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प्रश्न का पेड
मैं ने माँ की शादी के फोटो देखे थे तब कितनी खिलखिलाती थी, सुन्दर और खुशनुमा थी। अब! पिता से गालियाँ खाती, चुपचाप बिसूरती है, मुसे हुए कपडों में, उलझे बालों में दिन गुजार देती है, और बच्चों की माँओं की तरह ज़रा भी सुघड नहीं। लोग कहते हैं, बेमेल विवाह का नतीजा है। आए दिन पिता की प्रताडनाओं ने उसे बुझा दिया है। वह अकेले रहती है, किसी से मिलना न जुलना। सहसा मैं ने एक दिन माँ के चेहरे पर शादी की फोटो वाली चमक देखी। उस दिन वह खाने पर आया था। मैं स्कूल जाती बच्ची थी। तब पहली बार प्रश्न एक अंकुर की तरह मेरे चेहरे पर उगा। माँ ने लपक कर मेरा चेहरा चूम लिया। अब माँ घर साफ रखती, अच्छा खाना बनाती। कभी-कभी सजती भी। अब वह पिता की उपस्थिती में अकसर आने जाने लगा। मैं बडी हो रही थी साथ ही चेहरे पर उगे प्रश्न पर पत्तियाँ उगने लगी थीं। भोली माँ चतुर हो गयी थी। स्वयं के सुख के छिपे स्त्रोत में तृप्ति ढूंढ वह पिता को सहन करना, खुश रखना सीख गई थी। बडी चतुरता से अपनी मर्यादा ओढे रखती। वह सामाजिक हो गई। अब वह पिता की अनुपस्थिति में भी आता। मेरे चेहरे पर उगे प्रश्न के पेड पर फूल उग आए थे वह बडा हो गया था। वे फूल मुझे सुन्दर लगते उनके मोह में मैं माँ की शिकायत पिता से कभी नहीं करती। माँ मुझे सुन्दर फ्रॉक्स दिलाती। वह चॉकलेट्स से हाथ भर देता। पर प्रश्न का पेड था कि बढता जाता। अब वे शहर से बाहर मिलते। मैं किशोर वय में आ गई थी। मैं माँ से दुर्वव्यवहार करती। वह आता तो जलती आँखों से देखती। पर पिता से शिकायत करने का साहस न जुटा पाती। प्रश्न के पेड पर ना जाने कहाँ से नीम कडवे फल उग आये थे। अब उनके मिलने पर लोग कानाफूसी करने लगे थे। मैं किशोरी से युवति हो गई थी। कडवे फल तो झड ग़ये थे पर मेरा पूरा चेहरा प्रश्न के पेड से ढक गया था। मैं कहीं दिखाई नहीं देती। माँ को मेरी चिन्ता हुई। उसी रात माँ ने देर रात तक बात की जिसका सार था कि मेरे मरुस्थल से जीवन में वही एक हरा-भरा कोना है। और है ही क्या मेरे जीने की वजह तू या वह। मैं कुछ समझी, कुछ नहीं। माँ ने खूब खोज-बीन कर मेरी सगाई एक सुयोग्य व्यक्ति से कर दी। हम दोनों मिलते और प्रेम के असर से मेरे चेहरे पर उगे प्रश्न के पेड क़े पत्ते झडते जाते। विवाह कर और पति से प्रेम और सम्मान का अथाह सागर पा कर लोटी तो माँ ने पाया वह पेड ज़ो मेरे चेहरे पर उगा था ठूंठ हो गया है। अंतत: जब स्वयं माँ बनी तो पाया वह पेड ज़ड से उखड ग़या है और मेरा चेहरा माँ की खिलखिलाती फोटो सा हो गया है। मैं समझ गयी थी माँ के मरुस्थल और हरे-भरे कोने का रहस्य। फिर कभी मेरे चेहरे पर प्रश्न का पेड नहीं उगा।
इन्द्रनेट पर हलचल
- सुब्रा नारायण |
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