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भूख

सबिया पत्थराई आँखों से भक्तू की लाश को देख रही थी । रात भर घर नहीं आया था। कल शाम ही तो उससे पचास रूपये छीन ले गया था व शराब में धुत्त मर गया । `अरे, इसे रूलाओ' किसी का शब्द उभरा । पर आँसू सूख चुके थे । ३२ बरस सबिया ने झाडू, पोंछा, बर्तन करके अपने बच्चों का, मर्द का पेट भरा था । सारा दिन की थकी हारी जब वह घर आती, तो भक्तू सामने की छत पर या चौपाल में ताश के पत्ते खेलते, चिलम लगाते नजर आता । भूख लगते ही दहाड़ता, गालियाँ बकता, घर आता व खा-पीकर, बच्चों को लताड़ पिलाकर सबिया से पैसे ले जाता । गाँव के बाहर ही पन्नू की देसी शराब की दुकान थी । वहाँ जाना भक्तू का नियम । रात को कमी तो कोई छोड़ जाता वरन् लटकता-पटकता घर पहुंचता तो सबिया की खैर न होती । सबिया उसकी तीसरी पत्नी थी । सबिया की सौतेली माँ ने भी क्या देखा उसके लिये । उल्टे-सीधे लाँछन लगाना, लात-घूंसों से मारना-पीटना रोज़मर्रा का काम था । कल तो हद ही पार कर दी भक्तू ने । सबिया आटा लिवाने जा रही थी कि उसे दरवाजे में पटक कर मारा था उसने व उसके पल्लू से ५० का नोट खोलकर ले गया था । कभी वह भक्तू को व कभी बच्चों को देख रही थी । अचानक ही वह चीख पड़ी हाय, ``दैत्य मर गया।''

 

शबनम शर्मा

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