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प्राक्कथन
भारतीय पौराणिक इतिहास सम्पूर्ण गल्प नहीं है। हां प्रतीकात्मक गल्प का प्रयोग अवश्य हुआ है। ढेरो नवान्वेशित सूचनाएं कागजों पर उतरती रही । यथा सबसे प्राचीन सभ्यता ईसा से पांच हजार वर्ष पूर्व की मोहन -जोदडो व हडप्पा सभ्यता रही है। ये द्रविड थे फिर आर्य आए तत्पश्चात ईसा काल श्शुरु हुआ किन्तु इस इक्कीसवी सदी में ज्ञान का विस्फोट हुआ है और ढेरों सूचनाएं गलत साबित होती जा रही है। आवश्यकता है उपलब्ध ज्ञान को पुन: खंगालकर उसे पुन: व्यवस्थित करने की ताकि सृष्टि के विकास व सभ्यता क सोपानों पर हम एक नवदृष्टिपात कर सके। हाल ही में नासा ने , रामसेतु, जिसे कालांतर में 'एडमब्रिज' भी कहा गया है, जो भारत व लंका को जोडता है, को लगभग साढे सत्रह लाख वर्ष पुराना बताया है और यही अद्भुद कडी कई भेदों को प्रकट करती है साथ ही इतिहास को भी एक नई अंतर्दृष्टि देती है। यदि नासा पर हम विश्वास करें और हमें करना भी करना भी चाहिए क्यों कि यह विश्व की सर्वोच्च वैज्ञानिक संस्था है। तो राम -रावण युध्द का काल भी लगभग सत्रह- अठारह लाख वर्ष पूर्व का बैठता है। चूंकि राम आर्यसभ्यता की चरम विकसित अवस्था के दौर के युवराज थे अत: यह भी तय होता है कि मनुष्य का विकास लगभ्ग उससे पांच लाख वर्ष पूर्व हो चुका होगा।
अब कई रहस्य की तहें उघडती
सी प्रतीत होती होती है। भूगोल के पुरातत्ववेता यह बता चुके हे कि लाखों वर्ष
पूर्व
दक्षिणी अमेरिका व अफ्रीका
महा
देव प्रजाति गौरवर्ण थी उनका
राजा इन्द्र कहलाता था । ये प्रजाति उच्च अक्षांशो में उत्तर में निवास करती
थी जिनके क्षेत्र वर्तमान कनाडा ,
ब्रिटेन , स्केंडीनेवियनदेश
साइबेरिया आदि था।
मनु प्रजाति जो मनुष्य भी
कहलाती थी ये वर्तमान संयुक्त राज्य अमेरिका
, यूरोप मध्य एशिया व
दक्षिण एशिया में स्थित थी । ये गेहुएं व गौरवर्ण से मिलेजुले थे । ये आपस
में मित्र प्रजातियां थी जिनकी एक दूसरे की युध्द में सहायता सामान्य बात थी
। रामायण काल के राजा दशरथ देवताओं के पक्ष में युध्द करने गए थे इसका स्पष्ट
उल्लेख है।
दानव प्रजाति विषुवत रेखीय
जलवायु वाली थी । काली त्वचा,
लाल आंखे मजबूत कद काठी एवं समुद्रों की अधिपति थी ।
समस्त दक्षिण गोलार्ध्द पर इनका शासन था । यही नहीं धुर दक्षिणी एशिया की कुछ
शक्ति शाली जनजातियां यथा वानर , रिक्ष,
गीध आदि दानव अथवा असुर संस्कृति से मेलजोल रखते थे। इस
प्रजाति में मय, रावण,
पौलित्स्य, बाणासुर ,
सहस्त्रबाहु आदि अत्यंत प्रभावी अधिराज हुए जिनका उल्लेख विभिन्न कथाओं में
होता रहा ।
इस काल को समझने में सबसे
आवश्यक है इस काल के प्रभावशाली एवं परम् व्यक्तित्वों को जानना । देव
प्रजाति में इन्द्रो से भी अधिक प्रभावशाली व्यक्तित्व था बह्मा नामक
प्रबुध्द वैज्ञानिक एवं सृष्टिकर्ता का जिसने कई अमोध अस्त्रो के साथ
भयावह ब्रहास्त्र का निर्माण किया था और यह ब्रह्मास्त्र हमारे वर्तमान
परमाणु आयुधों से अधिक विनाशकारी था। ऐसे कई अस्त्र समय -समय पर मनु प्रजाति
के मित्र राजाओं को
भी निर्यात किए जाते थे । इनका निवास साइबेरियाई प्रदेशों में कहीं था ।
इन्हें देवों ने सृष्टिकर्ता का दर्जा दिया था।
इस प्रकार सिर विहीन दानव
संस्कृति का समूचा भार शिव के प्रिय पात्र एवं होनहार व विध्दान दानवेन्द्र
पौलिस्त्य पौत्र रावण पर आ पडा । यधपि रावण छद्मवेष में कैलाश तक शिव को
लौटाने भी गया किन्तु शिव के आर्य संस्कृति के गुणगान से आहत रावण ने राम को
इसका मुख्य उतरदायी मानते हुंए सीताहरण को अंजाम दिया व दिव्य पुरुष राम
ध्दारा अत्यंत धैर्य एवं चतुराई पूर्वक दानवों के प्रभाव क्षेत्र की
जनजातियों वानर ,
नाग, गीध,
रिक्ष आसदि को आर्य संस्कृति में समाहित कर दानव संस्कृति
के समापन का शंखनाद किया गया ।
सत्रह लाख वर्ष पहले के यह
रोमांचित कर देने वाला इतिहास कई भौगोलिक व अन्य घटनाओं से विलुप्त होता गया।
कालांतर में अटलांटिक महासागर का निर्माण कई कालंखंडो का अंतराल हमारे लिए
अबूझ पहेली बन गया । मगर नासा ने रामसेतु का समय निर्धारित कर इतिहास को
झकझोर दिया व इस कथा ने अपना जन्म लिया।
कथा का प्रारंभ देव
दानव संग्राम की पृष्ठभूमि से है जब इस खबर से दानवेन्द्र अपने आराध्य शिव के
सभागर में जो कि मध्य अफ्रीका में था एकत्र हो रहे है,
एवं शिव के मार्गदर्शन व रणनीति हेतु प्रतीक्षारत् है।
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अरविन्दसिंह
आशिया |
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