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मृग मरीचिका

एंटन चेखोव की कहानी 'दि बेट' का हिन्दी अनुवाद

एंटोन पेवलोविच चेखोव ( 1860 - 1904 ) एजव सागर तट पर स्थित तगनराग नगर के एक असफल पंसारी का पुत्र था मास्को विश्वविद्यालय से चिकित्सा शास्त्र मे डिग्री प्राप्त करके उसने हास्यपूर्ण लेख ल्खिने शुरू कर दिये और शीघ्र ही वह संसार का एक अत्यंत सफल लघु कथा लेखक बन गया निम्नलिखित कहानी उसी की एक कथा का अनुवाद है
शरद की उस गहन अंधेरी रात मे एक वृध्द साहूकार महाजनअपने अध्ययनकक्ष में चहलकदमी कर रहा था। उसे याद आ रही थी 15 वर्ष पहले की शरद पूर्णिमा की वह रात जब उसने एक दावत दी थी। उस पार्टी मे कई विद्वान व्यक्ति आए हुए थे और बडी रोचक बातचीत चल रही थी। अन्य विषयों के बीच बात मृत्यु-दंड पर आगई। मेंहमानों मे कई विद्वान व्यक्ति तथा पत्रकार भी थे जो मृत्युदंड के विरोध मे थे और मानते थे कि यह पृथा समाप्त हो जानी चाहिये क्योंकि वह सभ्य समाज के लिये अशोभनीय तथा अनैतिक है। उनमे कुछ लोगों का कहना था कि मृत्युदंड के स्थान पर आजीवन कारावास की सजा पर्याप्त होनी चाहिये।
गृहस्वामी ने कहा ''मैं इस से असहमत हूं।वैसे न तो मुझे मृत्युदंड का ही अनुभव है और न ही मैं आजीवन कैद के बारे मे ही कुछ जानता हूं। पर मेरे विचार में मृत्युदंड आजीवन कारावास से अधिक नैतिक तथा मानवीय है। फंसी से तो अभियुक्त की तत्काल मृत्यु हो जाती है पर आजन्म कारावास तो धीरे धीरे मृत्यु तक ले जाता है। अब बतलाइये किसको अधिक दयालू और मानवीय कहा जायेगा?जो कुछ ही पलों मे ही जीवन समाप्त कर दे या धीरे धीरे तरसा तरसा कर मारे ?''

एक अतिथि बोला '' दोनो ही अनैतिक हैं क्योंकि ध्येय तो दोनो का एक ही है जीवन को समाप्त कर देना और सरकार परमेश्वर तो है नहींउसको यह अधिकार नहीं होना चाहिये कि जिसे वह ले तो ले पर वापिस न कर सके''

वहीं उन अतिथियों मे एक पच्चीस वर्षीय युवा वकील भी थाउसकी राय पूछे जाने पर वह कहने लगा '' मृंत्यदंड या आजीवन कारावास दोनो ही अनैतिक हैं किन्तु यदि मुझे दोनो मे से एक को चुनने का अवसर मिले तो मैं तो आजन्म कारावास ही को चाहूंगान जीने से तो किसी तरह का जीवन हो उसे ही मैं बेहतर समझूंगा''

इस पर काफी जोशीली बहस छिड ग़ईवह साहूकार महाजन जो कि गृहस्वामी था और उस समय जवान था और अत्यंत अधीर प्रकृति का था एकदम क्रोधित हो गयाऊसने अपने हाथ की मुठ्ठी को जोर से मेज पर पटका और चिल्ला कर कहने लगा '' तुम झूंठ बोल रहे होमैं शर्त लगा कर कह सकता हूं कि तुम इस प्रकार काराग्रह में पांच साल भी नहीं रह सकोगे''

इस पर युवा वकील बोला '' यदि तुम शर्त लगते हो तो मैं भी शर्तिया कहता हूं कि पांच तो क्या मैं पन्दरह साल रह कर दिखला सकता हूंबोलो क्या शर्त ह?''

'' पंद्रह साल। मुझे मंजूर है। मैं दो करोड रूपये दांव पर लगाता हूं।''

'' बात पक्की हुई। तुम दो करोड रूपये लगा रहे हो और मैं पंदरह साल की अपनी स्वतंत्रता को दांव पर रख रहा हूं। अब तुम मुकर नहीं सकते।'' युवा वकील ने कहा।

इस प्रकार यह बेहूदी ऊटपटांग शर्त लग गईउस साहूकार के पास उस समय कितने करोड रूपये थे जिनके बल पर वह घमंड मे फूला नहीं समाता थावह काफी बिगडा हुआ और सनकी किस्म का आदमी थाखाना खाते समय वह उस युवा वकील से मजाक मे कहने लगा '' अरे अभी भी समय है चेत जाओमेंरे लिये तो दो करोड रूपये कुछ भी नहीं हैंपर तुम्हारे लिये अपने जीवन के तीन या चार सबसे कीमती वर्ष खोना बहुत बडी चीज हैमै तीन या चार साल इस लिये कह रहा हूं कि मुझे पूरा विश्वास है कि इससे अधिक तुम रह ही नही पाओगेयह भी मत भूलो कि स्वेच्छा तथा बंधन मे बडा अंतर हैजब यह विचार तुम्हारे मन मे आयेगा कि तुम जब चाहो मुक्ति पा सकते हो तो वह तुम्हारे जेल के जीवन को पूरी तरह जहन्नुम बना देगामुझे तो तुम पर बडा तरस आ रहा है''

और आज वह साहूकार उन पिछले दिनों की बात सोच रहा थाउसने अपने आप से पूछा ''मैंने क्यों ऐसी शर्त लगाई थी? उससे किसका लाभ हुआ? उस वकील ने तो अपने जीवन के 15 महत्वपूर्ण वर्ष नष्ट कर दिये और मैंने अपने दो करोड रूपये फेंक दियेक्या इससे लोग यह मान जायेंगे कि मृत्युदंड से आजीवन कारागार बेहतर है या नहीं? यह सब बकवास हैमेरे अन्दर तो यह एक अमीर आदमी की सनक थी और उस वकील के लिये वह अमीर होने की एक मदांध लालसा

उसे यह भी याद आया कि उस पार्टी के बाद यह तय हुआ था कि वह वकील अपने कारावास के दिन सख्त निगरानी तथा सतर्कता के अंदर उस साहूकार के बगीचे वाले खंड मे रखा जाएगायह भी तय हो गया था कि जब तक वह इस कारागार मे है वह किसी से भी नही मिल सकेगा न किसी से बात ही कर पायेगाउसे कोई अखबार भी नहीं मिलेंगे और न ही किसी के पत्र मिल सकेंगेहां उसको एक वाद्य यंत्र दिया जा सकता हैपढने के लिये उसे पुस्तकें मिल जाएंगी और वह पत्र भी लिख सकेगाशराब पी सकता है और धूम्र्रपान भी कर सकता हैयह मान लिया गया कि बाहर की दुनिया से संपर्क के लिये वह केवल वहां बनी हुई खिडक़ी मे से चुपचाप अपने लिखित नोट भेज सकेगाहर आवश्यकता की चीज ज़ैसे पुस्तकें संगीत शराब इत्यादि वह जितनी चाहे उसी खिडक़ी मे से ले सकता है एग्रीमेंट मे हर छोटी से छोटी बात को ध्यान में रखा गया थाइस कारण वह कारावास एकदम कार्लकोठरी के समान हो गई थी और उसमे उस वकील को 14 नवंबर 1870 के 12 बजे रात से 14 नवंबर 1885 की रात को बारह बजे तक पूरे पंदर्रह साल रहना थाउसमे किसी भी प्रकार की भी खामी होने से चाहे वह दो मिनट की भी हो साहूकार दो कराड रूपये देने के दायित्व से मुक्त कर दिया जायेगा

इस कारावास के पहले साल मे ज़हां तक उसके लिखे पर्चों से पता लगा उसने अकेलापन तथा ऊब महसूस कीरात दिन उसके कक्ष से पियानो की आवाजें ती थीउसने शराब तथा तम्बाकू त्याग दिये और लिखा कि ये वस्तुएं उसकी वासनाओं को जागृत करती हैं और ये इच्छााएं तथा वासनाएं ही तो एक बन्दी की मुख्य शत्रु हैंअकेले बढिया शराब पीने मे भी कोई मजा नहीं सिगरेट से कमरे मे धुआं फैल जाता है और वहां का वातावरण दूषित हो जाता हैपहले वर्ष में उसने हलकी फुलकी किताबें पढीं ज़िनमे अधिकतर सुखान्तक क़ामोत्तेजक अपराध - संबंधी या इसी तरह के उपन्यास थे


दूसरे वर्ष मे पियानो बजना बंद हो गया और बंदी ने अधिकतर उत्कृष्ट तथा शास्त्रीय साहित्य मे रूचि ली। पांचवे वर्ष मे फिर संगीत सुना जाने लगा तथा शराब की भी मांग आई। खिडक़ी से झांक कर देखा गया कि वह अधिकतर खाने पीने तथा सोने मे ही अपना समय बिताता रहा। अक्सर वह जंभाइयें लेते हुए देखा गया और कभी कभी अपने आप से गुस्से मे बोलता रहता। पढना भी उसका बहुत कम हो गया था। कभी कभी रात्रि मे लिखने बैठ जाता और बहुत देर तक लिखता रहता और सुबह को वह सब लिखा हुआ फाड क़र फेंक देता। कई बार उसको रोते हुए भी देखा गया था।

औेर छटे साल के अंत मे उसने भाषा साहित्य दर्शर्नशास्त्र तथा इतिहासमें रूचि लेना आरंभ कर दियावह बडी तेजी से पढता रहा और यहां तक कि साहूकार को उसकी पुस्तकों की मांग को पूरा करना कठिन हो गयाचार वषों मे उसकी मांग पर कम से कम छ सौ पुस्तकें पहुंचाई गईंइसी मांग के दौरान उसने साहूकार को लिखा '' मेरे प्रिय जेलर, मैं यह पत्र छ: भाषाओं मे लिख रहा हूंइसको विविध विशेषज्ञों को दिखला कर उनकी राय लीजिये और यदि इसमे एक भी गलती न हो तो अपने उद्यान मे बन्दूक चला दीजियेगा जिससे मुझे यह ज्ञात हो जाये कि मेरी मेहनत बेकार नही गई है विभिन्न देशों और कालों के प्रतिभाशाली जिज्ञासु अपनी अपनी भावनाओं को विभिन्न भाषाओं मे लिख गये हैंपर उन सब मे वही ज्योति जगमगाती हैकाश! आप मेरे इस दिव्य आनन्द को जैसा कि मुझे इस समय मिल रहा है समझ सकेंकैदी की इच्छा पूरी की गई और साहूकार के आदेश पर उसके उद्यान में दो गोलियां दागी ग़ईं

दस साल के बाद वह बंदी अपनी मेज क़े सामने जड अवस्था में बैठा बैठा केवल बाइबिल का न्यू टेस्टामेंट पढता रहता साहूकार को यह बडा अजीब लगा कि जब उसने चार सालों मे 600 पांडित्यपूर्ण पुस्तकों को पढ क़र उन पर पूरी तरह कुशलता प्राप्त कर ली थी तो कैसे वह पूरे एक साल तक न्यू टेस्टामेंट ही पढता रहा है जोकि छोटी सी पुस्तक हैउसमे उसने क्या देखा?न्यू टेस्टामेंट के बाद उसने धर्मो का इतिहास तथा ब्रह्म -विद्या पढना शुरू किया

अपने कारावास के अंतिम दो सालों मे उसने असाधारण रूप से जो कुछ भी उसकी समझ मे आया अंधाधुंध पढापहले तो उसने प्राकृतिक विज्ञान मे ध्यान लगायाउसके बाद बायरन तथा शेक्सपीयर को पढाफिर उसके पास से रसायन शास्त्र तथा चिकित्सा शास्त्र की मांग आईएक उपन्यास और फिलोसोफी तथा थियोलोजी पर विवेचना भी उसकी मांगों मे थीऐसा लग रहा था जैसे वह किसी सागर मे बहता जा रहा है और उसके चारों ओर किसी भग्नावशेष के टुकडे बिखरे पडे हैं और उनको वह अपने जीवन की रक्षा के लिये एक के बाद एक चुनता जा रहा है

साहूकार यह सब याद करता जा रहा था और सोच रहा था कि ''कल वह दिन भी आ रहा है जब इकरारनामे के मुताबिक कैदी को उसकी मुक्ति मिल जायेगी और मुझे दो करोड रूपये देने पड ज़ाएंगेऔर अगर मुझको यह सब देना पडेग़ा तब मैं तो कंगाल हो जाऊंगा''

पंद्रह वर्ष पहले जब यह शर्त लगाई गई थी तब तो इस साहूकार के पास बेहिसाब दौलत थीपर वह सब धन तो उसने सट्टे और जुए मे गंवा दियाजिस लत को वह छोड ही नही सका और उसका सारा कारोबार नष्ट हो गया हैअपने धन के मद मे चूर वह घमंडी साहूकार अब साधारण श्रेणी मे आगया है जो कि छोटे सै छोटे घाटे को भी बर्दाश्त नही कर सकता और घबरा जाता है

अपने सिर को पकड क़र वह सोचने लगा '' मैंने क्या बेवेकूफी की थी उस समय? और वह बेवेकूफ वकील जेल मे मरा भी तो नहींवह तो केवल चालीस वर्ष का ही है और अब वह मुझसे पाई पाई निकलवा लेगा और मेरे उस धन पर ऐश करेगा शादी करके मजे लूटेगा सट्टा खेलगा और मैं उसके सामने भिखारी नन कर उसके ताने सुनता रहूंगा कि 'मुझे यह सुख तुमने ही दिया है और उसके लिये मैं तुम्हारा आभारी हूंमैं तुम्हारी क्या मदद कर सकता हूं?' नहीं! इसको मैं कैसे सह सकूंगा? इस जिल्लत से छुटकारा पाने के लिये कैदी को मरना ही होगा''

घडी मे तीन बजाये थेसाहूकार जागा हुआ सुन रहा थाबाकी घर के सब लोग सो रहे थेसारा वातावरण सूनसान था सिवाय पेडों की सांय सांय की आवाज क़ेबिना कोई आवाज किये उसने अपनी तिजोरी मे से वह चाभी निकाली जिससे उस कैदी का कमरा पंद्रह साल पहले बन्द किया गया थाउसके बाद वह अपना ओवरकोट पहन कर अपने घर से बाहर निकलाबगीचे मे बडी ठंड थी और बाहर घटाटोप अंधकार थाबारिश भी हो रही थीतेजी से हवा मे पेड झूम रहे थेकुछ भी दिखलाई नहीं पड रहा था और वह टटोलते टतोलते बंदीग्रह तक पहुंचावहां उसने चौकीदार को दो आवाज लगाईं पर कोई उत्तर नहीं मिलाऐसा लगता है कि चौकीदार खराब मौसम के कारण कहीं छिपा बैठा होगा

साहूकार ने सोचा कि ''यदि मुझ मे अपने इरादे को पूरा करना है तो हिम्मत से काम लेना होगाइस सारे मामले मे शुबहा तो चौकीदार पर ही जायेगा''

अंधेरे में उसने सीढियों को ढूंढा और फिर बगीचे के हाल मे घुस गयाउसके बाद वह एक गलियारे मे से होकर बंदी के द्वार तक पहुंचा और वहां जाकर अपनी माचिस जलाईउसने देखा कि ताले पर लगी हुई सील ठीक तरह सुरक्षित हैमाचिस बुझ जाने के बाद उसने कांपते और घबराते हुए खिडक़ी मे झांका और देखा कि बंदी के कक्ष में एक मोमबत्ती जल रही है जिससे हलकी रोशनी हैबंदी अपनी मेज क़े सामने बैठा था और उसकी पीठ उसके हाथ तथा बाल दिखलाई पड रहे थेवहां उसके पास की कुरसी तथा चारपाई पर पुस्तकें बिखरी पडी थीं

पांच मिनट बीत गये और इस बीच मे बंदी एक बार भी नहीं हिला डुला15 वर्ष के कारावास ने उसे बिना हिले डुले बैठा रहना सिखा दिया था साहूकार ने खिडक़ी पर खट खट आवज क़ी पर फिर भी कैदी ने कोई हरकत नही कीतब उस साहूकार ने बडी सतर्कता से उसके दरवाजे क़ी सील तोडीं और ताले मे अपनी चाभी डालीताले मे जंग़ लगा हुआ था पर कुछ जोर लगाने पर वह खुल गया साहूकार सोच रहा था कि इस के बाद तो वह बंदी चौंक कर उठेगापर सब कुछ वैसे ही शांत रहातब कुछ देर रूक कर वह कमरे मे घुसा

उसने देखा कि कुरसी पर मेज क़े सामने जो मानवाकृति बैठी है वह केवल एक ढांचा मात्र ही है जो खाल से ढकी हुई हैउसके बाल औरतों जैसे लंबे हैं और मुख पर लंबी दाढी हैउसके हाथ जिन से वह अपने सिर को सहारा दिये बैठा है कंकाल की तरह है जिसे देख कर भी डर लगता हैसारे बाल चांदी की तरह सफेद हो चुके हैंउसे देख कर किसी को विश्वास ही नहीं हो सकता था कि वह केवल चालीस वर्ष का हैउसके सामने मेज पर एक कागज पडा हुआ था जिस पर कुछ लिखा भी था

साहूकार सोचने लगा ''बेचारा सो रहा हैशायद वह अपने सपनों मे उन करोडों रूपयों को देख रहा है जो कि उसे मुझ से मिलेंगेपर मैं समझता हूं कि इसको मैं बिस्तर पर फेंक कर तकिये से दबा दूंगा तो उसकी सांस रूक जायेगीफिर कोई भी यह पता नहीं लगा सकेगा कि उसकी मौत कैसे हुईसब इसे प्राक्रितिक मृत्यु ही समझेंगेलेकिन इससे पहले मैं यह तो देख लूं कि इस कागज मे उसने क्या लिखा है?''

यह सोच कर साहूकार ने मेज पर से वह कागज उठाया और पढने लगा'' कल रात को 12 बजे मुझे मेरी मुक्ति मिल जायेगी तथा सब लोगों से मिल पाने का अधिकार भी मिल जायेगालेकिन यह कमरा छोडने और सूर्य देवता के दर्शन करने से पहले मैं समझता हूं कि आप सबके लिये अपने विचार लिपिबध्द कर दूं परमेश्वर जो मुझे देख रहा है उसको साक्षी करके और अपने अम्तःकरण से मैं यह कह रहा हूं कि अपनी यह मुक्ति अपना यह जीवन, स्वास्थ्य तथा अन्य सब कुछ जिसे संसार मे वरदाान कहा जाता है इन सब से मुझे विरक्ति हो गई है

इन 15 वर्षों मे मैने इस सांसारिक जीवन का गहन अध्ययन किया हैयह तो सत्य है कि न तो मैंने पृथ्वी या उस पर रहने वालों को देखा है पर उनकी लिखी पुस्तकों से मैंने सुगन्धित सुरा का पान किया है मधुर संगीत का स्वाद लिया है और जंगलो मे हिरनों तथा जंगली जानवरों का शिकार किया है रमणियों से प्यार किया हैऔर ऐसी रमणियां जो कि अलौकिक बादलों मे कवियों की कल्पना मे रहती हैंरात में प्रतिभाशाली व्यक्ति मेरे पास आकर तरह तरह की कहानियां सुनाते थे जिनको सुन कर मैं मदमस्त हो जाता थावे पुस्तकें मुझे पहाडों की उंचाइयें तक ले जाती थीं और मैं माउन्ट ब्लैंक तथा माउन्ट एवेरेस्ट तक की सैर कर आता थावहां से सूर्योदय तथा सूर्यास्त के दर्शन कर लेता था महासागर तथा पहाडों की चोटियों मे मैं विचर सकता थामैं देख पाता था कि किस प्रकार आकाश मे बिजली चमक कर बादलों को फाड देती हैमैंने हरे भरे जंगल तथा खेतों को नदियों झीलों तथा शहरो को देखा जलपरियों को गाते हुवे सुनाएक सुन्दर दानव को अपने पास आते हुवे देखायह पुस्तकें मुझे अथाह अगाध सीमा तक ले जातीं और अनेक चमत्कार दिखलातींशहर जलते और भस्म होते देखेनये नये धर्मो के प्रचारकों को सुना और कितने देशों पर विजय प्राप्त की

इन पुस्तकों से मुझे बहुत ज्ञान मिलामानव की अटल विचारधारा जो कि सदियों मे संचित हुई है मेरे मस्तिष्क में एक ग्रंथी बन गई है और अब मैं जानता हूं कि आप सब लोगों से मैं अधिक चतुर हूंफिर भी इन पुस्तकों को तुच्छ समझता हूं और यह जान कर कि संसार का सारा ज्ञान तथा वरदान व्यर्थ है मैं उनकी उपेक्षा करता हूंयहां हर चीज मृग मरीचिका के समान क्षण भंगुर है काल्पनिक हैआप लोग इस सौन्दर्य तथा अथाह भंडार पर गर्व कर सकते हैं पर मृत्यु के गाल मे पड क़र इस संसार से सब उसी तरह चले जाएंगे जैसे कि अपने बिलों मे रहते हुवे चूहे चले जाते हैं तुम्हारा सारा इतिहास और मानव का सारा ज्ञान पृथ्वी के गर्त मे समा जयेगामेरे विचार से तुम सब मदांध हो रहे हो और सच को झूंट और बदसुरती को सौन्दर्य समझ रहे होतुमने पृथ्वी के सुखों के लिये स्वर्ग को ग्रिवी रख दिया है या उसे बेच दिया हैइस लिये उन सब सुखों के त्याग के लिये मैने तय कर लिया है कि अपने कारावास की समाप्ति से पांच मिनट पहले ही निकल जाऊंगा और आजीवन सन्यास ले लूंगा जिससे कि साहूकार अपना धन अपने पास रख सके

साहूकार ने उस पत्र को पढने के बाद वहीं मेज पर रख दिया और उस अद्भुत व्यक्ति के सर को चूम कर रोने लगाफिर वहां से चला गयाउसे अपने ऊपर इतनी ग्लानी हो रही थी जैसी पहले कभी भी नही हुईअपने कमरे मे आकर वह बिस्तर पर लेट गया पर उसे अपने हृदय मे मलाल के कारण न तो बहुत देर तक नींद ही आई और न ही उसके आंसू रूके

अगले दिन प्रातः बेचारा चौकीदार भागता हुआ आया और उसने बतलाया कि वह बंदी खिडक़ी मे से कूद कर फाटक के बाहर चला गया अफवाहों से बचने के लिये साहूकार ने बंदी के कक्ष मे जाकर मेज पर पडे उस सन्यास वाले कागज क़ो उठा लिया और अपनी तिजोरी मे सदा के लिये बंद कर दिया

अनुवादः आर्य भूषण
सितम्बर 4, 2005

 

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