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आज
भी वही हुआ जो रोज होता है। कार
से उतरकर वे अपने
चेम्बर की ओर बढीं
. . .
ठीक
नौ बजने में पांच मिनट जब बाकी रहते हैं तभी उनकी टोयोटा लैक्सेसपार्किंग
एरिया में पहुंचती है।
पिछले पन्द्रह साल से बिला नागा मतलब उनकी छुट्टी के दिन को यदि छोड दिया
जाए तो यही हो रहा है।
जहां
वे 'पार्क
करती हैं वह जगह भी उनकी कार के लिए आवंटित है।
यह
'पेड-पार्किंग'
एरिया है।
और
सब अपनी-अपनी जगह जानते हैं।
पांच
साल पहले ऐसा नहीं था लेकिन जबसे मनुष्यों से अधिक कारों की संख्या हो गई
है तबसे प्रायः हर देश में
'पेड
पार्किंग' कार खरीदने की सजा बनकर उभर रही है
लेकिन उनकी बात और है।
चार
पैसे देकर कार को हिफाजत से रखना उनके लिए प्रमुखता है।
उन्हें मोहब्बत है अपनी कार स।
वह
भी क्या 'कार
ओनर' हुआ जिसे अपनी कार से कोई मोहब्बत ही नही। ऑफिस में लोग मिसाल देते हैं कि खूबसूरती का नाम लूला हैदर...ड़ीसेंसी और कैरेक्टर का नाम लूला हैदर... नाम पर मत जाएं नाम अगर लैला हो सकता है, लोलो हो सकता है तो लूला क्यों नहीं ? आपको लैला-मजनू की लैला और करिश्मा कपूर का निक नेम 'लोलो' तो पता ही होगा। वैसे 'लउ लउ' का अरबी भाषा में अर्थ है - मोती , मोती-सा हो सकता है कि लूला का नाम भी कुछ ऐसा ही अर्थ रखता हा। तो , अब एक नाम अपनी यादों की फेहरिश्त में और जोड लें लूला क्योंकि इस कहानी को पढने के बाद आप लूला को भी कभी भुला नहीं पाएंगे तो, अब.... लूला हैदर.... . बहुत थोडे में उनकी कैफियत बताना जरूरी है।सैंतीस वर्षीया लूला हैदर फिलीस्तीनी बाप और सीरियन मां की बेटी हैं, वो जो कहते हैं न कि वर्णसंकर संताने बहुत खूबसूरत और प्रतिभासम्पन्न होती हैं तो वो कहावत लूला हैदर पर हकीक़त बनकर उतरी है। व्यूटी विथ ब्रेन वाली बात कहीं से भी न होने वाली बात नहीं लगती। जो लोग यह माने बैठे हैं कि खूबसूरती के पास दिमाग नहीं होता उन्हें लूला हैदर को जानना चाहिए और अपनी मान्यता बदलनी चाहिए। खूबसूरती कम से कम बेइज्ज़त तो नहीं ही होनी चाहिए...तो , फिलीस्तीन में जब हालात और दिन अपराइजिंग की शुरूआत के थे तभी लूला के मां-बाप अमेरिका भाग गए। भाग ही नहीं गए ,वहीं टेक्सास में बस भी गए। तब लूला की अवस्था रही होगी यही कोई तीन वर्ष, नाक सुडक़ने या फिर पुछवाने वाली उम्र थी उसकी । उससे छोटा एक भाई भी था। साल भर का। बाद में तो दो बहनें और दो भाई और हुए। ग्रैज्यूएशन के बाद लूला ने टेक्सास विश्वविद्यालय से बिजनेस मैनेजमेण्ट में डिग्री ली और एक मल्टीनेशनल कंपनी में बतौर एपरेण्टिस ज्वॉयन किया। इसके अलावा लूला का पैशन था ऑयल पेण्टिग्स बनाना। इस दौरान इक्कीस बहारें निकल गईं और लूला पर जवानी ने जमकर इनायत की। फूलों का रस खून बना आकर्षण तराशा हुआ सौन्दर्य और खुशबू सुगन्ध बनकर उसमें रच-बस गई। व्यक्तित्व में नमक और मिठास का वो सम्मिश्रण समा गया कि देखने वाले कहते , 'ठां है...ठां...'अगर फैशन टी वी क़ी सुनी जाए और जिसतरह वह अपने मॉडेलों की शारीरिक मांसलता को सेंटीमीटरों के अनुपात में बताते हुए उनकी नुमाइश करता है तो उसने लूला के बारे में कुछ इस तरह से कैप्शन दिए होते.... लूला....नागरिकता अमेरिकन....बॉर्न इन सीरिया....ज़ॉडियक साइन विर्गो...हाइट 179 , बस्ट 90 , वेस्ट 65 , हिप्स 94.... अगर लूला को अपना परिचय देना होता तो कहतीं, ''आयम सिम्पिल....बोल्ड...सेक्सी ऐण्ड.... .व्यूटीफुल...'' ब्रेन भी है यह बात कोई समझदार अपने मुंह से कैसे कहता। पिकासो होता तो उनकी इस सादगी पर एक बार अपने ब्रश फिर उठा लेता। हालांकि, बलवंत गार्गी ने अपनी आत्मकथा 'नेकेड ट्रेंगल' में लिखा है कि पिकासो ने अपनी पेंटिग्स' को कभी ब्रश से पेण्ट ही नहीं किया उसका ब्रश तो.... . . . . .बात ऐब्सर्ड होने से बचनी चाहिए....तो , लूला हैदर को जमीन पर एक जलवा क्यों न कहें। लूला के पास सौन्दर्य था। दिमाग था तो दिल भी था। और उस दिल को मोहब्बत भी होनी थी जो लूला ने की भी। चाहती तो कई दिलों को झटके देती मगर उसने जिससे प्यार किया उसी से शादी भी की और फिर शादी के बाद वह लूला से लूला हैदर हो गईं.... असल में लूला अपने आप में एक सलीका थी उसने यू पी और बिहार लूटने का कोई प्लॉन मजाक में भी कभी नहीं बनाया....लूला से लूला हैदर होना भी स्टेटस सिम्बल की बात थी।मगर लूला ने हैदर का स्टेटस जानकर मोहब्बत नहीं की थी, मोहब्बत पहले हुई और स्टेटस बाद में पता चला....
लूला हैदर के
खाविंद हैदर अबू जाबर,
जॉ फ़र्टिलटी के सारे इलाज नाकाम रहे। रोजा-नमाज और अल्लाह के आगे किए गए सिजदे बेअसर हुए। मेडिकल सांईंस ने अपना फैसला सुना दिया कि लूला हैदर मां नहीं बन सकतीं . अविकसित दुनिया में लूला हैदर होतीं तो यह माना जा सकता था कि ठीक से ट्रीटमेण्ट नहीं हुआ होगा और वे एक पूरी औरत होने से वंचित रह गईं मगर अमेरिका में होते हुए जब सारे उपाय परिणामशून्य साबित हुए तो लूला हैदर ने मन को मना लिया कि अल्लाह की शायद यही मर्जी हो...औलाद न होने से जिस्म का कसाव तो बरकरार रहा मगर मन रिक्त होता गया। जिस्म कहीं से ढीला होने का मौका नहीं पा सका और मन के आंगन को कोई ऐसा खिलौना नहीं मिला जो उसे अपनी किलकारियों से स्मृतियों का इतिहास बनाता जाए। सहारा था तो हैदर का जब कभी मन बहुत-बहुत खाली हो उठता तो कैनवास से परदा हट जाता और उस पर ब्रश चलने लगता... लूला हैदर के भीतरी घाव के अनवरत रिसाव को सोखते तो हैदर ही थ। उन्होंने उसे समझा लिया था कि औलाद नहीं हुई तो न सही। अल्लाह सबको सबकुछ नहीं देता अगर परवरदिगार सबको सारी नेमतें बख्शे तो फिर उसे याद कौन करे ? हैदर ने कभी कोई शिकायत नहीं की कभीताने नहीं कस। लूला का मन होता कि कोई बच्चा गोद ले लिया जाए। बच्चा तो बच्चा होगा उससे ममता की जाए तो वह मां क्यों नहीं समझेगा ? लेकिन जब वह ऐसा कोई प्रस्ताव रखती तो हैदर भडक़ जाते मगर वह भडक़ना गुस्से से भरा न होकर प्यार भरे बोसे बरसाकर लूला को भिगा जाता।हैदर कहते कि अल्लाह ने जब हमें एक अलग किस्म की निजी ज़िन्दगी दी है तो हम उसमें दखलन्दाजी क्यों करें । हैदर ने कभी कोई मौका भी तो नहीं दिया कि लूला को अपनी मोहब्बत पर शंका होअपने मोस्तकबिल को लेकर कोई सवालिया निशान लगाए। बात आई-गई हो जाती मगर लूला हैदर के मन से हमेशा के लिए गई कभी नहीं.... चाहते तो दोनो अपनी जिन्दगियों में कम से कम फ्लर्ट तो कर ही सकते थे। इसके मौके भी उनके पास खूब थे। हैदर प्रतिष्ठित सर्जन थे, उन्हें एमरजेन्सी में कभी कैलीफोर्निया जाना होता तो कभी लास एंजेल्स तो कभी वाशिंगटन डी सी उनके इर्द-गिर्द सुन्दर चेहरों की भी कमी नहीं थी मगर उन्हें लूला हैदर के आगे दुनिया की कोई औरत खूबसूरत लगी ही नहीं। जहां हैदर अपनी ही तरह से मसरूफियों में रहते वहीं लूला हैदर भी कम व्यस्त नहीं थीं। उन्हें भी बिजनेस मीटिंग्स और सेमिनारों में आए दिन कभी न्यू जर्सी तो कभी डलॉस डोलना होता। जिसे मुस्कराकर देख लेतीं वही निहाल हो जाता।जिसे उंगली पकडने का इशारा कर देतीं वही हथेलियां चूमने को व्यग्र हो सकता था मगर न जाने वह कैसी मोहब्बत थी कि वे और हैदर , दोनो एक-दूसरे के क्या हुए , कि होकर ही रह गए।ऐसी मोहब्बत आसमानों में होती हो तो होती हो , जमीन पर तो मियां-बीवियों में नहीं ही दिखी.... .एक यक़ीन के सहारे जिन्दगी बरस-दर-बरस गुजारे चली जा रही थी कि औलाद नहीं है तो भी क्या फर्क पडता है । लूला और हैदर तो हैं न दोनों एक-दूसरे के लिए ही तो हैं ! और चौदह वर्ष निकल भी तो गएइस बीच का समय प्रमोशनों और बदलती नौकरियों मे बढते रूतबे के साथ बढती सुविधाओं में सोता-जागता रहा।मौसम आते और जाते रहे। समय की तरह कुछ भी ठहरा नहीं . सिवाय इस खयाल के कि लूला हैदर मां नही बन सकतीं। यह खयाल अचानक उन्हें फिर आ गया हालांकि, यह उनके दिमाग से गया ही कब था.... अपनी टेबल पर पडी ज़रूरी फाइलों को निपटाने और अपने मातहतों की एक मीटिंग करने मेंलूला हैदर को लगभग दो घण्टे लग गए और उससे फारिग होते ही उस वाहिद खयाल ने दिल पर एक दस्तक दी कि लूला हैदर तुम्हारी कोख ने कोई पौधा नहीं जन्माया जिसमें भविष्य का चेहरा दिखे। उन्होंने सिगरेट सुलगा ली।कभी-कभी पीती हैं। बाहर नहीं, घर में भी नही - बस,अपनी सीटपर ऑफिस में। यही कोई दो-चार दिन में एक या दो। जब दिमाग पर दिल हावी हो जाता है। हैदर नहीं पीते मगर जानते हैं सिगरेट पीते हुए लूला हैदर उन्हें कुछ और खूबसूरत ,और कुछ ज्यादा ही सेक्सी दिखती हैं मगर वे उन्हें इनकरेज नहीं करत। दोनो कभी-कभी ड्रिंक्स भी लेते हैं। जिन या बियर नहीं - स्कॉच व्हिस्की। उनके व्यक्तिगत कार्यक्रमों जिनमें वात्सायन की बताई स्थितियां भी हैं। इस्लाम आडे नहीं आता... लूला हैदर ने एक गहरा कश लिया और धुएं के गुबार को अपने कमरे की चार दीवारों के भीतर छितरा दिया। उनका मन हुआ कि हैदर को फोन लगाएं। हैदर लास एंजेल्स में थे पिछले दस दिनों से। सुबह उन्होंने फोन किया भी था।रोज तीन-चार बार उनका फोन आता है। लूला ने सोचा कि हैदर फोन करेंगे ही उन्होंने सीट से उठकर सामने की खिडक़ी खोल दी। कितनी बार तो हो चुका है कि उन्होंने हैदर को इधर याद किया और उधर उनका मोबाइल 'मैं हूं ना...' क़ी टयून पर संगीतमय हो उठा। टेलीपैथी नाम का शब्द कितना सही है....हैदर का फोन आना ही था । आया भी। मगर हैदर की भाषा ने लूला हैदर को चकरा दिया। हैदर अरबी में तभी बोलते हैं जब बहुत इमोशनल होते हैं वरना मातृभाषा अरबी होते हुए भी अंग्रेजी में ही बात होती है। घर में भी और बाहर भी।लेकिन जब मामला नाजुक़ और मसला पेचीदा हो तो हैदर अरबी में बोलते हैं। क्या दुनिया के सभी लोगों के साथ ऐसा होता है कि बहुत अकेला होने पर इनसान अपनी मातृभाषा में ही सोच पाता है.... -
ऐसा भी
क्या हुआ कि हैदर.... -
नाम...क़ुन्तू उरीदू अन ओख बिराकी मिनकद...(हां मैं तुमसे कहना चाहता था
लेकिन....) ।लूला हैदर की सांस टंग गई। ऊपर की ऊपर और नीचे की नीचे फिर भी
उन्होंने पूछा -
वोमाजा
बादा दालिका...ओमाजा तुरीद
?
. ( अब मुझसे क्या चाहते हो?) लूला हैदर की आवाज ज़ब कुछ रूंधने को हुई तो उन्होंने अपने को संभाल लिया और मोबाइल का स्विच ऑफ करते हुए सीट से उठ कर खिडक़ी के पास आ खडी हुईं। परदे खींचे और शीशे भी पूरे खोल दिए। एक सिगरेट सुलगाई और बेचैनी में डूबे धुएं को सुकून के साथ बाहर छितरा दिया जैसे जिन्दगी के आकाश को और फैलाने की कोशिश कर रही हों । यह उनकी जिन्दगी में शायद पहला मौका था कि वे एक दिन में दूसरी सिगरेट पी रही थीं . उन्होंने अपने को उस दौरान ही संयत कर लिया जितना वक्त उन्हें कुछ कश लेने में लगा....बात अजीब लग सकती है.... बात अजीब है भी।लूला हैदर न रोइ। न रोने के लिए कंधे तलाश। एक समर्थ औरत को चाहिए भी क्या था ?हफ्ते भर में ही उन्होंने अपनी अलग दुनिया बसा ली।अलग फ्लैट ले लिया। पहले घर का सारा काम खुद करती थीं।घर के कामों में उन्हें मजा आता था। अब काफी देख - दाखकर एक सलीकेदार हाउस मेड रख ली।फिर कोई तो घर में हो जिससे दो बोल कभी - कभी बोले जाए। उन्होंने एक बार फिर ब्रश को अहमियत दी। अब वह होती थीं और उनका कैनवास कुछ न कुछ बनता जाता था। कामकाजी महिला की व्यस्त जिन्दगी में वैसे भी समय खींचखांचकर हीनिकलता है।वक्त गुजरने लगा। ठहरता कब है ! और, गुजरते वक्त के साथ लूला हैदर ने एक बडा फैसला ले लिया। फैसला था एक बच्चा गोद लेने का। बच्चा नहीं बच्ची... घर-परिवार और रिश्तेदारों ने अपनी - अपनी तरह से समझाया कि संतान न होने की दशा में मर्द को दूसरी शादी का हक इस्लाम में है। लूला हैदर ने कहा कि इस्लाम भी सही है और मर्द के हक भी लेकिन हैदर ने जो किया वह धोखा है और इस्लाम धोखे की वकालत नहीं करता.... साल बीतते न बीतते लूला हैदर ने एक अन्तर्राष्ट्रीय संस्था की मदद से सीरिया की एक अनाथ बच्ची को गोद ले लिया।दो वर्ष की उस बच्ची के घर में आते ही जैसे लूला हैदर की रेगिस्तान-सी जिन्दगी में फूल नहीं पूरा एक ओएसिस खिल उठा.... एक मकसद हो गया और लूला हैदर ने फिर कभी पीछे मुडक़र नहीं देखा। विगत से जैसे असम्पृक्त....लेकिन हैदर का विगत वर्तमान बनकर हैदर के सामने बार-बार आता रहा। जब एक ही शहर में रहना हो तो उन खबरों से कैसे बचा जा सकता है जो किसी न किसी माध्यम से पहुंच ही आती हैंलूला हैदर तक खबरें आती रही। पहुंचाने वाले भी तो होते ह। कइयों को तो ऐसी खबरें पहुंचाए बिना खाना हजम नहीं होता। हैदर अपनी दूसरी बीवी समीना को टेक्सास से ब्याहकर लाए क़ॉमन दोस्तों से पता चला। समीना गर्भवती हुई यह खबर भी मिली। समीना गर्भवती होने के बाद भी मां नहीं बन सकी। तीसरे महीने में ही अबॉर्शन हो गया। दो साल बाद फिर खबर कि समीना एक बेटे की मां बन गई पर तीन सप्ताह बाद नवजात की मृत्यु का भी पता चला। समीना या हैदर को लूला हैदर ने भूलकर भी कभी बददुआ नहीं दी। जिस हैदर से उन्होंने कभी मोहब्बत की थी उसे बददुआ कैसे देतीं। मगर हैदर के साथ जो कुछ घट रहा था उसका अंत अभी कहां हुआ था। एक दिन लूला हैदर को यह खबर भी मिली कि समीना तीसरे प्रसव के दौरान चल बसी।बच्चा गर्भ में पहले ही चल बसा था.... लोग इन खबरों को सुनाते हुए च् . . .च् . . च् . . . च् . . .क़रते मगर लूला हैदर , उनपर तो जैसे कोई प्रभाव ही नहीं पडता...ख़बरें तो उनतक पहुंचती थी मगर उन्हें भी नहीं पता था कि सात साल बाद एक शाम जब वह अपनी आठ साल की बेटी सूजन के साथ खेल रही होंगी उस वक्त उनके फ्लैट की डोरबेल का स्विच हैदर दबाएंगे। वही हैदर जो इतना साहस न जुटा सके कि दूसरी शादी की बात आमने-सामने कह सकें।वही हैदर जो एक ही शहर में रहते हुए कभी सामने आने का साहस न कर सकें या कि अपनी दूसरी बीवी समीना से मिलवा सकें।वही हैदर दरवाजे पर थे। लूला हैदर के लिए यह चौंकाने वाला पल था भी और नहीं भी था। क्या पता अकेले पड ग़ए हैदर को उनकी याद आई हा।उनके भीतर कोई लावा नहीं उबला, कोई जली-कटी सुनाने की इच्छा नहीं जगी - बडे ही सधे शब्दों में पूछा, ''कइफहालिक . . . . . . .'' (क़ैसे हो?) ''यजिब
अलल इन्सान अनियईश हयातहू कमामनहह लहू अरब...''
(ज़ैसे
अल्लह रख रहा है.... . . . . .मेरे बारे में तुम्हें सब पता तो होगा...औलाद का
सुख मेरी तकदीर में नहीं है . ) हैदर ने एक-एक शब्द जैसे ठहर-ठहरकर कहा
''अल
आन माजा तन्तजिरू मिन्नी...?''
(अब
मुझसे क्या चाहते हो
?)
लूला हैदर ने
जैसे औपचारिकतावश पूछा तबतक सूजन उससे आकर लिपट गई
, ''मामा....क़म...नाउ
योर टर्न...''
कृष्ण बिहारी |
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