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झूलाघर
नियुक्ति का पत्र हाथ में
लिये वह खुशी से स्वयं को संभाल नहीं पा रही थी।
कितनी ही बार पढा
उसने पत्र को।
क्या सचमुच यह नियुक्ति
पत्र ही है?
सपना तो नहीं देख रही मैं? नहीं यह सपना नहीं
हकीकत है।
उसने घर के दरवाजे
खोल दिये।
ठण्डी हवा के झौंके सुखद
तो लग रहे थे।
सामने खेलते हुए बच्चे,
आकाश में उडते हुए पखेरू सभी कुछ प्रसन्नता तथा रोमांच
से भरा लग रहा था।
यकायक ही उसको अपना
चेहरा, आंखें,
चाल, बाल सब कुछ खिला खिला
खूबसूरत तथा आत्मविश्वास की चमक से चमकता सा लगने लगा।
अपनी पढाई और
डिग्री की सार्थकता आज जाकर सिध्द हुई है।
किसी सपने का साकार
होना कितना कितना सुख देता है -
आज अनुभव कर रही है वह।
कब से इस घर में
कुछ नया नहीं हुआ है।
इसीलिये नौकरी लगने
की खुशी में एक छोटा सा आयोजन करना है।
किस किस को बुलाना
है? किसको
खुशी होगी, किसको नहीं?
इन चर्चाओं का कोई अन्त नहीं था।
सपनों और आकांक्षाओं ने
अंगडाइयां लेनी शुरु कर दीं।
इच्छाएं अनेक थीं।
सपने बहुरंगी थे।
इच्छाओं ने मन की
गति को भी तीव्र कर दिया।
सपनों ने एक नये
स्वप्नलोक की सृष्टि कर दी थी।
जीवन में सब कुछ
पाने का उत्साह चरम पर था।
बडी लडक़ी मेघना
चौथी कक्षा में पढ रही थी।
छोटा लडक़ा मात्र
डेढ बरस का था।
एक को रखने की परेशानी थी
तो दूसरे को संभालने की।
''
कोई घर वर नहीं चाहिये। किसी
का कोई घर वर नहीं होता। घर तो सिर्फ मां का पेट होता है।''
चटाक - चटाक उसने जोर
से चांटे मार दिये। गोरे नाजुक कपोलों पर लम्बी उंगलियों के निशान उभर आये।
''हम
ऐसा नहीं कर सकते। उनके बच्चों ने शुरु से ही मां - बाप को नौकरी पर जाते
देखा है।''
सारी दिनचर्या बदल गई।
सम्पूर्ण दिन
घन्टों में तथा मिनटों में बदल गया।
शान्त लम्बी तथा
गहरी नींद सुलाने वाली रात्रि सिकुडक़र आधी रह गई।
शोते सोते ग्यारह
बारह बज जाते।
सुबह पांच - साढे पांच
उठना पडता।
मेघना का टिफिन,
बच्चे का दूध, नाश्ता,
नहाना - धोना।
देखते देखते ऑफिस
का टाइम हो जाता।
उधर पति पूर्व की
भांति आवाजें लगाते - ''
अनु, पानी निकाल देना।''
''
मम्मी,
मैं इस बाई के साथ
नहीं रहूंगी,
यह गन्दी है,
चुडैल है। मारती है।
चिकोटी काटती है। देखो भइया को भी मारती है।''
''
वह गन्दी है,
बदबू आती है उसके
कपडों से। खाना छू लेती है। इधर आप कहती हो साबुन से हाथ धोकर पानी पिया
करो उधर बाई बिना हाथ धोए पानी भर लेती है,
भगा दो उसे।''
मेघना बिना रुके बोलती
जाती। कई क्रेच देखे गये। एक क्रेच घर के पास में ही था। जब वे दोनों देखने गये तो क्रेच साफ सुथरा था। कमरे में पलंग पडा था। कूलर रखा था। क्रेच चलाने वाली औरत जवान, सुन्दर साफ सुथरी तथा हमेशा हंस हंस कर बातें करने वाली विधवा औरत थी। उसके दोनों बच्चे स्कूल जाते थे। उसके पास फिलहाल तीन बच्चे रहते थे। पति - पत्नी औरत के व्यवहार से बेहद प्रभावित हुए। उन्हें राहत मिली की चलो, बच्चा अच्छी जगह रहेगा। दूध की बॉटल, पानी की बॉटल, लन्च बॉक्स, कपडे वगैरह रखकर जब वे सुबह बच्चे को छोडने जाते तो औरत जिसका नाम विमला था, दरवाजे पर हंसती हुई मिलती। चन्दन का तिलक उसके चौडे माथे की सुन्दरता को बढा देता था। लेकिन जैसे ही मां बाप जाते विमला बच्चों को पलंग से नीचे उतार देती, '' नीचे उतरो। खेलो। रोना नहीं। चुप रहो।'' विमला का हंसता हुआ चेहरा दहशत पैदा करने वाला चेहरा बन जाता। गम्भीर आवाज सुनकर बच्चे सहम जाते। तीन बच्चे बडे थे। यही बच्चा सबसे छोटा था। इस बच्चे की दूध की बोतल से वह दूध निकाल कर चाय बना लेती। कूलर बन्द कर देती। बच्चे गरमी के मारे बेहाल हो उठते। इस बच्चे को बिना कूलर के नींद नहीं आती थी। गरमी से बेहाल बच्चा बाहर को भागता - '' बाहर मत निकल। क्यों गया था? बोल, दुबारा जायेगा।'' वह आंखें तरेर कर अपना रूप बदल लेती। तब बच्चा गुस्से में क्यारियों में लगे फूल तोड देता। तब तो जैसे शामत आ जाती। '' क्यों तोडा फूल? फिर तोडेग़ा? दीदी बहुत मारेगी।'' बच्चा सांस रोक कर सिसकियां दबा कर सहम जाता। डरकर पैंट में पेशाब कर देता फिर डांट पडती, '' चल उतार, गन्दा कहीं का।'' छुट्टी होते ही विमला के बच्चे घर आ जाते तब उन दोनों की दादागिरी से भोला भाला बच्चा त्रस्त हो जाता। '' देखों मां ये मेरी किताबें छू रहा है। चल हट यहाँ से। चालाक कहीं का।'' लडक़ी बच्चे को जानवरों की तरह घसीटती हुई ले जाती - '' मेरे फूल तोडे थे, फिर तोडेग़ा। किताब फाड दी।'' चट - चट गालों पर कितने ही चांटे पडते। '' क्या करती है तू? निशान दीखेंगे तो उसकी माँ नहीं रखेगी। सब जगह बता देगी।'' विमला बच्चे के गालों पर मालिश करती, '' गालों पर मत मार, डांट दिया कर।''
शाम को जैसे ही मां बाप के
आने का वक्त होता विमला बच्चे को तैयार कर देती,
'' यह सुस्त क्यों है? क्या
बात है? बच्चों ने मारा तो नहीं?
खाना तो ठीक से खाता है? दूध
पीता है? '' वह बच्चे को उदास देखकर चिन्तित हो
जाती।
''
स्वयं पढने की आदत डालो। क्या
और बच्चों के मां बाप नौकरी नहीं करते?
वे भी तो क्लास में
अच्छी रैंक लाते हैं वे कैसे पढते हैं?
बात मानते हैं।
अनुशासन में रहते हैं। अपना काम स्वयं करते हैं। ये तो उद्दण्ड हुए जा रही
है।'' यह मलाल उसके मन को व्यथित कर देता। पर सैलेरी मिलने पर मन पसन्द चीजें खरीदने का सुख इन तमाम परेशानियों को भुला देता था। किसी भी होटल या रेस्टोरेन्ट में दो घण्टे बैठकर खाना खाने में जो आनन्द मिलता है वह कहीं न कहीं एक संर्घषशील चेतना से उपजा आनन्द होता है। अब बच्चों को किसी चीज क़े लिये तरसना नहीं पडता है। जीवन में यह सन्तोष तो रहेगा कि बच्चों के लिये जो सोचा वह किया है। लेकिन पहले बच्चे को जुकाम नहीं रहता था, अब चौबीसों घण्टे नाक बहती रहती है। कई बार उसकी सांस फूलने लगती है। वह हमेशा डरा सहमा रहता है, छोडते वक्त वह मां को इतनी जोर से पकड लेता था कि उसे छुडाना मुश्किल हो जाता था, या ऑफिस जाते वक्त वह दरवाजे को बाहर से बन्द कर देता था, स्वयं कमरे में बन्द हो जाता था। तब उसने दूसरा रास्ता निकाल लिया था, सोते हुए बच्चे को चुपचाप छोड क़र चली जाती थी। जागने पर बच्चा आस पास मां को न पाकर दहाड मार कर रोने लगता। विमला आंखें निकाल कर होंठ भींच कर उसे चुप कराती तो उसकी घिग्घी बंध जाती। एक चेहरा जिसके बारे में वह कुछ भी कह नहीं पाता है, वह उसे भय तथा धमकी से डरा देता था। इस प्रकार बच्चा अन्दर से लगातार लडता रहता था उस चेहरे के आतंक से लगातार वह उसे अनदेखा करता। आज विमला के घर में बच्चा पहली बार हल्का सा मुस्कुराया था एक रंगीन डॉल को देख कर। यद्यपि बच्चे के पास हर तरह के अनगिनत खिलौने थे, मगर उस डॉल की मुस्कुराहट में कुछ ऐसा था कि बच्चा उसकी तरफ खिंचा चला गया। बच्चे ने डॉल उठा ली। पहले डरते डरते छुआ, फिर उसके साथ खेलने लगा। वेलवेट पेपर से बनी डॉल के कपडे निकल गये। हाथ अलग हो गये। मुण्डी अलग हो गयी। मगर बच्चे को इन्हीं सबके साथ खेलने में मजा आ रहा था। वह डॉल को पुन: पुन: जोडने की कोशिश करता मगर डॉल तो कई हिस्सों में बंट चुकी थी। विमला की लडक़ी ने देखा तो जोर जोर से चिल्लाने लगी। फिर बच्चे को घसीट कर बाहर ले गई, जमीन पर धक्का मार कर लेटा दिया। गाल पर चांटों के निशान आ जाते इसलिये पीठ पर कई मुक्के मार दिये। बाल इतनी जोर से खींचे कि कुछ बाल उसकी उंगलियों में फंस गये।
''
पागल,
मार डालेगी क्या?
मर जायेगा तोछोड दे।''
विमला ने लडक़ी को परे
धकेला। इतनी मार उठा पटक के कारण बच्चा सांस साध कर रह गया। उसकी आंखें ऊपर
चढने लगीं। शाम को मां को देखते ही बच्चे की रुलाई फूट पडी, ज़ैसे रोकर ही वह अपनी बात कह रहा है।'' क्या बात है? क्या हो गया? यह इतना सुस्त क्यों है? इसे तो बुखार है। क्या गिर पडा था? झगडा तो नहीं हुआ किसी के साथ? विमला गई क्या जवाब दे?
''
नहीं भाभी नहीं,
खेलते वक्त गिर गया था
यह।'' चार - पांच दिन बाद बच्चा थोडा स्वस्थ हुआ। मां के पास रहकर हंसता - खेलता पर जैसे ही अपरिचित औरतों को देखता जाकर छुप जाता। हर औरत में उसे विमला नजर आने लगी थी। सबके बीच हंसती हुई मगर एकान्त में आंखें तरेरतीमार का भय दिखाती। लकडी से टोंचती, मारती विमला का साया सोते जागते उसकी अन्तश्चेतना पर खडा आंखें दिखाता रहता था। छठवें दिन बच्चा फिर तैयार किया जा रहा था। टिफिन बोतल दवाइयांफल आदि से भरा थैला लिये बच्चे का पिता मुस्कुराता हुआ झूलाघर के सामने खडा था और उधर मां जबरदस्ती बच्चे की बांहें छुडाने के प्रयास में कभी बच्चे को पुचकारती तो कभी समझाती तो कभी डांटती। अन्तत: जब बच्चा किसी भी तरह नहीं माना तो एक चांटा मार कर पलंग पर पटक कर चल दी। बच्चा पहले तो चीख चीख कर रोया मगर मां का साया अदृश्य होते ही सहम कर चुप सा हो गया, कहीं फिर से मार न पडे। ईस सबसे बेखबर विमला जल्दी जल्दी टिफिन खोलकर देखने लगी कि आज उसके बच्चों को खाने के लिये नया क्या मिलेगा |
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