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स्टीव
जौब्स का स्टैन्फोर्ड विश्वविद्यालय स्टीव जौब्स ने 12 जून 2005 को स्टैन्फोर्ड विश्वविद्यालय के स्नातकोत्सव पर जो भाषण दिया था वह बडा ही हृदयग्राही तथा तथा विचारशील था। वह जीवन की उथल पुथल तथा कठिनाईयों की एक झलक दिखा रहा था जो कि विश्व विद्यालय से स्नातक बने नवयुवकों के लिये एक आवश्यक शिक्षा है क्योंकि स्नातक हो जाने पर वे सातवें आसमान पर पहुंच जाते हैं और अपने को तीसमार खां समझने लगते हैं जैसे उनमे कोई ऐसी विशेषता आ गई है जो कि दूसरे लोगों के पास नहीं है। वह यह नही समझ पाते हैं कि जीवन का कार्यक्षेत्र तो बहुत ही विशाल है और वहां स्नातक भी एक साझेदार ही है। उसमे और उसके अन्य साथियों मे कोई अंतर नहीं है । यह कार्यक्षेत्र इतना विस्तृत है तथा यहां प्रत्येक कर्मचारी बराबरी का दर्जा रखता है। सफलता का सूत्र कहीं और है। स्रष्टिकर्ता ने हरेक व्यक्ति को अपरिमित संभावनाएं प्रदान करके इस संसार में भेजा है। स्टीव जौब्स की जीवन गाथा इसका प्रमाण है। यह देख कर अपनी असफलता पर निराश न होकर अपनी अंतरात्मा की आवाज क़ो सुनें और उस पर अपने को ढालते रहें। स्टीव जौब्स को 114 वर्ष पूर्व स्थापित इस विश्वविद्यालय की सृजनात्मक विचारधारा का प्रतीक बतलाया गया है। इस कारण उसका यह स्नातकोत्सव भाषण मेरे हृदय को छू गया। मैंने हिंदी भाषियों के लाभार्थ इसका अनुवाद करने का प्रयास किया है जो यहां प्रस्तुत है। संसार के सर्वश्रेष्ठ विश्वविद्यालयों मे से एक के स्नातकोत्सव पर आप लोगों के साथ होने के सौभाग्य से मैं अत्यंत सम्मानित हुआ हूं। सच बात तो यह है कि मैं कभी किसी कालिज का स्नातक बना ही नहीं और इस कारण मैं पहली बार ही कालिज के स्नातकोत्सव मे शामिल हो सका हूं। आज मैं आपको अपने जीवन की तीन कहानियां सुनाना चाहता हूं। इनमें कोई नई बात तो है नही। केवल मेरे जीवन की तीन कहानियां हैं। उनमे से पहली तो नुकते जोडने की है। मुझे रीड कालिज छः महीने बाद ही छोड क़र डेढ साल तक इधर उधर भटकना पडा था और अंत मे वहां से विदा ली। मुझे वहां से क्यों छोडना पडाॠ यह कथा तो मेरे पैदा होने से भी पहले शुरू हुई थी। मेरी अपनी माता एक अविवाहित युवती थी जो कि कालिज मे पढ रही थी। उसने यह तय किया कि कोई मुझे गोद ले ले। पर मेरी माता यह चाहती थी गोद लेने वालेज कालिज के ग्रैजुएट ही हों। पता चला कि एक वकील तथा उसकी पत्नी मुझे गोद लेने के लिये तय्यार हैं। पर जब मैं पैदा हुआ तो उस समय वे लोग एक लडक़ी को गोद लेने की सोच रहे थे। मेरे माता पिता ने उनसे पूछा ''यह तो लडक़ा है क्या आप अब भी उसे गोद लेने के लिये तय्यार हैंॠ'' उन्होंने उत्तर दिया कि हां वे तय्यार हैं। जब मेरी मां को पता चला कि मेरी गोद लेने वाली माता कभी कालिज भी नहीं गई थीं और पिता ने तो हाई स्कूल भी नहीं पास किया था तब मेरी असली माता ने गोद लेने वाले कागजों पर हस्ताक्षर करने से इंकार कर दिया। कुछ दिन बाद वह इसी शर्त पर तय्यार हुईं कि मुझे कालिज भेजा जायेगा। मेरा जीवन इस प्रकार शुरू हुआ। और सतरह वर्ष बाद मैं कालिज भेजा भी गया था। लेकिन वह कालिज स्टैनफोर्ड की ही तरह बहुत महंगा था और मेरे माता पिता की सारी जमा पूंजी मेरी पढाई पर खर्च हो रही थी। छः महीने मे ही मुझे लगा कि यह सारा खर्च व्यर्थ किया जा रहा है क्योंकि मुझे कतई भी यह समझ मे नही आ रहा था कि जीवन में मैं क्या करूंगा और उसके लिये कालिज की पढाई किस प्रकार लाभप्रद हो सकेगीॠ अपने माता पिता का सारा धन जो उन्होंने अपने पूरे जीवन में जमा किया है मेरी पढाई में क्यों खर्च किया जा रहा हैॠ इसलिये मैंने कालिज छोडने का इरादा कर लिया और यह भरोसा किया कि अंत में सब ठीक ही रहेगा। उस समय तो बडी घबराहट थी पर आज मैं सोचता हूं कि जो भी फैसले मैंने लिये हैं उन सब में यह सबसे अच्छा फैसला था। जैसे ही मैंने यह तय कर लिया तो जिन विषयों पर जाेर दिया जा रहा था और वे मेरी रूचि के नहीं थे उन्हें छोड क़र उन विषयों को लेना शुरू किया जो मुझे रूचिकर लगे। यह सब कुछ रोमांचक तो नही था। उस समय मेरे पास डौर्म मे कोई कमरा भी नहीं था और मैं मित्रों के कमरों मे फर्श पर ही सोता था। कोक की बोतलें एकत्रित करके जो पैसे मिलते थे उनसे अपना खाना जुटाता था। फिर हर रविवार की रात्रि को सात मील पैदल चल कर 'हरे राम हरे कृष्ण' के मंदिर मे खाना खाने जाता जिससे सप्ताह मे कम से कम एक बार तो अच्छा भोजन मिल जाये। मुझे इसमे बडा आनंद आ रहा था। जो कुछ भी मुझे अपनी जिज्ञासा तथा अन्तःप्रज्ञा के कारण मिल गया वह बाद में एक अनमोल निधि बन गई। उसका एक उदाहरण मैं यहां दे रहा हूं। उस समय रीड कालिज में कैलिग्राफी का कोर्स सारे देश मे सब से अच्छा माना जाता था। सारे कालिज के पोस्टर और हर दराज पर सुंदर सुंदर लेबिल लगे हुए थे। क्योकि मैने अपने कोर्स को छोड दिया था मुझे उन क्लासों में जाना ही नहीं था। अब मैंने कैलिग्राफी की क्लास मे जाना शुरू कर दिया जिससे इस विद्या को सीख सकूं। खैलीग्राफी की विधाओं में मुझे सैरिफ तथा सांस सैरिफ टाइप और विभिन्न शब्दों के बीच की दूरी कितनी हो जिससे टाइप अत्यंत आकर्षक बने यह सीखने ज अवसर मिला। इसकी मैंने सारी बारीकियां सीख लीं। मुझे इसमें बहुत ही आनंद आया। यह अनुभव बडा ही सुखद एतिहासिक एवं कला की दृष्टि से विलक्षण था जो कि विज्ञान की पकड क़े भी बाहर लगा।
वैसे उस समय इससे जीवन के
किसी व्यवसाय के क्षेत्र मे लाभप्रद होने की तो कोई संभावना या आशा नहीं थी।
लेकिन दस वर्ष बाद जब हम मैकिनटाश कम्प्यूटर डिजाइन कर रहे थे मुझे इससे बडा लाभ
हुआ और मैकिनटाश मे सुंदर सुंदर अक्षरों के फौंट बना पाए।
फिर विंडोज ने भी उसको अपना लिया।
संभवतया आज भी यह किसी और कम्पयूटर
मे नहीं मिल सकते हैं। मेरी दूसरी कहानी प्रेम और हानि से संबंधित है। इस मामले मे मैं भाग्यशाली रहा हूं। मुझे जीवन के आरंभ मे ही जो कुछ मैं पसन्द करता था उसे प्राप्त कर लेता था। जब मैं बीस वर्ष का ही था मैने और वौज ने घर के गराज मे ही एपिल कम्प्यूटर पर काम शुरू कर दिया। हम दोनों ने मेहनत की और दस साल मे ही एपिल के व्यापार को गराज से ही चार हजार से अधिक कर्मचारियों की मदद से दो मिलियन डालर की कम्पनी बना दिया। एक साल पहले जब मैं केवल तीस वर्ष का ही था हमने अपनी सर्वोत्कृष्ट रचना मैकिनटौश का सृजन किया और उसके शीघ्र ही बाद मुझको कम्पनी से निकाल दिया गया। जिस कंपनी को आपने स्वयं ही शुरू किया हो उससे आपको कैसे निकाला जा सकता हैॠ जब यह कंपनी बढने लगी तो अपने साथ कंपनी चलाने के लिये हमने एक ऐसे व्यक्ति को नियुक्त किया जिसे मैं बहुत ही कुशल समझता था। एक वर्ष तक तो हर चीज ठीक चलती रही। लेकिन उसके बाद भविष्य के लिये हमारे दृष्टिकोण में परिवर्तन आता गया और अंत में हमे अलग होना पडा। अलग होने पर बोर्ड के डायरेक्टरों ने उसका साथ दिया और मुझे निकाल दिया गया। मेरे वयस्क जीवन की सारी जमा्र पूंजी समाप्त हो गई। मुझे चारों ओर अंधेरा निराशा और सर्वनाश ही दिखलाई पड रहा था। कुछ समय तक तो मेरी समझ में ही नहीं आया कि मैं क्या करूं मुझे लग रहा थ कि मैंने अपने से पहले उद्योगपतियों को निराश कर दिया और अपनी हिम्मत हार बैठा हूं। मैं डेविड पैकर्ड तथा बौब नौयस से मिला और उनसे ऐसी गलती करने के लिये क्षमा मांगी। मैं हर तरह से हारा हुआ था और मैंने मैदान छोड क़र यहां से भाग जाने की भी सोची। पर फिर मेरे अंदर आशा की एक किरण जगमगाने लगी। मैंने जो कुछ भी किया था उसे मैं दिलोजान से चाहता था। एपिल कम्प्यूटर से निकाले जाने पर वह सब तो नहीं समाप्त हो गया था। मुझे वह अब भी पसंद था। इसलिये मैंने फिर से उसी क्षेत्र में शुरूआत करने की सोची। उस समय तो मुझे ऐसा नही लगा था पर मेरा एपिल कम्प्यूटर से निकाला जाना मेरे लिये एक वरदान सिध्द हुआ। असफलता का स्थान फिर से शुरू करने के जोश ने ले लिया जिसके कारण मैं हर कदम फूंक फूंक कर रखने लगा। मैं अपने जीवन के सबसे रचनात्मक काल मे पहुंच पाने के लिये स्वतंत्र हो गया। अगले पांच वर्षों मे मैंने नेक्स्ट तथा पिजार नाम की नई कंपनियां शुरू कीं। और यहीं मेरी एक आश्चर्यजनक महिला से भेंट हुई जो बाद मे मेरी पत्नी बन गई। पिजार ने संसार की पहली कंप्यूटर से जीती जागती 'खिलौने की कहानी' ह्यटेय् श्तेरय्हृ नामक कथाचित्र ह्यफ्एातुरए-फल्म्हृि बनाई और अब यह संसार की सबसे सफल जीवंत शिल्पशाला है। एक असाधारण घटना क्र्रम में नेक्स्ट को एपिल ने खरीद लिया और मैं फिर एपिल मे वापिस आ गया। हमने जो टेक्नौलोजी नेक्स्ट मे प्रस्तुत की थी वही अब एपिल के वर्तमान नवजागरण का मूल स्रोत है। अब लोसेन तथा मैं एक उल्लेखनीय परिवार के सदस्य हैं। और मुझे पूरा बिश्वास है कि यह सब कुछ नहीं होता यदि मैं उस समय एपिल से नहीं निकाला गया होता। उस समय तो उस औषधि को निगल पाना बहुत ही कठिन लग रहा था पर मेरे विचार से वह रोगी के लिये अनिवार्य था। कभी कभी जीवन मे आपको ठोकरें खानी पडती हैं और उन्ही ठोकरों के खाने से आप आगे बढते हैं। हिम्मत नहीं हारना है और मुझे इसका पूरा विश्वास है कि जिस चीज ने मुझे आगे बढाया है वह केवल यह थी कि जो मैं चाहता था वही मैं कर रहा था। आपको यह अवश्य जानना होगा कि आप क्या चाहते हैं। काम के लिये भी यह इतना ही सत्य है जैसा कि प्रेमियो के लिये। आपका काम ही आपके जीवन का बहुत बडा हिस्सा होता है। इस कारण अपने संतोष के लिये यह आवश्यक है कि आप वही करें जिसे आप महत्वपूर्ण मानते हैं। यदि आपको अभी तक इसका पता नहीं चला है तो आप पता लगाते रहें ओर तब तक चैन की सांस न लें। जैसे कि दिल के मामले मे होता है आपको स्वयं इसका पता लग जायेगा। समय के साथ साथ हर रिश्ता बेहतर होता जाता है। इस लिये ढूंढते रहिये। मेरी तीसरी कहानी मृत्यु से संबंधित है। जब मैं सतरह वर्ष का था मैंने पढा था कि ''यदि तुम हर दिन इस प्रकार जीते हो जैसे वह तुम्हारा अंतिम दिन है तो कोई दिन तो ऐसा अवश्य आयेगा कि तुम सही थे। इस उक्ति ने मेरे ऊपर बहुत प्रभाव डाला है। लगभग तैंतीस वर्षों से हर सुबह शीशे मे देख कर अपने से पूछता रहा हूं कि ''यदि यह मेरा अंतिम दिन है तो क्या जो मैं करने वाला हूं करना चाहूंगाॠ'' और यदि मुझे कई दिन तक उत्तर नहीं में मिलता है तो मुझे यह ज्ञात हो जाता है कि मुझे कुछ बदलना पडेग़ा। यह याद रखना है कि शीघ्र ही मरने का दिन आने वाला है अत्यावश्यक है। उससे जीवन के महत्वपूर्ण फैसले आसानी से लिये जाते हैं। क्योंकि ऐसा सोचने से हमारे अंदर से हमारा सारा अभिमान हमारी असफल होने से शर्म और डर सब तिरोहित हो जाते हैं। हम केवल महत्वपूर्ण तथा आवश्यक पर ही ध्यान देते हैं। हम मरने जा रहे हैं यह सोचने से हम ऐसे सोच से बच जाते हैं कि हमारा कोई नुकसान हो जायेगा। मरने के बाद तो हमारे पास कुछ भी नहीं रहेगा तो क्यों न हम अपने दिल की इच्छा ही पूरी कर लेंॠ लगभग एक वर्ष पहले मुझे कैंसर बतलाया गया था। स्कैन करने पर पता चला कि पैन्क्रियास अमाशय मे टयूमर है। मुझे तो यह भी नहीं मालूम था कि पैन्क्रियास होती भी क्या है। मुझे डाक्टरों ने बतलाया कि इस प्रकार के कैंसर का कोई उपचार नहीं है अतः कुछ ही और महीने मेरे जीने की आशा है। डॉक्टर ने कहा कि घर जाकर मैं अपने सब काम निपटा दूं जिसका मतलब यह था कि मैं मरने के लिये तय्यार हो जाऊं। इसका यह भी मतलब था कि मैं अपने बच्चों को वह सब चंद महीनों में ही बतला दूं जो मैं अगले दस वर्षों मे बताता। सब चीजें ठीक ठाक कर दूं जिससे परिवार को कोई परेशानी न हो तथा सब से विदा भी ले लूं। उसके बाद मेरी एंडेस्कोपी हुई जिसमे गले मे से अंतडियौं मे सुंई डाल कर पैन्क्रियास से कुछ सैल निकालते हैं और उन्हे टैस्ट करते हैं। मैं तो बेहोश था पर मेरी पत्नी मुझे बतलाती हैं कि जब उन लोगों ने उन सैलों को माइक्र्र्रोस्कोप मे देखा तो वे रोने लगे। पर वे खुशी के आंसू थे क्योंकि वह कैंसर एक दुर्लभ किस्म का कैंसर था जिसका औपरेशन करके मरीज को बचाया जा सकता है। मेरा औपरेशन हुआ और धन्य भाग हैं कि अब मै एकदम ठीक हूं। यह मेरे मृत्यु के इतने समीप होने का पहला अवसर था और अब मुझे आशा है कि मै कुछ और दशकों तक जी सकूंगा। इस अनुभव के बाद मैं अब अधिक विश्वास से कह सकता हूं। पहले तो मेरे लिये मृत्यु एक बौध्दिक धारणा मात्र ही थी। मरना तो कोई भी नहीं चाहता। वे लोग भी जिन्हें स्वर्ग जाने का पूरा विश्वास है वे भी वहां पहुंचने के लिये नहीं मरना चाहते। फिर भी मृत्यु का सामना तो हम सब ही को करना है। कोई भी इससे बच नही सका है। और ऐसा ही होना भी चाहिये। मृत्यु ही तो जीवन का सर्वोत्तम आविष्कार तथा उपलब्धि है। यह जीवन को बदलने वाला यंत्र है जिससे पुरानो को हटा कर नये लोगों के लिये स्थान बनाया जाता है। इस समय आप लोग नये हैं। पर कुछ ही समय के बाद आप लोग भी पुराने पड ज़ाएंगे। वह समय भी बहुत दूर नही है। इस प्रकार नाटकीय रूप से वर्णन के लिये आप मुझे क्षमा करेंगे पर यह सब सत्य ही तो है। आपके पास सीमित समय है अतः उसे किसी दूसरे का जीवन जी कर नष्ट न करें। दूसरों के विचारों के जाल मे न फंसें क्योंकि इससे आप दूसरों के विचारों मे जियेंगे। दूसरों की राय मे न खोकर अपनी अंतरात्मा की आवाज सुनें। सब से जरूरी बात है कि आप अपनी आत्त्मा की आवाज सुन कर उस पर अमल करने का साहस रखें। आपकी अंतरात्मा को यह मालूम है कि आप क्या बनना चाहते हैं। बाकी सब कुछ गौंण है। जब मैं एक नवयुवक था मैंने 'दि होल अर्थ कैटेलौग' नाम का एक अभूतपूर्व प्रकाशन देखा था जो हमारी पीढी क़ी बाइबिल बन गया था। वह स्टुअर्ट ब्रर्ड नामक व्यक्ति ने ज़ो यहीं मेनलो पार्क मे रहता था उसका स्रृजन किया था। उसने अपनी काव्यकृति के जादू से सबको आश्चर्यान्वित कर दिया था। यह सब साठ के दशक के अंतिम वर्षों मे हुआ था जब व्यक्तिगत कम्प्यूटर तथा डेस्क टौप पब्लिशिंग नहीं चले थे। इस कारण यह सब कार्य टाइपराइटर क़ैंची और पोलेरायड कैमरे की सहायता से ही किया गया था। वह गूगल की तरह पेपरबैक में गूगल आने से 35 वर्ष पहले किया गया था। यह एक आदर्श प्रकाशन का बढिया साधन तथा उच्च विचारों का सम्मिश्रण था। स्टुअर्ट तथा उसकी टीम ने होल अर्थ कैटोलौग के कई अंक प्रकाशित किये और फिर जब उनका काम समाप्त हो गया उन्होंने एक अंतिम अंक प्रकाशित किया। वह अंक लगभग सन 75 में प्रकाशित हुआ था। उस समय मैं आप लोगों की ही उम्र का था। उस अंक के पिछले आवरण पृष्ट पर प्रभात के समय एक देहाती सडक़ का चित्र था एेसी सडक़ जिस पर आप लोग यदि साहसी हैं तो हिच हाइक करते हैं। उसके नीचे निम्न लिखित शब्द लिखे हुए थे ''भूखे रहो और बेवकूफ बनो''। वह उनका अलविदा संदेश था। ''भूखे रहो और बेवकूफ बनो।'' और यही मैं हमेशा अपने लिये इच्छा करता रहा हूं। और अब जब आप लोग ग्रैजुएट हो रहे हैं एक नया जीवन शुरू करने के लिये मैं आप लोगों के लिये भी यही इच्छा कर रहा हूं कि ''भूखे रहो और बेवकूफ बनते रहो''।
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