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चेन्नई के बेघर बच्चों की आस 'जीव ज्योति'

 

चेन्नई, 2 मार्च (आईएएनएस)। शौचालय की सफाई करना, कूड़े में तलाशना, कब्र खोदना और शवदाह गृहों में शवों को इधर-उधर करना आदि कुछ ऐसे काम हैं, जिनका सहारा लेकर गली के बच्चे जीते हैं। इस अत्याचार से निडर होकर एक गैर सरकारी संस्था 'जीव ज्योति' पिछले 12 वर्षों से लड़ रही है। इसका मुख्यालय उपनगरीय चेन्नई में है।

 

 इसके सफलता की दर आंकड़े की दृष्टि से बहुत कम है। लेकिन यह कानून में बदलाव और बंधुआ बाल मजदूरों के बेहतर भविष्य के लिए बुनियादी स्तर पर काम कर रहा है। यही कारण है कि तमिलनाडु के तिरुवल्लूर जिले में तमाम ऐसे बच्चों की बेहतर शिक्षा और बेहतर जिंदगी सुनिश्चित हो सकी है।

 

दस साल की तेंमोझी नाई की दुकान से कटे हुए बालों को पंख बनाने के लिए एकत्रित करती थी। इसके अलावा वह कूड़े के ढेर में कुछ ढ़ूंढती रहती थी। लेकिन 'जीव ज्योति' के अनौपचारिक शिक्षा से जुड़ कर उसने 'एक बार फिर बच्चा बनना' सीखा। वह बताती है, ''जब मैं स्कूल में दाखिल हुई, उस समय मैं दुनिया की सबसे खुशनसीब लड़की थी।''

 

'जीव ज्योति' के संस्थापक निदेशक वी सुसाईराज बताते हैं, ''बच्चों के साथ काम करते हुए एक नए समाज का निर्माण करना आसान है। बच्चे देश का भविष्य हैं।'' कहने की जरूरत नहीं है कि जिन बच्चों का वे हवाला दे रहे हैं, वे अशिक्षित, बेघर और अक्सर असामाजिक तत्व होते हैं। पहले स्वयं एक बाल मजदूर रह चुके सुसाईराज ने 1994 में एक गैर सरकारी संस्था खोली। इस स्वशिक्षित व्यक्ति के जीवन में नाटकीय परिवर्तन 1970 में आया।

 

चेन्नई से 15 किलोमीटर दूर लाल पहाड़ियों के क्षेत्र में ईंट की भट्ठियों और चावल मिलों की ऊंची दीवारों के पीछे दो हजार से अधिक परिवार बंधुआ मजदूर के रूप में रहते हैं। मिल मालिकों से लिए गए छोटे से ऋण न चुका पाने के कारण ये पुरुष और महिलाएं पीढ़ियों से जीवनभर उनके यहां लगभग दास के रूप में काम करने को विवश हैं। उनके बच्चों को यह असहनीय ऋण और बढ़ता हुआ ब्याज विरासत में मिलता रहा है।

 

संस्था के लगातार प्रयास का असर होने लगा है। लाल पहाड़ियों के क्षेत्र के बाल अधिकार सुरक्षा समिति (सीआरपीसी) की सहायता से वास्तव में इस उद्योग में काम करने वाले बच्चों की संख्या में कमी आई है। हालांकि कुछ चावल मिल मालिक और भट्ठी मालिकों ने बंधुआ मजदूर के बच्चों को स्कूल जाने की छूट दे दी है। 

 

चेन्नई गैर सरकारी संस्थाओं के मंच द्वारा 1996 में किए गए सर्वेक्षण के अनुसार चेन्नई महानगर में ही डेढ़ सड़क छाप बच्चे रहते हैं। यह दिल्ली जैसे आधुनिक शहरों की तुलना में काफी अधिक है। निरक्षरता के लिए इन दिनों राष्ट्रीय औसत 39 प्रतिशत है। तमिलनाडु का स्तर यहां भी 26.5 प्रतिशत के साथ ऊंचा है। 'जीव ज्योति' की नई परियोजना आनंद इल्लम छुड़ाए गए बच्चों के लिए एक नया घर है। यह भुदुर गांव में धान के खेतों के बीच स्थित है। चेन्नई की गलियों से मुक्त कराए गए 33 बच्चों को यहां रखा गया है। संभवत: इनका भविष्य उवल है।

(साभार- ग्रासरूट)

इंडो-एशियन न्यूज सर्विस

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