• राहुल सांकृत्यायन

महापण्डित राहुल सांकृत्यायन

जन्म- 9 अप्रैल, 1893 – मृत्यु- 14 अप्रैल, 1963

महापण्डित राहुल सांकृत्यायन को हिन्दी यात्रा साहित्य का जनक माना जाता है। वे एक प्रतिष्ठित बहुभाषाविद थे और 20वीं सदी के पूर्वार्द्ध में उन्होंने यात्रा वृतांत तथा विश्व-दर्शन के क्षेत्र में साहित्यिक योगदान किए। बौद्ध धर्म पर उनका शोध हिन्दी साहित्य में युगान्तरकारी माना जाता है, जिसके लिए उन्होंनेन्हों नेतिब्बत से लेकर श्रीलंका तक भ्रमण किया ।

राहुल जी का बाल्य जीवन ननिहाल अर्थात पन्दहा ग्राम में व्यतीत हुआ। राहुल जी के नाना का नाम था पण्डित राम शरण पाठक, जो अपनी युवावस्था में फ़ौज में नौकरी कर चुके थे। नाना के मुख से सुनी हुई फ़ौज़ी जीवन की कहानियाँ, शिकार के अद्भु त वृत्तान्त, देश के विभिन्न प्रदेशों का रोचक वर्णन, अजन्ता-एलोरा की किवदन्तियों तथा नदियों, यों झरनों के वर्णन आदि ने राहुल जी के आगामी जीवन की भूमिका

तैयार कर दी थी। इसके अतिरिक्त दर्जा तीन की उर्दू किताब में पढ़ा हुआ ‘नवाजिन्दा-बाजिन्दा’ का शेर:

सैर कर दुनिया की गाफिल ज़िन्दगानी फिर कहाँ, ज़िन्दगी गर कुछ रही तो नौजवानी फिर कहाँ

राहुल जी को दूर देश जाने के लिए प्रेरित करने लगा। कुछ काल पश्चात घर छोड़ने का संयोग यों उपस्थित हुआ कि घी की मटकी सम्भाली नहीं और दो सेर घी ज़मीन पर बह गया। अब नाना की डाँट का भय था,

नवाजिन्दा बाजिन्दा का वह शेर और नाना के ही मुख से सुनी कहानियाँ इन सबने मिलकर केदारनाथ पाण्डे (राहुल जी) को घर से बाहर निकाल दिया।

जीवन यात्रा

राहुल जी की जीवन यात्रा के अध्याय इस प्रकार हैं-

पहली उड़ान वाराणसी तक दूसरी उड़ान कलकत्ता तक तीसरी उड़ान पुन: कलकत्ता तक इसके बाद पुन: वापस आने पर हिमालय की यात्रा पर गये, सन् 1990 ई. से 1914 ई. तक वैराग्य से प्रभावित रहे और

हिमालय पर यायावर जीवन जिया। वाराणसी में संस्कृत का अध्ययन किया। परसा महन्त का सहचर्य मिला, आगरा में पढ़ाई की, लाहौर में मिशनरी कार्य किया, इसके बाद पुन: ‘घुमक्कड़ी का भूत’ हावी रहा।

कुर्ग में भी चार मास तक रहे।

राजनीति में प्रवेश (1921-27)

राहुल सांकृत्यायन ने छपरा के लिए प्रस्थान किया, बाढ़ पीड़ितों की सेवा की, स्वतंत्रता आंदोलन में सत्याग्रह में भाग लिया और उसमें जेल की सज़ा मिली, बक्सर जेल में छ: मास तक रहे, ज़िला कांग्रेस के मंत्री

रहे, इसके बाद नेपाल में डेढ़ मास तक रहे, हज़ारी बाग़ जेल में रहे। राजनीतिक शिथिलता आने पर पुन: हिमालय की ओर गये, कौंसिकौं ल का चुनाव भी लड़ा।

लंका के लिए प्रस्थान (1927)

राहुल सांकृत्यायन ने लंका में 19 मास प्रवास किया, नेपाल में अज्ञातवास किया, तिब्बत में सवा बरस तक रहे, लंका में दूसरी बार गये, इसके बाद सत्याग्रह के लिए भारत में लौटकर आये। कुछ समय बाद लंका

के लिए तीसरी बार प्रस्थान किया।

यात्राएँ (1932-33)

राहुल सांकृत्यायन ने इंग्लैण्ड और यूरोप की यात्रा की। दो बार लद्दाख यात्रा, दो बार तिब्बत यात्रा, जापान, कोरिया, मंचूरिया, सोवियत भूमि (1935 ई.), ईरान में पहली बार, तिब्बत में तीसरी बार 1936 ई. में,

सोवियत भूमि में दूसरी बार 1937 ई. में, तिब्बत में चौथी बार 1938 ई.में यात्रा की।

आंदोलन (1938)

किसान मज़दूरों के आन्दोलन में 1938-44 तक भाग लिया, किसान संघर्ष में 1936 में भाग लिया और सत्याग्रह भूख हड़ताल किया।

सज़ा, जेल और एक नये जीवन का प्रारम्भ

राहुल सांकृत्यायन जी कम्युनिस्ट पार्टी के सदस्य बने। जेल में 29 मास (1940-42 ई) तक रहे। इसके बाद सोवियत रूस के लिए पुन: प्रस्थान किया। रूस से लौटने के बाद राहुल जी भारत में रहे और कुछ समय के

पश्चात चीन चले गये, फिर लंका चले गये।

साहित्यिक कृतियां


कहानियाँ
सतमी के बच्चे
वोल्गा से गंगा
बहुरंगी मधुपुरी
कनैला की कथा


उपन्यास
बाईसवीं सदी
जीने के लिए
सिंह सेनापति
जय यौधेय
भागो नहीं, दुनिया को बदलो
मधुर स्वप्न
राजस्थान निवास
विस्मृत यात्री
दिवोदास
सप्तसिन्धु


यात्रा वृत्तांत
मेरी जीवन यात्रा
मेरी लद्दाख यात्रा
किन्नर प्रदेश में
रूस में 25 मास
यूरोप यात्रा


जीवनियाँ
सरदार पृथ्वीसिंह
नए भारत के नए नेता
बचपन की स्मृतियाँ
अतीत से वर्तमान
स्टालिन
लेनिन
कार्ल मार्क्स
माओ-त्से-तुंग
घुमक्कड़ स्वामी
असहयोग के मेरे साथी
जिनका मैं कृतज्ञ
वीर चन्द्रसिंह गढ़वाली
सिंहल घुमक्कड़ जयवर्धन
कप्तान लाल
सिंहल के वीर पुरुष
महामानव बुद्ध


यात्रा साहित्य
लंका
जापान
इरान
किन्नर देश की ओर
चीन में क्या देखा
मेरी लद्दाख यात्रा
मेरी तिब्बत यात्रा
तिब्बत में सवा वर्ष
रूस में पच्चीस मास
विश्व की रूपरेखा
ल्हासा की ओर
शांतिनिकेतन में

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