हमारे लेखक
- जया जादवानी
- Raipur, Chhattisgarh
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जन्मदिवस: 01/05/1959
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| ईमेल: jayajadwani@yahoo.com
हिंदी साहित्य में अपनी विशिष्ट पहचान बनाने वाली कवि, कथाकार और उपन्यासकार जया जादवानी पिछले तीन दशक से सृजनरत हैं. इनकी रचनात्मक यात्रा कथ्य के विशिष्ट स्वरूप, विरल किरदारों के दुर्लभ चित्र व शिल्प और भाषा के नए आस्वाद के लिए जानी जाती है. इनकी रचनाओं में ऐसी विराट दुनिया का साक्षात्कार होता है. इनके चरित्र पारंपरिक रूढ़ि को तोड़ते हुए अतल गहराइयों में बसे प्रेम के नैसर्गिक उत्स तक पहुँचने में कामयाब होते हैं.
अब तक उनके तीन कविता संग्रह – मैं शब्द हूँ, अनंत संभावनाओं के बाद भी, उठाता है एक मुठ्ठी ऐश्वर्य, छः कहानी संग्रह, मुझे ही होना है बार-बार, अंदर के पानियों में कोई सपना काँपता है, उससे पूछो, समंदर में सूखती नदी, ये कथाएँ सुनाई जाती रहेंगी हमारे बाद भी, अनकहा आख्यान, और चार उपन्यास, तत्वमसि, मिठो पाणी खारो पाणी, कुछ न कुछ छूट जाता है और हाल में ही ट्रांसजेंडर्स के जीवन पर उनका नया नॉवेल ‘देह कुठरिया’ और लेस्बियंस पर उनका नॉवेला ‘ख़रगोश’ भी आया है. इसके अलावा इन्होने ‘कृष्णमूर्ति टू हिमसेल्फ़’ का हिंदी अनुवाद भी किया है. ‘भगत’ नाम के सिंधी कविता संग्रह का साहित्य अकादेमी के लिए हिंदी अनुवाद भी किया है. इनकी एक कहानी ‘अंदर के पानियों में कोई सपना काँपता है’ पर एक टेलीफ़िल्म भी बनी है. इन्होने कुछ यात्रा वृतांत भी लिखे हैं. हिंदी के अलावा वे सिंधी में भी लिखती हैं और उनकी चार किताबें सिंधी में भी आ चुकी हैं. इनकी कई रचनाओं का अंग्रेज़ी, सिंधी, उर्दू, पंजाबी, बंगाली, मराठी और अन्य भाषाओँ में अनुवाद.
इन्हें प्राप्त सम्मानों में प्रमुख हैं …. मुक्तिबोध सम्मान, कुसुमांजलि सम्मान और कथाक्रम सम्मान. कहानियों में इन्हें गोल्ड मैडल मिला है
कहानियां
परिदृश्य
अन्दर के पानियों में एक सपना काँपता है
आर्मीनिया की गुफा
इसे ऐसा ही होने दो
कयामत का दिन उर्फ कब्र से बाहर
खाल के भीतर का सच
फिर–फिर लौटेगा
मेरी कोई तस्वीर नहीं
सिर्फ इतनी सी जगह
सूखे पत्तों का शोर
कविताएं
अंत की ओर, आसमान में लड़की, इस सदी के अंत तक, एक रात, एक दिन औरत का दिन होगा, उस दिन, किसी और तरीके से, खोज, गज़ल, गर्भाशय, चाह, चुम्बन, जो नहीं बोलते, दस मिनट, द्वार, दिन, पूछूंगी तुमसे, पिता, प्रेम, प्रेम और प्रतिबद्धता, प्रेम के बाद, मैं अपनी होना चाहती हूँ, याद, लड़कियाँ, संवादहीनता, सदी का सबसे भयावह सच, वह पल