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सूरजमुखी , पीला अँधेरा और गोल्डफिश  
(द रेन सॉंन्ग) 
उसकी आवाज़ फुसफुसाती आ रही थी । मैंने पूछा था ,
क्या ? फिर से बताना
रेन , उसने दोहराया ,
रेन ?
फिर बच्चों को समझाते हैं जैसे आवाज़ में कहा ,
आर ए आई एन ..रेन
बारिश ?
उसने इंसिस्ट किया ,
नहीं रेन ।
 
पर इस बार आवाज़ में एक छिपी हँसी थी ।


अँधेरा था और बाहर बारिश गिर रही थी । और ये लड़की मुझे पागल कर रही थी । दुनिया के किस छोर में बैठी मुझे पागल कर रही थी ।

तुम हो ? उसकी आवाज़ तैरती आ रही थी नीले अँधेरे में । मुझे लगा छू लूँ उसकी आवाज़ को , हाथों से सहला लूँ फिर गप्प से मुँह में भर लूँ । उसकी आवाज़ फिर अंदर गूँजे और हरेक टिम्बर में उसको पहचान लूँ ।
मैं कुछ जवाब देता उसके पहले फोन डिसकनेक्ट हो गया ।

अँधेरे में अँधेरे को देखते मैं सोचता हूँ क्या किसी का नाम रेन हो सकता है ? बाहर अब भी बारिश हो रही है । अकेले में ये रॉंन्ग नम्बर कोई नियति का फेंका हुआ पासा है शायद । सिगरेट की जलती हुई टोंटी से उठता धूँआ मेरे जीभ पर उसकी आवाज़ का धूँआ धूँआ स्वाद है ।

उसकी आवाज़ टूटी टूटी सी खराशदार है , जैसे टोबैको मेरी जीभ पर , जैसे बचपन में देखी व्यूमास्टर पर जैंज़ीबार , और जैंज़ीबार कहते ही मेरे शरीर में एक सिहरन होती है और मैं इस शब्द को बार बार दोहराता हूँ | वहाँ का एक दृश्य गाँव का , उस आदमी का जो नीचे बिछी मिर्चों को या फिर शायद कॉफी बींस ? अब याद नहीं , हाथ से फैलाता मगन है । पीछे घर के बगल में छाया में टिकी साईकिल जो शायद साईकिल ही नहीं थी , बस कल्पना में साईकिल थी , ऐसी उसकी आवाज़ थी , शायद सिर्फ कल्पना में ।


रात के अँधेरे में मैं पुकारता हूँ ज़ोर से
रेन ! रेन !
फिर अपनी आवाज़ को थामता हूँ और स्वाद लेकर कहता हूँ
रेन
तीन बार और कहूँगा तो घँटी बजेगी और उसकी आवाज़ धीमे से फुसफुसा कर कहेगी
तुम हो ?


तीन बार कहने पर भी फोन नहीं बजता । मैं नीन्द में खर्राटे भरता सपने देखता हूँ फिर बारिश की । फिर हड़बड़ा कर आधी रात उठ बैठता हूँ । पता नहीं क्यों , पर मुझे फे वॉन्ग की याद आती है । शायद सब एक सपना है ।

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मैं किसी आवाज़ को थाम कर रेगिस्तान पार कर जाना चाहता हूँ । उस आवाज़ में माँ की आवाज़ की प्रतिध्वनि है , किसी मैदान में खेलते दूर से अचानक हवा में माँ की आवाज़ तिरती आती थी , धीमी बुलाती हुई , जिसमें घर की गर्मी होती थी , चूल्हे के पास ताज़ा सिंकती रोटी पर गर्म चुपड़े घी की महक होती थी , माँ के पसीने और टैल्कम पाउडर की मिली जुली प्यारी खुशबू होती थी और कैसे मैं अचानक अधीर खेल बीच में छोड़ कर भाग आता , पीछे दोस्तों की सम्मिलित गुहार दरवाज़े तक मेरे साथ आती , साथ हाँफते दौड़ते । दरवाज़े के अंदर आते ही सब झटक देता । अंदर के पीले नहाये रौशनी में माँ मुड़कर देखतीं , मुस्कुरातीं , इशारा करतीं , हाथ मुँह धो आने की , फिर आँख मून्द कर तानपुरा सँभालतीं ।


रात के अँधेरे में तानपुरे की टुनटुन सुनाई देती है । माँ को गये कितना अरसा हुआ । हल्के नीले छोटे फूलों वाले खोल से मढ़ा तानपुरा अब भी घर पर माँ के कमरे में सजा है । कई बार वहाँ होने पर , जब माँ की कमी महसूस होती है , मैं तानपुरे के तार पर उँगलियाँ चलाता हूँ , जैसे बचपन में माँ रहम खा कर कभी मुझे गोद में बिठाकर तानपुरा बजवा लेतीं , या कभी सिलाई मशीन की हैंडल चलवा लेतीं । जैंज़ीबार वाला व्यूमास्टर अगली बार जब घर जाउँगा , खोजूँगा पर तब तक कॉफीबींस आदमी को मैं बखूबी देख सकता हूँ । उस फे वॉन्ग लड़की को भी जिसका पक्का शर्तिया नाम रेन नहीं है ।

मैं अँधेरे को देखता फोन की घँटी का इंतज़ार करता हूँ ।


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(पीले अँधेरे में)
 
बर्कोज़ में रौशनी धूँये से भरी है , फुसफुसाती मादक नीली । दो वाले मेज़ पर मैं बैठा चुप सिगरेट पीता हूँ । कोई गोल्डफिश बोल में नहीं ला देता मेरे अकेलेपन को बाँटने के लिये । दूसरी तरफ कोने में बैठी लड़की की नीली कमीज़ का एक कोना दिखता है , उसकी कुहनी दिखती है और जी में आता है एक बार उँगली से उसकी कोहनी सहला लें । लड़की अचानक उठती मेरी ओर आती है । एक मिनट की हकबकाहट के बाद समझ आता है कि मेरी मेज़ के बगल से वॉशरूम का रास्ता है । लड़की के बाल इतने सीधे चमकीले हैं ,उसके गाल की हड्डियाँ इतनी चौड़ी , मुझे योको याद आती है । अलबम के कवर पर योको । उँगलियों से उस लड़की के कँधे और बाँह कैनवस पर पेंट करना याद आता है जिसका चेहरा किसी धुँध में घुल मिल जाता है । सिर्फ सफेद कोये वाली आँख याद रहती है । जैसे नीली रात में सूरजमुखी के फूलों का बगीचा ।

वेटर सूप रख गया है । सूप की तरह ही मेज़ पर रौशनी पतली हल्की है । मेज़ की सतह पर पहुँचने के पहले ही खत्म होती हुई । मेरे होंठ धीमे बुदबुदाते हैं


* I walked on the banks of the tincan banana dock and
sat down under the huge shade of a Southern
Pacific locomotive to look at the sunset over the
box house hills and cry.


लड़की अपने मेज़ तक लौटने के दौरान मुड़ कर मेरी तरफ देखती है । उसके गाल की उभरी हड्डियों पर रौशनी खेलती है कोई खेल ..ऐसा कि मुझे लगता है मेरी तरफ देख कर मुस्कुरा रही है । मैं अपनी नज़रें हटा लेता हूँ । सामने काले ब्लाउज़ और काले स्लैक्स में बैठी लड़की सिगरेट पीती है और उठते धूँये में आँख मिचमिचाकर सामने देखती है । उसके साथ बैठा आदमी लगातार फोन पर धीमी आवाज़ में बतिया रहा है । मेरी इच्छा होती है कि अगर होस्टेस गोल्डफिश लाये तो उठाकर उस काले ब्लाउज़ वाली लड़की के मेज़ पर रख दूँ ..लो तुम्हारा अकेलापन बाँटने.. और फिर उसे गिंज़बर्ग सुना दूँ ..अपनी धीमी खरखराती आवाज़ में .. उसके अंदर कोई रौशनी जगा दूँ ..


*--We're not our skin of grime, we're not our dread
bleak dusty imageless locomotive, we're all
beautiful golden sunflowers inside,


पीले अँधेरे में मेरे अंदर एक सूरजमुखी खिलता है । अचानक एक बेचैन हरहराहट बाँध तोड़ती है । वेटर के ऑडर के लिये पूछने पर मुस्कुराता हूँ ,
बस और कुछ नहीं , बिल ..
द सूप वज़ नॉट गुड ? के जवाब में सिर्फ एक बार और मुस्कुराता हूँ ,
मेरे अंदर संगीत अच्छा नहीं था , तुम्हारा सूप ज़ायकेदार था , लेकिन अब बिल ..
 
अचानक ऐसी हड़बड़ी .. कुछ शब्द कुछ वाक्य एक बेचैन अफरातफरी में कदमताल कर रहे हैं , कभी दे ब्रेक इंटू अ जिग .. मैं समेटता हूँ सब ,सेलफोन , गिंज़बर्ग की किताब , चाभी , वॉलेट , सारे के सारे शब्द और भाव , गले तक आते शब्द , कंठ में फँसते अटकते ..

देर रात तक किसी अनजाने बाउल गीत को सुनते लिखता हूँ एक ऐसी कहानी जो कभी लिखी नहीं गई थी आजतक ।
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फोन की घँटी रात के अँधेरे में किसी संगीत सा बजती है । उसकी आवाज़ कम्बल में लिपटी शैतान आवाज़ है । मैं कहता हूँ .
.रेन ?
वो हँसती है । उसकी हँसी में दुनिया की हँसी का फैलाव है , दबे पाँव चलती बिल्ली सा रहस्य है जो रह रह कर फुसफुसाता है , छुपता है दिखता है । मैं दोहराता हूँ
आर ए आई एन ?
उसकी आवाज़ सिर्फ हँसती है । जाने दुनिया के किस छोर पर बैठी ये अनजान लड़की मुझे पागल कर रही है । मैं ज़ोर से बोलता हूँ ..पागल पागल फिर उस रॉंन्ग नम्बर की खुशी में सुनता हूँ कोई स्पैनिश प्रेम गीत , पढ़ता हूँ कवितायें और लिखता हूँ अकेलेपन की हसीन उदास कहानियाँ ।
बाहर जाने कब से बेतरह बारिश हो रही है ।
 
*(गिंज़बर्ग की सनफ्लावर सूत्रा से..)

 

प्रत्यक्षा

 

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