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मुट्ठी भर उजियारा-2
इधर कुछ दिनों से शन्नो देख रही थी, सोनू की जीन्स कमर से नीचे सरकती जा रही है, टी शर्ट ऊंची होती जा रही है। एक दिन कॉलेज से लौटते हुए उसने नाक और नाभि में नथ पहन लिये। फेदर कट बालों को सुनहरे और लाल रंग में रंगवा लिया। कई दिनों की भरी बैठी शन्नो ने आव देखा न ताव तड तड चार चांटे उसके गालों पर जड दिये। सोनू थोडी देर भौंचक्की खडी रही, फिर मम्मी का हाथ पकड क़र कडक़ी, '' देख मम्मी आज तो मार लिया, दुबारा फिर कभी हाथ मत उठाना। यहां अठारह साल की लडक़ी बालिग होती है। कई लडक़े मेरे दोस्त हैं। चाहूं तो आज ही घर छोड दूं या पुलिस को बुला लूं। रोकना चाहती हो तो पापा को रोको जो तुम्हें घर में बिठा कर खुद दिन रात गोरियों के साथ घूमते हैं। मोनू को रोको जो लडक़ों से यारी करता है। जब तब मेरे कपडे पहन कर गे पार्टीज में जाता है। मैं ने कोई ऐसा वैसा काम नहीं किया है। फैशन करना कोई क्राईम नहीं है हाँ।'' शन्नो को काटो तो खून नहीं। क्या कह रही है यह बित्ते भर की लडक़ी? '' भाई और पापा पर इल्जाम लगाते तुझे शर्म नहीं आती है, कमीनी! उसी दिन के लिये तुझे पाल पोस कर बडा किया है? शन्नो कुछ न कर सकने की हालत में जितना जोर से चिल्ला सकती थी चिल्लाई और फिर बुक्का फाड क़र रोने के साथ साथ दीवार से सर मारने लगी। '' ओह शिट! ये इण्डियन औरतें सच्चाई तो फेस कर ही नहीं सकती। न जाने किस डोडो लैण्ड में रहती हैं।'' कहती हुई सोनू ने गरदन को एक झटका दिया और पैर पटकती हुई अपने छोटे बैडरूम में आकर दरवाजा बन्द कर लिया। कमरे के अन्दर कानों में वाकमैन के इयरप्लग लगा स्टैच्यू की मुद्रा में खडे रहने की कोशिश करने लगी। आजकल सोनू की एक स्ट्रीट आर्टिस्ट स्टूडेन्ट से खूब छन रही है। पिछले दो तीन रविवार से वह कान्वेन्ट गार्डन में उसके साथ आस्कर वाइल्ड के द गोल्डन प्रिंस के स्टैच्यू का नाटक खेल रही है। सोनू को अच्छा खासा थ्रिल मिलता है। कई दिलदार लोग तो उसकी टोकरी में बीस पाऊंड के नोट तक डाल जाते हैं। शन्नो लडक़ी का साहस देख कर मन ही मन डर गई। लगा सोनू की इस धमकी में जरूर कोई न कोई सच्चाई है। इधर वह बहुत दिनों से महसूस कर रही थी कि उसके चारों ओर जैसे कोई षडयन्त्र सा हो रहा हो। उसका कुछ बहुत कीमती कोई धीरे धीरे चुराता जा रहा है। कोशिश करने के बावजूद वह अपना वह कीमती कुछ सहेज नहीं पा रही है। घर के बाहर जो वातावरण है उसका जो असर परिवार पर पडता जा रहा है, उस पर उसका कोई कंट्रोल नहीं रहा है। रोना छोड वह सोचने बैठ गई। सुभाष से कुछ कहना बेकार है। वह तो कोतल घोडा है। घर में रहता ही कितना? और फिर उसके लिये तो कोई बात गलत है ही नहीं। कुछ कहो तो दार्शनिक की तरह कहेगा, '' नथिंग इज ग़ुड और बैड, जस्ट थिंकिंग मेक्स इट सो। सो अपने आप को बदलो। भागवत गीता में भगवान कृष्ण ने कहा है जो कुछ हो रहा है अच्छा हो रहा है। बेकार परेशान होने से कोई फायदा नहीं है। लिव इन रोम, एज रोमन्स डू। खाओ पियो और मस्त रहो। लिव एण्ड लेट लिव। क्यों बेकार हर समय सबको टोकती रहती हो। खुद भी रोती हो दूसरों को भी रुलाती हो। अठारह साल की औलाद एडल्ट होती है। उन्हें पता है कि उन्हें क्या करना है। उन्हें अपनी जिन्दगी आप जीने दो। टोका टाकी से तुम्हारा ही नुकसान होगा।'' दिनों दिन अकेली होती जा रही शन्नो की उलझनें बढती जा रही थीं। उसे लगता उसके चारों ओर एक खंदक सी खुद गई है। तभी एक दिन सुभाष पच्चीस छब्बीस साल की एक गोरी को घर ले आया, कहने लगा, ''
यह जूलिया है। कैब ऑफिस में
मेरे साथ काम करती है। इसके पास रहने की कोई जगह नहीं है। ऊपर एटिक वाला
कमरा खाली है न,
उसी में रहेगी।'' दो तीन दिन सुभाष घर नहीं आया, चौथे दिन शाम को आया। सोनू मोनू में से कोई घर पर नहीं था। बडी देर तक शन्नो की खुशामदें करता रहा। शन्नो बैडरूम बन्द किये बैठी रही वह बाहर खडा उसकी मिन्नतें करता रहा। ''
देख शन्नो तू मुझे जानती है।
मैं कोई नया काम तो कर नहीं रहा। हमारे यहां कई लोगों की दो पत्नियां थीं।
मेरे ताऊ ने ही दो रखी थी। मेरे मामा के दो बीवियाँ थीं। राजा दशरथ के तो
तीन औरतें थीं। सब आपस में सुख से रहती थीं। तू उनकी तरह क्यों नहीं रह
सकती?'' अपने कपडे लत्ते समेट कर जब
सुभाष चला गया तो वह बाहर आई।
रात भर वह सोचती
रही सोनू मोनू को वह क्या और कितना बताये।
जब उसे कुछ समझ
नहीं आया तो धीरे धीरे खुद को दण्ड देने लगी।
ढेरों व्रत उपवास
रखे।
गीता रामायण पढी।
ज़ब उनसे भी उसकी
समस्याओं का कोई अंत नहीं हुआ,
तो वह सबसे झगडा करने लगी।
मोनू शांत प्रकृति
का था। फोन आने पर वह उससे ज्यादा बातचीत नहीं करती। बस हां हूं में जवाब देती। पर किसी हफ्ते अगर मोनू का फोन नहीं आता तो वह बेचैन हो उठती। सोनू से मिन्नतें कर उसे फोन कराती। शन्नो के दुखों का कोई अंत नहीं था। जो कुछ जिस तरह हो रहा था वह सब शन्नो को झेलना नहीं आ रहा था। धीरे धीरे शन्नो का मानसिक सन्तुलन बिगडने लगा। उसे समझ नहीं आता कि आखिर उसका परिवार इतना एबनॉर्मल क्यों है? थोडे ही दिनों में उसे पैनिक अटैक्स होने लगे। गरदन, सिर और रीढ क़ी हड्डी के साथ पेट में भी दर्द रहने लगा। दवाइयों से कोई फर्क नहीं पडा तो डॉक्टर ने उसे गरदन में पहनने के लिये नैक सर्पोट का कॉलर दे दिया। इससे उसका रहा सहा कॉन्फिडेन्स भी जाता रहा। मानसिक बीमारियों का इलाज दवा दारु तो होता नहीं। उधर शर्म के मारे शन्नो डॉक्टर को असली समस्या कभी बताती ही नहीं। इस बीच उसे आनन्द बाबू और अपना भारत बहुत याद आए। पता नहीं क्या मति मारी गई जो सुभाष के साथ यहां चली आई। पूरे एक महीने बाद सुभाष घर आया। शन्नो कुछ बोली नहीं। वह दो तीन घण्टे रहा फिर चला गया। सुभाष अपनी आदत से बाज नहीं आता और शन्नो मुखौटा लगा नहीं सकती। सारी समस्याएं ज्यों की त्यों। सुलझने का कोई नाम नहीं। अस्थिर शन्नो जब तब मौका मिलते ही सुभाष या सोनू पर झपट पडती। अच्छा खासा महाभारत छिड ज़ाता। सुभाष ज्यादा बोलता नहीं। कम बोलने में ही उसे अपनी सलामती नजर आती। कभी वह ऊपर ऐटिक वाले कमरे में दरवाजा बन्द करके सो जाता तो कभी नहा धो कपडे बदल बाहर चला जाता या फिर रात भर बाहर रहता। शन्नो कुछ कर तो पाती नहीं। कभी रोती, कभी किस्मत को कोसती, कभी सुभाष या औलाद को कोसती। सोनू मां बाप के झगडे देख देख कर तंग आ गई थी। बाप से कभी कोई आंतरिक सम्बन्ध तो बना ही नहीं सो उससे कहती भी क्या? अगर कभी कुछ कहती तो वह उसकी पीठ थपथपाते हुए कहता, '' देख सोनू, तू एडल्ट है। तुझे जो अच्छा लगे कर। बस खुश रहा कर। बेकार की बहस से दिमाग मत खराब किया कर। तेरी मां से मेरा कोई झगडा नहीं। उसे मेरी आदतें नहीं पसन्द सो उसकी मर्जी। शी कैन लिव द वे शी वान्ट्स टू लिव।'' रोज रोज की खिचखिच से तंग
आकर सोनू ने एक दिन मां को आडे हाथों लिया,
'' मम्मी तुम पापा के आते ही इतना शोर शराबा क्यों
मचाती हो? अगर तुम्हारी आपस में नहीं पटती है तो
तुम अलग क्यों नहीं हो जाती हो? '' नर्स ने कहा, '' यहां बैठने से कोई फायदा नहीं। घर जाओ थोडा आराम करो। कल शाम आना। तब तक तुम्हारी मां होश में आ जाएगी।'' दो दिन आई सी यू में रहने के बाद जब शन्नो जनरल वार्ड में लाई गई तो दाहिने तरफ वाला पेशेन्ट जो तकिये के सहारे उठंग बैठा हुआ था, उसे देख कर मुस्कुराया। शन्नो को अच्छा लगा। चलो इस दुनिया में कोई तो है जो उसे देख मुस्कुरा सकता है। आपरेशन के कारण शन्नो दर्द से बेहाल थी पर फिर भी जवाब में मुस्कुराते हुए उसने हलो कहा। उस दिन एनेस्थेटिक प्रभाव में शन्नो सारे दिन जागती और सोती रही। दूसरे दिन सुबह जब वह उठी तो देखा दाहिनी तरफ वाला पेशेन्ट कुर्सी पर बैठा अखबार पढ रहा है। उस पेशेन्ट के चेहरे पर छोटी सी फ्रेन्च कट दाढी थी जो उसके खूबसूरत चेहरे को गरिमा प्रदान कर रही थी। शन्नो को उठा देख उसने अपनी कुर्सी के रुख को उसकी तरफ मोडते हुए कहा, ''
हलो शान,
मेरा नाम राबर्टो है।
आज तुम्हारी तबियत कैसी है?
कल तो तुम दर्द से
कराह रहीं थीं।''
उसने मुस्कुराते हुए कहा तो
उसकी आंखों के कोरों पर पडी लाफिंग लाईन्स उसे और आकर्षक बना रही
थीं। शन्नो को अपना नया नामकरण शान अच्छा लगा। शान उसने मन ही मन दोहराया। शन्नो को घर की याद से वितृष्णा सी हुई। धोडी देर वह कमरे में पडे फ़ूलदार पर्दे और लेटे हुए अन्य पेशेन्ट्स को देखती रही, फिर उसकी आंखे झप गईं। जब आंख खुली तो उसने देखा, राबर्टो खिडक़ी के पास खडा, फूलों से लदे चेरी और सेब के पेड पर खिले नन्हे नन्हे गुलाबी और सफेद पंखुडियों को देख रहा है। शन्नो को प्यास लगी। उसने बैड के पास रखे लॉकर पर से ग्लास उठाने की कोशिश की तो पेट में लगे टांकों ने जोरों की टीस मारी। उसने नर्स को पुकारा। नर्स कमरे में नहीं थी। शन्नो की आवाज सुन कर
राबर्टो ने पूछा, ''पानी
चाहिये क्या? '' शन्नो के चेहरे पर बहुत प्यारी सी मुस्कुराहट आई। राबर्टो को लगा कि वह मेडोना सी खूबसूरत है। आज काफी दिन बाद शन्नो को लगा, उसके नकारे व्यक्तित्व को आज किसी ने पुचकारा है। शन्नो के अन्दर की परतों में कम्पित हिलोर सी उठी, वह जिन्दा है। ''
मुझे नहीं मालूम राबर्टो कि
मैं आर्टिस्ट हूँ या नही। अपने देश के स्कूल में आर्ट पढाया करती थी। पिछले
पंद्र्रह साल से रंग और ब्रश देखे ही नहीं। केवल दुख के काले भूरे रंग
घुलते मिलते देखती रही हूं। कहते हुए उसने गालों पर लुढक़ आये गर्म आंसुओं
को टिशू से पौंछना चाहा,
पर पौंछा नहीं। मैं आऊंगी, जरूर आऊंगी राबर्टो, तुम्हारे साथ बैठ कर मैं भी उस अमित सौन्दर्य को अपने अन्दर समेटूंगी। खुद से प्रॉमिस करती हुई वह मन ही मन बोली। दर्द की लहरों ने एनस्थेटिक प्रभाव को और बढा दिया। शन्नो राबर्टो की संवेदनशील निगाहों की ऊष्मा को अपने अन्दर समोती, गहरी नींद सो गई। राबर्टो उसके सोते हुए चेहरे पर बिखरी करुणा को बहुत देर तक देखता रहा। सरल सहज राबर्टो का हृदय शन्नो के दर्द को आत्मसात कर गया। राबर्टो को एक साथी असिस्टेन्ट की जरूरत थी। अगर शान उसके साथ काम करने राजी हो जाये तो कैसा हो। राबर्टो ने सोचा। उसे शन्नो की दर्द से सुलगती आंखें बहुत सुन्दर लगीं। शन्नो की जब आंख खुली तो उसने सोनू मोनू को अपने बिस्तर के पास विवर्ण और दुखी चेहरे के साथ खडा पाया। उसके हृदय में वात्सल्य का आवेग उमडा तो उसने दोनों के हाथ पकड क़र सीने पर रख लिये। सोनू मोनू कुछ देर तक बुत बने मां को देखते रहे, फिर उसके गालों को चूमते हुए बोले, '' मां तुम्हारा ऑपरेशन सफल रहा। तुम्हारे पेट में टयूमर था जिसे समय से डॉक्टर ने निकाल दिया। अब तुम्हें जिन्दगी की नई लीज मिली है। अब तुम खतरे से बाहर हो। हम तुम्हें खोना नहीं चाहते। हमें तुम्हारी बहुत चिन्ता है।तुम्हारा होना हमारे लिये बहुत जरूरी है।'' राबर्टो परिवार का मिलन बहुत ध्यान से देखता रहा। सोनू मोनू का शन्नो के प्रति लगाव देख कर उसे अपनी पत्नी एमीलिया की याद आ जाती। एमीलिया की ओवरी में कैन्सर के बीज पनप रहे थे। भरी जवानी में उसके दोनों फैलोपियन टयूब निकाल दिये गये। जिसके कारण वह कभी मां न बन सकी। आहत पत्नी की याद से उसकी आंखें अचानक तरल हो उठीं। सोनू मोनू जब भी शन्नो से मिलने आते तो राबर्टो से भी बातचीत करते। राबर्टो को जीवन का गहन अनुभव था। वह सोनू मोनू के अन्दर की खलिश को पहचान गया। अत: वह उनसे समकालीन राजनीति, ग्लोबलाईजेशन और इकॉनोमी के साथ साथ उसके कारण बदलती जीवन पध्दति और उससे उभरती जटिल समस्याओं पर भी बात करता। राबर्टो को सोनू मोनू असाधारण प्रतिभा सम्पन्न लगे। उसने शन्नो को बताया। एक दिन उसने सोनू मोनू के जाने के बाद उनके लाये डेफोडिल्स को शन्नो के लिये अस्पताल के बडे से गुलदान में सजाते हुए कहा, ''
वाकई शान तुम बहुत बडी
आर्टिस्ट हो। इतने खूबसूरत,
नेकदिल और इंटेलिजेन्ट
औलाद एक नैचुरल आर्टिस्ट ही पैदा कर सकता है।''
शन्नो की आंखों में मुट्ठी
भर धूप का उजियारा जगमगा उठा |
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