हमारे लेखक
- फणीश्वर नाथ रेणु
- Araria, Bihar
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जन्म 4 मार्च 1921 औराही हिंगना, फारबिसगंज में
एक हिन्दी भाषा के बेहद सम्मानित साहित्यकार रहे हैं । इनके पहले उपन्यास मैला आंचल को बहुत ख्याति मिली थी , जिसके लिए उन्हें पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।
1950 में उन्होने नेपाली क्रांतिकारी आन्दोलन में भी हिस्सा लिया जिसके परिणामस्वरुप नेपाल में जनतंत्र की स्थापना हुई। पटना विश्वविद्यालय के विद्यार्थियों के साथ छात्र संघर्ष समिति में सक्रिय रूप से भाग लिया और जयप्रकाश नारायण की सम्पूर्ण क्रांति में अहम भूमिका निभाई। १९५२-५३ के समय वे भीषण रूप से रोगग्रस्त रहे थे जिसके बाद लेखन की ओर उनका झुकाव हुआ।
रेणु को जितनी ख्याति हिंदी साहित्य में अपने उपन्यास मैला आँचल से मिली, उसकी मिसाल मिलना दुर्लभ है। इस उपन्यास के प्रकाशन ने उन्हें रातो-रात हिंदी के एक बड़े कथाकार के रूप में प्रसिद्ध कर दिया। कुछ आलोचकों ने इसे गोदान के बाद इसे हिंदी का दूसरा सर्वश्रेष्ठ उपन्यास घोषित करने में भी देर नहीं की।
कृतियाँ
मैला आंचल 1954
परती परिकथा 1957
जूलूस
दीर्घतपा 1964
कितने चौराहे 1966
कलंक मुक्ति 1972
पलटू बाबू रोड 1979
कथा-संग्रह
ठुमरी,1959
एक आदिम रात्रि की महक,1967
अग्निखोर,1973
एक श्रावणी दोपहर की धूप,1984
अच्छे आदमी,1986
रिपोर्ताज
ऋणजल-धनजल
नेपाली क्रांतिकथा
वनतुलसी की गंध
श्रुत अश्रुत पूर्वे
प्रसिद्ध कहानियाँ
मारे गये गुलफाम (तीसरी कसम)
एक आदिम रात्रि की महक
लाल पान की बेगम
पंचलाइट
तबे एकला चलो रे
ठेस
संवदिया
तीसरी कसम पर इसी नाम से राजकपूर और वहीदा रहमान की मुख्य भूमिका में प्रसिद्ध फिल्म बनी जिसे बासु भट्टाचार्य ने निर्देशित किया और सुप्रसिद्ध गीतकार शैलेन्द्र इसके निर्माता थे। यह फिल्म हिंदी सिनेमा में मील का पत्थर मानी जाती है।
मृत्यु – 11 अप्रैल1977