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एडवांस
कुछ एनाउंसमेंट हो रहा था. पास ही मे कोई प्लेट्फार्म का रहवासी अपने बर्तन
को पत्थर पर रगड्कर उसकी कालिख दूर करने का प्रयास कर रहा था.
खर्र.. खर्र..खड की आवाज़ एनाउंसमेंट
और प्लेट्फार्म के कोलाहल से ऊपर उठकर बर्बस ध्यान खींच रही थी. उसकी
एकाग्रता व लगन उसके काम को इतना मह्त्वपूर्ण बना रहे थे के उस बेसुध को
रोकने टोकने का कोई साहस नहीं कर रहा था.
कुछ देर बाद,
खोमचे वाले,
कुली और यत्रियों की हलचल से लगा कि ट्रेन आ रही है. ट्रेन दिखने भी लगी.
कुली का अता पता नहीं था.
गाडी आ चुकी थी जनरल डब्बे की भीड देखकर रूह फाख्ता हो रही थी.
अंततः कुली को कोसते हुए सारा सामान खुद लादकर चल दिया. अंततः कुली को
कोसते हुए सारा सामान खुद लादकर चल दिया.
डॉ. धीरेन्द्र कुमार स्वामी
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