मुखपृष्ठ कहानी कविता | कार्टून कार्यशाला कैशोर्य चित्र-लेख |  दृष्टिकोण नृत्य निबन्ध देस-परदेस परिवार | फीचर | बच्चों की दुनिया भक्ति-काल धर्म रसोई लेखक व्यक्तित्व व्यंग्य विविधा |   संस्मरण | साक्षात्कार | सृजन डायरी | स्वास्थ्य | साहित्य कोष |

 

 Home | Boloji | Kabir | Writers | Contribute | Search | FeedbackContact | Share this Page!

 

भटके राही

चारों तरफ बर्फ बिछी हुई थी । वह एकटक उस नजारे को देख रहा था । कितनी साफ सुथरी और पूर्ण रूप से धवल । छूने में बिल्कुल ठंडी और शरीर में हल्की सी कंपकंपी पैदा करती हुई । काश, सीमा भी ऐसी ही होती । उसे क्या पता कि विनोद सैकडों मील दूर इस बर्फ से ढके टेंट में उसे याद कर रहा है । उतना ही प्यार करता है जैसा हमेशा करता था । उसके कानों में वे सारे शब्द कौंधने लगे ।'' विनोद, तुम बात को बहुत तूल दे रहे हो ।''
''
तुम हो ही ऐसी ।''
''
कैसी हूं मैं ।''
''
निहायत ही बेवकूफ । उच्च दर्जे की बदतमीज ''
''
अपने शब्दों को लगाम दो, विनोद ।''
''
क्या लगाम दूं , तूने मेरा जीना हराम कर दिया है ।''
''
तूने कौनसी कसर छोड रखी है । तेरे साथ रहने और नरक में रहने में कोई अन्तर है । पता नहीं कहॉं मैं तुम जैसे उज्जड और सडे आदमी से शादी कर बैठी।''
''
हरामजादी, तूने फिर मुझे उज्जड और .............'' कहते हुए विनोद ने सीमा के गाल पर जोर से थप्पड जड दिया ।
सीमा ने क्रोधित नजरों से विनोद की ओर देखा । अपने एक हाथ से अपने गाल को सहलाया और तेज कदमों से कमरे के बाहर निकल गई । विनोद सामने ही बीछे डबल बैड की ओर गया और अपने दोनों हाथों से सर पकड कर बैठ गया ।
उसे दूर से ही खट-पट की आवाज साफ सुनाई दे रही थी । सीमा का स्वभाव वह जानता था । शादी को दो वर्ष हो चुके थे । मॉं भी बन चुकी थी । एक छः महिने की बच्ची भी थी लेकिन बचपना उतना का उतना । वही जिद्धीपन वही बात-बात पर सवालों की झडी कर देना । निभाव की पूरी तरह से कमी ।
बच्ची के जोर से रोने की आवाज आई और उसी के साथ ही उसे साफ सुनाई पडा
,
''
विनोद, अब मैं कभी नहीं आऊंगी । बहुत हो चुका । मैं जा रही हूं ।''
जोर से घर के मुख्य दरवाजे को खोलते हुए वह बाहर निकल गई । विनोद ने एक बार तो चाहा कि जाकर सीमा को रोक ले लेकिन उसके मन ने उसे रोक दिया । रोजाना की झिक-झिक से तो यही रास्ता अच्छा है । जब अकल ठिकाने आयेगी तो अपने आप आ जाएगी । लेकिन अचानक उसे बच्ची का खयाल  आया । वह तो उसका खून है, भला वह उसे कैसे ले जा सकती है । तुरन्त ही उसके दूसरे खयाल ने उसके मन को दबा दिया । कौन करेगा उस नन्ही सी जान की देखभाल यहॉं । बडी हो जाएगी तो जाकर ले आऊंगा । उसने अपने मन को कडा किया और बैड पर लेट गया ।
जब नींद खुली
, शाम हो चुकी थी । वह उठने ही जा रहा था कि फोन की घंटी बज उठी । दूसरी तरफ से मेजर राजेश का फोन था । उसकी पोस्टिंग हो चुकी थी । वह भी वहॉं से सैकडों मील दूर 'नेफा' में, चीन की सीमा के पास । तीन दिन बाद ही  जम्मू से निकल जाना है । अर्जेंट समाचार था । सुनकर विनोद एक बार तो दुखी हुआ लेकिन जाना तो है ही । क्षण भर सोचने लगा, तो क्या सीमा को बता दूं कि वह बहुत दूर जा रहा है । लेकिन एक बाद फिर उसके मन से आवाज आई 'नहीं ' । क्या समझती है, अपने आप को । मैं बिना बताए ही जाऊंगा और कभी भी बात नहीं करूंगा । क्या कमी है मेरे लिए लडकियों की । सेना में कैप्टन हूं । अच्छा कमाता हूं । सुंदर भी हूं । मैं सीमा से कोई बात नही करूंगा । यद्धपि वह अपने मायके पहुंच गई होगी लेकिन मुझे क्या ।
वह अनमनेपन से उठा । पास में ही उसकी बुआ रहती थी अतः तैयार होकर उनके घर की तरफ निकल गया । सामान्यतया वह अपने मन की बात बुआ को बता दिया करता था । ज्योंही बुआ के द्घर पहुंचा
, सामने बुआ ही मिल गई । उसने बुआ के पैर छुए और आज की तमाम बातें बुआ के सामने उगल दी । सुनकर बुआ को बहुत दुःख हुआ और वह बोली,
''
विनोद, यह तो अच्छा नहीं हुआ । ''
''
बुआ, मेरे पास भी अब इसके सिवा कोई चारा नहीं था ।''
''
लेकिन इस सबके लिए तुम्हीं जिम्मेदार हो । ''
''
मैं क्यूं ।''
''
शादी भी तुमने अपनी मर्जी से ही की थी ।''
''
तो क्या हुआ । ''
''
सब कुछ तो हो गया । जब से शादी हुई है, क्या तुम दोनों सामंजस्य बिठा पाए ।''
''
मैंने तो बहुत कोशिश की । सीमा का जिद्धीपन, उसका बचपना, क्या-क्या न बताऊं । वह हमेशा से ही तो मुझमें मीन-मीख निकालती रहती है । ''
''
इसका मतलब यह तो नहीं कि तुम दोनों हमेशा ही झगडा करते रहो । हमें देखो, कितना निभा रहे हैं । क्या कोई आदमी वास्तव में पूर्ण होता है । जब नहीं तो कहीं न कहीं, तो एडजस्ट करना ही पडता है ।''
बुआ की बात सुनकर विनोद चुप हो गया । वह कुछ बोल न पाया । जब बुआ ने उसे चुप देखा तो वही बोल पडी
,
''
विनोद तुम इतनी दूर जा रहे हो, अपने पते-ठिकाने तो देते जाओ । ''
''
हां बुआ, मैं सारे संपर्क सूत्र दे जाऊंगा । यहां तक की जाने के बाद अपनी तमाम दिनचर्या भी बता दूंगा । ''
''
मुझे विश्वास है, सीमा मुझे जरूर फोन करेगी । मै उसे समझाऊंगी । ''
वह वहां थोडी देर और रूका और वापस अपने घर लौट आया। आज वह बहुत ही उदास था । किसी भी काम में मन नहीं लग रहा था । जितना सोचता जाता था उतना ही उलझता जाता था । उसके सीमा के साथ बिताए दो साल कई बार आंखों के सामने से गुजर गए । वह फिर बिना खाना खाए ही बैड पर लेट गया । वह आंख मुंदने की कोशिश करने लगा । अचानक जैसे एक खिलखिलाती हंसी उसके कानों में गूंजी
,
''
क्यों चौक गए न ।''
''
अरे तुम ।''
''
हॉं, मैं ।''
''
लेकिन तुम तो कहकर गई थी कि आज दिन भर अपनी सहेली के साथ रहोगी और देर रात लौटोगी ।''
''
मन नही लगा, तुमसे तीन घंटे दूर क्या रही कि जैसे तीन साल बीत गए ।''
''
क्यों मजाक करती हो ।''
''
मजाक नहीं विनोद, यह सच है । मैं तुम्हें बहुत प्यार करती हूं  ।''
''
और मैं भी ।''  और इसी के साथ ही दोनों खिलखिलाकर हंस पडे । सीमा को अपनी बाहों में लेते हुए विनोद ने कहा,   '' जानती हो सीमा, तुम हंसती हो तो ऐसा लगता है जैसे पूरा घर हंसता है ।''
''
हूं ।''
''
और जानती हो, पूरा घर प्रकाशमय हो जाता है ।''
''
सच ।''
''
शत-प्रतिशत सच ।''
''
कुछ भी शून्य नहीं ।''
''
नहीं ।'' फिर दोनों खिलखिलाकर हंस पडे । सीमा की हंसी तो और भी तेज होती गई । अचानक विनोद चिल्लाया, ''सीमा'' । वह तुरंत बैड से उठा और सामने देखने लगा । उसे कुछ दिखाई नहीं दिया । वह अपने आप से कुछ बुदबुदाया । उसका मन फिर उसके दिल पर हावी हो गया । जब सीमा उससे इतना प्यार करती है तो उसे छोडकर क्यों गई । रूक सकती थी । नहीं, मैं नहीं मनाने वाला । देखता हूं, कब तक हेकडी में रहती है । मैं भी ज्यादा दिनों इंतजार नहीं करने वाला । बुआ कल जब बुरा भला कहेगी तो देख लूंगा । समझा लूंगा उन्हें ।वह चाहता था कि किसी तरह उसे नींद आ जाए । वह सोने का उपक्रम करने लगा । उसे एक झपकी आई ही थी कि टेलीफोन बज उठा । उसने रिसीवर उठाया । दूसरी तरफ एक जानी-पहचानी आवाज लगी ।
''
आप कौन बोल रही हैं ।''
''
विनोद, भूल गये क्या मुझे ।'' कौन हो सकती है । वह सोचने लगा । अचानक उसे याद आया, सुधा । क्या उसे भी अभी फोन करना था । उसने जवाब दिया,
''
सुधा, तुम बोल रही हो ।'',
''
हां मैं । आखिर तुम्हें याद तो आया ।''
''
सुधा प्लीज, फिर कभी बात करना । आज मूड ठीक नहीं है ।''
''
तभी तो बात करूंगी ताकि तुम्हारा मूड और ज्यादा खराब हो जाए ।''
''
नहीं, ऐसी बात नहीं है ।'',
''
तो क्या है, बताओगे नहीं ।''
एक बार तो उसने सोचा कि सुधा को कुछ न बताए । अब वह उसकी दोस्त नहीं है, बल्कि एक दुश्मन है जो कुछ भी कह सकती है । ''
''
विनोद, बोलो क्यों मूड ठीक नहीं है ।''
क्षण भर उसने सोचा लेकिन  फिर भी उसके मुंह से निकल ही गया,
''
सीमा घर छोडकर चली गई है ।''
ज्योंही विनोद ने कहा उधर से तेज ठहाका गूंज उठा । लगता था टेलीफोन भी हाथ से छूटकर नीचे गिर जाएगा । सुधा खूब हंस रही थी । ऐसे हंस रही थी जेसे उसकी जिंदगी का मजाक उडा रही हो । एक बार तो विनोद भी सोचने पर मजबूर हो गया कि आखिर यह रहस्य उसने क्यों खोला । क्षणभर के लिए वह भी पश्चाताप करने लगा ।
''
विनोद तुम इसी तरह जलते रहोगे ।''
सुधा की आवाज में तेजी थी । उसकी आवाज से ईर्ष्या और बदले की आग साफ झलक रही थी ।
''सुधा पुरानी बातों को भूल जाओ ।''
''
कैसे भूल जाऊं । तुमने मेरे साथ धोखा किया है । मुझे खुशी है कि मैंने आज सही वक्त पर तुझे झिंझोडा है ।''
''
सुधा, मैं तुमसे अब और बात नहीं करना चाहता ।''
''
मत करो लेकिन मेरा श्राप तेरा पीछा करता रहेगा । एक बार फिर याद दिलाती हूं  । विनोद, तुमने मेरा दिल तोडा है । तुम्हारा भी कोई दिल तोडेगी और जिंदगीभर तुम जलते रहोगे ।''
ऐसा कहकर सुधा ने फोन रख दिया ।
सुधा की बातों ने उसे और विचलित कर दिया । उसे सुधा से बात ही नहीं करनी थी । कब किया था प्यार उसे । साथ पढती थी
, वह उसे दोस्त मानता था । उसे कभी प्रेमिका की नजर से देखा ही नहीं । पता नहीं क्यों उसने एक रोज भातुकतावश विनोद से कह दिया कि वह उसे हद तक चाहती है । उसे क्या पता था कि उसके ना कहने पर वह इस स्तर तक बोल देगी कि वह जीवनभर जलता रहेगा ।
वह पूरी रात सो न पाया । सारी रात करवट बदलते निकल गई । सुबह उठकर अपनी यूनिट चला गया । और फिर तीन दिन बाद नेफा की तरफ रवाना हो गया । जाते वक्त उसने एक नजर सीमा की फोटो पर डाली । उसकी सुंदरता क्षणभर के लिए उसमें समाई और निकल गई ।
'' साबजी, चाय ।''
इसी के साथ ही उसकी तंद्रा टूटी । सामने देखा एक छोटा सा गोरखा सैनिक उस बर्फीले वातावरण में भी चाय की ट्रे लेकर खडा हुआ है ।
उसने उसके हाथ से चाय ली और जल्दी-जल्दी पी ली । चाय वैसे ठंडी हो चुकी थी । ट्रे लेकर वह गोरखा वापस जा चुका था ।
छः महिने बीत चुके थे । उसने कई बार बुआ से भी संपर्क किया लेकिन सीमा ने कभी उसके बारे में जानने की कोशिश नहीं की । बुआ ने भी काफी कोशिश की लेकिन सीमा पत्थर की मूरत बनी रही । उसे कई बार अपनी बच्ची की भी याद आई लेकिन वह करता भी क्या । इस इलाके में कभी-कभी तो सैनिकों के साथ मन लग जाता था लेकिन ज्यादातर वक्त तन्हाई ही में बीतता था । उसके कानों में सुधा के शब्द बार-बार हथोडे की तरह चोट करते रहते और वह उन्हे झेलता रहता ।
वह ड्यूटी पर जाने के लिए खडा हो गया । उसी वक्त उसकी नजर सामने दो चूहों पर पडी । इस ठंडे वातावरण में भी पता नहीं इस इलाके में कहॉं से चूहे आ जाते थे । दोनों चूहे कभी इधर तो कभी उधर आ जा रहे थे । विनोद उन्हे ही देखने लगा और सोचने लगा कि एक चूहा जब भी टेंट में आता था तो एक बार में ही वापस निकल जाता था । लेकिन जब से दोनों चूहे साथ आने लगे तो काफी देर तक साथ रहते हैं और साथ ही भाग जाते हैं । इन जानवरों में इतना प्यार ।
सोचते ही जैसे वह एक बहुत बडी नींद से जागा । यह मैं क्या कर रहा हूं । इन छोटे से जानवरों के प्रेम में और उसके प्रेम में क्या अन्तर है । यह भी प्यार करते हैं और उसने भी तो प्यार किया है । भला ताली कभी एक हाथ से बजी है । उसे बजाने में उसका भी तो हाथ है ।

'
नहीं,' अब ऐसा नहीं होगा, कहते हुए उसके होंठ कॉंपे । सीमा मुझसे अलग नहीं हो सकती । वह तो मेरी जिन्दगी का अभिन्न अंग है । अगर वह मुझे याद नहीं करती तो क्या हुआ । मैं उसे याद दिलाऊंगा, उसका विनोद उसके साथ है । क्या करेगा सुधा का श्राप ।
वह तुरन्त उठा और अपनी वर्दी बदलने लगा । मैं अपने कम्पनी कमान्डर से आज ही छुटटी मॉंगूंगा । मुझे सीमा से मिलना है । मुझे मेरी बच्ची बार-बार याद आ रही है । मैं आज ही जम्मू के लिए रवाना हो जाऊंगा । हम भटके राही फिर मिलेगें ।

कुछ ही देर बाद वह कंपनी कमांडर के आफिस में था । 

मेजर रतन जांगिड
मई 1, 2007

 

Top

Hindinest is a website for creative minds, who prefer to express their views to Hindi speaking masses of India.

 

 

मुखपृष्ठ  |  कहानी कविता | कार्टून कार्यशाला कैशोर्य चित्र-लेख |  दृष्टिकोण नृत्य निबन्ध देस-परदेस परिवार | बच्चों की दुनियाभक्ति-काल डायरी | धर्म रसोई लेखक व्यक्तित्व व्यंग्य विविधा |  संस्मरण | साक्षात्कार | सृजन साहित्य कोष |
 

(c) HindiNest.com 1999-2021 All Rights Reserved.
Privacy Policy | Disclaimer
Contact : hindinest@gmail.com