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ब्रज में फिर साकार होगा इतिहास

वृंदावन, 27 जनवरी (आईएएनएस)। भगवान श्रीकृष्ण की जन्मभूमि के रूप में विख्यात उत्तर भारत के ब्रज क्षेत्र में कभी एक हजार जल कुंड हुआ करते थे जो श्रीकृष्ण और राधा के जीवन के विभिन्न प्रसंगों के प्रत्यक्षदर्शी थे। विभिन्न कारणों से ये सैंकड़ों साल पहले लुप्त हो गए और फिर उनका अस्तित्व मात्र किंवदंतियों और दंतकथाओं में ही रह गया।

 

केवल पौराणिक गाथाओं में अपना अस्तित्व समेटने को विवश हो गए इन कुंडों के जीर्णोध्दार का एक अनूठा अभियान ब्रज क्षेत्र में पिछले कुछ समय से पूरे जोर शोर से चल रहा है। 

 

प्राचीन भारतीय इतिहास को पुनर्जीवित करने के इस अभियान में जुटे हैं देश के दर्जनों दिग्गज वैज्ञानिक, तकनीशियन, उद्योगपति, वास्तुवविद और सबसे आगे बढ़कर ब्रज क्षेत्र के 1300 से ज्यादा गांवों में रहने वाले स्थानीय लोग।

 

अब तक इस प्रयास के तहत 33 जल कुंडों की पहचान कर उन्हें दोबारा अपनी वास्तविक स्थिति में जुटाने के लिए जमीनी स्तर पर काम शुरू किया गया है जो विभिन्न चरणों में है। दिलचस्प बात यह है कि इन कुंडों में से कईयों का इस्तेमाल किसी कचरे के डलाव की तरह हो रहा था और उन पर कई फीट गाद और कचरे की परतें जम चुकी थीं।

 

प्रारंभिक चरण में जिन कुंडों को पौराणिक गाथाओं से बाहर निकाल कर दोबारा उनके मूल स्वरूप में लाने का प्रयास किया जा रहा है उनमें दोहिनी कुंड, विहार कुंड, रूप कुंड, वृषभानु कुंड, जय कुंड, चंद्र सरोवर, मोहन कुंड, कृष्ण सरोवर, ब्रह् कुंड, गोविंद कुंड, गरूड़ गोविंद कुंड, शिव ताल आदि प्रमुख हैं।

 

इस अभियान की शुरुआत करने वाले गैर सरकारी संगठन ब्रज फाउंडेशन के मुख्य कार्यकारी अधिकारी विनीत नारायण के अनुसार, इनमें से कई कुंड ऐसे हैं जिनका भारतीय पौराणिक ग्रंथों और हमारे सांस्कृतिक इतिहास में विषद उल्लेख है लेकिन अवैध निर्माण, उपेक्षा और किसी योजनाबध्द ढंग से इनके रख रखाव के अभाव में इनका अस्तित्व लगभग समाप्त हो चला था।

 

नारायण के अनुसार उनके लिए सबसे बड़ी चुनौती तो सबसे पहले इन कुंडों के सही स्थानों का पता लगाने की थी क्योंकि ज्यादातर का मूल स्वरूप या तो बुरी तरह बिगड़ चुका था या अस्तित्व लगभग गायब हो गया था।

 

नारायण के अनुसार इन कुंडों की भौगोलिक स्थिति का पता लगाने के लिए प्राचीन भारतीय इतिहास, जमीनी सर्वेक्षण और सेटेलाइट मैपिंग की आधुनिक प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल किया गया। इसके बाद विशेषज्ञों की टीम का गठन किया गया जिसने जमीनी स्तर पर इसका सर्वेक्षण किया।  इसके बाद इनके मूल स्वरूप को छेडे बिना इनके जीर्णोध्दार करने की योजनाएं तैयार की गई और पहले चरण में 33 कुंडों को ठीक ठाक करने का काम आरंभ किया गया।

 

लेकिन इसके बाद ब्रज फाउंडेशन के लिए चुनौतियों का असली दौर आरंभ हुआ। इन परियोजनाओं के लिए भारी धनराशि की जरूरत तो थी ही साथ ही प्रशासनिक स्तर पर यह मामला काफी उलझा हुआ था।

 

असल में प्रशासनिक स्तर पर ब्रज क्षेत्र तीन राज्यों में बंटा हुआ है-उत्तर प्रदेश का मथुरा जिला, राजस्थान के भरतपुर जिले के अंतर्गत डीग और कमान तहसीलें तथा हरियाणा के फरीदाबाद जिले के अंतर्गत होडल तहसील। इसके अलावा इस इलाके में खनन कर इसे बरबाद कर रही शक्तिशाली ठेकेदारों की जमात, स्थानीय स्तर पर इन कुंडों पर कब्जा जमा कर अवैध निर्माण कर चुके स्वार्थी तत्वों से निपटने की भी चुनौती थी।

 

इन समस्याओं को दूर करने के लिए सतत प्रयासों के नतीजे कुछ समय बाद मिलने लगे। देश ही नहीं विदेश के कई उद्योगपतियों, सांसदों सहित कई पक्षों ने इन कुंडों के जीर्णोध्दार के लिए संसाधन मुहैया करवाए जबकि स्थानीय प्रशासन को भी समझा बुझा कर इन कुंडों पर काम करने के अनुमति ली गई।

 

गैनन डंकरले समूह के अध्यक्ष कमल मोरारका जो इस अभियान को चलाने वाली संस्था ब्रज फाउंडेशन के अध्यक्ष भी हैं, ने संसाधन उपलब्ध करवाने में अग्रणी भूमिका अदा की तो स्थानीय संत रमेश बाबा ने स्थानीय समुदायों को जागरूक करने के लिए प्रेरणा का काम किया।

 

अवैध निर्माणों को हटाने के लिए स्थानीय स्तर पर जागरूकता पैदा करने के लिए प्रभात फेरियां की जाती हैं और क्षेत्र के 1300 से अधिक गांवों में घर घर जाकर ब्रज फाउंडेशन के कार्यकर्ताओं ने स्थानीय निवासियों को इन प्रयासों की आवश्यकता और महत्व के बारे में समझाया।

 

परिणाम सामने है। कभी श्रीकृष्ण की विभिन्न लीलाओं से जुड़े कई महत्वपूर्ण कुंड आज फिर से  श्रध्दालुओं ही नहीं बल्कि पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र बनने को तैयार हैं।

 

नारायण के अनुसार इन कुंडों के जीर्णोध्दार से न केवल ब्रज और भारत की पांच हजार साल पुरानी सांस्कृतिक विरासत को बचाने में मदद मिलेगी बल्कि इस क्षेत्र में पर्यटन को भी बढ़ावा मिलेगा जिससे स्थानीय समुदाय को लाभ पहुंचेगा।

 

इंडो-एशियन न्यूज सर्विस

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