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कोख का किराया

आज मनप्रीत हारी हुई सी, घर के एक अंधेरे कोने में अकेली बैठी हैवह तो आसानी से हार मानने वालों में से नहीं हैआज तो पूरा कमरा, पूरा घर ही उसकी पराजय का पर्याय सा बना हुआ है सूना, अकेला, सुनसान सा घर अभी कल तक तो घर में सब कुछ था - खुशी, प्रेम, विश्वास! हत्या हुई है! भावनाओं की हत्या! किन्तु मनप्रीत ने कब किसकी भावनाओं का आदर किया है? अपने वर्तमान के लिये वह किसे उत्तरदायी ठहराये? वर्तमान कोई किसी साधु महात्मा द्वारा जादू के बल पर अचानक हवा में से निकला हुआ फल या प्रसाद तो हैं नहीं अतीत की एक एक ईंट जुडती है तब कहीं जा कर बनता है वर्तमान

अतीत!  कैसा था मनप्रीत का अतीत? कैसा था उसका बचपन; कैसी थीं वो गलियाँ जहाँ वह खेली थी? भला लंदन में भी कोई गलियों में खेलता है? यँहा तो प्रत्येक काम पूरे कायदे और सलीके से होता है। यदि खेलना हो तो लेजर सेन्टर जाओ। वहाँ स्विमिंग करो, बेडमिन्टन खेलो, जिम में व्यायाम करो, जो भी करो एक दायरे में बंध कर। दायरे से  नियम से बाहर कुछ नहीं कर सकते। यही बंधकर रहना ही तो मनप्रीत को मंजूर नहीं था। यदि उसका बस चलता तो संसार के सारे नियमों को ध्वस्त कर देती, कानून की किताबों को जला देती।

मनप्रीत की सोच तो सदा से ही यही रही है , यह मनुष्य जन्म क्या बार बार मिलता है? अरे जीवन के मजे ले लो! नहीं तो भगवान भी वापस धरती पर भेज देगा कि जाओ, अभी कितने काम करने बाकी हैंतुमने चरस नहीं चखी, सिगरेट का धुंआ नहीं उडाया, शराब का स्वाद नहीं जाना यू बोर! गो बैक अगेन!

क्या वह जीवन की घडी क़ो वापस चला सकती है? क्या जो कुछ घट गया है, उसे जीवन की स्लेट से पौंछा जा सकता है? क्या उसे पश्चाताप की अनुभूति हो रही है? नहीं नहीं उसने कोई गलत काम नहीं किया। भला वह गलत काम कर ही कैसे सकती है?

'' नी प्रीतो! सुधर जा। एह मुण्डयां नाल घुमणा फिरणा बन्द कर दे। कुल्च्छणियें, सारी उमर पछतायेंगी।

मां उसे तो बस एक ही काम था कि वह प्रीतो को समझा सके कि वह पछताएगी। क्या यह मां की बद्दुआ है जो उसे पश्चाताप के आंसू पिला रही है। मां को प्रीतो का गोरे लडक़ों से मेल-जोल कभी भी सहन नहीं होता था।

'' ओए तू गाय के मीट खाणे वालों से कैसे बोल लेती है?

दुनिया आवाज क़ी गति से तेज उडान भर रही है और मां अब तक गाय के चक्कर में पडी है। कितनी अनपढ है मां भी, बीफ को बीफ न कह कर गाय का मीट कहती है।

मनप्रीत तो आज भी खाना पकाने के लिये रसोई में जाने के मुकाबले मैकडॉनल्ड का हैम्बरगर मंगवाना पसंद करती है। हैपी मील! बिग मैक! बेकन डबल चीज बर्गर! क्र्वाटर पाऊण्डर ! और जाने क्या-क्या ?

शुरू में तो गैरी भी बुरा नहीं मानता था। फिर वह भी बाजार का बना खाना खा-खा कर बोर हो गया। गैरी स्वयं भी तो अपने परिवार का पहला विद्रोही था। उसके माता-पिता तो पूरे विक्टोरियन जमाने के उसूल मानने वाले ब्रिटिश परिवारों में से एक थे। गैरी अंग्रेज और काली लडक़ियों में अधिक रुचि नहीं लेता था। उसके दिमाग में बस एक ही बात बैठी हुई थी कि इन लडक़ियों में संस्कारों का क्षय होता जा रहा है। गैरी ब्रिटिश रेल्वे में ड्राइवर है। बस जी सी एस ई तक पढाई की है यानि कि एस एस  सी। इंग्लैण्ड में डिग्रियों के पीछे भागने का सिलसिला भी तो भारतीय मूल के लोगों ने ही आकर शुरू किया है। मध्यमवर्गीय भारतीय अपनी संतान को जमीन-जायदाद तो दे नहीं पाता, बस पढाई और डिग्री ही उनके लिये जायदाद हो जाती है। अंग्रेज तो स्कूल की अनिवार्य शिक्षा के पश्चात किसी न किसी हाथ के काम में दीक्षा हासिल कर अपना जीवन शुरू कर देते हैं।

गैरी की पहली गर्लफ्रेण्ड  लिजा तो एक गोरी लडक़ी ही थी। स्कूल में उससे दो क्लास आगे थी- यानि उससे दो वर्ष बडी थी। स्कूली शिक्षा के साथ-साथ वे दोनों एक-दूसरे को यौनशिक्षा में भी पारंगत करने लगे। जब गैरी के माता-पिता ने आपत्ति की तो दोनों अलग-अलग रहने लगे। इंग्लैण्ड का भी अजब सिलसिला है कि सोलह वर्ष से कम उम्र की लडक़ी दुकान से सिगरेट नहीं खरीद सकती, किन्तु मां बन सकती है। वयस्क हुए विवाह नहीं हो सकता किन्तु मां बना जा सकता है। दोनों अभी काम तो करते नहीं थे। एक और टीनएजर माता-पिता सोशल-सिक्योरिटी की सहायता जिन्दाबाद दोनों को लगा कि जीवन की गाडी पटरी पर बैठने लगी हैपर ऐसे बचकाने रिश्तों की गाडी क़ब तक चलती?

मनप्रीत के जीवन की गाडी भी तो अब पूरी तरह से पटरी से उतर चुकी है। गैरी की भाषा में डी-रेल हो गई है। गैरी और मैनी। हाँ गैरी और मनप्रीत के सभी दूसरे मित्र तो उसे मैनी कह कर ही पुकारते हैं। मैनी अब अकेली मैना हो गई है। गैरी अपनी बेटी रीटा और पुत्र कार्ल को अपने साथ ले गया है। विद्रोही प्रवृत्ति का गैरी भी मैनी के इस निर्णय का साथ अधिक दिनों तक नहीं दे पाया।

मनप्रीत ने यह निर्णय लिया ही क्यों? यह बात भी सच है कि इंग्लैण्ड के अधिकतर युवावर्ग की ही भा/ति वह भी फुटबॉल के खेल की पागलपन की सीमा तक दीवानी है। आर्सेनल उसकी प्रिय टीम है और उसका सेन्टर फॉरवर्ड खिलाडी बीफी डेविड उसका प्रिय खिलाडी। ड़ेविड गैरी का मित्र भी है और ठीक गैरी की तरह उसे भी भारतीय मूल की लडक़ियां विवाहित जीवन को अधिक स्थायित्व प्रदान करने वाली लगती हैं। गैरी और डेविड एक ही स्कूल से पढे हैं। यदि मैनी गैरी को पसंद थी तो डेविड को जया। जया भी मैनी की भांति लन्दन में जन्मी थी। किन्तु उसकी परवरिश अधिक संस्कारयुक्त है। उसके माता-पिता ने बहुत नपे-तुले ढंग से अपनी पुत्री के व्यक्तित्व में इंग्लैण्ड और भारत के संस्कारों का मिश्रण पैदा कर दिया है। जया के व्यक्तित्व में एक ठहराव है, जबकि मैनी तो इतनी विरोधी प्रकृति की रही है कि डॉक्टर द्वारा तय किये गए समय से छ: सप्ताह पहले ही दुनिया में आ धमकी थी।

कभी-कभी उसे जया से इर्ष्या भी होती। जया के चित्र समाचार-पत्रों की सुर्खियां बन जाते हैं। लाखों की आमदनी, महलनुमा घर। जया है भी तो भारतीय संगीत में पारंगत। भारतीय और पश्चिमी संगीत के फ्यूजन के शो करती है। उसके सी डी और कैसेट्स भी लाखों की संख्या में बिकते हैं। बेचारी मैनी। रेल्वे ड्राइवर की पत्नि। गैरी तो बस किसी तरह तीन बैडरूम का घर ही खरीद पाया है वह भी किश्तों पर। हर महीने पांच सौ पाउण्ड तो मॉर्गेज की किश्तों में निकल जाते हैं। मॉर्गेज और किश्तों का जीवन। मैनी स्वयं भी तो डेबेन्हेन्स में सेल्स एडवाइजर है। कितना विशाल स्टोर है। अस्थिरता मैनी के व्यक्तित्व का अभिन्न अंग है। जब जी चाहा नौकरी की, जब चाहा छोड दी। पिछले दस वर्षों में सात नौकरियाँ बदल चुकी है। दो बार तो बच्चे होने पर ही नौकरियां छोडनी पडी थीं। कभी गैरी के साथ विदेश यात्रा पर जाने की छुट्टी नहीं मिली तो नौकरी से त्यागपत्र!

आज तो सारा जीवन ही उसे त्यागपत्र थमा कर आगे बढ ग़या है। भूख, प्यास, भावनाएं एकाएक उसका साथ छोड क़हीं छुप से गए हैं। क्या अपनी गलतियों को स्वीकार करने का माद्दा मनप्रीत में है? उसने तो जीवनभर वही किया है जो उसके मन ने चाहा है। सामाजिक नियमों की उसने परवाह ही कब की?

जया की खुशियों से मन ही मन त्रस्त रहने वाली मैनी जब रीटा और कार्ल को देखती तो मन में विचित्र सी प्रसन्नता का आभास होता। डॉक्टरों ने घोषित कर दिया था कि जया मां नहीं बन सकती है। प्रकृति के नियम भी तो विचित्र हैं। भगवान सबकुछ देकर भी कहीं न कहीं तो कटौती कर ही लेते हैं। डेविड को बच्चों का बहुत शौक है। उसका बस चलता तो गोलकीपर से लेकर सेन्टर फॉरवर्ड तक पूरी टीम ही घर में बना लेता। किन्तु उसका जया के प्रति समर्पण इतना संपूर्ण है कि उसने अपने मन की बात को जया तक कभी पहुँचने ही नहीं दिया।

जया और डेविड के साथ अपनी दोस्ती का रौब मैनी सब पर गांठती ही रहती। जया को भी बालसखि मैनी और उसके बच्चों से मेलमिलाप भाता है। एक विचित्र अपनेपन का अहसास होता उसे। वह कार्ल और रीटा के लिये क्रिसमस के उपहार खरीदना कभी नहीं भूलती, और यह दोनों बच्चे भी बेसब्री से अपने जन्मदिन और क्रिसमस की प्रतीक्षा करते हैं क्योंकि जया आंटी मंहगे-मंहगे उपहार जो देती हैं। डेविड कहीं भी मैच खेलने जाता तो जया के साथ मैनी और गैरी भी सदा ही मैच में उपस्थित रहते। डेविड जब गेंद लेकर विपक्षी पाले की ओर भागता तो तीनों लगभग पागलों की भांति तालियां बजा-बजा कर प्रसन्नता का प्रदर्शन करते। मैच जीतने के पश्चात डेविड जया को गले मिलता और उसका चुम्बन लेता। गले वह गैरी और मैनी के भी मिलता और मैनी को गाल पर चुम्बन देने का प्रयास करता तो मैनी अतिउत्साह का प्रदर्शन करते हुए डेविड के होंठों को चूम लेती। गैरी अपनी पत्नी के पागलपन से परिचित था, किन्तु इस बात को लेकर उसके मन में कभी संदेह या विशाद नहीं होता है। डेविड सदा से मैनी का हीरो रहा है। और वह, हर प्रकार से उसे रिझाने का यत्न करती, किन्तु सामने से कोई अनुकूल प्रतिक्रिया न मिलने के कारण मन मार कर रह जाती है। यदि डेविड मैनी में थोडी सी भी रुचि दिखाए तो वह एक बार फिर सारी सीमाएं तोडने को तैयार है।

कभी-कभी हैरान भी होती है मैनी कि अंग्रेज होकर भी डेविड पारिवारिक बंधन और सीमाओं का इतना आदर कैसे कर लेता है। यँहा तो हर कोई किसी भी दूसरे के बिस्तर में घुसने को तैयार रहता है। वैसे भी डेविड के बारे में खासी चटपटे समाचार तो वह समाचारपत्रों में पढती ही रहती है। फिर भी वह समझ नहीं पाती कि जया में ऐसा क्या आकर्षण है जो कि डेविड को उसके व्यक्तित्व के साथ बंधे रहने पर मजबूर कर देता है?

'' मैनी मुझे हमेशा एक अपराध बोध सालता रहता है । पांच वर्ष हो गए हमारे विवाह को। हम दोनों परिवारनियोजन के लिये कोई सावधानी नहीं बरतते रहे फिर भी। पिछले एक वर्ष से तो नार्थविक पार्क हस्पताल, प्राईवेट नर्सिंग होम और जाने कहाँ-कहाँ चक्कर लगा चुकी हूँ। डेविड को बिना बताए भारत से कितने गण्डे-तावीज भी मंगवा चुकी हूँ। अब तो डॉक्टरों ने साफ-साफ कह दिया है कि मैं माँ नहीं बन सकती हूँ।
 तो तुम दोनों कोई बच्चा गोद क्यों नहीं ले लेते?
 मैं तो इसके लिये तैयार हूँ किन्तु डेविड को आपत्ति है। उसके हिसाब से बच्चा अपना ही होता है। उधार के बच्चे में वो बात नहीं होती। उसे शक है कि वह उस बच्चे के साथ कभी भी उतना नहीं जुड पाएगा जितना कि एक प्राकृतिक लालन-पालन के लिये आवश्यक है।
 तो क्या हल सोचा है तुम दोनों ने?
 मैं ने तो यँहा तक सुझाया था कि हम किराये की कोख का इस्तेमाल कर सकते हैं।
 किराये की कोख!
 हाँ! आज विज्ञान ने इतनी प्रगति कर ली है कि आर्टिफिशल इनसेमिनेशन के जरिये कुछ भी हो सकता है।
 इस पर डेविड की क्या प्रतिक्रिया है?  मैनी का दिल जोरों से धडक़ने लगा था।

जया भी स्थिति को समझ रही थी। उसने बात आगे बढाई-

''तुम तो जानती हो कि डेविड चाहे तो गोरी लडक़ियों की कतार लग जाएगी, उसके बच्चे की माँ बनने के लिये। दरअसल उसे इन गोरी लडक़ियों पर थोडा भी विश्वास नहीं है। क़ल क्या गुल खिलाएं । कोर्ट में कोई केस फाइल कर दें यँहा तो पैसे के लिये बात-बात पर अदालत के दरवाजे पर पहुँच जाते हैं लोग।
 मैंने तो सुना है कि ऐसे मामलों में सब कुछ पहले से ही लीगल तरीके से तय कर लिया जाता है।
''डेविड सोचता है कि यदि मेरा और डेविड का बच्चा होता तो एंग्लो इंडियन शक्ल का होता। इसलिये वह किसी इंडियन लडक़ी की तलाश में है, ताकि देखने में भी वह बच्चा हमारा बच्चा लग सके।''उडान को धरती पर ले आई जया,  किस सोच में डूब गई ? यार ये काम तू क्यों नहीं कर लेती? तेरा बच्चा तो वैसे भी मुझे अपना सा लगेगा। सोच तेरा और डविड का बच्चा हमारा वारिस बनेगा।

जया चली तो गई, परन्तु मैनी के पूरे व्यक्तित्व को झिंझोड ग़ई। चार-पाँच दिनों तक मैनी अपने परिवार से कटी रही। गैरी ने सोचा शायद मासिक धर्म के कारण ऐसा है। महीने के इन चार-पाँच दिनों मैनी या तो ऐसे ही चुप हो जाया करती है या फिर चिडचिडी। चिडचिडेपन के मुकाबले चुप्पी कहीं बेहतर है। मैनी जैसे भीतर ही भीतर अपने आप से लड रही थी। डेविड को देख कर उसके मन में हमेशा ही कुछ कुछ होता रहा है। वह समाज के दकियानूसी नियमों को वैसे ही कब मानती है? किन्तु गैरी डेविड का मित्र है और डेविड ने इस मित्रता का सम्मान सदा ही बनाए रखा है। जया की एक बात बार-बार सुनार की ठुक-ठुक की तरह उसके दिमाग पर प्रहार कर रही थी,  सोच तेरा और डेविड का बच्चा हमारा वारिस बनेगा।

क्या गैरी मान जाएगा? और फिर एकाएक उसके भीतर एक निर्लज्ज कामना जाग उठी, क्या डेविड उसे प्राकृतिक तरीके से गर्भवती बनाने पर राजी हो जाएगा?  यदि ऐसा हो तो उसे कोई एतराज नहीं। बल्कि वह तो जीवन की सर्वश्रेष्ठ उपलब्धि का अहसास पा जाएगी। परन्तु क्या डेविड?

बात पहले डेविड से करे या गैरी से? कभी दूध वाला भैया हुआ करता था गैरी। डूध की गाडी में लोगों के घरों तक दूध पहुंचाया करता था। वह हिन्दी का एकमात्र शब्द ही समझ पाता था दूधवाला। एक भारतीय घर में वह जब दूध की बोतलें छोडने जाया करता था तो वहां एक बच्चा अपनी मां को आवाज देकर कहता, मम्मी दूध वाला आया है। दूध वाला गैरी अचानक ब्रिटिश रेल्वे में डा्रइवर बन गया। यही तो कमाल है इस देश का। मनुष्य अपने जीवन की गाडी क़ी पटरी कभी भी बदल सकता है। भारत की तरह नहीं कि एक नौकरी पकडी तो सारा जीवन उसीसे जुडे रहे। आज गैरी का रेस्ट डे है यानि कि छुट्टी। पर आज भी गैरी ओवर टाईम के चक्कर में गया हुआ है। उसे जब जब छुट्टी के दिन काम पर बुलाया जाता है तो वह अवश्य जाता है। इसी तरह थोडी अतिरिक्त कमाई हो जाती है और परिवार की छोटी-छोटी आवश्यकताएं पूरी हो जाती हैं। गैरी की रेल पटरी पर चल रही है और मैनी का वैचारिक द्वन्द्व कल्पना की उडान भरने में व्यस्त है।

उसने निर्णय ले लिया। वह डेविड से बात करेगी।

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