|
ठुल्ला किलब
''जय
राम जी की जिया,
बौत दिन पीछे मिलीं,
जो है सो है,
कैसी हो?''
'' ऐ मैं तोसे का कऊँ,
मरी आंख बनवाई थी,
मरा कुछ दीखे नई था,
तुम जानो। डागडर ने कइ
के जिया आराम करो।बस्स पड रए पलंग पे।''
'' राम जी भला करे अब
जो है सो है,
जिया तुमें सुगर भी तो है,
टैम तो लगेगा,
हैं कि नईं?
वैसे तो ठीक हो,
जो है सो है?''
'' नेक सा दीखै लगा
है। मरी तुमारी सिकल बिलकुलै साफ नईं दीखती।''
'' अरे,
मारो गोली म्हारी सिकल
को,
जो है सो है,
तुमने कछु खाया पिया
कि नईं?''
'' ऐ मैं तोसे का कऊं
पुस्पा,
हम तो हियां''
'' अब जो है सो है,
जिया। म्हारी बहू ने
कल रात हरहर की दाल में जीरे को छौंक लगा दियो। तुम तो जानो जिया,
जी जल के कोला होइ गवा,
पन इन परकटियों से का
कैते,
कैते बी तो कौनो कान देतीं।
जो है सो है,
ऐसी मति मारी गई है इनकी तो।''
''
ऐ मैं तोसे का कऊं पुस्पा,
म्हारी बहुरानी की
करतूत सुनोगी तो मरा माथा पीट लोगी।''
'' जो है सो है,
जिया,
एइसा का भया?
''
'' तुम तो जानो कि मरे
काले चने का पानी हमें कितना भावे है,
पन म्हारी बहुरानी ने
उबलते ई मरा छौंक लगा दे है कि कईं जिया मरा सूपई न पी ले।''
'' हाय राम जिया,
अब जो है सो है,
अब्ब तो बस्स भूल जाओ
सब। खावै - पीवै के दिन लद गये म्हारे - तुम्हारे। हमें बी तुम जानो बिलड
परीसर है,
खाने को डैटिंग बताई है जो है
सो है नेक कान हियाँ तो लाओ सुना उज्जी की महतारी ने सादी कल्ली!''
'' ऐ मैं तोसे का कऊं
पुस्पा,
मति मारी गई है का उनकी?
हाय राम! सच्ची?''
'' तो का मैं तुमसे
झूठ कऊं हूँ?
सबै बेटा - बऊ का किया - धरा
है। जो है सो है,
म्हारी बऊ के साथ काम करै है
न उज्जी की बऊ,
उसी ने कही,
जो है सो है।''
'' हाय राम पुस्पा,
मरी पचास तो पार कर
चुकी होइगी! ''
'' और नईं तो का जो है
सो है।''
'' मरा बुढापा काटना
का आसान है,
पुस्पा! मरा टैम काटे नईं
कटता ही ही ही।''
'' ऐ जिया,
तुम बी कल्लो न अपना
बियाह,
जो है सो है। हा हा हा।''
'' ए मैं तोसे कऊं
पुस्पा,
किससे बतियाएं,
नेक दो सबद सुन के बी
म्हारे बेटा - बऊ राजी ना हैं। रात - बिरात लौटे हैं कम्मखत किलबों से। ये
बी न बूझें कि जिया तुमने मरा कछु ठूंसा बी कि नईं। सीधे मरे बेडरूम में
घुस जाये हैं। सुबै घनी देर से उट्ठे हैं। बेटा बैड टी ले जाये है अन्दर,
तभी महारानी उट्ठे है।
मैं तोसे का
'' जो है सो है,
जिया,
अबै तो हजबैण्ड और बैफ
का जमाना आइ गवा है,
बूढे ख़ूसटन का घर मैं का काम?''
'' मैं तोसे कऊं
पुस्पा,
पोता - पोती को भी म्हारे
लिये टैम नईं। एक दिन हमने कई कि बिटवा,
अपनी भासा तो नेक सीक
लो,
तो बऊ ने कई कि जिया कनैफूज न
करो बच्चन को।''
'' हाय राम जिया,
मरी अपनी भासा सीकने
से कोई कनैफूज होता है का?''
'' वई तो,
गुजराती,
पंजाबी और उर्दू वाले
नईं होते। हिन्दी वालों के बच्चे कनैफूज क्यूं होवे हैं ये ये समझ नई आवै
है हमें तो पुस्पा।''
'' सो तो है जिया,
हम तो देस के रए न
बिदेस के थलिया के बैंगन से बस्स''
''
खुदै बुलौवा भेजे था कि आ जाओ
बिलैत,
मरे घर की चौकसी करबे को।
फंसी गये हियां आके हम तो। मरा वापस जाने लायक भी न रए!
''
'' सो तो है जिया।
देखो न,
अब जेठ के लडक़े का ब्याह है।
हमने कई कि हम जावे के चाहें,
फट मनै कर दी। दो
हज्जार पौण्ड का खर्चा कहां से करैं!
इकले हम जा न सकैं
हैं। बेटा - बऊ की मिल गवा चानस। जी मार के बैठे हैं,
जो है सो है।''
'' मैं तोसे कऊं
पुस्पा,
म्हारा बस एक ई देवर है जैपुर
में। उसकी बिटिया की मरी सादी में जाना तो दूर म्हारी बऊ ने एक लायलोन की
धोती भिजवाय दी। ऐसी सरम आई की पूछो नई।''
'' हाय राम जिया,
का सोचेंगे तुम्हारे
देवर - देवरानी?
जो है सो है,
तुम्हारे बेटा - बऊ तो
जरमनी जा रए हैं छुट्टियन में?''
'' हमसे किन्ने पूछी?
मैं तोसे कऊं पुस्पा,
हमसे पूछते तो का हम
चल देते?
मरी जरमनी को जाने को पौण्ड
हैं,
अपने देस जाने को नईं।''
'' जो है सो है जिया,
उधर तो देखो,
मैनू अपने ससुर को साथ
लाई है। कैसी बावली लग रई है।''
'' मैं तोसे कऊं
पुस्पा,
बित्ता भर की छोकरी,
सुना बरमी के गाम (
बर्मीघंम) में दांतन की डागडरी कर रई है। म्हारी दाढ दुख रई थी। मैनू से कई
कि जरा झांक ले। फट से बोली,
किलनिक में आओ तो देख
देंगे। हमें का फायदा ऐसी डागडरी का?
मैनू की सास नई आईं?''
'' हाय राम जिया,
तुमै नईं मालूम। मैनू
की सास तो नई रईं। पिछले साल गुजर गईं। तभई तो ससुर बिलैत बुला लिये,
जो है सो है।''
'' मैं तोसे कऊं
पुस्पा,
कित्ती बडी बात है कि सुहागिन
मरीं म्हारी - तुम्हारी तरह।''
'' सो तो है जिया।
बउओं ने पलकन पे बिठा के रखा सास - ससुर को। हम एक दफै नखलऊ इनके हियां गए
थे। ऐसी टहल की,
का बताऊं! बडक़ी ने तो बाद में
एक बिलौज बिनके भेजा,
जो है सो है। तनिक चढता नईं
अब्ब,
तुम जानो पन्द्रह साल पीछे
देखा था न हमें।''
'' अरी पुस्पा,
अबी कुछ टिकेंगे बी
हियां?''
'' जो है सो है,
मैनू के ससुर की पूछो
हा का जिया?''
'' ए मैं तोसे कऊं और
कौन धरा है इहां पूछबै को?''
'' जो है सो है जिया,
अबै चानस है तुमारा,
नईं?''
'' ए मैं तोसे कऊं
पुस्पा कछु सरम - लिहाज बी है के नाहीं?
''
'' लो,
अब्बी कै रईं थीं कि
मरा कोई मिलै बी।''
'' मैं तोसे कऊं
पुस्पा बऊ - बेटियों को तो देख,
कैसे चिपक - चिपक चूमा
चाटी कर रई हैं।''
'' अब जिया बात नईं
पलटो तुम,
जो है सो है
''
'' मोन के लाला रए तो
मजाल के हमसे कोई दोऊ बात कल्ले। पास बी फटक जावै था तो फट डांट पड जावै
थी। जरा देख डेजी को,
मरी कैसे ससुर से चिपक के
बैठी है।''
'' एकै महीनो तो हुआ
है सादी को,
न बिन्दी,
न सिन्दूर,
न चूडी,
न बिछिये,
जो पेटीकोट - बिलौज
पैन के चली आई है। जो है सो है
''
'' बिलौज - पेटिकोट
नईं,
मिनी इसकरट और टॉप कहवैं हैं।''
''
जो है सो है कम से कम पालटी
में तो ढंग से कपडे पैन के आना चाहिये वो भी ससुर के साथ।''
'' मैं तोसे कऊं
पुस्पा,
कम से कम एक साल नेम धरम
कल्लो और कछु नाहीं तो!''
'' जिया लगता नहीं कि
सत्तर के होंगे,
जो है सो है।
''
'' मैं तोसे कऊं
पुस्पा तेरा मरा दिमाग तो नईं चल गया कईं?''
'' जो है सो है जिया,
वो इदर ही आ रहे हैं।''
'' हय राम पुस्पा,
हमने तो आज धोती बी
ढंग से नईं पैनी,
देखियो चुटिया बी बनाने का
टैम नईं मिला।
''
जै राम जी की जिया! पुष्पा
मौसी,
कैसी हैं आप?''
'' जीती रओ बेटी,
बौत दिन में दीखीं,
जो है सो है।''
'' बस मौसी,
पापा आये हुए हैं आजकल
यहां। इन्हें घुमा - फिरा रहे हैं लन्दन। पापा इनसे मिलिये,
ये हैं जिया,
मोहन मलिक की मां और
ये जिया की क्लोज फ़्रेण्ड पुष्पा मौसी और ये हैं राघव बेनादरी इनके
पापा।''
'' ऐ मैं तोसे कऊं,
कईं देखा है इन्ने,
याद नईं पडता।''
'' भूल गई जानकी,
मैं रघु,
भई एक ही स्कूल में तो
थे हम,
सत्तो देवी प्रायमरी स्कूल,
याद आया कुछ?''
'' तुम तौ बौत बदल गये,
हम तो पैचान ईं न
पाये।ए मैं तोसे कऊं ,
तुमने कैसे पैचाना हमें?''
'' अरे,
जानकी,
तुम्हारी तोते - सी
लम्बी नाक और ठोढी पर ये मस्सा क्या कम है पहचानने के लिये!''
'' (कान में) जो है सो
है,
मामला जमै सा दीखै है।''
जिया
- ''
मैं तोसे कऊं पुस्पा नैक तो
चुप्प रहै! ''
रघु
- ''
भई,
हम भी तो सुनें,
क्या मामला जम रहा है?
''
मैनू
-
आप लोग बात कीजिये,
हम जरा मीना दीदी से
बात करके आते हैं।''
पुष्पा
-
कुछ नईं कैसे जिया,
मीना बिन बियाहै एक
मुसल्ले के हियां रहने लगी है। जो है सो है,
तुम जानो हो कि नईं?''
'' ऐ तोसे किन्ने कई?
''
'' अऊर कौन कैता,
मीना की महतारी ने
खुदै फून पे हमसे कई,
जो है सो है। मुसल्ले से सादी
करने से तो अच्छा है कि गले में उंगली डाल के पिरान ले लेती!
''
'' ए मैं तोसे कऊं,
सच्ची का?
इससे तो बियाह ही
देतीं और नईं का। आदमी का बच्चा ई तो है,
मुसलमान हुता तो का?''
'' तो?
वे तो तैयार थीं तुम
जानो,
वह नईं माना,
मीना बी अड ग़ई,
जो है सो है।''
'' मैं तोसे कऊं,
कम्मखत क्या जमाना आ
गया है पुस्पा!''
'' अरे जानकी,
अब तो भारत में भी न
जाने कितने लडक़े - लडक़ियां बिना शादी के साथ रहने लगे हैं। एक तरह से अच्छा
है,
न दहेज,
न कोई चकचख,
क्यों जानकी?''
'' ए मैं तोसे कऊं,
कबी सोचा था कि हमारी
जात में बी ऐसा होगा। इत्ती सी गोद खिलाई कम्मखत,
ऐसे गुल खिलाएगी
छोकरी।''
'' हमें समाज के साथ
बदलना चाहिये। क्यों पुष्पा जी!
''
'' अरे,
मैं का कऊं,
कैसा समाज,
जब जी में आई,
साथ सो लिये,
जी में आई चल दिये।''
''
जो है सो है,
इनके बच्चन का का होगा?
ढोर से घूमेंगे।''
'' मैं तोसे कऊं
पुस्पा,
तू बी का पचडा ले के बैठ गई
है?
और सुनाओ रघु,
दिल्ली की कौनो खबर है?
''
'' अरे भई,
दिल्ली अब लन्दन से
कौन पीछे रह गई। वहां भी अब मैकडॉनल्ड,
पिज्जा हट्स और फास्ट
फूड की कई चेन्स खुल गई हैं। बच्चों के पास मां - बाप के लिये समय नहीं है,
दादा - दादी की तो बात
दूर। हम जैसे रिटायर्ड लोग तो कभी एक बच्चे के पास तो कभी दूसरे के पास
मेहमान हो के रह गये हैं बस्स!''
'' तुम ठीक कओ हो रघु।
हम तो मेमानों से बी बत्तर हैं हियाँ। मेरे पडाैसी बी हाय डू डू कर लेवें
हैं,
पन पोता - पोती,
बेटा - बऊ हमसे कबी जै
राम जी बी नईं करते। मैं तोसे कऊं,
हमैं तो कभी ये बी पता
नाय लगै है कि कब्ब तो ये आये और कब्ब गये।''
'' जो है सो है रघुजी,
तुम कब तक हियां हो?''
'' बस देखो,
कब तक दिल लगता है।
दिल्ली में दो - चार दोस्त हैं,
कम - से - कम दिन में
समय निकल जाता है। यहां भी वैसे वही सब है
-
क्लब पार्टियां,
जवान अलग,
बूढे अलग,
बच्चे अपने कमरों में
बन्द।''
'' ऐ मैं तोसे कऊं,
पुस्पा आ जावै है तो
टैम गुजर जावै है,
नईं तो तुम जानो इस कम्मखत
बरसात में कहां जावें,
किसको बुलावें।''
'' जो है सो है जिया,
हम सबै मिल कर अपना
किलब क्यों ना बना लें!''
'' अरे वाह पुष्पा जी,
क्या आइडिया है! भई
खूब!''
'' मैं तोसे कऊं
पुस्पा,
इस ठुल्ला किलब में कोई काय
को आएगा?''
'' वाह जानकी! क्या
नाम दिया है तुमने,
ठुल्ला किलब!''
'' जो है सो है,
रघुजी को इसका
परसीडेन्ट बना लें का?
ही - ही - ही!''
'' मैं आज हूँ,
कल नहीं। जानकी को आप
प्रेसीडेन्ट बनायें और पुष्पा जी सेक्रेटरी हो जायें,
हो गया आपका किलब
तैयार।''
'' हम सरकटी
?
जो है सो है।''
मैं तो कऊं,
रघुजी,
परसीडेन्ट तो आप ही
रहेंगे,
हमें तो कुछ नईं आता - जाता।''
'' अरे! आने - जाने को
का धरा है जामें जिया! जो है सो है,
बूढे - बुढियों को
इकट्ठा करबै का काम है,
भजन - कीर्तन तो खुदै होने
लगेगा।''
'' जानकी,
तुम्हारी सहेली भी खूब
है भई! ''
'' जो है सो है,
आप दोनो जन बैठ के
रेगुलेसन्स बनाओ,
हम अभाल दो - चार को इकट्ठा
कर के लाते हैं।''
'' मैं तोसे कऊं,
ये रेगुलैन भला का
होवै है,
रघु?''
'' अरे यही की क्लब का
मैम्बर कौन - कौन हो सकता है?
ये क्लब क्या - क्या
करेगा,
क्या नहीं वगैरह।''
'' मैं तोसे कऊं,
मीना के मां - बाप को
तो बिलकुलै ई नई आन देना।''
'' क्यों भई?''
'' देखो तो,
मीना का क्या सत्यानास
किया है। हमारी जात - बिरादरी की नाक कटा दी।''
'' इसमें उन बेचारों
का क्या दोष? ''
'' दोस कैसे नईं रघु,
लच्छन तो मरे मां -
बाप के ही दिये होवैं हैं कि नईं?
''
'' तो जानकी,
क्या वे चाहते थे कि
मीना मुसलमान के साथ जाकर रहने लगे?''
'' ऐसे तो रघु सबी
हमारे ठुल्ला किलब में आ जायेंगे,
ऐरे - गैरे नत्थूखैरे''
'' ऐसे लोगों को ही तो
इस क्लब की सबसे अधिक जरूरत है। बेचारे वैसे ही दुखी हैं,
ऊपर से हम उनका
बहिष्कार कर दें।''
'' ए मैं तोसे कऊं,
फिर तुमै सोचो
रेगुलेसन,
हम से नई पूछना। अब तुमने घर
देख लियौ है,
आइयो कभी,
रस्ता तो न भूल जाओगे?
''
'' अरे,
कैसी बातें करती हो
जानकी,
घूमता - घामता आ जाया करुंगा।
तुम्हारे बेटा - बहू ऐतराज तो नहीं करेंगे?
''
'' उनकी भली चलाई,
मैं तोसे कऊं,
घर में होंगे तो
टोकेंगे। पुस्पा आ जाती है कबी - कबी,
आवै के पैले फून जरूर
कर लियो।''
'' चलो,
अच्छा समय गुजरेगा,
मिलके बैठेंगे जब
दीवाने दो।''
'' मैं तोसे कऊं रघु,
तुमरी सैतानी की आदत
अब्बी भी गई ना है।''
'' तुम्हें देख कर
पुराने दिन याद आ गये। याद है स्कूल में फैन्सी ड्रेस में तुम मीरा बनी थीं,
गेरूआ कपडे,
ग़ले में माला,
हाथ में एकतारा लिये।
क्या भजन गाया था!''
'' ए मैं तोसे कऊं,
तुम भूले नईं?''
'' हाँ,
याद आया,
मनै चाकर राखौ जी
मुझे वह भजन बहुत भाता है। अब भी गाती हो?''
'' ए मैं तोसे कऊं,
अब्ब का गावेंगे। यहां
न तो कोई तीज,
न कोई त्यौहार। सावन में झूले
नईं,
तीजों पे मैंदै नईं। किसको
टैम धरा है कि भजन सुने।''
'' मैं सुनूंगा जानकी,
तुम्हारी आवाज बहुत
मधुर थी। तुम्हें गाना जारी रखना चाहिये था।''
'' ए मैं तोसे कऊं,
बरसों हुई गाये,
कछु याद नहीं पडता।''
'' तो याद करो अभ्यास
करो। ठुल्ला क्लब को भी तो पता लगे,
हमारी जानकी बस ऐसी ही
नहीं है।''
'' रैने दो रघु,
किसी से कइयो ना कि
मैं गाऊं थी।''
'' कहना कैसे नहीं,
हियर - हियर,
जानकी यानि आप लोगों
की जिया हमें एक भजन सुनाने जा रही हैं।''
'' ए मैं तोसे कऊं,
हमें तो नेक सा बी नईं
याद।''
'' जो है सो है जिया,
तुम तो बडी छुपी
रूस्तम निकलीं। रघुजी को मिले पांच मिनट बी नईं हुए और तुम गाने लगीं।''
'' ए मैं तोसे कऊं
पुस्पा।''
'' जो है सो है जिया,
ये बी अच्छा हुआ।
तुम्हारे भजन से हम ठुल्ला किलब का इंग्रेसन करते हैं।''
'' इंग्रेसन?
''
'' इनॉग्रेशन जानकी,
श्रीगणेश।''
श्रीमति मलिक
- सुनिये,
जरा अपनी जिया को तो देखो,
कैसे चहक रही हैं।
मैनू कह रही थी कि
कोई ठुल्ला क्लब बनाया है पुष्पा मौसी के साथ,
आई होप, हमारे घर में कहीं
हेडक्वार्टर न बना लें।
मोहन - अरे,
धीरे बोलो, मां गा रही हैं।
श्रीमति मलिक - मैं कहती
हूँ
जी,
पुष्पा मौसी जब देखो तब आ धमकती हैं।
जिया कभी चाय
मंगवाती हैं,
कभी फल, अब ये ठुल्ला क्लब।
मैं कहे देती
हूँ
आपसे,
अगर इन बुङ्ढों को कोई भी मीटिंग करनी हो तो मैनू अपने
यहां करे।
चली आई अपने ससुर
को मिलवाने।
कैसे चालाक हैं,
हींग लगे ना फिटकरी
मोहन - कुछ ही दिनों के लिये
लन्दन आये हैं।
तुम बेकार में
श्रीमति मलिक - अमित के
ए लेवल के एक्जाम्स सिर पर हैं और जिया को क्लब बनाने की सूझी है।
जरा आप देखिये तो
सही, क्या
माजरा है?
मोहन - भजन तो खत्म होने दो।
श्रीमति मलिक - अब इनकी
रागनी कभी खत्म नहीं होगी।
मैं तो पहले ही तंग
आ गई हूँ,
ड्राईंगरूम में जिया ने मंदिर बना रखा है।
जहां देखो,
देवी - देवताओं के कैलेण्डर और मूर्तियां,
धूपबत्ती की राख
मोहन - अरे,
जरा तो सब्र करो।
श्रीमति मलिक - अरे,
सब्र कर कर के तो ये हाल हो गया।
तुमने कहा था कि
भइया इन्हें एक महीने भी यहां टिकने नहीं देगा।
एक फोन तक नहीं
करता।
हमारे पैसे नहीं खर्च होते
लखनऊ फोन करने में?
उसे लिख दो कि जिया का मन नहीं लग रहा,
हम वापस भेज रहे हैं।
मोहन - ऐसे कैसे भेज दूं?
जिया कहेंगी तो फ्लाइट बुक कर दूंगा।
श्रीमति मलिक - तुम्हें लग
रहा है कि वह कहेंगी? देखो,
कैसा राग - रंग जम रहा है।
बाकी मेहमान भी
उनको घेर कर खडे हैं और राघव जी को तो देखो,
कैसे निहार रहे हैं!
मोहन
-
कैसी बातें करती हो?
श्रीमति मलिक
-
अज्जी भैया और भाभी ने देखो
क्या चाल चली। अपनी मां को ओवर फिफ्टी के क्लब में ले जाने लगे और एक महीने
में ही उन्होंने पार्टनर ढूंढ लिया।
मोहन
-
अज्जी भैया की मां बहुत
फारवर्ड हैं,
स्मार्ट भी। हमारी जिया को तो
ठीक से बात भी
श्रीमति मलिक
-
अभी राघव जी से मिले आधा
घण्टा भी नहीं हुआ है और देखो,
कैसे फॉरवर्ड दिख रही
हैं!
मोहन
-
वह सब तो ठीक है
,
पर
श्रीमति मलिक
-
पर - वर कुछ नहीं। मैं फिक्स
करती हूँ इनकी मीटिंग्स। न दो मीटिंग्स में ही फेरे पडवा दिये तो मेरा भी
नाम मीता नहीं।
मोहन
-
मैनू आ रही है इधर,
जरा संभल के।
श्रीमति मलिक
-
अरे मैनू,
तुम्हारे पापा ने तो
हमारी पार्टी में चार चांद लगा दिये हैं।
मैनू
-
अरे नहीं मीता,
यह तो जिया हैं,
कितना अच्छा गाती हैं!
श्रीमति मलिक
-
मुझे नहीं मालूम था कि जिया
गाती भी हैं। राघव जी तो कमाल है भई।
मैनू
-
अच्छा है आंटी,
पापा को कम्पनी मिल
गयी।
श्रीमति मलिक
-
हां,
मैं वही कह रही थी
इनसे। क्यूं न ठुल्ला क्लब की अगली मीटिंग तुम अपने यहां रख लो। जिया भी
तुम्हारा घर देख लेंगी इसी बहाने।
मैनू
-
बात यह है आंटी मैं तो घर पर
कम ही होती हूँ।
श्रीमति मलिक
-
अरे,
वह तुम मुझ पर छोड दो,
मैं सबसे कह देती हूँ
कि एक एक डिश सब ले आयें। पुष्पा मौसी सब अरेन्ज कर लेंगी।
मैनू
-
हमारा फ्लैट भी छोटा है न
आन्टी,
सब लोग कैसे फिट होंगे?
श्रीमति मलिक
-
दिल बडा होना चाहिये। ये लो
पुष्पा मौसी यहीं आ गईं। मौसी,
मैं ने आपकी अगली
मीटिंग भी फिक्स कर दी शनिवार को मैनू के यहां।
मौसी
-
अरे वाह! थैंकू बेटी,
जो है सो है,
भगवान तुम्हारा भला
करे। अरे जिया,
सुना तमने अगली मीटिंग राघव
जी के इहां है।
जिया
-
ए मैं तोसे कऊं,
उसे दिक मतै करै,
इहाँ का बुराई है?
मैनू बेचारी डागडरी
पढेग़ी या ठुल्ला किलब चलाएगी?''
श्रीमति मलिक
-
जिया,
मैनू को कुछ नहीं करना
पडेग़ा।
राघव
-
अरे जानकी,
मैं संभाल लूंगा सब,
एक दिन की ही तो बात
है।
मैनू
-
पापा,
आर यू श्योर?
मौसी
-
उससे अगली मीटिंग हम हैड
पार्क में करेंगे।
जिया
-
ए मैं तोसे कऊं,
पुस्पा,
अब बुढापे में हैड
पार्क में बैठेंगे?
मौसी
-
जो है सो है,
क्यूं नईं जिया?
राघव
-
अरे वाह,
क्या आइडिया है! क्यूं
न हम अपने लैटर हैड बनवा लें -
ठुल्ला किलब,
हाइड पार्क,
लंदन।
दिव्या
माथुर
फरवरी
12,2004
Top
|
|
Hindinest is a website for creative minds, who
prefer to express their views to Hindi speaking masses of India.
|
|