मुखपृष्ठ
|
कहानी |
कविता |
कार्टून
|
कार्यशाला |
कैशोर्य |
चित्र-लेख | दृष्टिकोण
|
नृत्य |
निबन्ध |
देस-परदेस |
परिवार
|
फीचर |
बच्चों की दुनिया |
भक्ति-काल धर्म |
रसोई |
लेखक |
व्यक्तित्व |
व्यंग्य |
विविधा |
संस्मरण |
साक्षात्कार |
सृजन |
डायरी
|
स्वास्थ्य
|
|
Home | Boloji | Kabir | Writers | Contribute | Search | Feedback | Contact | Share this Page! |
|
मीडीया और भारतीय स्त्री
पिछले
कुछ अरसे से भारतीय मीडीया में भारतीय स्त्री का अस्तित्व बहुत ही मुखर होकर
उभरा है।
चाहे वह कला व साहित्य हो, टेलेविजन हो या हिन्दी सिनेमा।
हिन्दी साहित्य में यह बोल्डनेस साठ के दशक से आरंभ होकर आज मैत्रेयी पुष्पा
के बहुचर्चित उपन्यास चाक और मृदुला गर्ग के कठगुलाब तक चली आ रही है।
उस पर विशुध्द कला और साहित्य को तो मान लिया जाता है कि कुछ बुध्दीजीवी
लोगों का क्षेत्र है।
नैतिक-अनैतिक शील-अश्लील की बहस उनमें आपस में होकर खत्म हो जाती है।
आम आदमी का क्या वास्ता? और हिन्दी सिनेमा! समानान्तर फिल्मों में कुछ पुरूषों के विवाहेतर संबंधों को जस्टीफाई करती अर्थ, ये नजदीकियां जैसी कुछ फिल्में आई थीं जो कि एक अलग सोसायटी का प्रतिनिधित्व करती थीं।
किन्तु अभी पिछले
दो-चार सालों रीलीज्ड़ फिल्मों आस्था और अस्तित्व जैसी फिल्मों ने स्त्री की
सेक्सुएलिटी पर बहुत ही गंभीर किस्म के प्रश्न उठाए हैं।
यह प्रश्न चौंकाने वाले थे, क्योंकि इसमें विवाहेतर संबंध रखने वाली स्त्री
शोभा डे के उपन्यासों की उच्च वर्ग की वुमेन लिब का नारा लगाती स्त्री नहीं
थी, न निचले तबके की मजबूर स्त्री थी।
-
मनीषा कुलश्रेष्ठ |
|
(c) HindiNest.com
1999-2021 All Rights Reserved. |