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नवजन्मा : कुछ हादसे
एक : सम्बन्ध
''
लडक़ी हुई
है।''
उसने अपने
अनन्य मित्र को सूचित किया। उसे तपाक से
'बधाई
'
हो सुनने
का इंतजार था।
दो: लेन - देन
मारे
खुशी के वह सराबोर था।
एक
नन्हीं कोंपल सी खुबसूरत बिटिया का पिता जो बना था।
घनिष्ठ
मित्र ही नहीं,
वह उनको भी सूचित किये बिना न रह पाया जिनसे वह साल में
दो - तीन बार से अधिक नहीं मिलता था।
उसे
ध्यान आया कि माहेश्वरी तो इस हो - हल्ला में छूट ही गया।
किसी
तीसरे स्रोत से उसे पता चलेगा तो जल कटेगा।
तुरंत
ही माहेश्वरी का नम्बर घुमाया।
तीन : ईश्वर का न्याय
उसकी
बदनसीबी कि वह भी तीन बहनों के बावजूद आ गई।
बाप
हताश और मुर्झाया हुआ।
बहनें
खुद को अपराधिनें सी महसूस करती रहतीं।
दो रोज
से न चॉकलेट - ऑमलेट खेलीं,
न टी वी देखा।
बाबा -
दादी कोख में कहीं खोट ढूंढ रहे हैं।
बडी
बुआ पारिवारिक आनुवांशिकी की तह तक जा रही थीं।
बस एक
मां थी।
दुनिया
भर - सा कलेजा लिये उसकी तरफ ममता से निहारती हुई।
इस बार
भी भगवान की यही मर्जी मां के भीतर एक कसक अलबत्ता जरूर उठी।
प््रासव पश्चात निचुडा शरीर कहां - कहां से टीस रहा है,
उसे सुध नहीं।
शिश
नॉर्मल ही हुआ था।
पर पता
नहीं कहां से क्या हुआ कि तीसरे दिन ही दस्तों का शिकार हो गया।
तीनों
बहने शोक से स्तब्ध।
बाप का
कलेजा भारी,
मगर बच्ची को मिट्टी समर्पित करने लायक बचा हुआ था।
बिस्तर
पर पडे पडे ही वह ऐसे दहाडी ज़ैसे फिर प्रसव वेदना के झटके आये हों।
चार : सेफ
उसका
दोस्त मुबारकबाद के लिये ऐसे लिपटा जैसे वह किसी इम्तिहान में अव्वल दर्जे
से पास हुआ हो।
उसने
भी अपने विचार बांटे,
'' सच बात है।''
''लेकिन
एक बात है।''
उसने बर्फी का आधा भाग काट कर,
मुंह ऊपर उचका कर कहा,
''
पहले लडक़ा
होना चाहिये फिर लडक़ी।''
'
सेफ'
उसके तलुए पर अचानक ही अटक गया।
ओमा शर्मा |
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