मुखपृष्ठ कहानी कविता | कार्टून कार्यशाला कैशोर्य चित्र-लेख |  दृष्टिकोण नृत्य निबन्ध देस-परदेस परिवार | फीचर | बच्चों की दुनिया भक्ति-काल धर्म रसोई लेखक व्यक्तित्व व्यंग्य विविधा |   संस्मरण | साक्षात्कार | सृजन डायरी | स्वास्थ्य | साहित्य कोष |

 

 Home | Boloji | Kabir | Writers | Contribute | Search | FeedbackContact | Share this Page!

 

भारत दुनिया को क्या दे सकता है
स्वामी विवेकानंद के विचार

केवल अध्यात्म के परिपेक्ष्य में ही आज भारत दुनिया को कुछ दे सकता है श्रम के अंतर्राष्ट्रीय विभागीकरण में यह कार्य अपने भाग में आया है जिसे हमें बडी बखूबी निभाना है पूर्ण जवाबदारी र्ऌमानदारी और आस्था से सौ साल पहले स्वामी विवेकानंद ने इस प्रयोग को शुरू किया था आज हम भारतवासियों को उस कार्य को आगे बढाना है

स्वामी विवेकानंद कहते हैं ऌस पुण्यभूमि की नीव ऌसका आधार ऌसका जीवन स्त्रोत केवल धर्म है और कुछ नहीं
अन्य लोगों को व्यापार से प्राप्त धन संपत्ति की जगमगाहट और उद्योग के विकास से प्राप्त सुख के भौतिक विलास और विकास की चर्चा करने दो हम भारतीय न इसे समझते हैं न ही हमे इसे समझ्ने की जरूरत महसूस होती है लेकिन भारतीय को अध्यात्म पर छेडो धर्म के बारे में उससे बात करो ईश्वर या आत्मा का विषय निकालो मैं विश्वास दिलाता हूं भारत का गरीब से गरीब किसान भी इन बातों में दुनिया के किसी दार्शनिक से कम नहीं उतरेगा हमें दुनियां को कुछ सिखाना है

यही एक मुख्य कारण है जिसकी वजह से अनेक आपत्तियों के बावजूद सदियों की गुलामी और शोषण को सह कर भी हमारा भारत
जिंदा है हमने अभी भी ईश्वर को अात्मा को और धर्म को पकडे रखा है

कहीं हम अपने आधुनिक नजरिये से धर्म और ईश्वर की व्याख्या सीमित न कर दें इसलिये स्वामीजी कहते है
1. प्रत्येक व्यक्ति के भीतर स्थित ईश्वरता का नाम ही धर्म है

2.  धर्म वह संकल्पना है जो एक सामान्य पशुवत मानव को प्रथम इन्सान और फिर भगवान बनाने का सामर्थ रखती है

3.  निस्वार्थ और पवित्र बनने का प्रयास ही धर्म है

4.  हर जीव अव्यक्त
ब्रह्म है जीवन का उद्देश्य इस अव्यक्त ब्रह्म के ईश्वरीय तत्व को प्रकट करना है ध्यानभक्ति क़र्म और ज्ञान योग द्वारा बाहरी और भीतरी प्रकृति को वश में करना संभव है ऐसा करने पर तुम मुक्त हो जाओगे यह स्वतंत्रता ही धर्म का सार है दर्शन तात्विक चर्चा मांदिर चर्च क़िताबें और शास्त्र पूजा और पाठ सब धर्म के गौण अंग है

अमेरिका और
ब्रिटेन से विजयी होकर लौटने के बाद मद्रास क़लकत्ता और कई स्थानों पर स्वामी विवेकानंद का खूब भव्य स्वागत हुआ इस स्वागत के जवाब में उन्होंने अति सुन्दर और प्रभावशाली प्रवचन दिये इन भाषणों में भारत की जनता के प्रति उनके सारगर्भित सन्देश मौजूद हैं
उनका पक्का विश्वास था कि आध्यात्मिकता के सिवाय देने के लिये भारत के पास अन्य कुछ भी नहीं
भारत न तो राजनैतिक ना ही वैज्ञानिक क्षेत्र में औरों की सहायता कर सकता है सच्चा धर्म ही भारत की शान को उजागर कर सकता है उसकी सांस्कृतिक धरोहर को संभाल कर रख सकता है और यदि आध्यात्मिक उन्नति को बढावा देने में वह असफल हुआ तो केवल भारतीय संस्कृति को ही नहीं सारे विश्व को इसका बहुत भारी मूल्य चुकाना पडेगा

मानव जाति को विनाश से बचाने के लिये और विकास की ओर अग्रसर करने के लिये यह अत्यावश्यक है कि प्राचीन ॠषि संस्कृति भारत में फिर से स्थापित की जाये जो अनायास ही फिर सारी दुनिया में प्रचलित होगी
यह उपनिषद और वेदान्त पर आधारित संस्कृति ही अंतर्राष्ट्रीय धर्म की नीव बन सकती है

पाश्चात्य देशों में स्वामी विवेकानंद ने स्पष्ट देखा कि वहां की संस्कृति राजनैतिक और सामाजिक अंधकार के कारण अधमरी और पतन की अवस्था में है
सेवा और त्याग की भावना का जीवन में व्यवस्थित आचरण इस बीमारी का एकमात्र इलाज है ऐसा स्वामी विवेकानंद मानते थे इस दोहरी ताकत से आत्मा की छिपी हुई दिव्यता को फिर उजागर किया जा सकता हैऐसे कुछ ही धर्मात्मा आम आदमी को मुक्ति और आनन्द का मार्ग बता सकते है

विश्व के आध्यात्मिक पुनरोत्थान में भारत की क्षमता
और प्रभाव के बारे में स्वामी विवेकानन्द को कभी भी सन्देह नहीं था इस विषय में वे आशावादी निश्चित और निर्भय थे अपने रामनद के भाषण में उन्होने कहा था आलस्य के दिन खत्म होने को हैं और केवल अंधे और दकियानूसी लोगों को ही इस विशाल भारत के लम्बी निद्रा से जागने का अहसास नहीं होगा अब भारत को कोई नहीं रोक सकता अब दोबारा हमारा भारत सोयेगा नहीं एक अति विशाल सभ्यता के जागने का वक्त आ गया है

इस अध्यात्मिकता का प्रचार और प्रसार करने के लिये हमें चाहिये
नैतिक मूल्यों का अपार भंडार निस्वार्थता और करूणा हर इन्सान से भाईचारा और आदर का विज्ञान इसका हमें अभ्यास करना होगा एक तोला अभ्यास एक मन फिजूल तात्विक चर्चा से श्रेष्ठ होता है खुद पुष्ट बनो और औरों को बनाओ यह यशस्वी होने की कुंजी है फिर यह धरती एक सुन्दर स्वर्ग से कम नहीं प्रतीत होगी

श्री रामकृष्ण परमहंस से आत्मा के सर्वव्यापी सत्य की शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात स्वामी विवेकानंद ने इस सत्य को न केवल अपने में बल्कि सारे समाज में प्रकट करने का प्रयास किया
उनके अनुसार इस सत्य को अनुभव करना ही सही माने में धर्म की परिभाषा था हर व्यक्ति के जीवन में वेदान्त व्यावहारिक बने यह स्वामी विवेकानन्द की सच्ची सीख है

आधुनिक विज्ञान के नाम पर प्रचलित भौतिकवाद के अनचाहे प्रभाव से यह शाश्वत सनातन सत्य लुप्तप्राय होता चला जा रहा था
उसमें अब अध्यात्मिकता का अभाव देखा जाने लगा था ऐसे कठिन समय में उन्हें डर था कि कहीं भारत से धर्म ही लुप्त न हो जाय लोग कहीं भूल न जायें कि अपने भीतर की आत्मा को पहचानना ही मनुष्य के जीवन का प्रथम उद्देश्य है

इसलिये स्वामी विवेकानंद ने भारत की जनता को गरीबी अज्ञानता
और अंधविश्वास से मुक्त करने का भरसक प्रयास किया उनमें वेदान्त और विज्ञान की शिक्षा का बखूबी प्रचार हो यह स्वामीजी के जीवन का मुख्य प्रयोजन रहा है हर घर में साक्षरता महिला समाज की मुक्ति और उनका सम्मान सामाजिक न्याय और जातिप्रथा का विरोध स्वामीजी के मुख्य कार्यक्रम थे इससे उनका देशप्रेम दृष्टिगोचर होता है

हर कार्य में आत्मा के विकास की बात उन्होने कही
उपनिषदों के स्थायी सत्यों पर उनका पूर्ण विश्वास था इन सत्यों की संपूर्ण प्रतीति उन्हें श्री रामकृष्ण के जीवन में हुई किंन्तु इससे भी ज्यादा महत्व की बात यह है कि भारत के साधारण जनमानस में भी बहुत कुछ हद तक इसे देखा जा सकता था ऐसी धार्मिकता स्वामीजी ने न अमेरिका में न ही विलायत में देखी थी

उन्हें पक्का विश्वास हो चला था कि केवल भारत ही वह महान भूमि है जहां अध्यात्मिक भन्डार अभी रिक्त नहीं हुये हैं
इसलिये अत्यंत विश्वास के साथ उन्होने देशवासियों से इस वेदान्तिक परंपरा को जीवित रखने का बडी भावपूर्ण भाषा में आग्रह और अनुरोध किया

स्वामी जी ने कहा ऌस प्रयास में यदि मौत भी आ जाये तो उसका स्वागत करो
यदि किसी को यह महसूस हो कि यह महान जहाज डूब रहा है  तो भागे नहीं अपने लहू से इसके छेद बन्द करने का प्रयास करो विश्वास रखो और जानो कि इसने सदियों से लाखों लोगों को संसार सागर से तारा है उन्हें आनन्द के छोर पर उतारा है मै भी आप लोगो के साथ बैठकर इस डूबती नैय्या को बचाने में सहायता कारूंगा डूबना ही है तो क्यों न साथ साथ डूबें पर इस भारत मां के खिलाफ एक भी अपशब्द न निकले

स्वामी अशोकानन्द कहते हैं स्वामी विवेकानन्द के इस देशप्रेम के पीछे आध्यात्मिक पहलू निहित था
उनके लिये भारत और धर्म एक ही सिक्के के दो पहलू थे यदि भारत नष्ट हो जाता है तो इस विश्व में से धर्म का विनाश निश्चित है

डॉ सी एस शाह

Top
 

Hindinest is a website for creative minds, who prefer to express their views to Hindi speaking masses of India.

 

 

मुखपृष्ठ  |  कहानी कविता | कार्टून कार्यशाला कैशोर्य चित्र-लेख |  दृष्टिकोण नृत्य निबन्ध देस-परदेस परिवार | बच्चों की दुनियाभक्ति-काल डायरी | धर्म रसोई लेखक व्यक्तित्व व्यंग्य विविधा |  संस्मरण | साक्षात्कार | सृजन साहित्य कोष |
 

(c) HindiNest.com 1999-2021 All Rights Reserved.
Privacy Policy | Disclaimer
Contact : hindinest@gmail.com