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विजेता कभी-कभी यह होता है, जो कुछ अनुभव में घटित हो रहा है वह नामालूम तरीके से एक रूटीन के तहत गुजर जाता है और बाद में वह गुजरा हुआ बार-बार हर क्षण महसूस होता रहता है। अनुभव बीत जाता है अनुभूति का एहसास भीतरी तहों में दुबक कर बैठ जाता है। पहली और दूसरी, शायद तीसरी बैठक तक मरीज थी, वे चिकित्सक। और शायद तीसरी बैठक के बादहां, तीसरी बैठक के बाद ही वे चिकित्सक से उसके सर्वश्रेष्ठ हो गए, वह मरीज से उनकी दीवानी हो गई। जब उम्र में कच्चापन था, तब जब उसने जिस सर्वश्रेष्ठ की कल्पना की रही होगी शायद, वह पैतींस के लपेटे में है और उनके नाम के आगे बडी-बडी ड़िग्रियां लगी हुई है तो चालीस से कम भी नहीं होगे। जब वह उम्र के खूबसूरत और ताजा मोड पर भी थी और खूब अच्छी तरह जानती थी कॉलेज के जूनियर, सीनियर लडक़े और एडहॉक के पिपरसानिया सर उस पर कुर्बान है, तब भी वह किसी की ओर आकृष्ट नहीं हुई थी। उन दिनों उसे अपने अनिंद्य सौंदर्य का कुछ इस कदर गुमान था कि वह किसी को अपने जोड का नहीं समझती थी। उसे किसी सर्वश्रेष्ठ की तलाश थी, तलाश नहीं प्रतीक्षा थी। और उसे विश्वास था ईश्वर ने कहीं, एक सर्वश्रेष्ठ उसके लिए रख छोडा है जो उसे निश्चित रूप से मिलेगा। उसे सर्वश्रेष्ठ की साध थी और पति रूप में निहायत औसत किस्म का केशव मिल गया। उसने भाग्य का लेख मान कर केशव को स्वीकार तो कर लिया, पर विरोधस्वरूप उससे जरूरत भर को बोलती थी। वर्ष, दो वर्ष बाद जब सहज रूप से बोलने लगी तब केशव हंसा - '' अम्बिका, मैं तो डर गया था पंडितजी ( अम्बिका के पिताजी) ने मुझे गूंगी लडक़ी थमा दी है, पर नहीं, तुम्हे तो बोलना आता है।'' और इस तरह सब ठीक-ठाक चलने लगा। तो फिर अब क्या हो रहा है? अम्बिका को किसी परिवर्तन की चाह है? या उसका आसमानी सर्वश्रेष्ठ डॉ व्यास के रूप में अवतरित हो गया है? कुछ तो है।अम्बिका, डॉ व्यास। उनका चेहरा, उनका स्वर, उनका व्यक्त्वि अम्बिका पर सम्मोहन डाल रहा है। एक भंवर है, डूब जाने के जोखिम से भिज्ञ होते हुए भी जिसमें डूब जाने को जी करता है। अम्बिका चिकित्सक के पास नहीं जाना चाहती थी। उसे औषधि और इंजेक्शन से तो अरुचि है ही, उससे भी बडा भय यह कि डॉक्टर कोई गम्भीर बीमारी बता देंगे और वह उस बडी बीमारी का नाम सुनकर पहले से अधिक पीडित, आतंकित और रुग्ण हो जाएगी। अम्बिका इधर के एक दो वर्षो में अजब सुस्ती, उदासी, निराशा, निष्क्रियता, अवसाद से घिरती गई है। सब कुछ वैसा ही चल रहा है जैसा विगत पद्रंह वर्षो से चला आ रहा है, इसलिए वह अपनी उदासी और शिथिलता का कोई प्रत्यक्ष कारण नहीं बता सकती। उसे नहीं मालूम क्या करना चाहती है, पर कुछ करना चाहती है। उसे नहीं मालूम क्या पाना चाहती है। कुछ कमी सी लगती है और जब ढूढने लगती है तो पाती है उसके पास सब कुछ है। फिर क्या? पता नही, जीवन, जगत, केशव सब नीरस, निरर्थक, निष्प्रयोजन लगते है। अनिद्रा, भूख न लगना, वजन घटना और अब उदर शूल। '' खुश रहा करो, तुम खुश रहती हो तो घर का माहौल अच्छा रहता है।'' केशव अपनी व्यवसायिक व्यस्तता के बीच यह सरल सी बात कहता तो अम्बिका सोच में पड ज़ाती - केशव कभी भी किसी स्थिति को देखकर असहज क्यों नहीं होता। और जब इंट्राक्यूनाल के वृहद सेवन से उदर शूल नहीं रुका तो केशव ने दर्द को गंभीरता से लेते हुए अपने घर से थोडी दूर रहने वाले अपने मित्र श्रीनिकेत से चर्चा की - ''
अम्बिका को किस डॉक्टर को
दिखाना चाहिए?'' और अम्बिका को चिकित्सक के पास जाना पडा। डॉ व्यास के घर के गेट पर नेवी ब्लू मारुति खडी थी। अम्बिका कार का नम्बर देख कर बोली - ''
कितना मजेदार नम्बर र्है दस
बीस ( एक,
शून्य,
दो,
शून्य)।'' जल्दी ही डॉ व्यास अवतरित हुए। अम्बिका को नही मालूम, सबसे पहली बार वे कैसे दिख रहे थे। '' अरे श्रीनिकेत। आओ, आओ। यहां ड्राइंग रूम में आओ।'' अम्बिका को नहीं मालूम तब उनका स्वर कैसा था। ''
पेशेन्ट लाया हूं।''
श्रीनिकेत उठ कर खडा
हो गया। केशव और अम्बिका भी। अम्बिका को नही मालूम उनकी चितवन कैसी थी। श्रीनिकेत ने परिचय कराया -
'' ये मेरे
मित्र केशव पुराणिक और ये इनकी धर्मपत्नी।
तुम्हारी पेशेन्ट।'' अम्बिका को नही मालूम उनकी देह परिमल कैसी थी। डॉ व्यास ने उसकी नाडी पकडक़र पल्स रेटिंग देखी। जीभ और आंखो की जांच की। रक्त चाप मापा। आला लगा कर छाती और पीठ की जांच की। दीवान पर लेटने को कहा और पेट मे उंगलियो से दबाब डालकर जांचा-परखा। अम्बिका ने बाई ओर संकेत कर बताया कि किस स्थल पर दबाने से अधिक दर्द हुआ। अम्बिका को नहीं मालूम उनका स्पर्श कैसा था। उस सबके उपरान्त डॉ व्यास बरान्डे में रखी वेइंगमशीन उठा लाए - ''
वजन लीजिए तो
''
अम्बिका मशीन पर खडी हो गई
और डॉ व्यास भूमि पर ऊकडूं बैठ कर रीडिंग देखने लगे अम्बिका ने डॉ व्यास के चेहरे पर सरसरी निगाह डालकर पलकें झुका ली। अम्बिका किसी पुरूष से दृष्टि मिलाकर बात नहीं कर पाती। उसकी पलकें या तो बार-बार झपकती है या दृष्टि को साधे रखने के प्रयास में चेहरा कुछ खिंच सा जाता है। डॉ व्यास ने पर्चे में ब्लड शुगर, ई एस आर , चेस्ट एर्क्सरे, एब्डामन अल्ट्रासाउन्ड आदि जांच कराने के निर्देश लिख दिए थे। ''
ये टेस्ट कराने होगे।'' घर पहुंच कर अम्बिका शिथिल थी और केशव उसे देर तक समझाता-संभालता रहा। फिर सब कुछ चमत्कारिक ढंग से घटता गया अम्बिका को संभावित बीमारी ने निराश किया, पर अनूठा एहसास भी हुआ। एक नया अनुभव, जो अब तक नहीं हुआ। कभी सोचा नहीं था, ऐसा होता है। अब डॉ व्यास फकत एक चिकित्सक नहीं थे। वे अम्बिका को लगभग चमत्कारिक ढंग से अपनी ओर खींच रहे थे। अम्बिका रात में बिछावन पर आई तो जेहन में डॉ व्यास ठहरे हुए थे - छ: फुटी गेहुंआ आकृति। अम्बिका को सबसे पहले उनका स्पर्श याद आया। डॉ व्यास ने उसकी नब्ज देखने हेतु उनकी कलाई में पडी चूडियो को उंगलियों से सरकाया था। पीठ पर आला रखते हुए चोटी आगे की ओर की थी। आंखो की जांच करते हुए पलकों पर अंगूठे को टिकाया था। अम्बिका ने पलकें मूंद कर उनपर बहुत मुलायमियत से तर्जनी फेरी। पलकों में इस तरह सिहरन हुई जैसे डॉ व्यास का स्पर्श अभी वहां है। पेट पर उनकी गर्म उंगलियो का दबाब अब भी बना हुआ है। डॉ व्यास आपका गरम-करारा स्पर्श जादुई है। शायद आपके स्पर्श से तरंगे उत्पन्न होती हैं जो मुझे आवेशित कर रही है। अम्बिका को याद आया वेइंग मशीन पर उसका वजन देखने हेतु वे उकडूं बैठकर मशीन पर झुके हुए थे। डॉ व्यास यह आपकी बहुत सरल पर बहुत प्रभावी मुद्रा थी। डॉ व्यास की हंसी - डॉ व्यास ऐसी संयत, सलीकेदार हंसी मैने पहली बार ही देखी है। आप शायद जानते है हंसने का तरीका मनुष्य के व्यक्तित्व को बनाता और बिगाडता है। डॉ व्यास की दृष्टि - यह दृष्टि अम्बिका को एने चेहरे पर फिसलती हुई मालूम हो रही थी। डॉ व्यास आपकी दृष्टि की भेदन क्षमता असाधारण है। डॉ व्यास का चेहरा - इस चेहरे की खासियत? हां, डॉ व्यास आपके दांत बहुत उजले है जो आपके तेजस्वी चेहरे को प्राकृतिक चमक देते है और यह जो बात करते हुए आप क्षणांश के लिए पलकें मूंद कर खोलते है वह अद्भुत है, मैने पुष्प को कभी खिलते हुए नहीं देखा फिर भी सोचती हूं वह इस तरह बहुत आहिस्ता और नरमाई से खिलता होगा। डॉ व्यास की उम्र - डॉ व्यास आप बहुत युवा दिखते है, पर इतनी बडी-बडी ड़िग्रियां और अब स्थापित चिकित्सक है तो चालीस से कम नहीं होगे। अम्बिका बडी देर तक उनकी उम्र के आंकडों में उलझी रही। अम्बिका की दशा विचित्र थी। डॉ व्यास जब बहुत समीप थे तब उनका समीप होना नहीं जाना और इस वक्त जब वे अपने घर में मीठी नींद सो रहे होंगे तब उनके समीप होने का बोध हो रहा है। जी चाहा कार स्टार्ट कर इसी वक्त डॉ व्यास के घर पहुंच जाए - डॉक्टर साहब मुझे कुछ हो गया है। आप कलीनिकली एक्सप्लेन करेंगे मुझे क्या हुआ है? पल्स देखिए। ब्लड प्रेशर मापिए। स्टेथोस्कोप से जांच? अच्छा ये पेट में दर्द इस तरफ जो रात अपनी शांति और निस्पंदन के कारण अम्बिका को उदार और मलिन लगती थी वह आज सुंदर लग रही है। बहुत दिनों के बाद, वर्षो बाद। उसने पुलक में भरते हुए करवट बदली। और सामने केशव दिख गया। सांसो का संतुलन बताता है केशव गहरी नींद में है। अम्बिका निद्रामग्न केशव को देखती रही। केशव बहुत नियमित लगभग तराशी हुई दिनचर्या जीता है। इसकी दिनचर्या में जोड-घटाव की गुंजाइश नही होती। अम्बिका को उसे प्रत्यक्षत: कोई शिकायत, जो सचमुच शिकायत मानी जाए, नहीं है। बस बहुत सी छोटी-छोटी आम किस्म की रूठने मनाने वाली शिकायतें रही है। फिर भी वह इधर के वर्षो में अजब खीज, चिडचिडेपन से भरती गई है। संबंधों की नियमितता और एकसरता से उपजे ठहराव, ठंडेपन, सडांध, जडता के कारण उसके भीतर का वह सब मरता गया है जो कभी जीवित हुआ करता था। वह घंटो अकेली पडी रहती। चाहती मस्तिष्क में विचारों का दबाव न रहे और शून्यात्मक स्थिति में विश्राम की अवस्था में पडी रहे। गहन विषाद और निराशा का दौर ऐसा आया जब उसे लगने लगा कि जिंदगी को जिस तरह जी रही है। उस तरह नहीं जीना चाहती है। किस तरह जिए, नहीं जानती, बस इस तरह नहीं। इस तरह जीते हुए सब कुछ रस्म अदायगी सा लगने लगता है - प्रायोजित सा। नियतिबध्द। एक बाध्यता। वह वैसे भी मितभाषिणी रही है और इधर एक-दो वर्षों में उसका केशव से जरूरी बातों के अलावा सीधा संवाद कम ही हुआ। सोचती अवश्य कि दिन भर के बाद जब केशव लौटेगा, वह उसका जोरदार स्वागत कर दिन भर का ब्योरा देगी, पर जब केशव सामने आता तो उस पर एक श्लथ भाव तारी हो जाता और लगता उल्लेखनीय कुछ भी घटित नहीं हुआ जिसे रेखांकित कर केशव को बताया जाए। अम्बिका अपने अवसाद का कारण ढूंढती तो कारण न मिलता। कमी? प्रत्यक्षत: कुछ भी नहीं। असंतोष, अतृप्ति, तृष्णा मालूम नहीं। फिर क्या? पता नहीं। और आजआज डॉ व्यास के संदर्भ में सोचते हुए उसे एकाएक सब कुछ अच्छा और सुंदर लगने लगा है। जिंदगी भी। जिंदगी कैसी भी हो इतनी महत्वहीन नहीं होती कि बाध्यता की तरह जी जाए। अम्बिका की इच्छा हो रही थी, जाए और डॉ व्यास को ध्यान से, खूब गहरी दृष्टि से देखे। पर अब तो बांबे वाली रिर्पोट आ जाने के बाद ही संभव होगा। जो कि दस दिन बाद मिलेगी। डॉ व्यास की सीढियां चढते हुए अम्बिका ने श्रीनिकेत से पूछ ही लिया - ''
डॉ व्यास की बडी ख्याति है
जबकि उम्र कुछ खास नहीं होगी।'' डॉ व्यास की पत्नी का यहां न होना अम्बिका को अपने अनुकूल प्रतीत हुआ। उसका चेहरा चमक उठा। वह अपने आप में मुस्करा दी। बेल बजाने पर मिठ्ठू बाहर निकला और उन लोगो को ड्राइंग रूम में बैठाकर अंदर चला गया। जल्दी ही डॉ व्यास आ गए। '' कैसी है आप?'' अम्बिका ने लक्ष्य किया, उसे देखकर डॉ व्यास की आंखे उत्साह से खिल उठी है। ''
यह तो रिर्पोट देख कर आप ही
बताएंगे।''
अम्बिका ने बडी मोहक मुद्रा
में गर्दन तिर्यक करके कहा। डॉ व्यास ने अम्बिका का ब्लडप्रेशर लिया। स्टेथोस्कोप से जांच की, पेट टटोला कहने लगे - ''
आप अम्बिका जी घबरा गई
है।आप सोचती अधिक है।'' कुछ है इस दृष्टि में। एक ऐसा समर्पित भाव जैसे, डॉ व्यास सिर्फ उसी के लिए बने है। ''
आपको दिखा लिया तो अब अच्छा
लग रहा है। मैं सचमुच बहुत डिप्रेस्ड थी।'' बात समाप्त करते हुए शायद उन्हे ध्यान आया हो, वे अम्बिका पर ही केंद्रित रहे है। अत: केशव की ओर मुखातिब हुए - ''
पुराणिकजी,
शवासन आप भी कर सकते
है। वर्क टेंशन तो आपको भी रहता होगा।'' इस पर डॉ व्यास अम्बिका की ओर देख कर हंसे। वह हंसी अम्बिका की नसों में विद्युत धारा बनकर प्रवाहित होने लगी। बोली - ''
आप एलेपैथी वाले ध्यान-योग
पर आस्था रखते है,
यह अद्भुत है।'' अम्बिका पूछना चाहती र्थी डॉ व्यास आपके डिप्रेशन का कारण? आपका जीवन चक्र? मेरे बारे में आपकी राय? नहीं पूछ सकी। विवेक का सख्त नियत्रंण और चेतना पर पडता यथार्थ का दबाव साहस को क्षीण कर देता है। चलते हुए केशव ने सौ का नोट टेबिल पर रखे पेपर वेट से दबा दिया। सेंटर टेबिल पर ही बटुआ रखा था। ''
औपचारिकता न करें।''
डॉ व्यास वह नोट
अम्बिका के बटुए में डालने लगे। बटुआ छीनने के प्रयास में अम्बिका और डॉ व्यास के हाथ टकरा गए। डॉ व्यास ने अनायास अथवा सायास अम्बिका की कलाई पकडी और नोट उसकी हथेली पर रख दिया - '' बिल्कुल नहीं।'' जब तक अम्बिका समझ पाती, उस क्षण क्या घट गया, तब तक डॉ व्यास उसकी कलाई मुक्त कर चुके थे। ओहओह डॉ व्यास आपने ये क्या किया? मेरा सब कुछ हरण कर लिया। |
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