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ये मेरी ये मेरी लाइफ है ''उफ, फिर वही लेक्चर ममा कब समझेंगी ?''बिना पढे सायना ने लिफाफा चिंदी चिंदी करके हवा में उछाल दिया और ममा के पत्र में लिखे संदेश का आस्त्त्वि भी बिना पढ़े ही हवा में बिखर गया । आज कितना अच्छा मूड था ,आज की पार्टी तो मानो उसके ही नाम थी, उसी के कारण उसकी कम्पनी के लाभ का ग्राफ एकर् वष में ही इतना उंचा उठ गया था , इसी सफलता को सेलिब्रेट करने के लिय, उसके सम्मान में कम्पनी के सी ई ओ ने इतना बड़ी पार्टी आयोजित की थी ।पार्टी में उपस्थित अतिथियों के मध्य वही आकर्षण का केन्द्र थी । जब सी ई ओ मि0 साइमन ने उसकी उपलब्धियों का बखान किया और कम्पनी की इस वर्ष के लाभ का श्रेय उसे दिया , तो उसके सहयोगियों की आंखों की ईष्या उनके प्रसन्नता के सप्रयास ओढ़े गए आवरण के पीछे से झलक ही आई थी । सायना ने उन मनो भावों को समझ कर भी नही समझा था । आज की शाम उसकी थी और वह उसे पूरी तरह जीना चाहती थी । अभी रास्ते में गाड़ी में यही सोचती आ रही थी कि अभी तो रात्रि के एक बज रहे हैं ,ममा पापा सो रहे होंगे पर सवेरा होते ही ममा पापा को फोन करके अपनी सफलता के बारे में बताएगी ,पर इस छोटे से कागज के टुकड़े ने अच्छा भला मूड बिगाड़ दिया । सायना बत्ती बुझा कर लेट गई ,पर उस फाड़े गए पत्र के बिना पढ़े अक्षर हवा में तैरते हुए उसके मन मस्तिष्क पर दस्तक देते रहे । ''बेटी अब
मेरी मान, शादी कर ले तुम्हारी सब दोस्तों का विवाह हो चुका है अब बहुत हो
गया उम्र निकली जा रही है.'' वैवाहिक दम्पति के नाम पर उसके समक्ष ममा पापा का चित्र उभर आया ,ममा पापा ने भी तो विवाह किया है लोगों की धारणा अनुसार वह एक सुखी दंपति हैं, पर उनको इस सुखी संसार को बनाने के लिये कोई कम कंप्रोमाइज नही करने पड़े। ममा बताती हैं कि उनको प्रमोशन मिल रहा था पर उसके लिये उन्हे पापा को छोड़ कर दूसरे शहर जाना पड़ता अत: उन्होने प्रमोशन छोड़ दिया । यद्यपि ममा ने कभी इसका दुख नही प्रकट किया पर सायना किसी के लिये क्या अपना भविष्य छोडने की कल्पना कर सकती है?उसके इतने वर्षों का श्रम और उपलब्धियां, उसकी उन्नति की यात्रा, क्या मात्र परिवार के नाम पर समाप्त हो जाएगी? पिछले पत्र
में ममा ने लिखा था '' तू जिससे शादी करना चाहती है करले , मुझे कोई आपत्ति
नही है , बस तू एक बार हां कर दे ''।ऐसा नही है कि उसने इस दिशा में सोचा नही
,एक दिन तो ममा ने स्पष्ट पूछ लिया था '' तेरे इतने मित्र हैं इनमें
कोई तो होगा जिसके लिये तेरे मन में कुछ विशेष होगा ?''तो वह खिलखिला कर हंस
पड़ी थी '' ओ ममा व्हाट रबिश ?ये सब मेरे दोस्त हैं '' उसके विचारों के पटल पर शशांक का चेहरा उभर आया ,वह स्मार्ट है उसके बराबर के पद पर है अनेको लड़कियां उसको जीवन साथी बनाने को आतुर हैं पर उसकी प्राथमिकता सायना है । अनेक बार वह परोक्ष रूप से उससे अपना मन्तव्य प्रकट कर चुका है पर सायना समझ कर भी नही समझती । शशांक में प्रभुत्व की भावना कुछ अधिक है वह तो चाहता है कि जब वह कहे सायना चली आए ,भले उसका अपना कोई भी काम क्यों न हो ।यदि किसी भी अन्य मित्र के साथ सायना चली जाय और उसे पता चल जाय तो महीनो रूठ जाता है,पता नही वह इतनी साधारण बात क्यों नही समझता कि सायना उसकी सम्पत्ति नही है ।अरे भई जैसे वह उसका मित्र है वैसे अन्य भी हैं अचल, वह तो अति व्यवहारिक है वह संसार के हर संबध में लाभ हानि का जोड़ घटाना करता है ऐसे व्यक्ति का क्या,क्या पता ,उसे सायना से अधिक उसका वेतन आकर्षित करता हो ।शलभ फिर भी ठीक है ,उसका ध्यान भी रखता है सायना को याद है कि आज तक जब भी उसे कोई समस्या आई है उसे वही ध्यान आया है,और उसने किसी न किसी प्रकार उसकी समस्याओं का समाधान किया ही है ।पर क्या वह उसके साथ पूरा जीवन व्यतीत कर सकती है ? शलभ अपने घर के लिये कुछ अधिक ही समर्पित है उसकी मिडिल क्लास फैेमिली उस पर कुछ अधिक ही आधारित है ।प्राय: ही शलभ के साथ रहने उसके भाई बहन मम्मी आती रहतीं हैं ' न बाबा न ' सायना अनायास अपने कानो पर हाथ रख लेती है ।कितने चैन से दिन व्यतीत हो रहे हैं जब मन हो सो कर उठो , चाहे जैसा घर रखो और चाहे जितने बजे डिस्को थिक से रात्रि में लौटो । डिस्को से याद आया कि पिछले माह वह और शलभ शनिवार को वीकएंड में डिस्को गए थे , पर एक ही घंटे बाद शलभ वापस जाने को आतुर हो उठा । सायना का तो अब जा कर डांस का पूरा मूड बना ही था ,वह बिगड़ गई '' ये क्या शलभ आज तो वीकएंड है आज तो हम लोग पूरी रात डिस्को में व्यतीत करते हैं,फिर आज तुम्हे क्या हो गया है?'' तब शलभ ने बताया ''बात यह है कि मम्मी आई हैं और वह घर पर खाने के लिये मेरी प्रतीक्षा कर रही होंगीं ''।मन मार कर उसे भी लौटना पड़ा , उसका अच्छा खासा मूड और शाम बेकार हो गई । उस दिन उसने शलभ को चेतावनी दे दी थी कि जब उसको जल्दी जाना हो तो पहले ही बता दिया करे ,उसके कारण सायना की शाम भी व्यर्थ हो गई । उच्चपद ,अच्छा वेतन,ऐश्वर्य , सभी सुविधाएं उसे प्राप्य थीं ,मन मर्जी की मालिक थी वह ,उसे अपने जीवन की व्यस्तता में कभी विवाह की आवश्यकता अनुभव नही हुई ,सम्पूर्ण स्वतंत्रता थी उसे। प्रत्येक समारोह में वह ही आकर्षण का केन्द्र होती।उसके तो इतने मित्र हैं कि शनिवार और रविवार को वह चाह कर भी घर पर नही रह पाती । मित्रों ने कभी भी उसे एकाकी होने का अनुभव नही होने दिया था । एक रविवार की रात वह पार्टी से घर लौटी तो उसकी परिचारिका श्यामा ने उसे एक लिफाफा थमाया ,उसके मन में पहला विचार यही आया कि ममा ने फिर वही राग अलापा होगा ,पर जब बेमन से उसने उसे खोला तो चौंक पड़ी ,वह उसके घर खाली करने का नोटिस था। संभवत: उसके कांट्रेक्ट की समय सीमा समाप्त हो गई थी । सायना चिन्ता में पड़ गई, घर बदलने का अर्थ था, पूरी व्यवस्था बदलना । आस पास घर तो मिलने से रहा। यहां तो श्यामा ने उसके घर की व्यवस्था भली भांति संभाली हुई है नई जगह सम्पूर्ण व्यवस्था एक सिरे से करनी होगी और इस समय तो वह अति व्यस्त है ,ए सी ए जैसी कम्पनी का उसकी कम्पनी में विलीनीकरण हो रहा है ,इस कार्य को पूर्णता देने में उसकी विशेष भूमिका है । दूसरे दिन वह कार्य पर गई तो उसका मन कार्य में पूरी तरह केन्द्रित नही हो पा रहा था ,उसे घर की चिन्ता थी । समर्थ ने उसे अनमनी देख कर कहा '' मिस सायना अगर आप अन्यथा न लें तो में आप की चिन्ता का कारण जान सकता हूं ?'' '' सायना ने अपनी समस्या उसे बताई,तो उसने चुटकी बजाते हुए कहा बस इतनी सी बात से ही आप इतनी परेशान हैं ?'' ''यह इतनी सी बात है?'' सायना ने चिढ़ते हुए कहा । समर्थ ने देखा कि सायना वास्तव में चिन्तित है तो हंसीं छोड़ कर उसने गंभीर हो कहा '' सायना तुम परेशान मत हो, आई प्रामिस कि मैं तुम्हारी पूरी सहायता करूंगा । यद्यपि समर्थ को आए कुछ ही समय हुआ था पर इतने दिनों में ही वह सायना का अच्छा मित्र बन गया था । प्रत्येक कार्य को पूर्ण समर्पण और गंभीरता से करता था कम्पनी के सी ई ओ भी उस पर भरोसा करते थे डूबते को तिनके का सहारा, सायना को भी एक आशा जगी कि हो सकता है समर्थ कुछ सहायता कर सके ।समर्थ ने घर ढूंढने में एड़ी चोटी का प्रयास किया पर फिर भी इतने अल्प समय में कोई प्रबंध नही हो पाया । अन्त में समर्थ ने हिचकते हुए कहा '' सायना इफ यू डोंट माइंड तुम मेरे साथ रह सकती हो ,वैसे भी मेरे फलैट में एक बेड रूम सेट बन्द ही पड़ा रहता है ''।पहले तो सायना ने मना कर दिया । उसे तो किसी के साथ रहने की आदत ही नही थी वह भला समर्थ के साथ कैसे निभा पाएगी ? पर घर खाली करने का दिन आ गया और उसके पर्याप्त पापड़ बेलने पर भी उसकी आशा के अनुकूल घर न मिला । कहीं नौकर मिलने में समस्या थी, तो कहीं आस पड़ोस मन का नही था इन दो चार दिनों के अनुभवों के पश्चात सायना को यही अधिक सुविधा जनक लगा कि वह समर्थ के साथ ही रहे , समर्थ के साथ रहने का अर्थ था उसकी प्रत्येक समस्या का पलक झपकते समाधन फिर एक बात और थी । सायना ने इधर अनुभव किया था कि समर्थ का साथ उसे सुखद अनुभूति देता था । घर ढूंढने के लिये वह प्राय: संध्या को साथ साथ घूमते ।अब सायना ने ध्यान दिया कि कार्य क्षेत्र के बाहर समर्र्थका एक अलग ही रूप है वह साथ चलता है तो सायना की छोटी छोटी आवश्यकताओं का उसे ध्यान रहता है, पता नही क्यों वह उसके साथ स्वयंको निश्चिंत अनुभव करती है और सबसे विशेष बात जो सायना ने अनुभव की वह यह कि कहां अचल,शलभ,मोंटू उसके आगे पीछे घूमते रहते हैं ,पर समर्थ उसका ध्यान तो रखता है पर कभी उसके प्रति कोई विशेष रूचि नही प्रदर्शित करता । सायना जैसी सर्वगुण सम्पन्न सफल युवती के लिये तो यह उपेक्षा उसका अपमान था ,पर यह विचित्र ही था कि उसकी इसी विमुखता के प्रति सायना आकर्षित होती जा रही थी । संभवत: यही कारण था कि थोड़ी सी न नुकुर के पश्चात वह अपना सामान उठा कर समर्थ के घर पर ही आ गई ।समर्थ का फलैट सुव्यवस्थित था उसकी बाई खाना बनाती थी ,सफाई करती थी,उसका चौकीदार कुछ पैसे देने पर कपड़े पास की लांड्री में धुलवा और प्रेस करवा देता था ।घर की आवश्यकता का सामान डिपार्टमेंटल स्टोर से फोन करने पर घर पर आ जाता था । प्रात: सायना और समर्थ एक ही कार से निकलते कभी सायना अपनी कार निकाल लेती तो कभी समर्थ अपनी । संध्या को यूं तो दोनो नौ से पहले नही लौटते पर साप्ताहांत में वे पूरी रात पार्टी करते या घूमते फिरते ।महानगर की अति व्यस्त जीवन शैली में किसी के पास इतना समय न था कि उनके निजी जीवन में अधिक ताकझांक कर पाता । यह तो फुर्सत में बैठे लोगों का उत्तर दायित्व होता है कि समाज के चरित्र का संरक्षण करें । वैसे भी समरथ को नही दोष गुसांईं ।सफल और आत्म निर्भर व्यक्ति का कौन सा आप के सहारे हुक्का पानी पर चल रहा होता है जो आप उसे बन्द करने की धमकी दें ।हां दोनो के परिवारों ने अवश्य विरोध किया , । सायना के ममा पापा उसके इस निर्णय से नाराज हो गए थे ,उन्होने उसे समाज की उंच नीच समझाई पर उसका निश्चय अंगद का पांव सिध्द हुआ ।उन्होने आंसू बहाए अंतिम अस्त्र के रूप में संबध तोड़ने की धमकी भी दे डाली पर निजी स्वतंत्रता के लिये उन्हे कोई भी मूल्य स्वीकार्य था। उनका तो एक ही नारा था ये मेरी लाइफ है। अंतत: अपने संस्कारों में जकड़े ममा पापा और सायना की राहें भिन्न दिशाओं में मुड़ गईं । इतनी निकटता ने मन व तन दोनो की दूरियां मिटा दीं ।उनका जीवन उनकी इच्छा के अनुसार चल रहा था ,दोनो की निजता अक्षुष्ण थी, कौन कहां जाता है किसके साथ जाता है इस विषय में कोई हस्तक्षेप नही करता था ।दोनो में एक अनकहा समझौता था ,वह एक दूसरे के जीवन में इतना ही हस्तक्षेप करते जितना दूसरा चाहता था । सायना को आज सब कुछ वह मिला हुआ था जो वह चाहती थी ।जब तक समर्थ के साथ उसे अच्छा लगेगा रहेगी ,नही तो अलग हो जाएगी कम से कम पूरे जीवन निभे या न निभे साथ रहने का बंधन तो नही है न ? ,ममा पापा के विछोह की कसक उसके मन में एकान्त में प्राय: दस्तक दे ही देती थी ,पर वह अपने प्राप्य के मद में उसे धूल की भांति झटक देती । सायना
डाक्टर की क्लीनिक के बाहर इधर से उधर चक्कर लगा रही सायना घर आ कर बिस्तर पर ढह गई । अब वह क्या करे इस बच्चे को जन्म तो देना ही था ।क्षण भर को उसके मन में विचार आया ,तो क्या उसके लिये मुझे अपनी स्वतंत्रता से समझौता करना होगा ?नही नही वह यह नही कर सकती वह किसी बंधन में बंधने वाली नही है । वह तो स्वयं ही इतनी सक्षम है , यह बच्चा केवल उसका होगा, वह उसे अपना नाम देगी ,अब वह दिन नही रहे कि पिता के नाम देना आवश्यक हो, अब तो कानून ने भी मां के नाम को भी मान्यता दे दी है । सायना ने निश्चय कर लिया कि वह बच्चे को जन्म देगी और एकाकी ही पालेगी। समय के साथ
एक अद्भुत अनुभूति उसके अंदर सिर उठा रही थी ,एक नन्हे भोले से अपने ही अंश
की कल्पना मात्र उसे रोमांचित कर देती । उसके जैसी बिंदास युवती को जीवन में
संभवत: प्रथम बार स्वास्थ्य और पौष्टिक भोजन खाने की चिन्ता हुई, अन्यथा
मम्मी बचपन से उस पर प्रत्येक हथकंडे अपना कर हार गईं पर उसे दूध फल का महत्व
न समझा पाईं। उस शनिवार तो अति हो गई जब समर्थ ने उसे डिस्को चलने को कहा तो
उसने मना कर दिया ,समर्थ ने उसे ऐसे देखा मानों उसकी सामान्यता को परख रहा हो
,यह वही सायना है जिसे शनिवार की रात तो घर में कोई रोक ही नही सकता था । तीन दिन हो गए थे सायना की काम वाली बिना बताए ही बैठ गई थी ।सायना का पूरी कार्य प्रणाली ही अवरूध्द हो गयी थी ,सायना को तो यह भी नही पता था कि चाय और चीनी कहां है , ऐसा नही है कि पहले कभी बाई ने छुट्टी नही ली थी पर तब और अब में बहुत अंतर आ चुका था ।तब तो वह ऐसे अवसर पर बाहर ही डिनर और लंच ले लेती थी पर अब उसे सुबह दूध लेना होता ,अंकुरित दाल और फल लेने होते ऐसे में बाई के न आने से उसे स्वयं ही सब करना पड़ रहा था । तीन दिन बाद बाई आई तो सायना बरस पड़ी '' तुम कहां चली गई थी, जानती नही इस समय तुम्हारा रहना कितना जरूरी है ''उसकी इस डांट पर बाई ने अपनी पीठ खोल कर दिखा दी ,उस पर पड़े मार के चिन्ह स्वयं ही अपनी कहानी कह रहे थे । सायना स्तब्ध हो गई ,वह सोच भी नही सकती थी कि कोई इतना कूर हो सकता है उसने पूछा ''यह किसने किया ''तो बाई ने बताया '' अरे मेम साब हमरा मरद ननकू है न उहै पी कर हमरी यह हालत करे है '',सायना ने आक्रोश से कहा '' तू क्यों उस निर्दयी व्यक्ति के साथ रह रही है खुद कमाती है अलग रह ले '' इस पर बाई ने कहा '' मेम साब ऐसा नही है कि हम इस बारे में सोचे नही हमरे समाज में तो ई हुआ करता है पर उस चण्डाल में एक खास बात है कि वह हमे लाख मार ले पर अपने बिटवा को जान से जादा चाहे है बिटवा भी बाप के बिना न सोवे है ऐसे में हम ऊकर बाप कैसे छुड़वा दें अरे थोड़ा मारत ही तो है ,अपनी औलाद के लिये क्या हम यह भी नही सह सकते.'' फिर अपनी रौ में ही बोली '' भगवान ने औरत मरद एही लिये बनाया है कि बच्चे को मा और बाप दोनो चाही वर्ना उपर वाला चाहता तो क्या नही कर सकता ,बिना मरद के ही औरत मां बन जाती '' बाई तो कह कर अपने काम में व्यस्त हो गई पर अन्जाने ही जो गूढ़ तथ्य वह कह गई उसने सायना को झझकोर दिया । आज पहली बार वह स्वयं को उस अनपढ़ बाई के समक्ष क्षुद्र अनुभव कर रही थी वह इतनी मार तक अपने बच्चे को पिता देने के लिये सह रही थी और वह मात्र अपनी स्वतंत्रता के लिये उस नन्हे मुन्ने को ,जिसे वह सब कुछ देने के सार्मथ्य का दर्प करती है, उसके मौलिक अधिकारों से ही वंचित कर रही है, '' ममा सबके पापा हैं,मेरे कहां हैं। मां मुझे पापा चाहिये । मां तुमने अपनी स्वतंत्रता के लिये मुझे पापा नही दिये । ममा तुम स्वार्थी हो । '' सायना को लगा उसके चारों ओर से आने वाले की निरीह ध्वनि प्रतिध्वनित हो रही है । ''नही नहीं। ''कह कर वह खड़ी हो गयी । उसके मन में अनेक प्रश्न सिर उठा रहे थे।क़ल को बच्चा बड़ा होगा तो क्या उसे पापा की आवश्यकता नही होगी यदि उससे कोई कहता कि ममा या पापा में से एक को चुन लो तो वह एक के साथ रहना पसंद करती ? वह तो पैरेंट टीचर मीटिंग में भी हठ करके दोनो को बुलाती थी ।फिर उसे क्या अधिकार है उस आगन्तुक को उसके पापा से वंचित करने का तो क्या इसके लिये उसे जीवन के वे सारे बंधन स्वीकार करने होंगे जिनको वह नकारती आई है ।सायना अंत'र्द्वन्द में उलझती जा रही थी,अचानक सायना उठ बैठी ।उसने सम्पूर्ण संसार का सामना कर लिया था पर उस आने वाले के आरोपों की संभावना ने ही उसे झझकोर दिया ।आज उसे अनुभव हो रहा था कि अब यह लाइफ मात्र उसकी नही है और वह सोच रही थी कि आज ही समर्थ से विवाह के विषय में बात करनी होगी।
अलका प्रमोद
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