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नेक परवीन

'' अक्दे निकाह कनीज फ़ातिमा उर्फ शाहीन रिजवी बिन्ते सैय्यद सुल्तान हुसैन साहब रिजवी, साकिन हैदरगंज, लखनऊ हमराह सैय्यद बशीर हुसैन रिजवी सल्लमहा उर्फ सैय्यद जीशान आलम रिजवी सल्लमहा इब्ने सैय्यद रियासत हुसैन साहब (मरहूम) साकिन बैरूनी खन्दक, लाल डिग्गी रोड, अलीगढ बएवज मेहर - ए - मोअज्ज़िल मुबलिग 14 हजार रुपये रायजुल वक्त के निस्फ जिसका निस्फ हिस्सा मुबलिग 7 हजार रुपये सिक्कये रायजुल वक्त होता है। आपके वकील की हैसियत से पढूं? आपकी इजाजत है?''

'' हूँ!'' मैं ने घबडा कर कह दिया, फिजा मुबारकबादियों के शोर में डूब गई और मैं एक नये शहर नयी दुनिया में पहुंच गई।

पर अफसोस मेरे मोहल्ले की सभी औरतें झूठ बोलती हैं। जीशान जब मुझसे ब्याह रचा कर इस मोहल्ले में आये तो सभी औरतों ने मेरी मुंहदिखाई देते वक्त मेरी झूठी तारीफें कीं। हालांकि मैं खूबसूरत नहीं थी, लेकिन चूंकी शादी के वक्त मेरी उम्र 18 साल से भी कम थी इसलिये कमउमरी का हुस्न था। बाल मेरे स्याह और दराज(लम्बे)थे। मेरे मियां को पसन्द भी थे, ( बाद में मैं ने कटवा दिये एकदम छोटे छोटे मर्दाना किस्म के) औरतों ने मुझको बहुत सारी नसीहतें दे डालीं, जैसे ही जीशान दफ्तर सिधारते कई बुढिया कई बुढिया और अधेड उम्र की औरतें घर में दाखिल हो जातीं। मैं चाय बनाते बनाते और दरवाजा खोलते - बन्द करते थक जाती।

मुझे खाना पकाना नहीं आता था। न ही शौक था। घर पर मेरे खादिमा थी वही सारे काम करती थी। मोहल्ले की औरतों ने मुझको मशविरा दिया कि मियां को खुश रखना है तो अच्छे - अच्छे, तरह तरह के मजेदार खाने पकाना सीख लूं। यह औरत का खास गुर है ( इससे मियां बंधा रहता है खूंटा छोडक़र भागता नहीं)।

मैं ने मरखप कर किसी तरह बेकिंग, चाईनीज, मुगलई, इण्डियन और कॉन्टिनेन्टल खाने पकाने की क्लासेज अटैण्ड कीं। मोटी रकम भी खर्च की और थोडा बहुत सीख भी गई। रोजमर्रा के घरेलू खाने मोहल्ले की औरतों के सिर पर हर वक्त खडे रहने से ही सीख गई थी। हाथ कई बार कटा और छाले भी पड ग़ये। दूर से उछाल कर पूरी तेल में डाल देती तो कभी बघार के लिये प्याज फ़ेंकती तेल तमाम हाथों पर। कई बार तो कमबख्त कुकर ही आकर चिपक गया। मियां ने मना भी किया, होटल में भी खिलाया, लेकिन औरतों ने सख्त मना किया, '' रूपये बर्बाद मत करो मियां को पटाना है तो'' वगैरह वगैरह।

खैर भई हम बावर्चन बन गये, चार छ: मियां की कमीजें और कुछ अपनी कीमती साडियां जलाने के बाद धोबन भी बन गये। घर सजाने और साफ करने का भी शौक था, लेकिन ज्यूं ज्यूं मैं घर को नफासत नजाकत से सजाती गई, मियां ने कुछ दूरी अख्तियार कर ली। शादी को भी 6 महीने गुजर गये थे। मैं ने सोचा शायद इसलिये ही हुआ है। यह देर रात को घर आने लगे। औरतों ने कहा, ''बच्चा आ जाय घर में तो रौनक हो। मियां वक्त से घर आने लगेंगे।''

चन्द माह बाद मैं ने बच्चे की खुशखबर मियां को दी तो वो घबडा गये, '' अरे! भई अभी इतनी जल्दी?'' मैं खुद नर्वस हो गयी अपनी गलती पररात को इन्होंने समझाया, '' यह मामला अभी खत्म कर दो, तुहारी उम्र अभी कम है, तुम इंटीरियर डेकोरेटर का कोर्स कर लो, तुमको शौक भी है''
मैं मामला समझ गयी
मैं ने जी तोड मेहनत करके इंटीरियर डेकोरेशन का कोर्स कर लियाअब अपने घर की जगह दूसरों का घर सजाने लगीऔरतों ने कहा, '' अब तुम हंसती नहीं पहले की तरहशायद इसलिये ही शौहर तुम्हारा सुबह बहुत जल्दी दफ्तर चला जाता है'' अब मैं बिलावजह हंसती, यह पूछने भी लगे, '' तुम यह एकाएक बात बे बात हंसने क्यों लगी हो? मैं हंस दी( असली बात छुपा गयी)अब यह आये दिन टूर पर जाने लगे

'' अब बच्चा आ जाना चाहिये
'' कई बुढियां फिक्रमन्द हो गयीं'' बच्चा आ गयाइनको बच्चे में कोई दिलचस्पी नहीं थीमेरा काम बढ ग़या, इन्होंने एक आया रख दी
''तुम मायके चली जाओ कुछ महीनों के लिये ताकि तुमको आराम मिल सके
'' मैं मायके चली गई
आठ महीने गुजर गये तो सबने कहा, '' अब तुम मियां के घर चली जाओ, वह बच्चे के बगैर बेचैन होगा
'' हालांकि वह बच्चे से से इतना डरता था कि हाथ लगाते घबडाता था, '' यह बहुत छोटा है'' और उसके रोने से तो उसे सख्त चिढ थी

रात में वह ड्राईंगरूम के सोफे पर सोने लगा
बहाना करता कि '' रात में बच्चा रोता है उठकर तो मेरी नींद खराब होती है'' खैरशुक्र है कि वह सोता सोफे पर ही था और मोहल्ले वालों को बेडरूम में ही डबलबेड नजर आता था

एक रात वह रात भर नहीं लौटा
लौटा तो थका हुआ था आते ही सो गया जब दोपहर में उठा तो मैं पहली बार लडीक़हा, '' बच्चा सख्त बीमार था, डॉक्टर के पास ले जाना था और आप रात भर नहीं आये? ''
'' बच्चा तुम्हारी जिम्मेदारी है, तुमने पैदा किया है अपनी खुशी से, मैं ने तो मना किया था
'' वह साफ पल्ला झाड ग़या''
''''
'' अच्छा खिलाता पिलाता
हूँ तुमको, और क्या चाहिये? '' मैं जलकर चुप रही

अब धोबी को कपडे देते वक्त उसकी पैन्ट की जेब से तरह तरह की नंगी तस्वीरें और बेहूदा मजमून (विषय) की कतरनें मिलने लगींसोफे के नीचे फहश (अश्लील) मैगज़ीन, क्लिप और बाल, लिपस्टिक के निशान लगे रुमाल वगैरह मिलने लगेमैं ने कुछ नहीं कहा वह खुद ही एक दिन अपनी टाईपिस्ट की बेशुमार तारीफें खाना खाते खाते करने लगा, '' वह बडे लजीज़ भरवां करेले बनाती है'' यह तो करेले खाते ही नहीं थेमैं ने अगले दिन भरवां करेलों की तरकीब मिसेज रंजीत से ली और रात के खाने में पकाये, इन्होंने छुए तक नहींबच्चा रात भर चीखता रहा मेरा दिल हाऊसवाइफ बनने से एकदम उकता गया अब मैं देर तक पडी रोती रहती। कहाँ मोहल्ले की औरतों के कहने के मुताबिक जल्दी उठने लगी थी
'' मियां को खुश करना है तो उसके सोने के बाद सोओ, उठने से पहले उठो
'' यह बार बार औरतें कहतीं और मैं ने सच मान लिया था''
मियां ने कहा  तुम मोटी हो रही हो
मैं ने डायटिंग शुरु कर दी, बी पी लो कर लिया, चेहरा लटक गया, बाल झड ग़येमियां अब भी रोज ही देर से आते काफी जल्दी चले जाते

मैं ने खाना पकाने के लिये बुआ रख ली
कईयों ने एतराज क़िया, '' मियां बीबी बच्चा दो जनों का खाना नौकरानी क्या पकायेगी, चुरायेगी ज्यादा'' वो चोर थी यह मैं जानती थीलेकिन काम करते करते मैं थक चुकी थी, बोर हो चुकी थी

यह अब घर में भी पीने लगे
यार दोस्त घर पर आने लगे, पहले मैं खूब खातिरें करती थीअब मैं बच्चे के साथ बेडरूम में चली जातीसलाम दुआ करके नाश्ता भेज देती
'' तुम बदअखलाक हो गयी हो
'' ये गुर्रायेमैं चुप रहीमैं ने गुस्से में एक्सरसाइज करना बन्द कर दिया जो इनके मशविरे पर शुरु किया था और खूब खाने लगी मेरी कमर कमरा हो गयीलेकिन मेरे चेहरे की चमक लौट आयी, बालों में जान आ गयीबच्चा भी मोटा हो रहा था मोहल्ले की औरतें खुश थींये कुछ परेशान लगे, मैं ने पूछा तो बोले -

'' मआशी ( आर्थिक) दिक्कतें हैं।''

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