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कोई मजहब क़ोई कानून नहीं कोंचई गुरू को 'केसीना' गिफ्ट में मिला था वही इस समय 'सी बीच' लैण्ड करते हुए एक पेड क़ी 'वी' शक्ल की शाखा पर फंस गया था... उसे उतारना समस्या हो गई थी क़ोंचई गुरू उसे उस बच्चे की तरह देख रहे थे जिसका चन्द्र खिलौना उसकी पहुंच से बाहर हो क़ोंचई बच्चे ही तो हैं... कोंचई गुरू से मेरी मोहब्बत उतनी ही पुरानी है जितनी उनकी डेट ऑफ बर्थ ज़ो लोग मुझे और गुरू को जानते हैं उन्हें इस रिश्ते की मासूमियत पता है ज़िन्हें कुछ नहीं मालूम उनके लिए थोडा - सा इण्ट्रोडॅक्शन जरूरी है.... . . कोंचई तब चार साल के थे और उन चार सालों में धीर्रे धीरे मेरे दीवाने हो गए थे मोहब्बत की यह बेल अचानक ही नहीं फैल गई थी इसमें वक्त लगा था मगर सब कुछ इस तरह हुआ कि कोंचई तो कोंचई मैं भी समझ नहीं पाया कि कब वो मोहब्बत परवान चढ ग़ई जिसकी भनक तक हमको नहीं मिली वो तो जब हालत बदतर हो गई तो मुझे ही किसी धोखेबाज आशिक का नाटक करते हुए उनसे कटना पडा.... होता यह था कि मेरे पास जब भी समय होता मैं उनके पास पहुंच जाता ज़ब बहुत छोटे यानी कि गोद में लेने लायक हुए तो उन्हें गोद में लेता मेरी बांहों के घेरे में उन्हें अपनी कायनात नजर आती देखते ही बांहों में समाने की कोशिश मैं उन्हें चूमता क़ुछ दिनों बाद वो मुझे चूमने लगे ज़ब थोडा बडे हुए तो मैं उन्हें कोई खिलौना या चॉकलेट देता और वो मेरे हो जाते मैं उन्हें कोंचई कहता क़ुछ दिनों बाद वे मुझे कोंचई कहने लगे दो - ढाई साल के रहे होंगे जब एक दिन बिना कुछ लिए उनसे मिलने पहुंच गया तो देखते ही बोले '' क़ोंचई गुरू ख़ाली हाथ चले आए...?'' झेंर्प सी लगी और बहाना बनाना पडा कि इधर से कहीं और जा रहा था बस तुम्हारी याद आ गई तो गाडी पॉर्क कर दी हालांकि उनके प्रश्न ने अटपटी हालत में डाल दिया था चॉकलेट टॉफी या खिलौने सबकुछ तो उस बिल्डिंग के सुपर मॉर्केट में मिलता ही था जिस बिल्डिंग में उनका फ्लैट था उसी में क्यों सुपरमार्केट या ग्रॉसरी तो हर बिेल्डिंग में थी और बच्चों के लायक कोई न कोई चीज वहां से खरीदी जा सकती थी उस वाकये के बाद मैंने ध्यान रखना शुरू कर दिया मैं भूल भी जाता तो बीवी याद रखती थी उनकी बिल्डिंग में घुसने से पहले वह कहती ''यहीं खडे रहें क़ोंचई के लिए कुछ लेकर आती हूं....'' वह सुपर मार्केट में घुस जाती.... कुछ वर्षों तक तो यह सब अच्छा - अच्छा लगता रहा मगर बाद में कोंचई मेरा साथ पाने के लिए इतने उतावले होते गए कि अपने मर्म्मी पापा को ही नहीं अपनी कार को भी इग्नोर करने लगे उन्हें अपनी मम्मी से ज्यादा मेरी बीवी यानी कि आण्टी और अपनी सुजुकी वैलिनो से अधिक मेरी निसान सनी पसंद आने लगी... जब भी मन करता फ़ोन करते '' क़ोंचई गुरू क़हां हैं आप...?'' ''घर में हूं...'' ''चले आइए...'' ''कहां....?'' ''कहां क्या...?मेरे घर...'' ''क्यों . . .?'' ''बन रही है...'' ''क्या . . .?'' ''चाय....और क्या....'' ''अभीर् अभी तो पी है....'' ''चाय के लिए भी कोई कभी मना करता है....? आइए जल्दी...हां और सुनिए...आण्टी को भी ले आइए...और उनसे कहिए कि वो जो नीली वाली सारी मेरे जन्मदिन पर पहनी थीं.... . .वही पहनकर आएं...उसमें खूब जानदार लगती हैं.... '' मैं उनकी जिद रखता मगर मेरे लिए यह ठनकने की वजह बनी कि जो हो रहा है वह अच्छा नहीं हो रहा और तो और मुझसे अलग होते हुए गुरू रोने भी लगे थे हर बार यह स्थिति मुझे झकझोर डालती थी मुझे लगा कि अगर ऐसा ही होता रहा और लृकहीं मेरा आर्ना जाना या मिलना कम हो गया तो कोंचई निश्चित बीमार हो जाएंगे क़ई बच्चों के साथ ऐसा होते देखा था 'मोह' के शिकार हुए बच्चे भीतर ही भीतर किसी आशिक की तरह घुटने लगते हैं मैंने बहुत सोचकर कठोर निर्णय लिया और घुटने वाले आशिक की भूमिका को अपनाते हुए एक दिन उनसे साफर् साफ कहा '' ग़ुरू अगर यह रोने का सीन रिपीट हुआ तो अपनी दोस्ती और मोहब्बत खत्म न मैं कभी तुम्हारे पास आऊंगा और न कभी तुम्हें अपने घर बुलाऊंगा मैं तुमसे फिर कभी नहीं मिलूंगा...'' क़ोंचई गुरू भौंचक देखते रह गए उन्हें अपने कानों पर शायद यकीन नहीं हुआ मगर वो दिन और आज का दिन ग़ुरू फिर कभी अलग होते हुए नहीं रोए 'बॉय' कहते हुए और बेबस मुस्कान के साथ अलग हुए... उनसे अलग होते हुए दिल तो मेरा भी ऐंठकर रह गया मगर इसके अलावा कोई चारा नहीं था... उनके पापा ने मुझे उस दिन कई बार फोन किया कि गुरू बहुत अनमने हैं मैंने जवाब दिया '' रहने दो...हमेशा के लिए उन्हें खुश देखना है तो आज उदास ही रहने दो...आज अगर उनका फोन भी आया तो मैं रिसीव नहीं करूंगा...'' हालांकि मैं दिनभर उनके फोन का इंतजार करता रहा मगर गुरू ने फोन नहीं किया चोट मुझे भी लगी...अनमना मैं भी रहा उसी दिन नहीं क़ई दिनों तक क़ोंचई गुरू को भी बुखार हो गया था दो दिन तपे थे ज्वर में... तब वे लगभग चार वर्ष के ही थे जब ऐसे तटस्थ रिश्ते की शुर आत हुई.... . और अब उनका संक्षिप्त परिचयः नामः शरद चतुर्वेदी अवस्था और कदो काठीः सात वर्ष रंग गोरा शरीर मंझोला दिखने में स्वस्थ मगर हर दस दिन पर सर्र्दी खांसी या फिर किसी अन्य शारीरिक मसले से जूझते हुए ड़ॉक्टरों के पास जाने का उनका सिलसिला पुराना है मौसम की नजर या अपनों की नजर उन्हें बहुत जल्द लग जाती है ग़्रेड तीन में पढते हैं...इन सबके बावजूद स्कूल के हर सांस्कृतिक कार्यक्रम में सक्रिय भागीदारी.... . . .क़ोई न कोई ऐक्टिव रोल...माइकेल जैक्सन बनना पडे या अदनान सामी पिछले साल तो कोंचई गुरू ने गांधी जयंती के उत्सव में कस्तूरबा का रोल ऐसा किया कि ऑडिटोरियम की दीवारों से भी तालियों की गूंज गडग़डाती रही ग़ुरू को जो भी रोल मिलता है उसे न केवल बखूबी निभाते हैं बल्कि ईनाम भी पाते हैं स्क़ूल से अलग पार्पामम्मी से अलग अपने चाहने वालों यानी कि मुझ जैसों से अलग.... सामाजिक हैसियतः मेरे सहकर्मी के इकलौते पुत्र हैं.... हमारा परिवेश मध्यवर्गीय है... जिस दिन पैदा हुए थे मैं उन्हें देखने अस्पताल गया था उनके लाल - लाल गालों को छूते हुए ग़ोद में उठाने की हिम्मत मेरी नहीं हुई थी अब भी किसी नवजात को गोद में लेने की हिम्मत नहीं होती मैंने कहा था '' क़ा हो गुरू कोंचई.... . . . .क़इसी लग रही है ये दुनिया ? '' स्टॉफ के कुछ और लोग भी सपरिवार वहां थे सबने सुना और तबसे गुरू का यही नाम पुकारने का हो गया अद्भुत् नामकरण बिना किसी योजना के आज शरद के नाम से भले ही स्कूल में उनकी पहचान हो मगर अपने दायरे में जो कि हर हाल में फिलहाल तो उनके मर्म्मी पापा का ही है उसमें गुरू 'क़ोंचई गुरू' के नाम से ही जाने जाते हैं ज़ाने क्या जाते हैं मशहूर हैं.... . उनकी सबसे बडी ख़ासियत है कि किसी को एक वाक्य में कैसे खुश किया जाए मसलन अगर वो मुझसे मिलेंगे तो कहेंगे ''कोंचई गुरू क्या बात है ? कल जब आप फोन पर मुझसे बातें कर रहे थे तो बहुत खांस रहे थे...ग़ला खराब है न...?'' ''हां....'' ''सिगरेट छोडिए.... समझे कुछ...? हमेशा सिगरेट.... ठीक नहीं यह...?'' ''हां समझा...'' ''रात को थोडी सी लिए या नहीं...'' ''क्या...?'' '' वही...दवाई...अरे ब्राण्डी...और क्या ? '' ''नहीं...'' ''क्यों...?'' ''थी ही नहीं घर में...'' ''तो हमारे घर आ जाते...हमारे घर में तो है...क़ल आकर ले लिए होते तो अब तक ठीक हो गए होते...आज आइएगा....समझे...? और ले लीजिएगा...अपना खयाल भी ठीक से रखना नहीं जानते.... .'' मेरी बीवी को देखते ही कुछ न कुछ ऐसा कह देंगे कि मेरा उसके प्रति बाईस सालों में किर्या धरा सब एक पल में व्यर्थ हो जाएगा ज़ैसे '' आंटी...आज तो क्या कहने...बहुत जम रही हैं...ये नेकलेस तो कमाल का है...और ये सारी...वाह क्या बात है...ज़म रही हैं...मेरी मम्मी तो कुछ समझती ही नहीं कि क्या पहनना चाहिए और क्या नहीं...'' गुरू की बात सुनकर बीवी मेरी ओर इस भाव से देखती है जैसे कह रही हो '' यह बात आप नहीं कह सकते थे ? आप कैसे कहते...? कोंचई के पास जो सौन्दर्र्य बोध है उससे आप अछूते हैं...'' बीवी के ऐसे तानों के वक्त वे मुझे सबसे बडे दुश्मन नजर आते हैं . . . हद तो तब हो जाती है जब मैं उनकी याददाश्त का शिकार होता हूं एक बार माथे पर बल डालते हुए बोले ''अंकल आंटी ने ये सारी....मेरे पिछले के पिछले 'बड्डे' पर पहनी थी याद है.... उस दिन भी क्या जम रही थीं ना...?और आज तो पूछिए मत...'' मैं चौंका बीवी भी.... ''पता नहीं...याद नहीं...'' मैंने कहा और कोंचई सब कुछ छोर्डछाडक़र वो अलबम निकालने में जुट गए जिसमें उनके पिछले के पिछले बर्थ डे की तस्वीरें थीं उन्होंने अपने को सही साबित कर दिया ग़नीमत थी कि उस दिन उनका जन्मदिन नहीं था और मेरे परिवार के अलावा दूसरे मेहमान नहीं थे वरना बीवी को लगता कि गुरू ने सरे बाजार उसकी आर्थिक हैसियत की कलई खोल दी है लेकिन चूंकि उस समय हम वहां अकेले थे तो हममें से किसी ने इस दिशा में सोचा ही नहीं कि कोंचई ने जो कहा उसका व्यंजनात्मक और लाक्षणिक अर्थ क्या है कि आण्टी ने पुरानी सारी पहनी है... बीवी ने मुझसे कहा कुछ नहीं लेकिन मुझे देखा जरूर वह भी कुछ इन शब्दों में कि आपको तो यह भी याद नहीं रहता कि मैंने 'कल' क्या पहना था... अब मैं क्या करूं मैं उससे कैसे कहूं कि तुम्हारा कुछ पहनना मुझे क्यों याद रहे . . . . .क्या करूं....बीवी का रोजनामचा बनाऊं...क़ोंचई मुझसे आखिर क्या चाहते हैं.... और गुरू की मम्मी ''हाय देखो तो इसे...अभी से कैसा पटर्रपटर करता है...बीवी आ जाएगी तो उसके आगे तो हरदम मुझे बेइज्ज़त करेगा...दस सारियां निकलवाता है और तब छांटकर कोई एक पहनने की जिद करता है...'' ग़ुरू मुस्कराते हैं ऑखों में... जब अलाउद्दीन सर से मिलेंगे तो '' आपकी टोयोटा कैमरी...क्या कार है... '' और जब जवाहरलाल सर से तो '' आपके घर आके तो मजा ही आ गया...ख़ाना तो आण्टी ने इतना अच्छा बनाया है कि बस खाते ही चले जाओ...'' जवाहरलाल सर ने ही उन्हें 'केसीना' प्लेन पिछली रात गिफ्ट किया था बिना उसके मैनुअल को पढे ग़ुरू के पापा और गुरू उसे उडाने की कोशिश फ्लैट के भीतर कर रहे थे और जहाज धरती नहीं छोड रहा था... बापर् बेटे की संयुक्त असफल कोशिश के बीच मैं पत्नी और एक मित्र परिवार के साथ गुरू के फ्लैट पर पहुंचा था मिर्त्रपरिवार को भी कभी मैंने ही उनसे परिचित कराया था तीन दिन की छुट्टियां थीं उन्हीं में मित्र डेढ सौ किलोमीटर दूर से सपत्नीक आया आने से पहले उसने कोंचई गुरू को सूचना दे दी थी और कोंचई गुरू ने उसे अपने लहजे में आमंत्रण भी दिया था '' यहां आकर अगर मुझसे बिना मिले चले गए तो फिर आप मुझे मनाते रह जाएंगे...'' मिर्त्रपरिवार आया तो मेरे घर था मगर बेचैन कोंचई गुरू से मिलने के लिए था ज़ब हम गुरू के फ्लैट पर पहुंचे तो वे अपने पापा के साथ जहाज उडाने की कोशिश में लगे थे मित्र ने उनकी कोशिश को बीच में ही रोककर 'केसीना' का लिटरेचर पढने के बाद बताया कि जहाज खुले स्थान पर हजार फीट तक एक मिनट उडेग़ा ऐसा करने के लिए इसे एक मिनट तक पहले चार्ज करना होगा आर्सपास पेड भी नहीं होने चाहिए... गुरू तुरंत बोले '' मैं तबसे सोच रहा हूं कि जहाज घर में कैसे उडेग़ा.... .पापा से भी कह रहा हूं.... मैनुअल पढिए पहले.... . . सुनते ही नहीं...अब चलिए 'बीच'...वहीं उडाकर देखते हैं....चलिए उठिए....'' ताज्ज़ुब की बात क़ि बात करने का यह ढंग उन्हें किसी ने सिखाया नहीं है न उनकी बातें दादी अम्मां के अन्दाज क़ी होती हैं और न वह बिगडे बच्चों की तरह दिखते हैं क़ुछ अलग बात ही दिखती है उनमें हर बात त्वरित और प्रत्युत्पन्नमति की उपज जैसी.... . गुरू के प्रपोजल पर ध्यान देना ही था मेरे दोनो बेटे और मित्र का एक बेटा तीनों उच्च शिक्षा के लिए हिन्दुस्तान में थे ज़बसे बच्चे हिन्दुस्तान चले गए हम गुरू में ही अपने बच्चों का बचपन कुछ ज्यादा ही देखने लगे थे... एक एक कप चाय के प्याले के बाद हम सब 'बीच' पर जाने के लिए निकले ग़ुरू मेरी ही कार में बैठे उनकी उत्सुकता आसमान छू रही थी ''अंकल ये उडेग़ा न...अ...?'' ''साला उडेग़ा कैसे नहीं ? नहीं उडेग़ा तो इसे ही उडा देंगे....'' ''आप आतंकवादी हैं....?'' ''पागले हो का गुरू ? '' ''क्या हुआ ?'' कोंचई गुरू ने पूछा ''कुछ नहीं...'' मैंने उन्हें आतंकवादी की ओर नहीं खींचा क़हीं उलटी - सीधी जगह पर अगर ऐसे ही बोल देंगे तो जितने कानून मीसा ड़ी आई आर टॉडा और पोटा नाम के बने और बिगडे हैं सब लग जाएंगे क़ोंचई गुरू इलेक्ट्रॉनिक युग की पैदाईश हैं हर रोज टी वी न्यूज में 'हिजबुल अंसार' 'लश्करे तोय्यबा' 'हम्माज' और माओवादी टेरिरिस्टों की वारदातें सुनते हैं.... 'बीच' पर हमेशा छुट्टी के दिन र्कीसी रौनक थी भीड बहुत थी हज़ारों की संख्या में औरर्तमर्द और बच्चे एशियन अफ्रीकन और यूरोपियन परिवार उनके बीच अरबी परिवार अलग से दिख जाते थे मर्द ड़िशर् डॉश ह्य मर्दों का राष्ट्रीय पहनावाऊ और औरतें अबाए ह्य बोरके ऊ में दोनों ही सिर से पांव तक ढंके - ढंके सैकडों की संख्या में फिलीपीनी लेबनानी सीरियन फ़िलीस्तीनी और यूरोपियन युवतियां थीं जो स्वीमिंग कॉस्टयूम्स में नहा रही थी घूम रही थीं या अलमर्स्तसी अपने लार्ललाल या बादामी गोरे जिस्म पर कोई तेल मलने के बाद धूप में लेटी थीं पाकिस्तानी पठान और एशियन देशों के मजदूर हमेशा की तरह इन अधनंगी औरतों को घूरते हुए उनके बहुत पास से गुजर रहे थे क्या करें बेचारे ? बीवी लाकर साथ रखने की औकात नहीं है वेतन कम है फ़ेमिली वीजा मिल नहीं सकता और छुट्टी वह तो बरसों मिलती नहीं औरत की देह को छूकर देखे जमाना हुआ और वेश्यालयों में बिना पैसे दिए औरत छूने को तो क्या देखने को भी नहीं मिलेगी फ़िर जहां पेट की भूख से निपटने का जरिया न हो वहां वासना की भूख का क्या हो ? हर छुट्टी के दिन समुद्र के किनारे आ धमकते हैं सौ दो सौ किलोमीटर दूर से भी 'बीच' पर एक नहीं हजारों औरतें दिख जाती हैं मन लहूलुहान भले ही हो जाता हो मगर आंखों को ठंडक पहुंचती है र्दोचार इंच कपडे ज़ो इन औरतों के जिस्मों पर होते हैं देह के भूखे उनके पार तक देख लेते हैं.... बडी मुश्किल से पॉर्किंग मिली हवा तेज थी समुद्र की लहरें फेन उगलती दूर तक बाहर निकलकर लौर्टलौट जातीं रेत का एक बडा भाग भीगर्तासूखता हुआ एर्कसी नियति को सह रहा था... मित्र ने चार्जर से 'केसीना' को एक मिनट तक चार्ज किया और फिर उसे कंधे से ऊपर तक हाथ ले जाकर बिना हवा के रूख का खयाल किए छोड दिया ज़हाज उडा मगर तीस फिट से ऊपर नहीं गया वह ऊपर से नीचे की ओर नोर्जडॉयविंग के अन्दाज में तेजी से आया और एक अधनंगी फिलीस्तीनी युवती के पेट में उसने नाक गडा दी युवती चौंककर बहुत तेज चीखी मगर उसने बुरा नहीं माना आर्सपास के लोग चौंककर उधर देखने लगे 'क़ेसीना' उसके पास ही रेत पर उलटा गिरा पडा था क़ोंचई गुरू उसे लाने दौडे .युवती ने उन्हें झपटकर आते देखा तो 'केसीना' उठाकर गोद में संभाल लिया क़ोंचई उसके पास अपनी मासूमियत के साथ खडे हुए तो उसने कोंचई को चूम लिया ऐसे मौकों पर कोंचई कभी पीछे नहीं रहते उन्होंने भी उसके गाल चूमें और अपना जहाज लिए खुर्शीखुशी लौटे... अबतक आर्सपास के लोगों में 'केसीना' ने उत्सुकता जगा दी थी पास जो लोग थे वे तो देख ही रहे थे दूर खडे लोग भी उत्सुक हो चुके थे शायद अनुमान लगा रहे थे कि अबकी बार किस तरह उडेग़ा...क़हां लैण्ड करेगा...आदि आदि... 'केसीना' को फिर चार्ज किया गया और इसबार कोंचई के पापा ने उसे हवा के रूख की दिशा में उचककर छोडा 'क़ेसीना' को सही लांचिग मिली और उसने एक सही टेक ऑफ लिया और जूं....ऊं...ऊं....क़ी आवाज क़े साथ करीब सौ फिट तक 60 डिग्री का कोण बनाता हुआ ऊपर गया और फिर पिछली बार की तरह नोर्जड़ॉयविंग के अन्दाज में उसी आवाज क़े साथ नीचे की ओर तूफानी गति से चला लेकिन जमीन तक नहीं आया वह फिर टेर्कऑफ लेने की मुद्रा में पचास फिट तक ऊपर गया और फिर नीचे उस दिशा में जिधर कार पॉर्किंग एरिया थी क़ी ओर जब चला तो उसके रास्ते में पेड आ गया और वह करीब पचीस फिट ऊंचे पेड क़ी पुलईं ह्य फुनगी हृपर लैण्ड करते हुए शाखाओं के बीच फंस गया.... पेड बहुत ऊंचा नहीं था किन्तु कंटीली झाडियों वाला होने के कारण उसपर चढ पाना हममें से किसी के लिए सम्भव नहीं था क़ोंचई की कार की डिकी में बैट बॉल और विकेट भी पडे थे विकिटों को निकाला गया और फिर नीचे से ही 'केसीना 'पर निशाना लगाया जाने लगा वह कुछ ऐसी स्थिति में फंसा था कि उसे लक्ष्य करके मारी गई विकेट वहां तक पहुंचती ही नहीं थी क़ई बार प्रयास करने के कारण हम सबके कंधों में चिलक भी होने लगी... आर्सपास के लोग हमारी कोशिशों को देख रहे थे क़ोंचई की निराशा बढ रही थी मित्र ने पेड पर चढने की कोशिश की किन्तु वह यह कहते हुए हार मान बैठा ''बचपन और जवानी की बात और थी...इससे भी ऊंचे पेड पर फटाफट चढ ज़ाते थे मगर अब सम्भव नहीं...'' पेड पर अब भी विकेट या किसी लकडी क़े डण्डे से 'केसीना' पर निशाना लगाने की असफल कोशिशें जारी थीं सबका खयाल था कि यदि विकेट या डण्डा केवल छू भी गया तो वह नीचे आ जाएगा... लेकिन सवाल था कि डण्डा उससे छुए कैसे ? जब लगेगा तभी न छुएगा... इसके अलावा कई तरह के डर भी थे... डर यह था कि विकेट से किसी को चोट न लग जाए हालांकि आर्सपास के मर्र्दऔरत सभी सजग थे ड़र यह भी था कि विकेट या डण्डा अगर सधे अंदाज में हाथ से न निकला और किसी की कार पर जा गिरा तो फिर दूसरा सिरदर्द . . .
एक डर और था
और
हर डर से बडा था पेड पर विकिटें ड़ण्डे और पत्थर चलाने से पेड क़ी पत्तियां
और उसकी कोमल शाखाएं टूटकर नीचे गिर रही थीं अगर कहीं पुलिस की नजर पड ग़ई तो
हरियाली को नष्ट करने के आरोप में सीधे जालीवाली उस वैन में बिठा लेगी जिसमें
अपराधी थाने या जेल ले जाए जाते हैं पुलिस की कार भी तो हर दो पलों पर दिख
जाती है पेड के साथ किसी भी तरह की हिंसा सरकार को बरदाश्त नहीं उस अरबी
महिला का केस तो सबकी जबान पर है बेचारी ही होकर रह गई थी सारे दिन थाने
में क़सूर....
. . . . . . .उसका कसूर सिर्फ
इतना
था कि उसने खजूर के फलों का एक झोंपा काटा और काटते समय उसे पुलिस के एक सिपाही
ने देख लिया उस अरबी महिला का खाविन्द भी पुलिस अधिकारी था मगर वतनी
होने के बावजूद वह अपनी वतनी बीवी के लिए कुछ नहीं कर पाया उसकी बीवी को
दिनभर थाने में रहना पडा और शाम को लिखित माफीनामा देना पडा कि भविष्य में वह
किसी पेड क़े साथ ऐसा नहीं करेगी ख़जूर खाने पर पाबन्दी नहीं है ज़ितना
खाना हो ख़ाइए मगर पेड क़ो नुकसान न पहुंचाइए वह वतनी महिला तो शायद
ताजिन्दगी किसी पेड
के
पास से ही न
गुजरे....
जाहिर है कि
उसका मकसद 'केसीना'
को नीचे लाना था उसे तोडना नहीं... ''वालेकूम असल्लाम...क़ेफत आल...सब तीक तो अय ?'' दोनों पुलिसवाले सूडानी थे और उनका 'तीक अय' सुनकर लगा कि उन्हें हिन्दी थोर्डीथोडी तो आती ही है मगर कोंचईं गुरू अरबी में ही बोले ''ठीक कुछ भी नहीं है...वो देखिए....मेरा तैयाराह्य हवाई जहाजहृ पेड पर फंसा हुआ है...'' '' तो इतर्नीसी बात है...अबी इसको लाता...'' हमें कोंचई गुरू की अरबी भाषा और बुध्दि के व्यावहारिक प्रयोग पर हैरत हुई पुलिस के नाम पर जहां सबकी हालत पतली हो जाती है वहीं कोंचई गुरू ने आगे बढक़र मामले को सीधे अपने हाथ में ले लिया था दोनों पुलिसवालों ने हमारे हाथों से एर्कएक विकेट ले लीं वे 'केसीना' पर निशाना लगाने लगे मगर वह ऐसी जगह जा फंसा था जहां तक विकेट पहुंचने से पहले ही शाखाओं से टकराकर गिर पडता था या खुद ही पेड क़ी झाडियों में फंस जाता था तब उसे उतारने की कवायद शुरू हो जाती थी पुलिस वालों के भी इस खेल में शामिल हो जाने से आर्सपास और भीड ज़ुड आई थी भीड तो 'बीच' पर पहले से ही थी सैकडों लोग और करीब आकर यह तमाशा देखने लगे थे यह अच्छा - खासा तमाशा हो तो गया था मगर डर भी लगा कि कहीं यह घटना कल के अखबार की खबर न बन जाए इस छोटे से देश में कुछ भी हो सकता है अखबारवाले भी तो सूंघते हुए आजकल हर जगह भेस बदलकर पडे रहते हैं लगेगा कि पिनक में मस्त कोई मजनू के टीले पर है मगर उसी मदहोशी में हिडेन कैमरा लिए वह अपना काम कर गुजरेगा...
मगर
पुलिसवालों को कौन मना करता उनके निशाने से भी शाखाएं टूट रही थीं और पत्ते झड
रहे थे एक बार उनमें से किसी का निशाना ठीक
'केसीना'
के बीचोबीच लगा और उसके पेट पर विकेट की नोक कुछ इसतरह लगी कि
वहां एक बडा - सा छेद हो गया लेकिन 'केसीना'
वह गिरा फिर भी नहीं 'क़ेसीना'
के पेट में हुआ छेद पुलिसवालों को भी दिखा और लगा कि वे भी
नेलशन की तरह अपराधबोध से ग्रस्त हुए पुलिसवालों ने बेचारगी की मुद्रा में कोंचई
गुरू से कहा '' अबी...यू
तराई...''
और
वे अपनी कार
की ओर बढ चले वैसे भी जहां उन्होंने बीच सडक़ पर कार पॉर्क की थी उसके पीछे
लम्बी कतार लग चुकी थी सभी अपनी कारों का हजार्ड बटन ऑन करके खडे थे
क़िसकी हिम्मत थी कि वह पुलिस की कार को हॉर्न देता। तभी.... पुलिस वालों के जाते ही पठानी कुर्ता पायजामा पहने एक आदमी आगे कूद पडा वह भी भीड में खडा अन्य लोगों की तरह इस प्रकरण को देख रहा था मगर पुलिसवालों के सामने उसे अपनी कला दिखाने की हिम्मत शायद नहीं पडी थी उसने कोंचई को देखा और कहा '' सबर.... . . फ़िकर नईं...मैं लाता तैय्यारा...'' वह पेड पर चढने की कोशिश करने लगा उसकी अवस्था भी पचास से कम नहीं थी मगर मजबूत हड्डियों वाले उस पठान की कोशिश नौजवानों जैसी नहीं बल्कि बच्चों जैसी अबोध थी कि किसी भी दुर्घटना से कुछ फर्क नहीं पडता हमें डर भी लगा कि कहीं यह पेड पर चढने की कोशिश में गिर कर घायल गया तो अनायास मुसीबत खडी हो जाएगी क़ंटीली झाडियां उसे आगे बढने से रोक नहीं पाईं उसकी देह और बाहें कांटों से छिदती रहीं मगर वह फुनगी तक पहुंच गया दुर्घटनाग्रस्त और टूट गए 'केसीना' को अपने कब्ज़े में करके वह सभंलकर नीचे उतरा और उसे कोंचई को थमाया इस खुशी के साथ कि लो तुम्हारी चाहत और खुशी ले आया क़ोंचई गुरू ने कहा ''शुक्रिया....'' पठान ज्यादा खुश था कि कोंचई बताना मुश्किल था यह सब जो कुछ हुआ उसमें तो कुछ भी अप्रत्याशित नहीं था सिवाय इसके कि पुलिसवाले भी एक बच्चे की भावनाओं की कद्र कर बैठे और कानून तक उनकी विस्मृति का हिस्सा बन बैठा वरना इस देश में पेड क़ी एक पत्ती तक तोडना दण्डनीय अपराध है अप्रत्याशित तो तब हुआ जब 'केसीना' कोंचई गुरू के हाथों में आ चुका था... फ्रेंर्चकट दाढी और लम्बे बालों वालों वाला एक युवक जो सिर्फ हॉफपैण्ट में था क़ोंचई गुरू के पास आकर बोला '' बहुत देर से देख रहा था...परेशान हो रहे हैं जनाब...ये मुझे दें...मैं बना दूंगा.... . . आएं मेरे साथ....'' क़ोंचई ने 'केसीना' उसे थमा दिया और उसके पीछे पीछे चल पडे .हम सबको कोंचई के पीछे चलना पडा । युवक कार पॉर्किंग एरिया में आया और उसने अपनी कार की डिकी खोली उसने जो कुछ डिकी में से बाहर निकाला उसे देखकर यही लगा कि उसने कोई रहस्यमयी पिटारा खोला हो... टूल -बॉक्स में तरह - तरह के औंजारों के अलावा कैची क़टर और कई तरह के ग्लू.... . . सुपर ग्लू अलग से.... . . '' अरे वाह...आपके पास तो कितना सामान है...?'' '' हां मैं मेकेनिक हूं....मेरा गेराज भी है...यह सब मुझे रखना पडता है...टूर्टीफूटी चीजें बनाता हूं....'' ''आप मेरा 'केसीना' बना देंगे ?'' ''कोशिश करूंगा...'' सबसे पहले उसने 'केसीना' की पूंछ जोडी . क़ाबिलेतारीफ उसका मनोयोग था क़िसी ग्लू से 'केसीना' को जोडने की औपचारिकता कोई भी निभा सकता था मगर वह युवक औपचारिकता नहीं निभा रहा था वह पूंछ को उसी तरह जोडना चाहता था जैसी वह टूटने के पहले थी अपने काम में दत्तचित्त लगा हुआ वह केवल कोंचईं से बात कर रहा था '' आप मदरसे में पढते हैं...?'' ''हां पढता हूं....'' ''किस जमात में ?'' ''मैं किसी जमात में नहीं पढता....नमाजी नहीं हूं...ज़मात तो मॉस्क में अजान के बाद होती है जब सभी मुसलमान नमाज पढने के लिए भागते हैं....मैं तो थर्ड स्टैण्डर्ड में पढता हूं....'' ''साथ साथ इकट्ठा होना जमात में होना होता है....नमाज पढना नहीं....यह किसी ने नहीं बताया आपको...?'' '' आपने ही अभी बताया...'' ''तो मैं भी आज से आपका उस्ताद हुआ...'' ''आप तो सचमुच उस्ताद हैं...'' ''आपका नाम ?'' ''मेरा कोंचई...क़ोंचई गुरू....'' ''यह तो अजीब सा नाम है...है न ?'' '' हां...लेकिन स्कूल में नाम शरद है...शरद चतुर्वेदी...आपका नाम क्या है ?'' '' शौकत....शौकत लाहौरी...ये बताएं कि अगर आपका जहाज नहीं उडा तो इसका क्या करेंगे...अभी इसे ठीक से सूखने दें...?'' शौकत ने 'केसीना' के पेट में हुए छेद को जोडने के बाद उसे कोंचई को थमाते हुए प्ूछा... ''अंकल अगर ये नहीं उडा तो भी मैं इसे कचरे में नहीं फेकूंगा...इसे देखने पर मुझे आप याद आएंगे...और मैं आपको भूलना नहीं चाहूंगा...थैंक्यू अंकल...'' क़ोंचई को मुस्कराता छोड शौकत लाहौरी नामका युवक फिर सागर की लहरों में नहाने के लिए बढ लिया न जाने कोंचई के मार्तापिता या मित्रर् परिवार क्या सोच रहा था मगर मैं यह जरूर सोच रहा था कि नेलशन पुलिसवालों और शौकत लाहौरी से व्यवहारिक होने का गुर कोंचई को कहां से मिला कि मजहब और कानून तक कुछ समय के लिए अपनी उपस्थिति खो बैठा क्या बच्चे की मुस्कान और सुख के सामने दुनिया का सब कुछ बौना है ? मैंने मन ही मन कहा धन्य हो कोंचई.... . नहीं क़ोंचई गुरू....
कृष्ण बिहारी |
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