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पुस्तकें कल्पना के नए द्वार खोलती हैं : प्रिया दत्त
नई दिल्ली, 5 फरवरी (आईएएनएस)। सामाजिक कार्यकर्ता और लोकसभा सांसद प्रिया दत्त ने कहा कि पुस्तक कल्पना के नए द्वार खोलती हैं। उन्होंने फिल्मों से पुस्तकों की तुलना करते हुए कहा कि फिल्मों के दृश्य भले ही जीवन पर गहरा असर छोड़ते हों पर, पुस्तकों को पढ़ने से व्यक्ति की रचनात्मक शक्ति का विकास होता है।
प्रिया दत्त ने आईएएनएस से बातचीत करते हुए कहा, ''पुस्तकों की तुलना किसी दूसरे माध्यमों से नहीं की जा सकती है। आप एक पन्ना पलटें, यकीनन आप उसमें डूब जाएंगे। पुस्तकों के माध्यम से कल्पना की लम्बी उड़ान भरी जा सकती है। इसका मुझे निजी अनुभव है।'' उन्होंने कहा, ''मेरे घर में हजारों पुस्तकें हैं जिसे मेरी मां (नरगिस दत्त) और पिताजी (सुनील दत्त) ने इकट्ठा किया है। मेरा बचपन इन पुस्तकों के बीच गुजरा है और पुस्तकें मुझे बेहद प्यारी हैं।''
एक सवाल का जवाब देते हुए प्रिया दत्त ने कहा कि इंटरनेट का जमाना जरूर आ गया है, लेकिन पुस्तकों कि तुलना इससे नहीं हो सकती है। ज्ञान के दूसरे माध्यम भी तेजी से विकसित हो रहे हैं। इसके बावजूद पुस्तक का महत्व नहीं घटा है। इंटरनेट के जरिए सूचना के क्षेत्र में क्रांति बेशक आई है, ज्ञान और सामाजिक क्षेत्र में तो पुस्तकों के माध्यम से ही क्रांति आती रही है। आगे भी ऐसा ही होगा।
पुस्तक से बेरुखी के सवाल पर उन्होंने कहा, '' हां! समय बदल रहा है। जब मैं छोटी थी, उस वक्त केवल एक चैनल दूरदर्शन था। आज सैकड़ों हैं। इसके बाद भी पुस्तकों से जहां दूरी बढ़ी है वहां लोग कल्पना करना भूल रहे हैं, जिससे मौलिकता और रचनात्कता में कमी आई है।''
पुस्तक देखने की इच्छा रखने वाले लोग दस रुपए का टिकट लेकर 18वें विश्व पुस्तक मेले में प्रवेश कर रहे हैं। इस व्यवस्था को प्रिया उचित नहीं मानती हैं। उन्होंने कहा, ''पुस्तक मेले में प्रवेश शुल्क नहीं लिया जाना चाहिए। निजी तौर पर मैं इसके पक्ष में नहीं हूं।''
क्षेत्रीयता के मुद्दे पर उन्होंने साफ तौर पर कहा कि क्षेत्रीयता की भावना मेरे दिमाग में नहीं है। आज तक ऐसी बातें मेरे मन में आई ही नहीं। मैं मानती हूं कि जो लोग महाराष्ट्र या मुंबई में रहते हैं, वे सभी भारतीय अर्थव्यवस्था में अपना महत्वपूर्ण योगदान देते हैं। ब्रजेश झा
इंडो-एशियन न्यूज सर्विस |
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