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लघुकथा हिजडे शादी के वक्त राहुल के पिताजी ने सामान की एक लंबी लिस्ट लडक़ी के पिता के आगे रख दी थी । एक पल के लिए तो लडक़ी के पिता चौंके थे। कहीं भीतर से उन्हें सब कुछ भुरभुराता सा लगा। लेकिन अगले ही पल उन्हें लगा जमाना बदल गया है। आज के वक्त में इन सब चीजों की कीमत ही क्या है। और फिर उनके पास पैसे की क्या कमी है। सब कुछ बेटी के सुख के लिए ही तो देना है। बात लडक़ी तक भी पहुंची थी। उसने पिता की आंखों में देखा। पिता मुस्करा दिए '' लडक़ी वालों को यह सब करना ही पडता है।'' शादी के बाद कितने ही तीज त्यौहार। सास ससुर खुले मुंह मांगते चले गये थे और लडक़ी के पिता लडक़ी के सुख के लिए सब कुछ देते चले गये।लडक़ी को सुख तो मिला किन्तु खुशी उसके चेहरे से गायब हो गई थी। एक उदासी थी जो उसके भीतर पसरती चली गई।आज पिता इस मकाम पर कैसे पहुंचे वह बचपन से देखती चली आ रही है। कितनी मेहनत की है उन्होंने। ससुराल वाले उसे जीवन भर के लिए रखने का मुआवजा ले रहे हैं क्या? इस बार तो फोन सीधे ही पिताजी के पास चला गया था जगननाथ जी लडकी के पहले करवाचौथ पर तो लडकी को जितना दे डालो कम होता है। बस रमन की मां की तो इतनी इच्छा है कि सोना चांदी तो बहुत हो गया। अब तो हीरे के दो चार सैट हो जाएं तो बिरादरी में नाक भी ऊंची हो जाएगी और फिर हो सकता है हीरे के घर में पवेश करते ही परमात्मा घर में पोता दे दे।बहुत शुभ माना जाता है हीरा तो। यह सब तो लडकी को तब पता चला जब घर में सब कुछ आ गया। आज सुबह दिन निकलने से पहले ही मौहल्ले भर में कोहराम मच गया। रामधन के घर में आग।बहु का कमरा तो धूं धूं करके जल उठा था। लोगों का तांता लग गया।पुलिस और फायर बिगेड वालों को भी इतला दे दी गई थी। मौहल्ले वाले भी आग बुझाने में कसर नहीं छोड रहे थे। '' बहु जला दी क्या ? '' कितने लोग एक साथ चिल्लाए थे। तभी बहू का ठहाका सुनाइ दिया था - ''अरे मैं नहीं जलने की।ये जो हिजडे दूसरे के दम पर नाच रहे थे इन्हें जला रही हूं!'' पूरा घर धूं धूं करके जल उठा था।
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