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बिजनेस वेब डॉट कॉम

एकबारगी मैं तो पहचान ही नहीं पाया उन्हें कहां वो अन्नपूर्णा भाभी का चिर - परिचित नितांत घरेलू व्यक्तित्व और कहां आज उनका ये अतिआधुनिक रूप ! चोटी से पांव तक बदली - बदली सी लग रही थीं वे कस्बे के नये खुले इस फास्टफूड कॉर्नर से जिस व्यक्ति के साथ निकल रही थीं , वह सोसायटी का भला आदमी नहीं कहा जा सकता था मुझे तो ऐसा अनुभव हुआ कि सिर्फ संग - साथ वाली बात नहीं, यहां कुछ दूसरा मामला है क्योंकि वे बात - बेबात उस भले आदमी से सट - सट जा रही थीं, जैसे उसे पूरी तरह रिझाना चाहती हों

आज उन्होंने बनने संवरने में कोई कोर कसर नहीं छोड रखी थी उनके चमक छोडते गोरे बदन पर  सब कुछ दिखता है नुमा कपडे सरसरा रहे थे हल्की शिफॉन की मेंहदी कलर की साडी से मैच करता लो कट ब्लाउज, ऌसी रंग की बिन्दी और कलाई भर चूडियां, पांव में मेंहदी कलर की ही चौडे पट्टे की डिजाइनदार चप्पलें और ताज्जुब तो ये कि हाथ के पर्स का भी वही रंग मैं ने उन्हें गौर से देखा तो ठगा सा खडा रह गया

मैं ऐसी जगह खडा था, जहां से उन्हें निकलना था मुझे यहां पाकर वे कोई संकोच अनुभव न करें, इसलिये मैं वहां से हटा और पीसीओ बूथ की ओट में आ गया यह संयोग ही था कि वे दोनों पीसीओ बूथ में प्रविष्ट हो गये वे कह रहीं थी, '' आप गलत अर्थ मत लगाइये, किसी के यहां जाने से पहले आजकल फोन कर लेना ठीक रहता है, पता नहीं वे फुरसत में हैं या नहीं, या फिर उन्हें कहीं बाहर जाना हो, या ये भी हो सकता है कि वे बाहर ही चले गये हों''
उनके साथ वाले व्यक्ति ने निरपेक्ष भाव से कहा था, '' अरे, मैं कहां बुरा मान रहा
हूं। आप का कहना दुरुस्त है मैडम

बूथ में फोन डायल करने तक सन्नाटा रहा, फिर कुछ देर बाद आवाज ग़ूंजी - '' हलो सिमरमपुर से! पटेल साहब हैं क्या? मैं मनीराम बोल रहा हूं। जरा बात कराइये उनसे''

'' ''

'' हलो पटेल साहब, मैं ने कहा था न, मैं आज मिलने आ रहा हूं। उन्हें साथ ला रहा हूं।''

कुछ देर बाद वे लोग बाहर आ गये मनीराम ने जेब से चाबी निकाल कर अपनी बाइक स्टार्ट की और पीछे देखने लगा अन्नपूर्णा भाभी अपनेपन की भीरती खुशी से मुस्कुराती हुयी लपक कर मनीराम के पीछे बैठ गयीं गियर डाल के मनीराम ने गाडी गे बढाई तो वे मनीराम पर लद सी गयींमैं निराश सा वहां से मुडा और अपने बीमा ऑफिस की ओर चल पडा

अगले दिन मेरा मन न माना तो मैं सुबह - सुबह उनके घर जा धमका उनके सरकारी क्वार्टर के बाहर, बाऊण्ड्रीवाल पर पुरानी नाम पट्टिका की जगह पीतल की नयी चमकदार नेम प्लेट लग चुकी थी- भरत वर्मा, क्षेत्रीय अधिकारी
दरवाजा वर्मा जी खोला, मुझे देख कर वे थोडा चौंके - '' क्यों साहब प्रीमियम डयू हो गया क्या? ''
मैं ने हमेशा बनियान - पैजामा पहने रहने वाले वर्मा जी को अच्छी क्वालिटी के गाउन में सजा - धजा देखा तो काफी बदलाव महसूस हुआ
लेकिन गौर किया तो मैं ने उनके पैंतालीस वर्षीय बदन को वैसा ही दुबला और कमजोर पाया वही गरदन के पास से झांकती कॉलर बोन, कपोलों पर मांस से ज्यादा हाड दर्शाता सूखा सा चेहरा और वे ही खपच्चियों से लटके दुबले, लम्बी अंगुलियों वाले हडियल हाथ उन्हें आश्वस्त करता हुआ मैं बोला, '' नहीं वर्मा जी, प्रीमियम तो तीन महीने बाद हैमैं तो बस यूं ही!''
'' कोई बात नहीं, स्वागतम्! आइये न
''

मैं प्रसन्न मन से भीतर घुसा और सोफा की सिंगल सीट पर पसर के बैठ गया वर्मा जी मेरे ऐन सामने बैठे फिर मुस्कुराते हुए बोले - '' और सुनाइये, आपकी प्रोग्रेस कैसी चल रही है? अब तक  डी एम क्लब के मैम्बर बने या नहीं?''
'' हां, वो तो दो बरस पहले ही बन गया था, अपनी ब्रांच का पहला करोडपति एजेन्ट
हूं मैं'' बताते हुए मैं पुलकित था, पर भीतर ही भीतर सोच रहा था कि पहले कभी किसी बात में रुचि न लेने वाले वर्मा जी आज बडे व्यवहारिक दिख रहे हैं ऐसा क्यों है?

तभी भीतर से अन्नपूर्णा भाभी की  कौन है जी , मीठी आवाज आयी तो मेरा दिल उछल कर हलक में आ गया, मेरी निगाहें बैठक कक्ष के भीतरी दरवाजे पर टिक गयीं सुआपंखी रंग की जमीन पर गहरे काले रंग की छींट वाला, सूती कपडे क़ा ढीला - ढाला गाउन पहने, दोनों हाथ पीछे करके जूडा बांधती वे जब नमूदार हुईं, तो मैं ठगा सा उन्हें देखता ही रह गया इस अस्त - व्यस्त दशा में भी वे गजब की जम रहीं थीं मुझे देखकर वे गहरे से मुस्कुराईं और हाथ जोड क़र बोलीं - '' अरे, गुप्ताजी आप आये हैं बडी उमर है आपकी! मैं कल ही इनसे कह रही थी कि एक दिन आपसे मिलना है आप न आते तो मैं आज ही आपके पास आ रही थी''

हमें बतियाता देख यकायक वर्मा जी चुपचाप खिसक गये और जाने क्यों मैं खुद को सहज नहीं पा रहा था मुझे सोच में पडा देख वे तपाक से बोलीं, '' अरे, अमर किस टैन्शन में फंसे हुए हो यार!''
''
कहां ? मैं किसी टैन्शन में नहीं हूं।'' कहता हुआ मैं मुस्कुराने की व्यर्थ सी कोशिश करने लगा
'' आपके बच्चे नहीं दिख रहे आज!''
'' वे दोनों स्कूल गये हैं
'' कहते हुए वे मुझसे पूछने लगीं - '' आपने बीमा ऐजेन्सी लेते वक्त, ग्राहक को डील करने का कोई खास कोर्स किया था क्या?''
'' नहीं तो, बस पन्द्रह दिन का ओरियन्टेशन प्रोग्राम हुआ था, मंडल कार्यालय में
क्यों कोई खास बात?''
मुझे लगा, आज कोई खास बात है, इसी वजह से वे इतना अपनत्व दिखा रही हैं
वे इस तरह धाराप्रवाह ढंग से मुझसे बतियाने में जुट गयीं कि मैं उन्हें ठीक ढंग से देख ही नहीं पा रहा था शायद मुझे इसी उलझन में डालने के लिये वे लगातार बोलती जा रही थीं
वर्मा जी चाय बहुत अच्छी बनाने लगे थे

बिस्कुट कुतरते समय वे गहरे आत्मविश्वास में डूबी थीं, मैं उनके व्यवहार पर क्षण - क्षण चकित था
बीमा की किश्त लेने मैं हर छह माह में इनके यहां आता रहा हूं। बीच में नयी लांच की गयी पॉलिसी लेने के लिये उनको पटाने भी मैं अकसर आ जाता था, पर वे इतनी खुल कर कभी नहीं मिलीं प्राय: वर्मा जी से भेंट होती थी, वे बीच में कभी - कभार बैठक में आती थीं तो नमस्कार करके तुरन्त भीतर चली जाती थीं

मेरी निगाह उनके मोहक चेहरे और ढीले - ढाले गाऊन में से उभरते उनके आकर्षक बदन को ताकने का लोभ संवरण नहीं कर पा रही थीं और अब अपने को ताके जाने का ज्ञान होने के बाद, वे मुझसे नजरे नहीं मिला रही थीं, छत को बेवजह घूर रही थीं और खुद को ठीक से ताकने का मौका दे रही थीं

शाम को कार्यालय से लौटकर, मैं बाथरूम से बाहर आया ही था कि पत्नी ने आंखें चमकाते हुए कहा - '' जाओ, बैठक में एक स्मार्ट और सुन्दर सी महिला आपसे मिलना चाहती है''
मैं समझ गया कि वे ही होंगी
पांच मिनट में ही बाहर जाने वाले कपडे पहन, सेंट का छिडक़ाव कर मैं बैठक में था
'' नमस्ते
सॉरी, मुझे जरा देर हो गयी'' आवाज में ढेर सी मुलायमियत भर के मैं अदब से झुकते हुए बोला
'' नमस्ते, नमस्ते
'' वे चहकीं
'' अरे शुभा! भाभी जी को चाय तो पिलाओ
'' मैं ने भीतर मुंह करके पत्नी से इल्तिजा की
'' अरे, रहने दीजिये, गुप्ता जी
मेरे रिसोर्स परसन आने वाले हैं, उन्हें चाय पिला देना आप''
'' रिसोर्स परसन माने?''
'' माने मुझे काम सिखाने वाले
मेरे अपलाइनर!''
'' आप कोई काम करने लगी हैं क्या इन दिनों?
'' आपको पता नहीं, मैं ने पिछले महीने से एक बिजनेस शुरु किया है
आपको जानकारी होगी कि कुछ ऐसी मल्टीनेशनल कंपनियां हैं, जो विज्ञापन में फिजूलखर्ची नहीं करतीं बल्कि अपना नेटवर्क डवलप करके अपने एजेंट नियुक्त करके सीधे अपनी वस्तुएं ग्राहकों तक पहुंचाती हैं''
'' हूं
'' मैं ने गंभीर होते हुए उनकी बात में रुचि प्रदर्शित की
वे बोलीं - '' मैं ने अभी ज्यादा काम नहीं किया, इसलिये मैं ज्यादा नहीं बता सकती, बस मेरे रिसोर्स परसन आ रहे हैं
वे आपको विस्तार से सारी बातें समझायेंगे''

शुभा चाय लेकर आयी तो उन्होंने उठकर उससे नमस्ते की और बोलीं - '' आप भी बैठिये भाभी जी दरअसल मैं जिस काम से आयी हूं वो आप दोनों पति - पत्नी मिलकर ज्यादा अच्छी तरह से कर सकेंगे''
अब मेरी भौंहों में बल पड ग़ये
झिझकती सी शुभा बैठ तो गयी, पर उसकी निगाहें जमीन से चिपक गयीं यकायक मुझे लगा कि शुभा मेरी इज्जत खराब करे दे रही है इसे इतना संकोची नहीं होना चाहिये कि एक औरत के सामने भी नई दुल्हन सी शरमाए

हमारी चाय खत्म ही हुई थी कि उनके वे रिसोर्स परसन आ गये मैं ने उनका स्वागत किया और अपना परिचय दिया, '' मैं अमर गुप्ता, बीमा एजेण्ट''
'' मैं जम्बो कम्पनी का एक छोटा सा वर्कर - सिल्वर एजेंट मनीराम
''
हम लोग हाथ मिला कर बैठने लगे तो शुभा बर्तन समेट कर बाहर जाने लगी, वर्मा भाभी ने उसे फिर रोका, '' भाभी आप रुकिये प्लीज
''
'' मैं अभी आती
हूं।'' कहती हुई शुभा पीछा छुडा कर भागी और भीतर पहुंच कर बर्तन बजा कर मुझे अन्दर आने का इशारा करने लगी मैं भीतर पहुंचा तो वह झल्ला रही थी - '' कौन है ये सयानी मलन्दे बाई!''
हंसते हुए मैं बोला - '' तुम काहे जल रही हो? बेचारी वो तुम्हें क्या सयानापन दिखा रही है? वो अपना कोई प्रोडक्ट बेचने आयी है
''
'' हमें नहीं खरीदनी उसकी कोई चीज
उससे कहो अपने खसम के साथ उठे और कहीं दूसरी जगह जाकर नैन मटक्का करे ! और जो मर्जी हो बेचे चाहे गिरवी रखे''
मैं शरारतन मुस्कुराया, '' अरे यार हजार दो हजार देकर इतनी कमसिन और खूबसूरत औरत के साथ बैठने का मौका मिल जाये तो महंगा नहीं है
''
शुभा की आंखें अंगार हो गयीं थी, वह जलते हुए स्वर में बोली, '' कहे दे रही
हूं, मैं अभी बैठक में जाकर उसे घर से बाहर निकाल दूंगी''

मुझे लगा खेल बिगड रहा है, सो समझौते के स्वर में उससे कहा - यार तुम भी बिना पढी - लिखी औरतों की तरह बातें करने लगती हो वो क्या हमारी जेब में हाथ डाल के रूपया निकाल लेगी? अब कोई अपना माल दिखाये, तो लो मत लो देखना तो चाहिये अपने घर में हर सामान भरा पडा है, हमको क्या खरीदना है? वो जो बतायेगी, देख लेते हैं बेचारी को निराश काहे करती हो''

मैं बैठक में जाकर बैठ गया और उनके रिसोर्स परसन से बात करने के बहाने मुस्कुराते हुए पूछने लगा - '' आप कहां रहते हैं मनीराम जी?''
'' मैं घाटीपुरा में रहता
हूं, उधर हाई स्कूल की पुरानी इमारत है न, उसके पीछे हमारा पुराना मकान है''
'' अच्छा उधर, जहां दरोगा संग्रामसिंह रहते हैं
''
'' आप उन्हें जानते हैं! वे मेरे चाचा हैं
''
अब हमें बात करने को एक विषय मिल गया था, सो हम पूरी दिलचस्पी के साथ दरोगा संग्राम सिंह और अपने हाईस्कूल के जमाने की बातें करने लगे
हालांकि यह विषय अन्नपूर्णा भाभी को बोर कर सकता था, पर ऐसा नहीं दिख रहा था, बल्कि वे बडे प्रसन्नभाव से मनीरामजी को देखते हुए हमारी बातें अपनी आंखें फैला कर इस तरह सुनने लगीं मानो वे इस विषय से बहुत गहराई से जुडी हों

इसके बाद वे घर के अन्दर चली गयीं और कुछ देर बाद वे लौटी तो उनके साथ आंखों में उलझन का भाव लिये शुभा भी थी मनीराम जी ने उठ कर मेरी श्रीमति जी का अभिवादन किया बोला - '' भाभी जी मैं जम्बो कंपनी का एजेंट मनीराम हूं। माफी चाहूंगा कि मैं आपके मूल्यवान समय में से दस मिनट ले रहा हूं आपको अच्छा लगे तो आप मेर बिजनेस प्रपोजल पर विचार करें और न जमे तो कोई बात नहीं'' अब उसकी आवाज में मखमली अंदाज गया था, '' सर, कभी आपने सोचा कि आप दूसरों से हटकर यानि कि अलग हैं? दरअसल आपको अपनी योग्यता के अनुरूप जॉब नहीं मिला है इसलिये आप अपने वर्तमान व्यवसाय से पूरी तरह संतुष्ट नहीं होंगे मन में कहीं न कहीं यह चाह रहती होगी यानि कि एक सपना होगा आपका भी कि आपके पास खूब सारा पैसा हो!  बडा सा बंगला हो  शानदार कार हो! भाभी के पास ढेर सारे जेवर हों! आपके बच्चे ऊंचे स्कूल में पढने जायें! आप लोग भी फॉरेन टूर पर जायें! यानि कि आपके पास वे सारी सुख - सुविधाएं हों जो एक आदमी के जीवन को चैन से गुजारने के लिये जरूरी हैं लेकिन आप लोग मन मसोस के रह जाते हैं, क्योंकि आपके सामने वैकल्पिक रूप में अपनी इतनी बडी ऌच्छाएं पूरी करने के लिये कोई साधन नहीं है छोटी - मोटी एजेंसी या नौकरी से यह काम पूरे नहीं होंगे, हैं न! एम आय राईट?''

मैं ने सहमति में सिर हिलाया - '' आप बिलकुल सही कह रहे हैं''
'' अपने सपने पूरे करने के लिये आपको कम से कम पचास हजार रुपए महीना आमदनी चाहिये और पचास हजार रुपए के मुनाफे के लिये आप अगर कोई बिजनेस करेंगे तो उसमें पच्चीस लाख रूपए की पूंजी लगानी पडेग़ी ठीक है न! अब पच्चीस लाख रूपए की रिस्क, फिर नौकर - चाकर, दुकान - गोदाम कित्ते सारे झंझट हैं! लेकिन मैं ओको ऐसा बिजनेस बताने आया हूं, जो आप बिना पूंजी के और बिना रिस्क के शुरु कर सकते हैं
और जितनी मेहनत करेंगे उतना ज्यादा कमायेंगे''
'' हमें बेचना क्या है? '' मुझे उलझन हो रही थी

'' आप तो सिर्फ नेटवर्किंग करेंगे जनाब, सीधे कुछ नहीं बेचेंगे
'' मनीराम ने उसी मुस्तैदी से कहा- '' अब वो जमाना नहीं रहा जब दुकान खोलके बैठना पडता था आप जिन लोगों को डिस्ट्रीब्यूटर बनाएंगे, वे जम्बो कंपनी के प्रोडक्ट बेचेंगे और घर बैठे मुनाफा आपको मिलेगा''
'' लेकिन इसमें मेरी क्या भूमिका होगी? '' शुभा अब तक मनीराम का जाल नहीं समझ पा रही थी

'' आपकी वजह से ही तो गुप्ता जी के डाउनलाइनर्स की फेमिली को इस बिजनैस और प्रॉडक्ट्स में विश्वास होगा
हमारी सोसायटी में ये माना जाता है कि आदमी तो ब्लफ दे सकता है, औरत नहीं सो आप इस मान्यता को फोर्स के साथ अमल में लायेंगी इसका आपको व्यक्तिगत लाभ भी मिलेगा क्योंकि इस काम के लिये आप दोनों के एक साथ जाने - आने से एक बहुत बडे सर्कल में आपकी सोशल रिलेशनशिप बनेगी जम्बो कंपनी की फेमिली बडी रिच है, इसके लिये बडे - बडे ई ए एस अफसर और बडे - बडे बिजनेसमैन तक काम करते हैं उन लोगों के एक्सपीरियंस, बिजनस टिप्स, आर्ट ऑफ लिविंग और थिंकिग  आपकी लाइफ स्टायल बदल देगी''

मनीराम द्वारा दिखाये गये सपने का जादू हम लोगों पर असर करने लगा था, हम दोनों उसके चेहरे को मंत्रमुग्ध - से होकर ताकने लगे थे, यह अनुभव करके वर्मा भाभी अब मनीराम की तरफ बडे ग़र्व से देखने लगी थीं हठात् शुभा ने मनीराम से पूछा, '' आपके इन प्राडक्ट्स की कीमत क्या है?''
'' यह टूथपेस्ट एक सौ दो रूपए का है, और यह नाइटक्रीम एक सौ बीस रूपए की है
''
मैं ने हस्तक्षेप किया, '' बाय द वे, आपको नहीं लगता कि ये चीजें कुछ ज्यादा मंहगी हैं? हमारी सोसायटी में कितने लोग ऐसे होंगे जो ये चीजें अफोर्ड कर सकेंगे!''
'' हां, थोडी सी कॉस्टली हैं! बट एक्चुअलीजनरल प्रोडक्ट्स की तुलना में हमारा प्रोडक्ट तीन गुना ज्यादा सेवा देता है
फॉर एग्जांपल - एक आम टूथपेस्ट की एक इंच लम्बी टयूब जितना काम करती है इस पेस्ट का चने बराबर हिस्सा ही उससे ज्यादा काम कर देता है मतलब ये कि सही मायने में ये चीजें मंहगी नहीं हैं''
'' आप कह रहे हैं कि आपका बनाया हुआ चना बराबर पेस्ट वो काम कर जाता है जो बाजार में मिलने वाले एक आम पेस्ट का एक इंच लम्बा टुकडा काम नहीं कर पाता
इसका मतलब यह भी तो हो सकता है कि इस पेस्ट में ज्यादा कैमिकल्स मिल दिये जाते हों, जो शरीर के लिये नुकसानदायक हों'' मेरा मन लगातार प्रश्न पैदा कर रहा था और मेरी जुबान उन्हें मनीराम की ओर मिसाइलों की तरह दाग रही थी

'' गुप्ता जी, हमारे यहां कंज्यूमर अवेयरनेस अब भी उतनी ज्यादा नहीं है जितनी अमेरिका या दूसरे यूरोपीय देशों में है। यह माल भी यूरोप में बनाया गया है, इसलिये मैं दावा करता हूं कि उसमें मानव शरीर के लिये नुकसान देने वाला कोई रसायन शामिल नहीं होता।''

'' इसकी शुरुआत कैसे करनी पडती है?'' मुझे लगा कि प्रश्नों के बजाय मनीराम के सामने सीधा समर्पण कर दिया जाये तो शायद इस बहस का अंत हो जायेगा।
''
हमारा एक किट चार हजार छ: सौ रुपए का ही, इसमें हमारा प्रोडक्ट छोटी मात्रा में शामिल है।'' मनीराम ने गंभीरता से बताया।
''
तो ठीक है, आप एक पैकेट हमारे यहां रख जाइये।'' शुभा बिना हिचक बोली तो मैं चौंक गया। उसका इतनी जल्दी इस योजना से सहमत होना मुझे विस्मित कर रहा था।

'' देखिये पहले मैं आपको गाइड लाइन समझा दूं। आपको सबसे पहाले घर में बैठ कर एक सूची बनानी है, जिसमें आप उन लोगों के नाम लिखेंगे जिनसे आपका धंधा हो सकता है। इस सूची में आप फ्रैण्ड के नाम लिखेंगे।''
''
फ्रैण्ड यानि कि दोस्त लोग! ''
मनीराम मुस्कुराया - '' फ्रैण्ड मायने दोस्त भी, पर हमारे इस फ्रैण्ड में अंग्रेजी के फ्रैण्ड की स्पैलिंग का हर हिज्जा होता है। फ्रैण्ड के पूरे हिज्जे हैं - एफ, आर, आई, , एन, डी इसके हर हिज्जे से आपके इर्द गिर्द का हर वो आदमी आ जाता है, जो किसी न किसी कारण से आपसे जुडा है। एफ मायने फ्रैण्ड्स एण्ड फैमिली - दोस्त और परिवार के लोग। आर का अर्थ है रिलेटिव्स मायने रिश्तेदार। आय मायने इनर परसन, आपके वे परिचित जो आपके अत्यन्त निकट हैं। ई मायने एम्पलॉयी यानि की दूसरे विभाग के कर्मचारी गण। एन मायने नेबर यानि की आपके पडाैसी, और डी याने आपके डिपार्टमेन्टल कलीग्स। इस तरह आप यदि अपने आस पास के सब लोगों की सूची बना लेंगे, तो आपके हाथ में उन संभावित लोगों के नाम होंगे जो कि आपके काम में मददगार हो सकते हैं। इसमें से तमाम लोग ऐसे होंगे जो वितरक बन सकते हैं, और तमाम लोग ऐसे हो सकते हैं जो सिर्फ आपसे सामान लेकर इस्तेमाल करेंगे।

'' जाओ शुभा, चाय ले आओ। आगे की चर्चा हम चाय के बाद करेंगे। मनीराम जी ने हमको मंत्र पढ क़र मोहित सा कर दिया है, शायद चाय उस जादू को तोडेग़ी।'' मैं ने शुभा से चिरौरी की, तो वह प्रसन्न मन से उठी और भीतर चली गयी। अन्नपूर्णा भाभी झट से उठीं और वे भी उसके पीछे - पीछे भीतर जा पहुंची।

मनीराम ने बैग में से एक कैसेट निकाली और कहा - '' इसे सुनकर आपको ग्राहक को डील करने की टैक्नीक ही नहीं, इस तरह का काम करने वाले उन तमाम लोगों के विचार सुनने को मिलेंगे, पहले जिनमें से हर कोई या तो छोटा - मोटा दुकानदार था, या फिर छोटी - मोटी नौकरी करके अपना गुजारा किया करता था और वे सब इस कंपनी को जॉइन करने के बाद आज हर महीने लाखों में खेल रहे हैं''

फिर उसने वह सिस्टम समझाया जिसे अपना के हम भी लाखों में खेल सकते थे उसने बताया कि हमको पहले ऐसे आठ लोगों को टारगेट बना के काम शुरु करना है, जो एक्टिव हों और उनमें से हरेक आठ - आठ वितरक बना सके मनीराम की बातें बडी कर्षक थीं, उनमें मोहक तथ्य थे, और प्रमाणिक आंकडे भी, पर वह ऐसा प्लान था जिसे हजारों - लाखों में शायद कोई एक चल पाता था उस दिन हम लोगों ने विचार करने का समय मांगा और किसी तरह उन दोनों से मुक्ति पायी

आठ दिन बाद वर्मा भाभी एकाएक मेरे ऑफिस में आ धमकीं मैं उस दिन अपने डैवलपमेन्ट ऑफिसर के पास बैठा था उन्हें बैठा कर मैं ने मुस्कुराते हुए उनसे पूछा - '' कहिये भाभी जी, क्या हुकुम है?''
'' अपन लोग बाहर चल कर चाय पियें तो कैसा रहे? '' मैं तपाक से तैयार हो गया
गाडी स्टार्ट हुई तो अन्नपूर्णा भाभी फुर्ती से लपकीं और एक अभ्यस्त की तरह इत्मीनान से मेरे पीछे बैठ गयीं अब उनका चेहरा मेरे कान के पास था, इतने पास कि मुझे उनके बालों में लगे सुगंधित तेल और चेहरे पर लगायी गयी क्रीम की खुश्बू मेरे नासापुटों में प्रवेश कर रही थी उनके दायें हाथ ने मेरी कमर के गिर्द घेरा कसा तो मुझे लगा मेरी बाईक जमीन पर नहीं चल रही, आहिस्ता से जमीन से ऊपर उठी है और हम आसमान में कुलांचे भरने लगे हैं

हबल चाय पीते हुए भाभी ने बताया कि दिल्ली में जम्बो कम्पनी की एक दिवसीय सेमिनार है, इसमें जिस वितरक को जाना हो वह सोलह सौ रुपए का टिकट लेकर शामिल हो सकता है पता लगा कि वे खुद के साथ मेरा भी टिकट ले आयी हैं मैं ना नुकर करने वाला था कि वे बोलीं - '' दरअसल मनीराम जी के घर में गमी हो गयी है, सो वे नहीं जा पा रहे, इस कारण आपसे इसरार करने आयी हूं कि आप मेरे साथ चलें''
अब मैं भला मना भी कैसे कर सकता था! उन्हें विदा कर मैं कार्यालय लौटा तो मेरे मस्तिष्क में पुराना मुहावरा गूंज रहा था - अंधे के हाथ बटेर!

मैं ने अपनी जिन्दगी में अब तक बटेर नहीं देखी थी, आंख मूंद कर बटेर की कल्पना करने लगा जब भी मैं अपने स्मृतिफलक पर बटेर की छवि सृजित करने की कोशिश करता, मुझे हर बार वर्मा भाभी की सूरत याद आ जाती तो मैं अनाम और मीठी सी अनुभूतियों से भर उठता

घर पहुंचा, तो शुभा चाय पकडाते हुए बडे प्रसन्न मन से सुना रही थी- '' पता है, आज अपनी चिंकी की टीचर कुलकर्णी मैडम आयी थी पैरेन्ट टीचर मीटींग में तो वे प्राय: मिलती रहती हैं पर इस बार उनके आने की वजह वही जम्बो कम्पनी थी''
'' जम्बो कम्पनी?'' अब चौंकने की बारी मेरी थी

'' हां
'' मन्द मन्द मुस्काती शुभा रहस्य खोलने के अन्दाज में बोली - '' आजकल वे भी जम्बो कम्पनी का काम कर रही हैं बोल रहीं थीं कि इस काम से उन्हें हर महीने पांच हजार से ज्यादा अर्निंग हो जाती है''
'' हूं
'' एक गंभीर हुंकारा छोडक़र मैं ने उसे प्रोत्साहित किया
'' सुनो!  अपन लोग इस काम को काहे लटका रहे हैं? चलो अपन भी यह काम शुरु कर दें
'' उसके स्वर में बडा आत्मीय आग्रह झांक रहा था

मैं ने जम्बो कंपनी के काम से ही वर्मा भभी के साथ दिल्ली जाने की सूचना दी तो यकायक शुभा जिद करने लगी कि वह भी दिल्ली जाना चाहती है मेरी सारी उमंग समाप्त हो गयी लेकिन दिल्ली तो जाना ही पडा

अलबत्ता दिल्ली यात्रा में मुझे वो आनंद नहीं आया, जैसी कि मैं कल्पना कर रहा था हां, ग्राहक को डील करने की कला, नये प्रोडक्ट्स का परिचय और नयी स्कीमों के बारे में बहुत कुछ सीखने को मिला कुछ बातें ऐसी भी सीखने को मिलीं जो बीमा एजेंट होने के नाते मेरे जॉब के लिये लाभदायक हो सकती थीं

एक दिन रात आठ बजे मैं अपने एक पॉलिसी हॉल्डर से प्रीमियम लेने वर्मा जी के मोहल्ले की तरफ जा निकला और वहां से लौट ही रहा था ेल् अन्नपूर्णा भाभी से मिलने का मन हो आया वर्मा जी दरवाजा खोल कर बैठे थे और मेरी गाडी क़ो उन्होंने मनीराम की गाडी समझा पहले तो मायूस हुए फिर मुझे देख कर मुस्कुराये मैं ने भाभी के बारे में पूछा तो उन्होंने बताया कि सुबह से वे मनीराम के साथ गयी हैं, और अब तक लौटी नहीं हैं मैं ने दुखी से स्वर में उनसे कहा - '' इस तरह बिजनेस के लिये भाभी के प्राय: घर से बाहर रहने पर आपको दिक्कत तो होती होगी!''
'' अब भई तरक्की करना है, तो हमको कुछ न कुछ तो त्याग करना ही पडेग़ा न! ''
'' फिर भी घर के काम?''
'' घर के काम तो कैसे ही हो जाते हैं अमर भैया! इत्ती सी बात के लिये उन्हें घर में बन्द रखना उचित नहीं
मैं बेसिकली महिलाओं की स्वतन्त्रता का समर्थक हूं मेरे मतानुसार औरतों को रसोईघर से बाहर निकल कर काम धाम सीखना चाहिये इससे उनका इनडिवीज्यूअल डैवलपमेन्ट होता है, अभिव्यक्ति का मौका मिलता है, और घर के साथ साथ स्वयं वे आर्थिक रूप से स्वतन्त्र हो जाती हैं''
मन ही मन मैं ने कहा पिछले साल जब भाभी को बीमा एजेन्ट बनाने का प्रस्ताव रखा था तो आप कहते थे कि औरतों की सही जगह घर में है, उन्हें घर में ही रहना चाहिये! और अगर जॉब करना ही है तो किसी कॉनवेन्ट में टीचरशिप वगैरह मिल जाये तो वह कर लेना ठीक रहता है
किन्तु प्रत्यक्षत: मैं ने यही कहा, '' हां, अभिव्यक्ति का मौका और आर्थिक स्वतन्त्रता तो मिलती है!''

'' कहिये आप कैसे पधारे?'' वर्मा जी ने सहसा मुझे सकते की स्थिति में डाल दिया था।
''
मैं दरअसल'' कहते हुए कुछ अटकने लगा तो यकायक याद आया और मैंने बेधडक़ उनसे कह डाला, '' उस दिन भाभी ने कहा था कि जम्बो कंपनी का रीजनल स्टोर आपके घर में है, सो मैं टूथपेस्ट और नाइटक्रीम लेने आया था।''
मेरा इतना कहना था कि अब तक उदास और अलसाये बैठे वर्मा में यकायक फुर्ती आ गयी, वे उठे और बैठक में अस्तव्यस्त रखे कार्टन्स में मेरी मांगी गयी चीजें तलाश करने लगे।

मैं ने उडती नजर से देखा वर्मा जी के घर में बैठक ही नहीं, स्टोर, किचन और यहां तक कि बेडरूम में भी यानि कि हर जगह अन्नपूर्णा भाभी की कंपनी की चीजें बिखरी पडी थीं लग रहा था कि इस नयी तरक्की यानि भूमण्डलीकरण के इस नये दौर में बहुत कुछ बदला है जिस चीज क़े लिये जो जगह निश्चित की गयी है, अब वो केवल वहीं नहीं मिलती, सब जगह मिल जाती है!  चीजें तेजी से अपनी जगह बदल रही हैं! बाजार केवल बाजार तक सीमित नहीं रह गया! अब वर्मा जी जैसे कई घरों में बाजार स्वयं घुस आया है - अपने पूरे संस्कार, आचरण, आदतों और बुराइयों के साथ!

घर लौटते वक्त मैं मन ही मन तरक्की के लाभ - हानि का बहीखाता तैयार कर रहा था, जिसमें मैं और मेरी पत्नी शुभा भी शायद अपनी प्रविष्टि के लिये आतुर थे

राजनारायण बोहरे
सितम्बर 28, 2004

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