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मृत्युगंध

शोक संदेश अभी भी अदिति और अवस्थी जी की कुर्सियों के बीच में रखी छोटी गोल मेज पर पडा हुआ थाअदिति की दृष्टि शोक संदेश पर बिंधी हुई थीआज उसे लग रहा है शोक संदेश पर छपे हुए काले अक्षर, अक्षर भर नहीं होते बल्कि शेष हो गया एक जीवन होते हैं।

मृत्यु किसी की भी हो दुःखी करती है पर दुःख के साथ एक भाव और होता है जिसका संबंध मृतक की उम्र से होता है। शिशु की मृत्यु करूणा उपजाती हैं कि उसने अभी देखा ही क्या था। वृध्द की मृत्यु दुःखी के साथ आश्वस्त भी करती है कि मुक्त हो गए। पर युवा की मृत्यु? हम चौंकते हैं यह क्या हो गया? यह नहीं होना चाहिए था।

बेचारा। शाश्वत। सत्ताईस-अट्ठाइस का रहा होगा। अपने आनन्द से पाँच-छ: साल ही बडा था। देखो तो किस तरह चला गया। पता नही किस आशा से वशिष्ठ जी ने उसका नाम शाश्वत रखा होगा।

अवस्थी जी, शोक संदेश पर दृष्टि जमाते हुए बोले।

''सचमुच बहुत बुरा हुआ।''
अदिति कहने लगी - ''तेरही की तारीख तो निकल गई।''
''हाँ, शोक संदेश लेट मिला। समय पर मिलता तो भी उतनी दूर जाना संभव नही था। वशिष्ठ जी ने क्रिया
कर्म अपने नेटिव प्लेस में किया हैं। मैं आज फोन लगाऊंगा। वशिष्ठ जी लौट आए होंगे तो हम उनसे मिलने चलेंगे।''
''मेरे ख्याल से वे लोग लौट आए होंगे। तुम फोन लगा ही लो।''
''यह ठीक हैं।''

अवस्थी जी ने अपनी कुर्सी पर बैठते हुए ही फोन को स्टूल सहित अपनी ओर खींचा और नम्बर घुमाने लगे। उधर वशिष्ठ जी ही मिले। संक्षिप्त बात हुई। दोनो पक्ष कुछ कहने की स्थिति मे नहीं थे। अवस्थी जी रिसीवर रखते हुए अदिति से बोले -

''वशिष्ठ जी आ गए हैं। दोपहर बाद चलते हैं। मैं फर्स्ट हाफ मे ऑफिस का काम निपटा लूंगा। हम फिर रात तक लौट भी आएंगे।''
''यह ठीक हैं। हमें जाना चाहिए। शाश्वत तीन लडक़ियों के बाद का था। निरूपा की पता नहीं क्या हालत हो रही होगी।''
''वे तो मां है। इतना बडा दुःख उनके लिए असहनीय होगा।''
''अब क्या कहें?''

निकलते-निकलते देर हो गई। अवस्थी जी एक बार कचहरी पहुंच जाएं तो फिर मुवक्किल आसानी से नही छोडते। माघ की सांझ पांच बजे ही ढल जाती हैं। अदिति और अवस्थी जी जब शहर की सीमा से बाहर आए अंधेरा, उजाले को तेजी से घेर चुका था। लांग रूट में अदिति ड्राइव करती थी। इसी बहाने उसका अभ्यास हो जाता था। शहर की भीड से दूर निकल अदिति ड्राइविंग सीट पर आ गई। अवस्थी जी दिन भर के थके थे और मानसिक रूप से अशांत भी। वो अदिति की सीट पर पहुँच कर रिलैक्स होने के लिए कुछ पसर कर बैठ गए। अवस्थी जी कार बहुत सतर्कता से चलाते हैं। फौजदारी और दीवानी के मुकदमे लडते हुए उन्हें कानून की धाराओं का विषद ज्ञान हैं और वो कार चलाते हुए प्रायः चिन्ताग्रस्त रहते हैं। दुर्घटना हुई तो कौन परिस्थितियों में कौन सी धारा लागू होगी।

''मजे-मजे से चलो। अवस्थी जी ने अदिति को सचेत किया।''
''मुझे मत सिखाओ। अब मैं कार अच्छी तरह चला लेती हूं। किसी दिन तुम्हे बैठाकर सिटी में चलाकर दिखाऊंगी।''
''कृपा करो। अभी तुम्हारी ड्राइविंग मे ऐसा परफेक्शन नहीं आया है जो भीड में चलाओ। वो सामने गङ्ढा देखा। उधर काटो। यहाँ सडक़ भले ही सूनी है पर हालत ऐसी खस्ता है कि दुर्घटना के पर्याप्त अवसर हैं।''

''दुर्घटना?'' शाश्वत सडक़ दुर्घटना मे ही तो गया हैं। अदिति दहल गई। कार चलाने के आनंद में कुछ देर के लिए भूल गई थी तीस किलोमीटर दूर कृपालपुर मातमपुर्सी के लिए जा रही हैं।

''प्लीज क़ुछ अच्छी बात करो। वैसे ही मन भारी है। दुर्घटना शब्द तो अब सचमुच डराने लगा है।''
''सामने देखो।'' अवस्थी जी ने कुछ और ही जवाब दिया।

दोनों एकाएक चुप हो गए। दोनो शाश्वत के बारे मे सोच रहे थे। अदिति का ध्यान जल्दी ही आनंद की ओर चला गया। मनुष्य के चित्त का कोई कोना सदैव अपने अति प्रिय के विषय मे सोचता रहता हैं। मनुष्य कदाचित हर क्षण स्वार्थी होता हैं। अपने कार्र्यव्यापार मे लीन। तभी तो अदिति शाश्वत के बहाने आनंद के बारे मे सोचने लगी। आनंद बाहर पढता है, बाइक तेज चलाता है इस समय वह कहां होगा? सडक़ पर तो नही? ईश्वर। आनंद पर कभी न बीते जो शाश्वत पर बीती। वह मेरी इकलौती संतान है। वह न होगा तो मेरे जीवन मे कुछ भी नही होगा।

अदिति को याद आया आनंद कहता है - ''मां मै कुछ बन जाऊं, तुम्हारे लिए कितने ठाट बिछा दूंगा।''
वह कहती है - ''तुम मिल गए अब मुझे कुछ नही चाहिए। आनंद, तुम हो इसलिए मेरी जिंदगी भरी पूरी है। तुम न होते तो जिंदगी कैसी होती मै सोच नही पाती। बच्चे प्रकृति का सबसे सुदंर पक्ष है।''
''तो फिर मेरा एहसान मानती हो न।'' आनंद हंस देता।
बदमाश।

ऐन सामने अंधा मोड। स्याह अंधेरे को और अधिक स्याह बनाता अंधा मोड। अवस्थी जी झपक गये थे और अदिति को यातायात के नियमों का अभ्यास नही था जो मोड से गुजरने से पूर्व हार्न बजाती। मोड पर तेज ग़ति और चुंधियाते प्रकाश वाली मोबाइक जैसे एकाएक ही प्रकट हो गई थी - क्षणांश में। अदिति को नही मालूम मोटरसाइकिल सवार ने हार्न दिया था या नहीं। वह राइट साइड पर था या नहीं। सवार कितने थे। उसे कुछ नही मालूम। उसका मस्तिष्क शून्य हो गया। उसे इतना भर मालूम है कि तेज टंकार हुई। उसकी आंखे मुंद गई और वह स्टीयरिंग पर झुक गई। अवस्थी जी के कंठ से घिघियाती-घिसटती सी चीख निकली और कार की घिसटती चिंचियार में विलीन हो गई। कार कुछ बहकती हुई सी मोड क़े इस पार से उस पर तक पहुंच गई। अदिति को यह भी स्मरण नही कार स्वत: रुक गई या उसने सायास रोकी। उस एक पल मे बहुत कुछ घट गया था पर उसे मालूम नहीं क्या घटा। वह पहली बार जान रही थी। हादसा इतनी तेज़ी से घटित होता हैं और उसे रोकने की गुंजाइश नही होती। भय, आतंक सदमे से स्तब्ध थी वह। उसने अनायास पीछे मुड क़र देखा पीछे अंधेरा था। मोटरसायकिल सवार नही दिख रहा था। वह हो सकता है अंधे मोड क़े उस पार कहीं गिरा होगा जिस पार से कार इस पार आ गई थी। कुछ दिखाई नही देता था। उसे कुछ समझ नही आ रहा था। अदिति की आक्रांत सांसें तीव्रतम गति से चल रही थी जैसे दमें के रोगी की सांस बढी हो।

'' क्या करती हो?  यह पहला वाक्य था जो अवस्थी जी के घुटते गले से बाहर आया। कहने के साथ उन्होने भी पीछे मुडक़र देखा। सब कुछ अंधेरे में गुम।
 कौन था वह? कहाँ गिरा?  अदिति की आंखे फैलकर भयावह लग रही थीं।
तुम पागल हो। भूत सवार हैं गाडी सीखने का। इधर आओ और मुझे चलाने दो। कोई स्टार्टिंग ट्रबल आ गई होगी तो यहीं बैठी रहना। आसपास खेत हैं ख़ेतों मे कोई काम कर रहा होगा तो उसने हमें देख लिया होगा। पकडे ज़ायेंगे।

अवस्थी जी अपनी तरफ का गेट खोलकर ड्राइविंग सीट पर आ गए। अदिति को नहीं मालूम क्या हो रहा हैं और उसे क्या करना चाहिए। उसका तंत्रिकातंत्र या तो सुन्न हो गया था या उसे बाहरी शक्ति संचलित कर रही थी। अदिति थरथराते पैरों से सीट से उतर कर सडक़ पर खडी हो गई। उसकी देह में इस तरह थरथराहट भरी थी जैसे अभी-अभी शॉक थेरेपी दी गई हैं।

''कौन था? कहाँ गिरा?'' अदिति ने फिर दोहराया। स्वर ठीक तरह खुल नही रहा था।
'' चुप रहो और जल्दी बैठो। आज तुम्हारी बेवकूफी ने।''

अवस्थी जी एक क्षण भी दुर्घटनास्थल पर रुकना नहीं चाहते थे। वे चाभी घुमाकर कार स्टार्ट करने का प्रयास करने लगे। अदिति इधर की सीट पर आ कर बोली -

''देखो ना जाकर उसका क्या हुआ?''
तुम जाओ और पुलिस, कचहरी के फेर में पडो। तुम्हारा अभी लाइसेंस तक नही बना हैं। बिना लाइसेंस गाडी चलाना अपराध हैं। होश की बातें सोचो।

अवस्थी जी की वकील बुध्दि सजग हो रही हैं। गाडी स्टार्ट हो गई। उस असहनीय घबराहट में उन्होने राहत की सांस ली कि कार मे स्टार्टिंग ट्रबुल नही आई। उन्होने कार बढा दी। एक बार दाहिने-बाएं, पीछे देखा। कहीं कोई नही था अंधेंरा ही अंधेरा। वे खुद को ढाढस देने लगे, उन्हे किसी ने नहीं देखा है। इस अंधेरे और शीत के कारण बढ ग़ई गलन मे खेतों में प्राण देने के लिए कोई नहीं बैठा होगा। उन्हे अंधेरा इस समय वरदान की भांति लग रहा था। अंधेरा न होता तो ना जाने कितने अपराध रोज उजागर होते।

''वह कौन था? कहां गिरा?'' अदिति शायद अब जिंदगी भर यही दोहराती रहेगी।
''सदमे मे तुम्हारा दिमाग तो खराब नही हो गया अदिति?'' एक ही बात रटे जा रही हो। अब अवस्थी जी की आवाज स्पष्ट रूप से खुली और वे डपटते हुए बोले।
''हमें उनकी मदद करनी चहिए।''
''जरूर। मदद करें और वह होश में हो तो तुम्हें पहचान ले। कार तुम चला रही थी और तुम्हारे पास लाइसेंस नही है। इसका मतलब जानती हो तुम? अटैम्पट् टू मर्डर।''

अवस्थी जी अटैम्पट् टू मर्डर जैसा झूठ बोलकर अदिति को संभवत: भयभीत करना चाहते थे ताकि वो चोटिल की सहायता करने का हठ न करे।

''मर्डर? हे भगवान।'' अदिति भय से एकदम निरुपाय लगने लगी। वह असहनीय बेचैनी और घबराहट से त्रस्त थी - ''सुनो मुझे कही नहीं जाना। मुझे पता नहीं कैसा लग रहा है। मैं परेशान हूं और वहां एडजस्ट नहीं हो सकूंगी। घर वापस चलो। हम वशिष्टजी के यहां कल चले जायेगे। मानो मेरी बात।''
''अदिति चुप रहोगी? मै भी तुम्हारी तरह परेशान हूं और तुम मेरी परेशानी बढा रही हो। मुझे कुछ सोचने दो। हम उसी रास्ते पर वापस लौटें और पकडे ज़ाएं। आसपास खेत थे और हो सकता है कि खेतों में आदमी रहे हों। हो सकता है उन्होने हमें देख लिया हो। हो सकता है वे लोग इस वक्त मोटरसायकिल वाले के पास हो और हमें और कार को पहचान लें। यह भी संभव है मोबाइक वाले को विशेष चोट न आई हो और वह चला गया हो और हम यहां परेशान हैं। तुम्हारा जे ये चेहरा जो पसीना-पसीना हो रहा है, उसे संभालो। तुम्हारे चेहरे से लग रहा है तुमने कुछ गलत किया हुआ है।''

अवस्थी जी की वकील बुध्दि सभी बिन्दुओं को खंगाल रही है। वे अदिति को सामान्य बनाने की कोशिश कर रहे थे और अदिति का भय बढता जा रहा था। अवस्थी जी ने उसके चेहरे को लक्ष्य किया तो वह घबराहट से रुमाल से अपना चेहरा पोंछने लगी। जैसे पोंछने मात्र से चेहरे के भाव मिट जायेगें और चेहरा भय मुक्त, स्वाभाविक लगने लगेगा। अदिति को अब भी विश्वास नहीं हो रहा था दुर्घटना उससे हुई है। वह नहीं समझ पा रही थी अवस्थी जी ऐसे असंवेदनशील क्यो हो रहे है। उसे याद आया एक बार अवस्थी जी कार चला रहे थे और सामने से साइकिल पर चले आ रहे स्कूल के विद्यार्थी को टक्कर मार दी थी। कार धीमी थी। टक्कर घातक नहीं थी। लडक़ा साइकिल सहित एक ओर गिर गया था और फिर गणवेश की धूल झाडता हुआ उठ कर खडा भी हो गया था। अवस्थी जी ने कार से उतर कर लडक़े के दो थप्पड मार दिए थे - हीरो बनता है। तेरे बाप ने साइकिल चलाई है? गलती करेगा, मरेगा, परेशानी हमारी।

दुर्घटना का सदमा और सार्वजनिक स्थल पर मारे जाने का अपमान। लडक़ा कपोल पर हथेली रखकर सन्न खडा रह गया। लोग जुहाते इससे पहले ही अवस्थी जी शीघ्रता से कार बढा ले गए थे। अदिति को उनका आचरण खला था -

''यह क्या बात है?
तुम नहीं समझोगी। मैं लडक़े को नहीं मारता तो लोग चढ बैठते कि गलती मेरी है। हो सकता है प्रभावित लडक़े को र्दो चार सौ रुपये भी देने पड ज़ाते। पर आजकल यही होता है।

अवस्थी जी ऐसे अभिमान से बोले थे जैसे बहुत बुध्दिमता का काम किया है। अदिति सोचती रह गई थी कोई आदमी इतना असंवेदनशील कैसे हो सकता है? और आज। आज फिर अवस्थी जी ठीक वैसा आचरण कर रहे है। अदिति परेशान है। उस दिन तो लडक़ा बच गया था। आज उस मोटरसाइकिल वाले का पता नहीं क्या हुआ होगा? अदिति ने एक ठण्डी-गहरी उसांस भीतर खींचते हुए एक बार फिर रुमाल से चेहरा पोंछा। इधर अवस्थी जी कार की गति बढाने मे पूरी शक्ति झौंक रहे है फिर भी उन्हे लग रहा है कार आगे नहीं बढ रही है। अदिति के चेहरे की दशा देख सहसा उन्हे ख्याल आया की कार की दशा भी जांच लेनी चाहिए। कुछ टूट-फूट हुई होगी और ऐसी गाडी वशिष्ट जी के घर ले जाएंगे तो वह संदेह का कारण बनेगी। वे संदेह का कोई कारण छोडना नहीं चाहते थे। उन्होने माइल स्टोन पर नजर डाली। कृपालपुर दस किलोमीटर अर्थात वे बीस किलोमीटर की दूरी तय कर चुके है। अंधा मोड बहुत पीछे छूट गया है। अवस्थी जी ने कार रोकी - देख लें कुछ डेमेज तो नही हुआ?  अदिति चुप रही। अवस्थी जी कार से उतरकर हेडलाइट के प्रकाश में कार का निरीक्षण करने लगे। सेफ्टी गार्ड लगा होने से बडी क्षति होने से बच गई थी। हेड लाइट के नीचे का पीला छोटा बल्ब फूट गया था और सामने का हिस्सा थोडा पिचक गया था। जितनी क्षति की आशंका थी उससे बहुत कम हुई थी। अवस्थी जी के लिए यह एक बडी राहत थी। वे पुन: आकर ड्राइविंग सीट पर बैठ गए।

''अदिति कुछ खास डेमेज नहीं हुआ है। इसका मतलब है टक्कर बहुत तेज नहीं हुई होगी। मुझे लगता है मोटर साइकिल वाले को झटका लगा होगा, वह बच गया होगा।''

कृपालपुर पहुंचकर अवस्थी जी ने वशिष्ट जी के घर से कुछ फासले पर एक छतनार पेड क़े नीचे कार खडी क़ी। यहां स्ट्रीट लाइट का प्रकाश भली प्रकार नहीं पहुंच रहा था और अपेक्षाकृत अंधेरा था। वे नहीं चाहते थे कि किसी की नजर कार पर पडे और वह कुछ सवाल करे। उनकी वकील बुध्दि कभी इस विलक्षण ढंग से चौकन्नी होगी उन्हे नहीं मालूम था।

''अदिति प्लीज नार्मल हो जाओ।'' अवस्थी जी ने वशिष्ट जी के गेट के भीतर प्रविष्ट होते हुए कहा। जवाब में अदिति ने फिर चेहरा पोंछा। वशिष्ट जी का घर अप्रत्याशित रूप से शांत और करुण प्रतीत होता था। अपने प्रिय की मौत से पदार्थ भी दरकता होगा तभी तो मकान वीरान लगने लगता है। आज बाहर बगीचे की लाइट बुझी हुई थी। लाइट जलाने की किसी को सुध नहीं रही होगी। इस घर के लोगो को अपनी ही सुध नहीं होगी लाइट जलाने की क्या कहे? वशिष्ट जी के घर को देख अदिति की आंखे भर आई। रास्ते का हादसा और शाश्वत की मौत। अदिति बहुत देर से चाह रही थी रो ले पर रुदन भी जैसे संघात से ठिठका हुआ था। अब वह खुद को रोके नहीं रख सकती थी। अदिति जब भी इस घर में आती थी और शाश्वत घर पर होता था तो वही सबसे पहले बाहर निकलकर उसके पैर छुता था।

वह कहती, ''खुश रहो।''
''एक आशीर्वाद से क्या होता है यहां तो बहुत से आशीर्वाद चाहिए। शाश्वत विहंसते हुए कहता।''
''जैसे? ''
''जैसे। जैसे। आई आई टी में हाइयेस्ट परसेंटेज। फिर अच्छा सा जॉब - ख़ूब ढेर सारा पैसा। हां एक सेन्ट्रो भी चाहिए और एक अच्छी सी लडक़ी भी चाहिए।''
''बदमाश।''
''आपके जैसी।'' शाश्वत का हंसना देर तक चलता।

निरुपा कहती - ''यह बॉम्बे चला जाता है और इसकी हंसी यहीं मेरे पास रह जाती है।'' शाश्वत की हंसी के बिना यह घर कैसे टिका रह सकेगा? आज शाश्वत स्वागत के लिए बाहर नहीं आया। कोई भी नहीं आया। अदिति और अवस्थी जी सामने के बडे क़मरे मे चले आए। वशिष्ट जी और निरुपा इसी कमरे में मिल गए। अदिति ने जिस दिन से शाश्वत के न रहने की खबर सुनी है तब से पीडित है पर इस समय शाश्वत के घर आ कर लग रहा है सब कुछ आज ही अभीअभी घटा है। कोने में स्टूल पर शाश्वत की बडी सी तस्वीर रखी है। तस्वीर पर पुष्पाहार। सुगंधित अगरबत्तियां जल रही है। इस तस्वीर मे शाश्वत की हंसी ठहरी हुई है - पूरी जीवंतता, परिपूर्णता, प्रमाणिकता के साथ। फर्क इतना ही तस्वीर की हंसी की आवाज नहीं होती।

अदिति को मोटर साइकिल वाले का स्मरण हो आया। वह भी तस्वीर तो नहीं बन गया होगा? और आनंद इस समय कहां होगा? सुरक्षित होगा न? बुरे ख्याल क्यों आ रहे हैं प्रभु? शाश्वत-मोबाइक वाला-आनंद। अदिति के जहन में ये तीन चेहरे गड्ड-मड्ड हो रहे है। मोबाइक वाले का चेहरा उसने नहीं देखा, उसे कुछ याद नहीं फिर भी लग रहा है उसका चेहरा शाश्वत और आनंद से मिलता-जुलता होगा। अदिति को देखते ही निरुपा मुंह पर आंचल रखकर रो पडी। दोनो एक दूसरे से लिपट कर देर तक रोती रहीं। अदिति ने नहीं सोचा था वह इस तरह विलाप करेगी। उसके भीतर एक्सीडेन्ट की बेचैनी और छटपटाहट न होती तो शायद वह इस तरह इतनी अधीर न होती बल्कि निरुपा को ढाढस बंधा रही होती। इंसान शायद दूसरे के लिए कम अपने लिए अधिक रोता है। दूसरे के दुख को तभी गहराई से समझ पाता है जब उसे अपने संदर्भ में जोडता है। छोटी बेटी आराधना ने आग्रह करके सबको बैठने को कहा। स्थिति कैसी भी हो औपचारिकताएं करनी पडती है। कुछ देर सब चुप रहे फिर शाश्वत की बातें होने लगीं।आराधना ने शुरु की -

''शाश्वत की शादी तय थी इसी अप्रैल में। उसने ही लडक़ी पसंद की थी।अब तो सब खत्म।''
''भगवान को यहीं मंजूर था।'' अदिति बोली।
''मेरा तो भगवान पर से विश्वास उठ गया।खूब की पूजा-भक्ति क्या मिला?'' निरुपा लम्बी सीत्कार के साथ बोली।

अदिति को अभी लग रहा था कि शाश्वत मरा है यहां आकर जाना कई संबध एक साथ मृत हो गए हैं। शाश्वत किसी का बेटा, किसी का भाई क़िसी लडक़ी का भविष्य, किसी का दोस्त ।

''एक्सीडेन्ट करने वाले पकडे नहीं गए? '' अदिति ने आराधना से पूछा।
पता नहीं।वे अजीब लोग थे। कार से टक्कर हुई। शाश्वत मोबाइक पर था। गिर कर बेहोश हो गया। उन कार वालों ने ही उसे सबसे अच्छे अस्पताल में भर्ती कराया। इलाज के लिए एडवांस पैसा जमा किया। शाश्वत की डायरी से पापा का फोन नम्बर पता यहां इतनी दूर सूचना दी। शाश्वत को समय पर मेडिकल एड मिल गई थी पर हमारे भाग्य फूटे थे। हेड इनजुरी थी।'' आराधना बोली।

सुनकर अदिति के मस्तिष्क की नसें झनझना गई। सांसे बैठने लगीं। हृदय पहले ही बोझिल था। उसने अनायास अवस्थी जी की ओर देखा वे कनखी से उसी को देख रहे थे। अदिति की इच्छा हुई तेज चीख मारकर अवस्थी जी को झिंझोड ड़ाले-उसकी सहायता क्यों नहीं की? उसे मेडिकल एड भी मिलनी ही चाहिए थी। आनंद भी तो तेज बाइक चलाता है। कभी उसके साथ ये सब। नहीं। शाश्वत, मोबाइक वाला, आनंद उसे एक साथ क्यों याद आ रहें है? वह कुछ नहीं सोचना चाहती इस वक्त कुछ नहीं। गहरी नींद में सो जाना चाहती है। वापसी के लिए अवस्थी जी ने दूसरा लम्बा रास्ता चुना। वे कोई जोखिम लेने को तैयार नहीं थे। उन्हे बडा संतोष था वे वकील हैं। धाराएं जानते हैं और इतने बिंदुओं पर सोच पा रहे है। हो सकता है वह दुर्घटनाग्रस्त व्यक्ति वहां पडा हो। हो सकता है पुलिस उनकी कार पर संदेह करे, हो सकता है। उफ्। वे दोनो रात बारह बजे के लगभग घर पहुंचे। शीत लहर का प्रकोप सर्वत्र व्याप्त था। उन दोनों के शरीर बर्फ से ठण्डे हो रहे थे। अदिति को ध्यान आया वह मोबाइक वाला वहीं खुले में पडा होगा। वह ठण्ड से चिकित्सा के अभाव में कहीं। अदिति की थरथराहट घर की आरामदेह गरमाहट के बावजूद बनी हुई है।

'' कोई फोन तो नहीं आया था? '' बाहर से लौटकर अवस्थी का पहला प्रश्न यहीं होता है।
अर्दली ने बताया - ''आनंद भैया का फोन आया था। कह रहे थे उनके दोस्त पीताम्बर यहां आए हुए है तो उनके साथ कुछ खाने का सामान और पैसे भेज दे।'' आनंद का संदेश सुनकर अदिति की घुटन कुछ कम हुई, ''आनंद ठीक है न।''
''हां, कह रहे थे पीताम्बर के साथ साहब के लिए टाई भेजी है।''
''ये लडक़ा भी'' अवस्थी जी भावुक हो गए -  ''बहुत याद आता है।''

पीताम्बर आनंद का रूम पार्टनर है दोनों कम्प्यूटर इंजीनियरिंग कर रहे है। पीताम्बर का परिवार यहां से पन्द्रह किलोमीटर दूर एक कस्बे दुर्जनपुर में रहता है। बहुत बडा सयुंक्त परिवार है। दुर्जनपुर में उनका फार्म हाउस, पोल्ट्री फार्म, चूना भट्टे, आइल रिफाइनरी आदि है। रईस परिवार है। अदिति ने तय किया सुबह पीताम्बर को फोन करके आनंद की कुशल क्षेम पूछेगी। रात पता नहीं कितनी बीत गई। अदिति और अवस्थी जी को नींद नहीं आ रही है। हृदय पर बोझ हो तो नींद नहीं आती। अवस्थी जी जैसे अपना बोझ और मालिन्य कम करने के लिए कहने लगे -

''आजकल के लडक़े भी तो बेवकूफ होते है। जान हथेली पर लेकर चलते है। इतनी तेज ग़ाडी चलाएंगे, मर्दानगी झाडेग़े और मरेंगे। अरे पांच दस मिनिट देर से पहुंच जाओगे तो बहुत भारी नुकसान नहीं हो जाएगा। ये मर जाते हैं और माता-पिता इनके नाम को रोते रहते है। मैं दावे के साथ कह सकता हूं अदिति, वह मोबाइक वाला अंधाधुंध गति से गाडी चला रहा होगा। अरे धीमी गति से चलो, सम्भलने का मौका तो मिले।'' अवस्थी जी अदिति को दिलासा देना चाह रहे थे। अदिति चुप।
''कुछ बोलोगी?'' मैं भी कम अशांत नहीं हूं। तुम्हारी कार सीखने की सनक ने आज ये दिन दिखाया।अवस्थी जी खीज गए।
''कुछ अच्छी बात करो तो रात कटे।''
''कैसी बातें? ''
''आनंद की। मेरा जी घबरा रहा है।''

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