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  लेट अस ग्रो टुगेदर

सुनो! अतुल क्या तुमने महसूस किया कि सही मायनों में अब...अब जाकर हम साथ साथ विकसित हो रहे हैंयाद है पहले हम एक दूसरे से चिपके, लदे रहते थेजैसे शादी का मतलब हो कि एक पल भी साथ रहने का गंवा न बैठेंहम हर कमरे में साथ होते, टीवी देखते या कार्डस खेलते या तुम काम करते तो भी मैं आस पास मंडराया करतीकिचन में या तुम चले आते या मैं चीख चीख कर तुम्हें बुला लेतीएकाध साल बाद में यदि तुम खाली होते या अखबार पढ रहे होते तो किचन में आने से कतराते तो मैं नाराज हो जाती पहले पहल तुम बस बातें करते हुए मेरे पास खडे रहतेफिर तुमने कभी धनिया काट दिया कभी पापड सेक दियाफिर मैं ने इसे अधिकार मान लिया अब भी ये काम कभी कभी न चाह कर भी तुम्हारे जिम्मे हो जाते हैं

पहले पहले साल भर प्यार मनुहार रूठना मनाना चलता रहा था, अगले दो सालों फिर वह असहमतियां, बहस मुबाहिसे में बदल चला  उसके अगले चार पांच सालों फिर हम जैसे ही साथ बैठते लडने पर आमदा हो जातेजरा दूर हुए तो भी लडाई कि....

''क्या बात है कई दिनों से देख रही हूँ या देख रहा हूँ बडा भाग रहे हो मुझसे। अखबार ज्यादा जरूरी है मुझसे? दरअसल तुम भाग रहे हो मुझसे।''
''
मैं भाग रहा हूँ? या तुम मुझे शान्त और रिलैक्सड नहीं देखना चाहती? कभी दो पल चैन से अखबार तक पढने नहीं दे सकती।''

पास आकर बैठे तो लडाई किसी जरा सी बात पर

'' मिन्टी को जब मैं डांट रहा था तो तुम बोली ही क्यों? ''
''
डाँट डाँट कर बच्ची की साईक खराब किये दे रहे हो। ''
''
और तुम जो पिछले कई सालों से मेरी साइक।''
''
जब मेरा कोई तरीका पसन्द नहीं तो शादी ही क्यों की थी?''
''
मैं ने की? ''
''
तो क्या मैं आई थी?''
''
तुम्हारे पापा तो आए थे।''

बस्स लडाई को मिला नया सूत्र मगर लडाई वही पुरानी कई साल पुरानीआज जब दस साल हो गये हैं इन लडाईयों के तो ऊब होने लगी है, क्या वही घिसी पिटी बहसें बार बार, वही शको शुबहे, वही जलन वही जबरन का एकाधिकार....

'' उसे क्यों देख लिया? ''
''
उसके साथ क्यों डान्स किया? ''
''
देर कहाँ लगा दी? जरूर वह जमी बैठी होगी तुम्हारे ऑफिस में।''
''
अब बन्द करो प्रेम पर लिखना। और कोई विषय नहीं मिलता क्या?''

पर अब कई दिनों से मैं देख रही हूँ हम बदल रहे हैं  हाँ अतुल हम दोनों ही! क्या तुम देख पा रहे हो यह बात अपनी व्यस्तता में? याद है पहले तुम्हारी व्यस्तता ही झगडे क़ा एक बहुत बडा कारण थी! अब या तो तुम व्यस्त रहते हो अपने कामों में, मैं ने भी स्वयं को बहुत से रचनात्मक कामों में व्यस्त कर लिया हैया फिर झगडों से ऊब ऊब कर हमने खाली समय में भी ज्यादा पास बैठना ही कम कर दिया हैइसकी हम दोनों में से किसी को शिकायत भी नहीं रही है अबअब देखो न तुम दोपहर में अखबार नहीं पढते तो मुझे अजीब लगता है कि '' कब यह अखबार पढें तो मैं भी लाईब्र्रेरी से लाई किताबें पढ लूं'' या '' एक घण्टा नींद का मार लूं।'' तुम जब पास बैठे हो खाली या मुझसे बातें कर रहे हो तो मुझे अपराध लगता है सो जाना या किताब में डूब जानाआखिरकार मैं ही लाकर पकडा देती हूँ अखबारफिर या तुम अखबार उठा कर बच्चों के कमरे में चले जाते हो या मैं किताब लेकरहम अपना अपना एकान्त खूब एन्जॉय करने लगे हैं और हममें से कोई न कोई बच्चों की कम्पनी का मज़ा उठा रहा होता हैबडे होते हमारे बच्चे भी खुश रहते हैंकोई शिकायत नहीं कि तुम मुझे जागता छोड सो गईं, या तुमने तो मेरी पूरी दोपहर अखबार में जाया करदी

कोई खींचतान नहीं होती अबपता है न, लम्बा चलाना है दाम्पत्य, कहीं भी भागा नहीं जा रहा प्रेमदरअसल ज्यादा प्रेम व निकटता ईष्या व शक पैदा करता हैएक दूसरे के मैस्मेरिज्म से अलग बैठ कर सोचो तो व्यर्थ प्रेम प्रदर्शन और व्यर्थ की छोटी लडाईयों का अनौचित्य समझ आ जाता हैअध्ययन और मनन दोनों ही दाम्पत्य को पुख्ता करते हैंआपके पास कई विषय हो जाते हैं बात करने को प्रेम व पडौसी के सिवाहैं न? हमारे पास अब एक दूसरे के सिवा, बच्चों के सिवा कई बातें हो गई हैं करने कोहम गंभीरता से फिर से किताबें पढने लगे हैं.....जो कि शादी के बाद काफी सीमित हो गया था

मुझे अच्छा लगता है यह सब, लगता है हम साथ साथ ग्रो कर रहे हैंदेखो न तुम्हारे साथ साथ एकाध बाल मेरे भी चाँदी के तारों में बदलने लगे हैं कल शाम मेरा मूड निंदासा था यह जान तुम चाय कौन बनाए की बहस में पडे बगैर खुद बना लाए थेआजकल बिना आलस के रोज सुबह बिलानागा मैं भी तो तुम्हें बाथरूम के बाहर चाय का प्याला लिये मिलती हूँ।

याद है न , बहुत पहले शादी के एकदम बाद हम कार्डस खेल कर डिसाईड करते थे कि कौन चाय बनाएगा शाम की, जो हारेगा वो या जो जीतेगा वोसुबह की चाय तुम दफ्तर में पी लिया करते था, मुझे आलस आता था उठने में सो रजाई में से ही मुंह निकाल पूछ लेती थी,

'' चाय? ''
''
सो जाओ तुम...अब देर हो रही है। अब क्या खाक चाय पिये कोई! ''

कितनी लापरवाह थी न मैं? तुमसे स्वयं को लेकर सारे अधिकार चाहती थी, तुम्हें देते लापरवाही कर जाती....।

अब नहीं... मुझे पता है तुम्हें मेरे हाथ की चाय पसन्द है, कहते नहीं तो क्यापहले मैं तुम्हारे नाश्ते के प्रति भी लापरवाह थी अब नहीं... तुम्हें एसीडिटी रहने लगी है चाहे कितना भी नाराज क्यों न होऊं, मैं  नाश्ते के लिये ऑफिस फोन करते ही तुम आजाते हो चाहे तुम आते ही इन्टरनेट पर बैठ जाओ और चाहे मैं घर के कामों में व्यस्त रहूँ! हम एक दूसरे की शक्ल देख कर ही नाराजग़ी भूल जाते हैंमैं जोर नहीं देती कि तुम अपने ऑफिस की परेशानियां बताओ ही बताओ, तो तुम सहज ही आकर बताने लगे हो प्रेम की खींचतान से जो तनाव उपजा था वह थोडे अलगाव की ढील पाते ही कितना सहज हो चला है, है न?

पर दिन भर अपने में गुम रहने या एक दूसरे को ब्रीदिंग स्पेस देने का यह अर्थ कतई नहीं है कि हमारे ध्रुव अलग हो गये हैंहमें अब भी एक ही केन्द्र जोडता हैशाम की चाय कोई बनाए, पीते हम साथ साथ ही हैं, तुम किसी फूल की क्यारी में या किचन गार्डन में घुस जाते हो, मैं दुपहर में अधूरी छूटी किताब लेकर वहीं बैठ जाती हूँ। तुम गार्डन में आए किसी नये रंगीन पत्ते, कली, फूल, फल के आने का समाचार पहले पहल देने में थ्रिल महसूस करते होमुझे भी गार्डन में रुचि है पर मेरा वक्त सुबह का हैअकसर मुझे सुबह की सैर के बाद ही पता चल जाता है कि क्या नया उग आया है हमारी साथ साथ सहेजी बगिया में अकसर मैं तुम्हें कहती हूँ अँ... मुझे पता है जी! कई बार अभिनय करती हूँ आश्चर्यचकित होने का, कई बार सच में पता नहीं होता कि चिरप्रतीक्षित गोभी के पत्तों से एक मक्खन सी नन्हीं गोभी झांक पडी हैयह एक बहुत प्यारी सी साझी चीज है जो हमारे सम्बन्धों में ऊर्जा पैदा करती हैकल ही तो तुम कह रहे थे कि,

'' फैंगशुई में प्रचलित है कि जो पति पत्नी एक साथ घर के गार्डन में रुचि रखते हैं या काम करते हैं उनका दाम्पत्य मधुर होता है।''

तुम यह भी बता रहे थे कि बोन्साई ठहराव का प्रतीक है, जिस घर में रखो वहां विकास थम जाता हैवैसे भी नितान्त अप्राकृतिक व क्रूर है यह बोन्साई बनाना या रखनाकैक्टस विशाद का प्रतीक है गुलाब, चम्पा व सुगन्धमय पौधे शान्ति व प्रेम का प्रतीक हैंइसी तरह तो फिर सिलसिले जुडते जाते हैं बातों के  मैं अपनी पढी क़िताब की चर्चा करती हूँ.....तो कहानियाँ फिर वैसी ही कुछ सच्ची घटनाएं  और बात अकसर स्त्री पुरुष सम्बन्धों पर आ टिकती है...फिर आकर्षणों विवाह - विवादों, मनोविज्ञान और अवचेतन की ग्रन्थियों की बातें करते हुए अपने मनों की गुत्थियाँ दूसरों तथा कहानियों के बहाने सुलझाने लगते हैं

'' स्त्री की थाह पाना मुश्किल है....मैं तो उसे बहुत घरेलू समझती थी। पता है आज पढी इस कहानी में भी तो नायिका''
''
हूँ....दरअसल समाज विवाह तो सभ्यता की देन है....बेसिक इंस्टिक्ट तो वही पॉलीगेमी के हैं। प्रकृति में देखो मोर नाचता है कई मोरनियों को आकर्षित करता है, कुछ होती हैं कुछ दाना चुगती रहती हैं।आजकल भी स्त्रियों को भी किसी न किसी अन्य पुरुष के लिये क्रश तो होता होगा न! पर वही एक्सप्रेस करना वर्जित है।''
''
हाँ सच।''
''
पुरुष कितना ही सोचे कि वो आजाद है बहुत से फ्लर्ट करने को लेकिन उसकी पत्नी बडी एकनिष्ठ है। मगर स्त्री विवश है मान्यताओं के आगे तो शरीर से न सही मन ही मन आकर्षित तो होती ही होगी।''
''
हमें बचपन से यही कहानियां सुनाई जाती रही हैं कि सीता जी ने अग्नि परीक्षा के समय कहा कि यदि मेरे मन में भी राम के सिवा किसी परपुरुष का विचार आया होतो है अग्नि मुझे जला देना।''
''
भारतीय स्त्रियों की मानसिकता को धर्म व मर्यादा के पाठ से बांधने के लिये ही तो...यह सब सालों से होता आया है अब यह हाल है कि  भारतीय स्त्रियां न आधुनिक सोच अपना पाती हैं... और दैहिक आकर्षणों के चलते  कुण्ठित हो कर रह जाती हैं।''
''
हाय पता है शादी के कुछ साल तक मैं इसे ही सच व विवाह की पवित्रता समझ कर किसी आकर्षक युवक को देखना चाह कर भी मन को मार लेती थी।''
तुम शैतानी से मुस्कुराते हो। '' कब तक? ''
''
जब तक तुम्हारा भूत सर पर था तब तक।''
''
अब उतर गया?''
''
उतरा तो नहीं, काबू में आ गया है।''

ऐसी ही जाने कितनी बातें बहुत समझदारी से एक दूसरे पर बिना प्रहार किये हम वहीं गार्डन में किताब पढते, गमले सहेजते मजाक करते कर डालते हैंबहस शुरु होती है मगर गर्मा गर्मी तक अब कम पहुंचती हैअब उतने टची कहाँ रहे हम और तुम!

मुझे खुशी होती है, हम साथ साथ बडे हो रहे हैंए! सिर्फ बडे मगर बूढे नहीं, अभी तो बस जिन्दगी के तीसरे दशक के मध्य में हैं हमपर पिछले सालों के विवादों, छिटपुट आकर्षणों की लडाइयों, पजेसिवनेस, एक दूसरे का नासमझने की नासमझियों से उबर रहे हैंपर कितना अच्छा है हम जल्दी ही उबर गयेकहने को तो दस साल कम ही होते हैं एक दूसरे को समझने में, लोग तो जिन्दगी लगा लेते हैंमैं दावा तो नहीं करती कि हम बखूबी समझते हैं एक दूसरे को...पर आत्मसात करने लगे हैंइतना यकीन हो चला है कि किसी मुसीबत के वक्त, किसी बडी भूल के बाद, जरूरत के समय हमीं दोनों एक दूसरे का साथ देंगे

हालांकि बीच का वक्त बहुत हंगामाखेज़ रहा हैअब हम अपनी बीती गलतियों को इस लम्बे साथ, समझ, अध्ययन, मनन, मनोविज्ञान और विश्लेषण तथा अनुभव की नई सतरंगी रोशनी में देखते हैं तो पाते हैं वे इतनी बडी नहीं थीं कि हम इतना प्यारा और कीमती साथ छोड पाते

अब हमें पता चल गया है कि एकनिष्ठता साथ रहने की होती है , एक दूसरे को समझ कर साथ चलने में है सहभागिता और  वफादारी  एक दूसरे से कुछ भी न छिपाने में है, गलतियों से सबक लेना ही सही अर्थ है दाम्पत्य काये  ब्रीदिंग स्पेस  का अर्थ बडी मुश्किल से अब गले उतरा है हम दोनों ही केअब हम अपनी अपनी हवाओं में अलग अलग और एक दूसरे की हवाओं में साथ साथ बहुत खुल कर सांस लेने लगे हैं बहुत से सवाल अब पूछने की जरूरत ही नहीं रह गई है

जिन्दगी तो एक ही है न
कहीं न कहीं कोई अपना अपना कोना होना ही चाहिये जहाँ हम स्वयं को जान कर, आत्मविश्लेषण कर, उस एक बहुत अपने को जानने के लिये स्व्यं को तैयार कर सकेंकहने का सार ये कि जिस  ब्रीदिंग स्पेस  का मतलब मैं बस जानना ही नहीं चाहती थी और तुम समझा नहीं पा रह थे आज उसे जानना और अनुभूत करना उसकी महत्ता परखना सच में सुखद है। हंसोगे तो नहीं ना मेरे इस लम्बे चौडे व्याख्यान पर?

उस एक को मुखातिब जिसके साथ बडा होने में मजा आ रहा है!!

तुम्हारी अनन्या

मनीषा कुलश्रेष्ठ

 

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