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प्रायश्चित कितनी सुन्दर है बीना। ओठों का इतना स्वाभाविक रंग बहुत कम देखने को मिलेगा। अच्छे नाक नक्श तो बहुत देखने को मिल जायेंगे लेकिन इतनी सौम्यता सुकोमलता और सादगी, एक डॉक्टर के चेहरे पर बिरले ही मिलती है।
संगमरमर से तराशे बदन को
स्वाभिमान और आत्मविश्वास और भी निखार देते हैं।
लेकिन जैसे फूलों
की तरह उसने अपने आप को भी न्यौछावर करते जाना ही जीवन का ध्येय बना लिया
है। सामने पलंग पर सोई बीना खूब सुन्दर लग रही थी। नींद से ढकी उसकी बडी बडी पलकें और कमल सा सुकोमल शान्त चेहरा, बच्चे सा मासूम और प्यारा लग रहा था। जाने क्यों हठात् इतना प्यार उमड आया कि मैं अपने आप को रोक न सकी और उठ कर उसके पलंग की ओर चल दी। जब हम दोनों साथ पढती थीं तब भी रात को उठने पर मैं उसे चादर या कम्बल से ठीक से ढका करती थी। उसके चेहरे से बालों की लटें हटाकर उसके मासूम चेहरे को प्यार से सहला दिया करती थी। उसके पलंग के किनारे हौले से बैठ कर मैं ने उसे स्पर्श ही किया था कि वह नहीं - नहीं चीखती उछल कर खडी हो गई। उसका चेहरा एक अजीब भय से विकृत और लाल हो गया। उसका शरीर बुरी तरह से कांपने लगा। मैं सकते में आ गई। पहले तो मेरी कुछ समझ में नहीं आया कि यह क्या हो गया - बस मैं फटी आंखों से उसे देखती रह गई। लेकिन फिर सब कुछ समझ में आ गया। वर्षों पुराना वह हादसा फिर मानस पटल पर साकार हो उठा। जीजाजी कितना खुश थे। बीना के लिये लडक़ा देख कर आये थे। कह रहे थे, '' इत्तफाक देखो, पहला ही लडक़ा देखा और वह भी बीना से ज्यादा सुन्दर निकला। मुझे तो डर था कि जोड क़ा लडक़ा मिलेगा कैसे। स्वभाव से ही बहुत सुशील और सीधा। चार्टेड अकाउन्टेन्ट है। पिताजी बडे अफसर हैं। जोड क़ा घराना। हमारे आने से पहले वे इसी बंगले में रहते थे।'' जीजाजी को पूरा विश्वास था कि यह सम्बन्ध पक्का हो जायेगा। बीना का बडा भाई मेजर नगेन्द्र भी छुट्टियों में आया हुआ था। बीना के फूफाजी जिन्होंने इस सम्बन्ध के बारे में बात चलाई थी और जो लडक़े वालों को अच्छी तरह जानते थे। आने वाले थे। लडक़ा तीन बजे की गाडी से पहुंचने वाला था। घर में शांत तैयारियां चल रही थीं। सभी एक दबी दबी खुशी, उत्तेजना व इंतजार से भरे थे।
लडक़ा हम लोगों के अनुमान
से भी कहीं अधिक सुन्दर था।
मैं ने बीना को
छेडा था, ''
मुझे तो तेरे बच्चे हो जायें तो आया बन कर बुलवा लेना।
सुन्दर बच्चे को
नहलाने से अधिक सुखकर काम क्या होगा?
अपने को तो जो चौखटा भगवान ने दिया है।'' लडक़ा बडी सीधे और सरल प्रकृति का था। हम लोगों से तो कुछ संकोच करता रहा लेकिन शाम तक बीना की चेटी बहन दीपा और छोटे भाई हनी से खूब घुल मिल गया। गेस्ट हाउस से तीनों की हँसी की आवाज रह रह कर सुनाई दे रही थी। दीपा से ही हमें मालूम हुआ कि वह गेस्टहाउस पहले उसके पढने का कमरा था। और बीना का कमरा उसके सोने का कमरा था। उसकी देर तक पढने की आदत थी। उसके पढने के कमरे और डाइनिंगरूम को जोडता हुआ एक स्नानघर था। उसकी मां डाइनिंग टेबल पर उनके लिये थरमस में गरम दूध रख छोडा करती थी। पढाई खत्म कर डाइनिंग रूम से दूध पीते हुए वह बरामदे से होकर अपने कमरे में चला जाता था। रात को खाना सबने साथ खाया था। फिर वह अपने कमरे में चला गया था। सभी को लडक़ा खूब पसन्द आया था। बस फूफा जी के आने का इंतजार था। केवल नगेन्द्र का मत कुछ भिन्न था। उसके अनुसार - ''या तो बहुत सीधा है या फिर खूब घुटा हुआ। इतने पढे लिखे और उम्र वाले पर इतना बचपना कुछ अजीब लगता है।'' रात्रि के अंधेरे में सन्नाटे को चीरती हुई बीना की चीख सुनकर सभी उसके कमरे की ओर लपके थे। पास पडौस वाले भी उठ गये। बीना के कमरे की लाइट जलाई गई। अजीब दृश्य था। सहमी हुई बीना दीवार से चिपकी खडी थी और बिस्तर पर लेटा हुआ था वह लडक़ा। ऐसे लेटा था जैसे गहरी नींद में सोया हो। इस चीख चिल्लाहट, हो हल्ले का का उस पर कुछ असर ही नहीं था। सभी एक बार तो हतप्रभ उसे देखते रह गये।
नगेन्द्र ही बोला,
'' साला, मक्कार।
ऐसे बन रहा है जैसे
सो रहा है।''
और उसके बालों को जोर से पकड क़र उसे बिस्तर से खींच
उठाया था।
वह हडबडा कर उठा था
और इससे पहले कि वह कुछ बोल पाता,
नगेन्द्र ने उसे एक जोर का थप्पड ज़ड दिया था, ''
साले निकल
यहाँ
से।''
चोट से संभल नहीं पाकर वह दीवार से जा टकराया था।
उठा तो दहशत से
उसका मुंह विकृत था,
ओंठ और माथे से खून बह रहा था।
भय से फटी आंखों से
उसने चारों ओर नजर घुमाई और बडी लडख़डाई आवाज में बोला था,
'' क्या क्या हुआ? '' अटैची की चोट से वह एक बार फिर गिर पडा था। उठने लगा तो पडौसियों में से कुछ आगे बढे थे। जीजाजी ने सबको रोक दिया था। फिर अटैची उठा कर वह चल दिया। भीड ने जो मन में आया, फब्तियां कसीं थीं। सुबह हम उठे तो मालूम हुआ, फोन आया था और जीजाजी गाडी लेकर चले गये हैं। वापस लौटे तो बडे विक्षिप्त से थे। किसी तरह उन्होंने बताया कि लडक़े ने रात को ही आत्महत्या कर ली थी। सुन कर सबका मन ग्लानि से भर गया। दीदी तो रोने लगी थीं। तभी फूफाजी घर पहुंचे। जब उन्हें सब कुछ बताया गया तो वे वहीं माथा पकड क़र बैठ गये - '' आह! यह तुमने क्या किया। क्या किया तुमने? उस बेचारे को तो नींद में चलने की बीमारी थी। नींद में जाकर अन्य जगह सो जान तो उसके साथ कई बार हुआ है। यह क्या कर दिया तुम लोगों ने। सत्यानाश कर दिया, बेचारे को इतना जलील किया - ओफ्फोह! '' जीजी बुरी तरह रोने लगीं। जीजाजी कुर्सी का सहारा लिये कांप रहे थे। नगेन्द्र बुत बना खडा था। बीना ने अपना सर दीवार पर दे मारा था, '' यह सब मेरी वजह से हुआ।'' कुछ दिनों बाद जीजाजी, मामाजी आदि मातम के लिये जाने लगे तो बीना ने जिद पकड ली कि वह भी जायेगी, '' जो कुछ हुआ मेरी वजह से हुआ। जो कुछ वे लोग कहेंगे, मैं ही सुनूंगी, मैं ही इसका प्रायश्चित करुंगी।'' वह किसी भी तरह नहीं मानी और आखिर उसे भी साथ ले जाना पडा।
लडक़े की मां बिलख बिलख कर
विलाप करने लगी थीं।
बीना ने कहा था,
'' मांजी सारा दोष मेरा है।
मुझे सजा दीजिये।
'' और स्वयं
भी रोने लगी। |
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