों की एक से एक वैरायटी आपको हतप्रभ कर सकती है। पारंपरिक पोशाक पहनकर घूमने निकलें और इस बारे में जानकारी लेनी हो तो कोहिमा म्युपज़ियम चले आएं जहां राज्य भर के परिधानों के संग्रह प्रदर्शित करते मॉडल आपकी प्रेरणा बन सकते हैं। यों ही, बेवजह कहीं रुकने, टहलने और लॉन्गह ड्राइव पर निकल जाने का शौक यहां जी-भरकर पूरा करें। यह राज्यह जैसे नेचर वॉक के लिए बना है, यहां एक अच्छीश बात यह है कि टूरिस्टोंं की भरमार नहीं है, पैकेज टूर के नाम पर यात्रियों के जत्थेप यहां अभी नहीं पहुंचते। और नतीजा, किसी नदी या झरने के किनारे बस आप होते हो और आपकी तनहाई।कोहिमा को बेस बनाकर लंबे माउंटेन हॉलीडे की योजना भी बनायी जा सकती है। अगर आप ट्रैकर हैं तो आसान से लेकर मध्यनम दर्जे की चुनौती वाले ट्रैकिंग रूट यहां मिल जाएंगे, और तो और कुछ पहाड़ियां ऐसी भी हैं जिन्हें अभी तक इस लिहाज से टटोला नहीं गया है, यानी अगर आप असल में एडवेंचरस हैं तो नए ट्रैकिंग रूट तलाशने की चुनौती भी ले सकते हैं।
कोहिमा के दक्षिण में करीब 30 किलोमीटर दूर जोकू घाटी ट्रैकर्स के लिए सबसे आकर्षक जगह है। बांस के जंगलों,घास के मैदानों, पहाड़ियों और झरनों से ढकी यह घाटी अकेले ट्रैकिंग पर निकल आए युवाओं के लिए भी उपयुक्तक है और एडवेंचर की उनकी भूख मिटाती है। कोहिमा के दक्षिण में ही 15 किलोमीटर दूर राज्यव की दूसरी सबसे ऊंची चोटी जाफू है। यहीं बुरांश का वो रिकार्डधारी पेड़ भी है जो अपनी ऊंचाई के चलते गिनीज़ बुक ऑफ रिकार्ड में शामिल है। जाफू बेस कैंप से जाफू चोटी की चढ़ाई भी एडवेंचरप्रेमियों के लिए खुला निमंत्रण है, बस यह याद रखें कि इस ट्रैकिंग ट्रेल पर खाने-पीने का बंदोबस्तए नहीं है, इसलिए अपने साथ खाने-पीने का सामान ले जाना न भूलें। बेस कैंप से रात दो-ढाई बजे के आसपास चढ़ाई शुरू कर कर दें ताकि सूर्योदय का भव्यल नज़ारा चोटी से देखा जा सके। पूर्वोत्तेर के सूरज को उगने की ज़रा जल्दीस रहती है, तो सूर्योदय को पकड़ने के लिए चार-सवा चार का वक्तक सही रहेगा। इसी तरह,नवंबर के महीने में जाफू से अस्तय होते सूरज को देखना अद्भुत अनुभव होता है, जब सांझ धीरे-धीरे बुरांश के पेड़ों से सरकती हुई बांस की टहनियों पर से गुजरते हुए हरी घास पर ओस की बूंदों में सहमकर बैठ जाती है। क्षितिज भी यहां कहीं दूर नहीं होता, एकदम करीब मानो हाथ बढ़ाकर सूरज के उस विशालकाय गोले को छूआ जा सकता है। यहां आकर यकीन हो जाता है कि सूरज का ठिकाना वाकई यहीं कहीं है, इसी पूरब की जमीन में, बहुत आसपास ……….
मौसम और आवाजाही
नागालैंड में मई से सितंबर तक बारिश रहती है, जून-जुलाई के महीने सबसे ज्या दा बारिश वाले होते हैं। अक्टूेबर से मौसम सुहाना हो जाता है और दिसंबर से फरवरी तक यहां सर्दी का मौसम होता है जिनमें पर्यटन गतिविधियां सबसे ज्या दा रहती हैं।
नागालैंड पहुंचने के लिए सबसे आसान विकल्पस है दीमापुर अड्डे तक आना जो दिल्लीक, कोलकाता, गोवाहाटी जैसे प्रमुख शहरों से जुड़ा है। केवल एयर इंडिया की उड़ान यहां आती है। दूसरे,दीमापुर तक दिल्लीज-डिब्रूगढ़ राजधानी और ब्रह्मपुत्र मेल समेत कई रेलगाड़ियां गोवाहाटी से भी संपर्क सुविधा देती हैं। और अगरआपको सड़क मार्ग पसंद है तो गोवाहाटी तक चले आएं जो देशभर के कई राज्योंत से हवाई और रेल मार्ग से जुड़ा है। यहां से कोहिमा की दूरी 292 किलोमीटर है जिसे 6-7 घंटे में पूरा किया जा सकता है। चाय बागानों और चाय फैक्टीरियों के बीच से होकर, कहीं घने जंगलों और वाइल्ड लाइफ सैंक्चु री से होकर गुजरने वाली सड़कें आपके नॉर्थ ईस्टे ट्रिप को यादगार बनाएंगी।

अलका कौशिक
जनवरी 2015



 

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