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मीडीया और भारतीय स्त्री
और हिन्दी सिनेमा! समानान्तर फिल्मों में कुछ पुरूषों के विवाहेतर संबंधों को जस्टीफाई करती अर्थ, ये नजदीकियां जैसी कुछ फिल्में आई थीं जो कि एक अलग सोसायटी का प्रतिनिधित्व करती थीं।
किन्तु अभी पिछले
दो-चार सालों रीलीज्ड़ फिल्मों आस्था और अस्तित्व जैसी फिल्मों ने स्त्री की
सेक्सुएलिटी पर बहुत ही गंभीर किस्म के प्रश्न उठाए हैं।
यह प्रश्न चौंकाने वाले थे, क्योंकि इसमें विवाहेतर संबंध रखने वाली स्त्री
शोभा डे के उपन्यासों की उच्च वर्ग की वुमेन लिब का नारा लगाती स्त्री नहीं
थी, न निचले तबके की मजबूर स्त्री थी।
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मनीषा कुलश्रेष्ठ |
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