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माटिल्डा की वह शाम
सुमन केशरी
प्रभा क्लास से बाहर निकली तो सामने सौरभ खड़ा था …….बेचैन सा । वह उसके
पास पहुँची, "हलो सौरभ क्या हुआ…..कुछ...."
सौरभ ने तुरन्त उसका हाथ थामा और एक कोने में ले जाकर
फुसफुसाया, "मिशेल के स्टैपफादर की डैथ हो गयी है……उसके घर जा रहा हूँ
चलोगी?"
"ओह तभी कल से मिशेल दिख नहीं रहीं । कब हुई डैथ?"
"कल ही !"
दोनों जल्दी-जल्दी बेसमेन्ट की कार पार्किंग में पहुँचे ।
"मैंने तो मिशेल का घर देखा नहीं और तुम्हारी कार कहाँ पार्क है?" बैग में
चाभी ढूँढते-ढूँढते प्रभा ने पूछा ।
" मैं कार घर छोड़ आया हूँ । तुम्हारी कार में चलेंगे….दो-दो कारों को
मेनेज करना मुश्किल होता न "... कहते हुए सौरभ ने प्रभा के हाथ से चाभी ले
ली और ड्राइविंग सीट पर जा बैठा ।
दरवाजा एक अधे़ड़ - सी दिखने वाली औरत ने खोला… सूजी आँखें और चेहरे पर
अजीब सी वीरानगी देखते ही लगा कि यह रीटा है मिशेल की मां... “ हम मिशेल के
दोस्त..” उन्होने हमें इशारे से अंदर बुलाया, “ मिशेल तुम्हारे फ्रेन्ड्स
आए हैं...” फिर वे हमसे बोलीं “मिशेल ऊपर है...तुम लोग ऊपर ही चले जाओ...शी
रीयली नीड्स यू...तुम्हीं प्रभा हो न ? मैं तुम्हे कैसे थैंक्स करूं..शी
डिस्कवर्ड डेविड एट लास्ट...ही कुड डाय पीसफुली एंड कंटेन्डेड...थैंक य़ू
माय चाइल्ड...गाड ब्लेस यू..” कहते कहते उन्होंने उसे गले लगा लिया.. दोनों
की आंखों से आंसू बहने लगे...प्रभा को लगा जैसे कि आज माँ-पापा खुश होकर
उसे आशीर्वाद दे रहे हैं...आज जैसे उनकी आत्मा तृप्त हुई है और उन्हें
अंततः शांति मिली है...उसने मन ही मन उन्हें प्रणाम किया..रीटा उसे लिपटाए
हुए ही आंदर ले गई. शोक के काले कपड़ों में मिशेल कुछ खोयी-खोयी लगी
…..असमंजस में पड़ी हुई । प्रभा ने जब उसे गले लगाया तो वह फुसफुसायी,
"थैंक्स प्रभा, तुम्हें ही याद कर रही थी …… मैंने इस सम्बन्ध को कल ही तो
डिस्कवर किया था और आज ? मैं उनकी कब्र पर एक मुठ्ठी मिट्टी भी नहीं डाल
पायी ……हिम्मत ही नहीं हुई जुदा करने की उन्हें ।" वह फफक पड़ी । प्रभा देर
तक गले से लगाये उसके सिर पर हाथ फेरती रही और याद करती रही उस दिन की बात
……
"मिशेल जरा यह तो सोचो कि अगर डेविड तुम लोगों की जिन्दगी में न आये होते
तो क्या आज तुम वही होतीं जो हो …… सोचो तो डेविड के साथ ने कितना सहारा
दिया तुम्हारी माँ को ?"
"पर मुझे तो न माँ पूरी मिली न पिता ।"
"पूरा मिलना क्या होता है मिशेल ? किसे पूरी माँ और पूरे पिता मिलते हैं?"
"तुम्हें मिले न …… तुम्हारे पेरेन्ट्स का तो डाइवोर्स नहीं हुआ ……. एक
कन्टीन्यूटी रही तुम्हारी जीवन में ……"
"डाइवोर्स ही जीवन में डिस्कन्टीन्यूटी नहीं पैदा करते । घरों का माहौल भी
ऐसा हो सकता है जहाँ माँ चोट खाकर रो रहे बच्चे को 'मेरा बच्चा ' कहकर गले
नहीं लगा सकती ….. और पिता अपने बच्चों को गोदी नहीं उठा सकते कि लोग
कहेंगे कैसा बेशर्म है ……. तुम क्या समझोगी कि घर-गृहस्थी का सारा काम करने
के बाद माँओं को बच्चे कितने बोझ लगते हैं । खुद बच्चों के लिए माँ आमतौर
पर चीखने-चिल्लाने और डाँटने-धमकाने वाली औरत होती है और पिता एक हौवा होता
है जिसके घर आते ही तमाम खेलकूद, किल्ल-पों खत्म करके बबुए की तरह चुपचाप
बैठ जाना पड़ता है ……. किसी को कुछ पूरा नहीं मिलता कहीं भी कभी भी मिशेल
……. आँखों मे जितना आकाश समा जाये, आकाश उतना ही बड़ा होता हैं …… उससे आगे
तो सोच और कल्पना ही होती है दोस्त !"
मिशेल को गले लगाये प्रभा सोच रही थी कि उसे क्या पता था कि जगप्रसिद्ध
आदर्श भारतीय पारिवारिक जीवन में एक छत के नीचे रहते, एक ही बिस्तर पर साथ
सोते हुए भी पति-पत्नी कितने बेगाने हो जाते हैं ……. कितना दमघोंटू हो जाता
है साथ रहना और कितना कठिन है बन्धनों को तोड़ना, जो अगर टूट जाये तो शायद
जीवन ठीक-ठाक से फल-फूल जाये …….
एक गहरी साँस लेकर रह गयी प्रभा । मिशेल के घर से लौटते हुए सौरभ ने धीरे
से कहा "मिशेल किसी भी तरह की जरूरत हो तो प्लीज बता देना……"
"ऐसी कोई बात नहीं …… फ्यूनरल और इस दौरान के सारे रीति-रिवाजों के लिए
सेंट पॉल्स लास्ट राइट्स एजेंसी की बुकिंग उन्होंने अपने जीवन-काल में ही
कर दी थी । यहाँ तक कि अपनी कब्र पर लगाने के लिए अपनी पसन्द के पत्थर भी
उन्होंने खुद ही चुने थे …… सब कुछ खुद ही कर गये …… मेडिकल इंश्योरेन्स की
वजह से अस्पताल के खर्चों का बोझ भी माँ पर नहीं पड़ा । थैंक्स कि तुम लोग
आये …… थैंक्यू प्रभा ! मैं कल वाले प्रेजेन्टेशन में आऊँगी ….. ग्रुप को
बता देना ……"
घर लौटते हुए प्रभा से नहीं रहा गया ……. "सौरभ यह फ्यूनरल अरेंजमेंन्टस और
लास्ट रिचुअल्स वाली बात गले नहीं उतरती । ये काम तो कम से कम घर के लोगों
को करना चाहिए था पर यहाँ तो देखो ...कैसा अजीब समाज है यह! "
"हूँ !" सौरभ ही कार चला रहा था ।
"हूँ क्या ? पता है उस दिन मिशेल कह रही थी कि डेविड उसकी माँ को रोज ही
धन्यवाद कहते थs कि उसने उन्हे ओल्ड एज होम में नहीं भेजा …… बल्कि बीमारी
के दिनों में खुद उनकी सेवा की …… अब पत्नी पति की, बेटा-बेटी माँ-बाप की
सेवा नहीं करेंगे तो क्या बाहर वाले आएंगे सेवा करने ?"
"तो !" सौरभ फिर बुदबुदाया ।
"मुझे तो ओल्ड एज होम की बात समझ में ही नहीं आती …… बुढ्ढों को अकेले मरने
के लिए घर से बाहर भेज दो ……"
"ओल्ड एज होम में कोई तो है उनको देखने वाला, भले ही पैसे के बूते ……. यह
तो नहीं कि उन्हें कुंभ के मेले में जान-बूझकर भटक जाने दो …… जाने कैसे
जीते होंगे भटके हुए ये बूढ़े-बुढ़िया ठिठुरते ……. भीख माँगते …… गली-गली
में कुत्तों से घूमते और एक रोज बेनाम मौत मरते ……. यहाँ फीस लेकर ही सही,
कोई इज्जत से उनकी कब्र तो बना देता है और दो-एक फूल चढ़ा देता है ……. तुम
नहीं जानतीं प्रभा, घर-परिवार …… प्रेम, इज्जत, मर्यादा …… ये सब कभी-कभी
कितने खोखले हो जाते हैं ! काश दादी को कोई ऐसी भी जिन्दगी मिल जाती ….."
"दादी किसकी दादी ?..... सौरभ ! ...सौरभ !"
सौरभ खामोश था । अतीत में उलझा हुआ ….. जनवरी की कुहासे भरी ठंड में
त्रिवेणी में स्नान करने के बाद दादी रूकी थी चन्दन, तुलसी-माला वाले के
पास । माँ ने खुद सौ रूपए का एक नोट थमाया था उन्हें. दादी ने बड़ी हैरानी
से माँ की ओर देखा था और फिर वे चन्दन वगैरह देखने में रम गयी थीं । पास
खड़े पिताजी ने माँ को शायद कुछ इशारा किया था और माँ, पाँच साल के सौरभ का
हाथ थामे दूसरी दिशा में चल पड़ी थी - माँ दादी वहाँ हैं …… उस दुकान
में……!" वह माँ का हाथ खींच रहा था । माँ ने उसकी बात को एकदम अनसुना कर
दिया और उसे लगभग घसीटती हुई आगे बढ़ गयी थी …. थोड़ी देर बाद पिताजी भी आ
मिले थे । दोनों चुप थे बार-बार दायें-बांये, आगे-पीछे देखते ……… तुरन्त बस
में बैठकर वे लोग वहाँ से रवाना हो गये थे पर सीधे घर नहीं लौटे । एक दो
दिन शायद मथुरा में रुके थे …….. घर पहुँचते ही रोना-धोना मच गया था । दादी
कुम्भ में ही खो गयी थी और बहुत ढूँढने पर भी नहीं मिली थी .......
बड़ा होने पर सौरभ दो-तीन बार इलाहाबाद गया । शायद कहीं दादी दिख जाये !
भीख माँगती सारी बूढ़ी औरतें उसे दादी लगी थीं । पता नहीं इनमें से कितनी
भटकने के लिए छोड़ दी गयी थीं अपने ही बच्चों द्वारा । कुछ बूढ़े-बुढ़ियाँ
खुद भी भाग आये होंगे रोज-रोज की डाँट-डपट और बेइज्जती से तंग आकर ……..
इन्हें भीख देने वाले कुछ तो सौरभ जैसे ही होते होंगे जो अपनी दादी को
ढूँढते-फिरते होंगे । एक बुढ़िया को भीख देते ही जब सारी औरतें सौरभ को घेर
लेतीं तो उसे खीझ होती उस व्यवस्था पर जो भिखमंगों को पैदा करती है, कैसी
पुण्यभूमि है भारत ! भीख देने के सुकृत्य को स्वर्ग जाने का रास्ता बना
देती है ! पर साथ ही साथ यह भी बताया जाता है कि 'भिखमंगों को प्रोत्साहित
न करें' देश की छवि जो बिगड़ती है !
"ओह " बस इतना ही उसके मुँह से निकला ।
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घर पहुँचने पर प्रभा ने जब सौरभ से चाय पीने को कहा तो सौरभ मना नहीं कर
पाया । सच तो यह था कि सौरभ अभी अकेला रहना ही नहीं चाहता था । अनजाने ही
उसने प्रभा की बाँह थाम ली थी । प्रभा सहज ही चलती रही साथ-साथ । बात चाय
पर ही खत्म नहीं हुई थी । खाना भी संग-संग बनाया खाया गया । दोनों बस साथ
थे - खामोश, शायद इसीलिए ज्यादा साथ थे । प्रभा के कानों में मिशेल की
सिसिकियाँ बार-बार गूँज रही थीं - "मैं उनकी कब्र पर एक मुट्ठी भी नहीं डाल
पायी …… ।" प्रभा को बार-बार जून की वह उदास रात याद आती रही जिसके अगले
रोज पापा, चाचा और मामा के संग हरिद्वार जा रहे थे माँ की अस्थियाँ
विसर्जित करने…..
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उठावनी वाली रात थी वह । पापा ने अपने कमरे के एकान्त में अपने सभी बच्चों
को पास बुलाया था । उनके हाथ में एक छोटी सी लाल थैली सी थी। उन्होंने उसके
भीतर हाथ डालकर हड्डियों के अधजले छोटे-छोटे टुकड़े निकाले, "ये तुम्हारी
माँ की अस्थियाँ
हैं " कहते हुए उनकी आवाज कांप गयी थी । माँ अब थैली में बँधी इन हड्डियों
में ही बची थी । छोटी-छोटी मनकों सी हड्डियाँ - लम्बी … चौकोर …..। प्रभा
ने उन्हें यूँ छुआ था मानो माँ का स्पर्श हाथों में बस जाए सदा-सदा के लिए
……।
"बाबा से बहुत मिन्नतें करके ला पाया हूँ... वैसे ऐसी चीजें घर में नहीं
लायी जातीं पर मैंने सोचा कि प्रभा तुम तो इनको देख ही लो ।"
दो दिन पहले अस्पताल से लाकर माँ के शव को पूजा वाले कमरें में लिटाया गया
था और उसके सिर के पास ही एक दीया जला दिया गया था । उधर देखने की हिम्मत
प्रभा में नहीं थीं । देखते हुए जाने कैसा लगता था ….. निर्जीव शरीर कितना
निरीह ….. निस्पन्द …. शायद इसीलिए शव को मिट्टी कहते हैं …. पर मिट्टी तो
हवा चलने से उड़ती है ….. पानी में बहती है ….. मिट्टी देह है या वह जिसके
बिना इसे मिट्टी कहते हैं ! जिसके मिट्टीपन को ढंकने के लिए बड़ी-बड़ी
बातें की जाती हैं-नैनं छिदन्ति शस्त्राणी नैनं दहन्ति पावकः जब कुछ है ही
नहीं तो क्या तो छिदेगा...क्या जलेगा !.. देह तो ठोस है.. इतनी ठोस कि तरल
के बिना घिनौनी लगती है ….. बहुत डर लगता है ऐसा शरीर देखने से …… हल्की सी
घिन …… अपवित्रता की प्रतीती सी होती है.. ….. मृत शरीर अशुचि सा लगता है ।
कितना कुछ बदल देती है मृत्यु की उपस्थिति वरना क्या माँ ऐसी लगती ?...पर
कुछ ही देर बाद जब माँ का चेहरा ढंक दिया गया तो लगा... आह.. दूर चला जाता
है यह मुख...अब यह कभी देखने को न मिलेगा..न जीवित न मृत...एक बार...बस एक
बार इसे देख लेने दो...बिलख रही थी प्रभा...और सब के सब जैसे बहरे हो गए
हों....क्या इसीलिए तो कहीं मिशेल ने कब्र पर मिट्टी नहीं डाली.... पभा को
लगने लगा कि जैसे वह खुद कब्र में पड़ी है और उस पर मिट्टी डाली जा रही है
….. उसकी साँस घुटने लगी ….. बड़ी मुश्किल से बोली, "सौरभ दम घुट रहा है ……
बाहर चलें ?"
बिना कुछ बोले सौरभ उठा ….. कोट में बाँहे सरकायीं और प्रभा के कन्धों पर
भी शाल डाल दी । पता ही नहीं चला कब माटिल्डा बे के किनारे खड़े थे दोनों ।
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रात के ग्यारह बजने को थे । सब ओर शान्ति थी । बस सामने लहरों का शोर था तो
पीछे हडसन रोड पर गाड़ियों के सर्र से भागने का । आकाश में चाँद निकल आया
था । पर्थ का आकाश बहुत साफ है, इतना स्वच्छ आकाश भारत के महानगरों में नजर
नहीं आता । शायद तेरस का चाँद था ….. उसकी चाँदनी से माटिल्डा का तट नहा
गया था । पेड़ों की एक-एक पत्तियाँ साफ दिख रही थीं और लहरें भी गिनी जा
सकती थीं । प्रभा का मन एकदम खिल गया. उसे घर की याद आई. उसे घर के बाहर
लगा हरसिंगार याद आया । आस पास कितनी खुशबू और धीरे दीरे झड़ते फूलों का
सौन्दर्य...यहाँ माटिल्डा के तट पर सौरभ खड़ा है-बिना कुछ कहे बिना कुछ
पूछे...मेरे पास है भी और नहीं भी...पर इन दिनों उसकी मौजूदगी हर जगह महसूस
करने लगी है वह... बिना शब्दों की यह मौजूदगी... क्या ऐसी ही चाँदनी में
हरसिंगार के नीचे वह कभी सौरभ के साथ हो सकेगी अकेली । अकेली और सर्वथा
मुक्त ! अकेली वह और अकेला सौरभ ! गहरी साँस ली प्रभा ने और सौरभ को वहीं
खड़ा छोड़ आगे बढ़ गयी लहरों के बिल्कुल पास ।
तीन-चार महीने पहले इन्टरनेशनल स्टूडेन्ट्स एसोशिएशन के फेशर्स वैल्कम में
प्रभा पहली बार सौरभ से मिली थी । सौरभ यहाँ पब्लिक हैल्थ में पोस्ट
ग्रेजुएश्न करने आया था । जाने कैसे यह युवक प्रभा के अभेद्य अकेलेपन को
तोड़ने में कामयाब हो गया था और प्रभा के कुछ इतना करीब हो गया था कि कम से
कम आज प्रभा का मन ही नहीं हो रहा कि सौरभ उससे जुदा हो …. उल्टे उसे तो लग
रहा था कि वह उसका हाथ पकड़कर कहे, "डोन्ट एवर लीव भी प्लीज ।" प्रभा को
अपने आपसे डर लगने लगा । जाने सौरभ उसके बारे में क्या सोचता है...उसके
जीवन में कोई और है भी या नहीं..वह उसे जानती ही कितना है ?..उसे यह कैसा
फितूर सवार हुआ ?….. क्या इस रिश्ते का काई नाम ….. इसकी कोई शक्ल हो सकती
है ?
अचानक प्रभा वहीं बैठ गयी और घुटनों में चेहरा दबाकर रोने लगी ….. सौरभ समझ
नहीं पाया कि प्रभा को चुप कराये या उसका अवसाद बह जाने दे । वह जानता था
कि प्रभा की माँ की मृत्यु के बाद घर में सबकी मौजूदगी के बावजूद प्रभा के
पापा कैसे अकेले हो गए थे. मिशेल के स्टेपफा़दर की बीमारी और उनकी
तीमारदारी के बारे में अकसर ही प्रभा की उससे बातें होती रहती थीं.. “यू नो
सौरभ आय रीयली फी़ल गिल्टी सम टाइम्स...पता है मैंने उन्हें रिटायरमेंट के
बाद कंसलटेंसी नहीं लेने दी. मुझे लगता था कि अब उन्हें अराम करना चाहिए
कहाँ इधर उधर धक्के खाएंगे..आज मैं जानती हूँ कि अगर वे काम कर रहे होते ,
एक्टिव होते तो शायद कुछ और जीते...वे एकदम अकेले हो गए थे...सारा दिन जाने
क्या क्या सोचा करते थे...एक बार जब मैं उनके कमरे में घुसी तो सुना वे कह
रहे थे, ‘कहाँ चली गईं तुम...’ मुझे लगा था मुझसे कर रहे हैं- पर नहीं अब
मैं जानती हूँ कि वे माँ को उलाहना दे रहे थे...मिशेल कहती है कि डेविड माँ
के प्रति बहुत कृतज्ञता महसूस करते हैं...” प्रभा की हिचकियाँ जब बढ़ने
लगीं तब सौरभ को लगा कि यदि कोई रात के इस पहर इस तरफ आ गया तो क्या सोचेगा
। वह प्रभा के पास घुटनों के बल बैठ गया "क्या हुआ प्रभा ?" उस पल प्रभा
पापा के अकेलेपन से निकल कर अपने अकेलेपन के बारे में सोच रही थी.. “ मुझे
सच में क्या चाहिए...मेरा मन कहां भागा जा रहा है...क्या में इसीलिए घर से
इतनी दूर आई हूँ...”
सौरभ ने फिर पूछा, “क्या हुआ प्रभा?”
"मैं घर जाउँगी ….. कल ही मेरा टिकट बनवा दो ….."
"पागल हुई हो क्या …. तुम विदेश में हो …. अपने घर से हजारों मील दूर ……।"
"मैं जाऊंगी बस्स….." प्रभा ने बच्चों की तरह जिद पकड़ ली ।
"अच्छा । ठीक है ….. कल टिकट खरीद लेंगे ….. वापस चलें …"
"नहीं अभी नहीं ।" कहकर प्रभा ने सौरभ का हाथ कसकर पकड़ लिया ।
वह रात उन्होंने डॉक्यार्ड में खड़ी एक नाव में बितायी । डॉक्यार्ड के हुक
से बंधी नाव लगभग भोर होने तक इन दोनो यात्रियों के अकेलेपन को बांटने की
कोशिश में पानी के साथ मिल कर संगीत रचती रही...सुबह अपनी लाल चादर से मुंह
निकाल कर जब सूरज ने इन्हें देखा ते पाया कि उसके उठने से पहले ही उसकी
रश्मियों ने उनके आसपास गुलाबी डोरों से एक वितान रचना शुरु कर दिया
था...जिसमें वे ही नहीं माटिल्डा का सारा जल....आसपास की सारी
पृथ्वी....सारा जीवन सराबोर हो रहा था....
X X X X
रीटा को रह-रहकर डेविड की जिन्दगी का आखिरी दिन याद आता रहा । क्यों
भिजवाये थे मिशेल ने वे डेफोडिल्स …. न भिजवाती तो शायद वह डेविड के लिए
आखिरी दिन न होता…. कहीं मिशेल को इसका अहसास तो नहीं हो गया था ….. लगता
है डेविड को भी पता चल गया था तभी तो वह हर बात रीटा को बताने पर तुल गया
था । यहाँ तक कि वह उस दिन अपनी पहली पत्नी पैम को भी याद करता रहा था ।
पैम ने जुड़वाँ बच्चों के जन्म का सारा दोष उस पर मढ़ते हुए कहा था कि
डेविड उसकी खूबसूरती और कैरियर से जलता था तभी तो उसने दूसरे बच्चे के लिए
इतना इन्सिस्ट किया था । नहीं तो क्या पहला बच्चा ही काफी नहीं था । वह यह
बात बड़ी सहजता से भूल गयी थी कि डॉक्टरों ने एम.टी.पी. के लिए साफ मना कर
दिया था । पर उनके जन्म की मूल जिम्मेवारी से तो डेविड इन्कार नहीं कर सकता
था । उससे चूक तो हो गयी थी । ये जुड़वा बच्चे ही पति-पत्नी के अलगाव का
मुख्य कारण बने । तलाक के समय पैम बड़े बच्चे की कस्टडी चाहती थी पर बड़ा
बच्चा अपने छोटे भाई-बहिन से इतना जुड़ गया था कि मनोविश्लेषकों ने पैम को
समझाया कि बच्चे को पियर ग्रुप से अलग करना घातक होगा । डेविड ने पैम को
बच्चों से, खासकर बड़े बच्चे से कभी भी मिलने की इजाजत दे दी थी । पैम की
मृत्यु की सूचना भी डेविड को बड़े बेटे जिम से ही मिली थी, जो अपनी माँ के
अन्तिम दिनों में उसके साथ रहने लगा था । 26-27 सालों में शायद डेविड तभी
पहली बार पैम के घर गया था उसकी फ्यूनरल पर और अपने साथ जिद करके दोनों
बच्चों को भी ले गया था । आखिर पैम उनकी जननी थी । यहीं से तो उठी थी उसके
खुद के फ्यूनरल अरेन्जमेंट के बारे में बात ……।
"रीटा मैंने सेंटपॉल लास्टराइट्स एजेन्सी को फ्यूनरल के लिए एंगेज किया था
। फोन नम्बर मेरी डायरी में है । तुम उन्हें इन्फॉर्म कर देना ….।" डेविड
रीटा के दाएँ हाथ की उँगलियों को होले से छूकर बुदबुदाया ।
रीटा ने अपनी नम हो आयीं आँखों को बाएँ हाथ से पोंछा "हुँ !।
"मैंने शायद तुम्हें पहले भी बताया था ..... पर मैं चाहता हूँ कि तुम सब
कुछ जान लो जिससे तुम्हें कोई परेशानी न हो …. इतने महीने हो गये तुम सब
कुछ छोड़-छाड़कर मेरे साथ इस बीमारी ….।"
"डेविड प्लीज ….. तुम नहीं जानते तुम मेरे लिए क्या हो …. मेरी जिन्दगी
…..!"
"पागल हो तुम …. कौन करता है इतनी सेवा …. अभी तुम्हारी उम्र ही क्या है और
तुमने अपने तमाम कैरियर को, जीवन को दाँव पर लगा दिया ….. और कोई होती तो
मैं आज ओल्ड एज होम में पड़ा आखिरी घड़ियाँ गिन रहा होता ….. अकेला बेबस
….. किसी नर्स के सहारे ….. पॉल, जॉन, मैक की तरह ….. वे सब चले गये अब …..
" कहते-कहते डेविड की निगाह दरवाजे पर गयी । सामने नन्हीं एंजिला खड़ी थी ।
हाथों में डेफोडिल्स के गुच्छे लिये ।
"हाय ! माई एंजिल ! आओ । आओ ! कैसी हो लव !"
"ग्रैण्डपा ये फूल मम्मी ने भिजवाये हैं …..।"
"कहाँ है मिशेल ?" रीटा ने पूछा ।
"मम्मी चली गयी, उनकी क्लास थी । लौटते में मुझे ले जायेंगी …..।"
डेविड के होंठ दुख से सिकुड़ गये । रीटा का चेहरा सख्त हो गया । बीमारी की
टर्मिनल स्टेज में मिशेल का यह व्यवहार उसे खल-सा गया । मिशेल अब भी पच्चीस
साल पहले जैसी थी । जिद्दी और नादान बच्ची ! उसने डेविड के बाँए हाथ को
दबाया, "डेविड प्लीज !"
"मम्मा ने ये फूल दिये हैं ! कह रही थी कि पापा को पीले डेफोडिल्स बहुत
पसन्द हैं …. यह एंजिला थी जो डेविड के पास दौड़ी आयी थी ।
'पापा !' यह संबोधन रीटा और डेविड दोनों को चौंका गया । डेविड, मिशेल के
लिए सदा ही 'स्टेपफादर ' रहा । मिशेल ने कभी उसे सीधे पुकारा ही नहीं ।
'हे', 'यू लिसन', 'एक्सक्यूज मी' यही तो तरीके थे उसको पुकारने के ।
पापा...मिशेल ने उसे पापा कहा...डेविड को ऐसा लगा जैसे कि उसकी शिराओ में
जमी बर्फ़ पिघल रही है...जिसके वेग से उसके मन पर बरसों से रखी चट्टान उखड़
कर बह गई विलीन हो गई...उसकी देह आत्मा की तरह ही हल्की हो गई.....आज वह
मुक्त है...आज वह मुक्ति का गान गा सकता है....उसने रीटा को देखा...वह रो
रही थी...उसकी पीठ रह रह कर कांप रही थी...उसने उसके हाथ अपने हाथों में
लिए और बड़ी कोमलता से बोला, “ मुझे पूरा भरोसा था...हम जीत
गए...रीटा...हाऊ ग्रेटफुल आए ऐम...नाऊ आए कैन” रीटा ने उसके मुंह पर हाथ रख
दिया और होले से अपना सिर उसकी छाती पर टिका दिया...”
X X X X
पीले डेफोडिल्स बॉब को भी पसन्द थे । बॉब यानी रीटा का पहला प्यार और मिशेल
का पिता । कितना प्यार करती थी मिशेल बॉब को और बॉब भी बेटी के बिना
बिल्कुल नहीं रह पाता था । वही बॉब कैसे चला गया शेली के संग मिशेल से मुँह
मोड़कर । बिल्कुल भूल गया बच्ची को ……. कितना अलग है डेविड बॉब से । शुरू
में ही उसने रीटा से साफ कह दिया था कि वह अपने बच्चों को साथ रखेगा और अगर
यह रीटा को मंजूर नहीं होता तो …….!
X X X X
एकाएक घर में चार बच्चे हो गये थे । डेविड के तीनों बच्चे मिशेल से बड़े थे
। काफी बड़े । वे अपनी ओर से नन्हीं मिशेल का ख्याल रखते पर उसने कैसे झटक
दिया था सभी को । "नहीं ये मेरे भाई-बहिन नहीं हैं, ये स्टेप
सिस्टर-ब्रदर्स हैं - 'उनके' बच्चे।"
"पापा को पीले डेफोडिल्स पसन्द हैं । " ये फूल किसके लिए भेजे हैं मिशेल ने
। किसके लिए - डेविड के लिए या बॉब के लिये ! यूँ तो लड़की ने बॉब को कभी
भी याद नहीं किया ….. कभी उसके बारे में नहीं पूछा …..।
उसी रात डेविड ने अन्तिम साँस ली । पीले डेफोडिल्स डेविड के सिरहाने सजे थे
। सफेद चादर में लिपटे डेविड के सिरहाने ये फूल सफेद संगमरमर की कब्र पर
सजे से दीख रहे थे - स्तब्ध वातावरण में रंग भरते उदास डेफोडिल्स !
X X X X
वह शुक्रवार की दोपहर थी । क्लास के बाद मिशेल और जेनी दोनों ही ब्राडवे के
वीकन्ड रेस्टा में बैठी बीयर की चुस्कियाँ ले रही थीं ।
जेनी ने जैकेट उतारकर कुर्सी पर टाँगने के बाद बीयर मग के नीचे जम गयी नमी
को टिश्यू पेपर से पोंछा और मिशेल की ओर देखा. मिशेल की निगाहें जेनी के
वक्ष पर थीं...कितने उन्नत वक्ष हैं इसके, वह सोच रही थी..जेनी की निगाहें
अपनी निगाहों पर टिकी देख वह सकपका गई.. धूप का चश्मा पहनते हुए बोली, "तो
पीटर का क्या प्रोग्राम है, वह न्यूजीलैंड से यहाँ आ रहा है या नहीं …..!"
जेनी मन ही मन चाह रही थी कि मिशेल पीटर के बारे में कुछ पूछे । वह खुद भी
पीटर के बारे में ही बात करना चाह रही थी. पर जाने कहाँ खो गई थी । मिशेल
ने फिर जेनी की तरफ देखा - "अरे, तुम्हारी बीयर गर्म हो रही है …… कहाँ खो
गयीं तुम ? पीटर का क्या प्रोग्राम है ?"
"ओह ! माई गॉड !" पीटर के बारे में ही तो बात करना चाह रही थी जेनी किन्तु
यह एसाइन्मेंट ….. दिमाग न पूरी तरह पीटर में था और न ही एसाइन्मेंट में ।
सब गड़बड़ हो गया था ।
"मिशेल जानती हो, पीटर न्यूजीलैंड में ही नौकरी तलाश रहा है ...वह पर्थ
नहीं आना चाहता । वह कहता है कि पर्थ में उसका कोई भविष्य नहीं है । यदि
मैं सिडनी या मेलबोर्न में होती तो दूसरी बात थी ….।"
"पर उसी ने तो तुम्हें यहाँ एम.बी.ए. के लिए स्पॉन्सर किया था ….।"
"स्पॉन्सर ! ओह नो ! मैं इस कोर्स का सारा खर्च खुद ही उठा रही हूँ । हाँ,
वह चाहता था कि मैं एम.बी.ए. कर लूँ. मार्केटिंग में मेरी रूचि भी थी पर
मुझे यहीं एडमिशन मिल पाया ….. और पर्थ तो दूसरा सिरा है । ट्राइमेस्टरों
के बीच में मुश्किल से 15 दिन की छुट्टियाँ होती हैं …… इतना पैसा खर्च
करके दो सप्ताह के लिए जाना जमता नहीं । ऊपर से उसके टुअर प्रोग्राम ।
पिछली छुट्टियों के वक्त वह यू.के. में था ।
"पर उसने वेसफार्मर्स में आवेदन किया था न?"
"हाँ, पर वेसफार्मर्स का ऑफर उसे पसन्द नहीं आया । उसे यह अपने कैरियर को
चौपट करना लग रहा है ।"
"ओह ! तो अब ?"
"मिशेल, मुझे यह बात समझ में नहीं आ रही …. पैकेज तो वेसफार्मर्स का ठीक है
। आस्टेलियाई करेन्सी न्यूजीलैंड के मुकाबले स्ट्रांग है ।"
"पर पैकेज सब कुछ नहीं होता जैनी ….।"
"हाँ वहाँ वह अपने डिवीजन को हेड कर रहा है । यहां सेकण्ड होना शुरू में तो
…… पर मिशेल सोचो तो ! अगर मैं पीटर की जगह होती तो क्या मैं यह ऑफर यूँ ही
ठुकरा देती ?"
"क्या मतलब…. क्या कहना चाहती हो तुम?"
"यही कि वेसफार्मर्स के दफ़्तर सारे आस्टेलिया में हैं । उसका
सी.ई.ओ.माइकेल भी कितना डायनेमिक है ….. वे लोग हर क्षेत्र में तो
डाईवर्सिफाई कर रहे हैं । अगर यहाँ ज्वायन करने के बाद पीटर ने मेरा नाम
स्पॉन्सर किया होता तो मुझे भी इस कैरियर में अच्छी शुरूआत मिल सकती थी
….।"
'हुँ ! तुमने पीटर से यह बात कही?"
"नहीं, अच्छा नहीं लगता …. मेरा स्वाभिमान इसकी इजाजत ही नहीं देता …. और
फिर ऐसा करके सारी जिन्दगी के लिए किसी के अहसानों तले दबना….।"
"वह तुम्हारा पति है जेनी !
"हाँ, फिर भी …… उसका कैरियर उसका और मेरा । हमने तय किया है कि हम एक
दूसरे के कैरियर में बाधक नहीं बनेंगे ।"
"पर इसमें बाधा की क्या बात है?"
"क्यों नहीं है, वेसफार्मर्स में नौकरी करना उसे कैरियर की सीढ़ी पर नीचे
उतरना लग रहा है !"
"ओह हाँ ! पीटर, ठीक है ….और शायद तुम भी !"
बात आगे नहीं बढ़ पायी क्योंकि जेनी को प्रेजेन्टेशन बनाने की जल्दी थी ।
वह तो उतनी देर भी नहीं रूक पायी कि मिशेल की बीयर खत्म हो जाती ।
खोयी-खोयी सी उठी और चल दी । पर जेनी की बातें सुनकर मिशेल को माँ की ....
25-26 साल पहले वाली माँ की बहुत याद आयी। माँ भी ऐसी ही थी या शायद अब भी
ऐसी ही है । स्वतंत्र और खुदमुख्तार । दूसरों पर खुद को न्यौछावर करके रख
देगी पर अपनी जरूरतों, इच्छाओं को दूसरों के सामने दर्शाने में कतरायेगी ।
दूसरों को ही इसका अनुमान लगाना पड़ेगा कि उसे क्या अच्छा लेगा । किस बात
से वह खुश हो जायेगी या कौन सी बात उसे तोड़कर रख देगी । पर किसको इतनी
परवाह होती है सामने वाले के फीलिंग्स की ….. एक गहरी साँस ली मिशेल ने ।
घड़ी देखी तो तीन बजने को थे । एंजिला उसे मिस कर रही होगी । एंजिला इन
दिनों डेविड से कितनी घुल-मिल गयी है ! 'ग्रैण्डपा', 'गेण्डपा' की रट लगाये
रखेगी । कितना मुश्किल है बच्चे को समझाना कि उसके गैण्डपा अब कुछ ही दिनों
के मेहमान हैं । अभी कल ही पूछने लगी कि 'डेथ' क्या होता है मॉम ?"
"डेथ, जब कोई खत्म हो जाता है ।"
"खत्म माने ?"
"यानि कि फिर वह कभी नहीं बोलेगा, सोया रहेगा - बहुत गहरी नींद ….. आँख
नहीं खोलेगा …. फिर हम उसे एक बॉक्स में डाल करके मदर अर्थ में दबा देंगे
…।"
"ओह नो ! वह साँस कैसे लेगा मिट्टी के अन्दर …. इट अज क्रुएल …!"
"बेटा वो साँस नहीं लेगा क्योंकि डेथ के बाद कोई साँस नहीं लेता …. साँस
लेना, चलना-फिरना, बोलना, देखना ही तो जीवन है और यही खत्म हो जाता है डैथ
में ….।"
"बॉडी का क्या होता है … वह भी नहीं होती क्या ?"
"उसी बॉडी को तो मिट्टी में दबा देते हैं….।"
"क्या उसमें फिर फूल उग आते हैं जैसे कि स्टोरी में हुआ था ...।"
"कौन सी स्टोरी में….?"
"गैंडपा ने सुनाई थी …. डैथ के बाद प्रिंसेस की बॉडी मिट्टी में डाली तो
फूलों के पौधे उग गये ।"
तो क्या नन्हीं एंजिला को डेविड अपनी डेथ के लिए तैयार कर रहे है? ...उसका
मन अन्दर तक भीग गया…. उसे आज डेविड से जरूर मिलना चाहिए .....डेविड जिसे
मिशेल कभी स्वीकार नहीं कर पायी ..... पर अभी अचानक उसे डेविड बहुत अपने से
लगे । धीरे-धीरे टूटती-बिखरती माँ को उन्होने सम्भाल लिया था । पर डेविड तो
अपने होने तक का... जीवन तक का श्रेय माँ को देते रहे हैं...और माँ ... माँ
सहज ही प्यार करने लगती थी । मिशेल को प्रभा की याद हो आयी । प्रभा ऐसे
लोगों के बारे में एक इंडियन फिल्म का गाना सुनाती थी, "जो भी राह में मिला
हम उसी के हो लिये?" माँ ऐसी ही है .... सभी को अपना बना लेगी । डेविड के
तीनों बच्चे जैक, जिम ओर क्रिस माँ के जितने करीब हैं उतनी मिशेल भी नहीं
और अब उसका अपना पति मैक । वह तो माँ का दीवाना ही है .... 'मिशेल तुम लकी
हो कि ऐसी माँ मिली तुम्हें'..... फिर ऐसी औरत पापा को क्यों नहीं बाँध
पायी ? या सम्बन्ध टूट जाने के बाद माँ में ये बदलाव आये और उन्होंने अपने
प्यार को शब्द भी देना शुरू कर दिया ....
X x x x
पापा जब माँ से अलग रहने लगे थे तो मिशेल को कितनी ही बार लगा था कि वह
उनसे मिले .... उनके पास बैठे । पर पापा की नयी पत्नी को यह सब पसन्द नहीं
था । वह सुरक्षा चाहती थी, पूरी सुरक्षा । बच्चा दो टूटे दिलों को जोड़
सकता था । इसीलिए कुछ ही दिनों बाद शेली ने साफ कह दिया था, "बॉब तुम्हें
मिशेल को भूलना पड़ेगा .... जब तुम रीटा से सम्बन्ध खत्म कर ही रहे हो तो
बच्चे का क्या मोह ! और अगर बच्चे से बहुत मोह है तो मुझे भूल जाओ .... बट
यू नो, मैं तुम्हें प्यार करती हूँ और अगर तुम ....।" कहते-कहते शेली आँखों
में आँसू भरकर बॉब के कलेजे से जा लगी थी । बॉब ने उसे बाँहों में भरकर
चूमते हुए उसके आँसू सोख डाले थे, "जैसा तुम चाहो .... डार्लिंग !" वह
आखिरी शाम थी जो मिशेल ने पापा के संग बिताई थी । लौटते वक्त पापा ने
मायर्स से उसकी फेवरेट बार्बी डाल, टेडी बियर और ढेरों चॉकलेट्स खरीदवाये
थे ।
"आई लव यू माई चाइल्ड !" ये पापा के कहे आखिरी शब्द थे । पापा उस शाम
पोर्टिको से ही वापस चले गये थे । पिछली विजिट्स की तरह उन्होंने कॉफी नहीं
पी थी ।
"अरे वाह आज तो तुम बहुत सारे गिफट्स ले आयी हो .... कहीं तुम्हारे पापा
भूल तो नहीं गये कि तुम्हारा जन्मदिन अगले महीने है," मम्मी की चहक ने ही
उसे चेताया था कि वह अपने घर पहुँच गयी है ।
"बॉब..... बॉब ..... मिशेल तुम्हारे पापा कहाँ हैं?"
"चले गये ....."
"पर कॉफी ..... जरूर जल्दी में होगा, पर उसे बताना तो चाहिए था ...... मैं
उसे रोक थोड़े ही लेती .....।" माँ का मूड बुरी तरह उखड़ गया था ।
बहुत दिनों बाद एक बार बॉब की एक चिट्ठी मिशेल के हाथ लग गयी थी । उसने
पढ़ा, "रीटा ..... जिन्दगी भर हम अच्छे दोस्त रहेंगे । बस पति-पत्नी की तरह
एक छत के नीचे साथ रहना मुश्किल लगता है .... घुटन सी होती है .... मुझे
यकीन है कि तुम इसे समझोगी कि सारी जिन्दगी एक डोर से बँधे रहना मुश्किल है
..... तुम्हारा डेमोक्रेटिक टेम्प्रामेन्ट मुझे हरदम प्रभावित करता है ।
तुम एक इंडीविजुअल के तौर पर अतुलनीय हो ..... नहीं तो औरते कितनी हाय-तौबा
मचाती हैं ..... बाँध लेना चाहती हैं मर्द को.... ओफ्फ..... पर तुम ग्रेट
हो .... हम दोस्त थे । दोस्त हैं और दोस्त रहेंगे ....।"
X X X X
पापा फिर कभी नहीं आये । दोस्ती का वादा उन्होंने नहीं निभाया । माँ जता
नहीं पायी शायद कि वह सामने वाले से कितने गहरे में जुड़ी हैं कि यह अलगाव
कैसे बिखेर देगा उसे ! मिशेल भुला नहीं पाती शेली के आँसू .... पापा से
उसका लिपट जाना ..... शायद इन्हीं आँसुओं ने शेली को पापा से बाँधा था । पर
माँ के आँसू? वे तो गालों पर कभी बहे ही नहीं …. बस खून बनकर कलेजे और
जिस्म में बहते रहे …. किसी ने कभी उन्हें देखा ही नहीं …. पर क्या डेविड
ने भी नहीं ! शायद डेविड और माँ एक ही राह के राही थे । किसी पर भार नहीं
बनना चाहते थे । डेविड भी खुद को बाँटने में ही विश्वास रखते थे । डेविड की
करूणार्द आँखें मिशेल को बुलाती सी लगीं ।...
X X X X
"कैसे हैं आप ?"
उत्तर में डेविड मुस्कराया था - पीड़ा भरी, सच्ची मुस्कान । उसने सर घुमाकर
डेफोडिल्स की तरफ देखा था - "थैंक्स !" होले से बुदबुदाया । मिशेल उसके बेड
पर बैठ गयी - अचानक ही सबको और खुद को चौंकाते हुए उसने डेविड के हाथों को
हौले से छुआ ……ठंडे बेजान हाथ - उसके हाथ अलग छिटकने को हुए पर उसने उन्हें
रोक लिया । डेविड ने मिशेल के हाथों की नर्म गर्माहट को गहरे में महसूस
किया । चौंककर उस पर नजरें टिका दीं । उसे मिशेल की आँखें नम सी लगीं और
होंठ बुदबुदाते से दिखे । उसने शायद सुना भी "आई लव यू "। उसके होंठों पर
हल्की सी मुस्कान उभरी और आँखों में चमक भी …. या वह मिशेल को ही दिखी थी
…….उसने अपना हाथ हटाया नहीं । डेविड ने आँखें मूँद ली थीं । पता नहीं कब
तक मिशेल डेविड का हाथ अपने हाथों में लिये बैठी रही । पता नहीं कब एंजिला
माँ से सटकर खड़ी हो गयी थी …..।
डेविड की आंखों से आँसू बह रहे थे और चेहरे पर शान्ति थी । मिशेल को एक
गहरी शान्ति अपने भीतर भी उतरती महसूस हो रही थी …… डेविड के शरीर से उसके
शरीर में …. अपूर्व शान्ति …….आत्मा को तृप्त करती !
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माँ डेविड की निर्जीव देह को घर ले आयी थी । यह अनोखी घटना ही थी क्योंकि
क्रिमेंटिंग एजेंसियाँ लाश को अस्पताल से ही सेमेट्री पहुंचा देती थीं जहाँ
गिने-चुनें सगे-सम्बन्धी , मित्र-परिजन इकट्ठे हो जाते थे । कभी-कभी तो
मृतकों को अन्तिम सहचर के तौर पर एजेंसी के क्लर्क ही मिलते थे । कई बार तो
बच्चों तक को अपने माँ-बाप के मरने की सूचना दिनों-महीनों बाद हो पाती थी ।
इन बूढ़ों को सेमेट्री तक का रास्ता ओल्ड एज होम से सीधे या फिर वाया
अस्पताल तय करना पड़ता था । पर रीटा डेविड की अन्तिम विदाई घर से ही करना
चाहती थी ….. वह घर जो डेविड की वजह से ही घर बना रह सका था । यह माँ और
डेविड के संबंधों की ऊष्मा ही थी कि फ्यूनरल में डेविड के तीनों बच्चे अपने
अपने परिवारों के साथ थे...और पहली बार मिशेल उन सबके साथ थी, निर्द्वंद और
मुक्त...
X x x x
टाइमेस्टर का आखिरी पर्चा लिखने के बाद मिशेल ने राहत की साँस ली । डेविड
की मृत्यु के बाद माँ के अकेलेपन को बाँटती मिशेल इम्तहानों के लिए अच्छी
तैयारी नहीं कर पायी थी, पर पर्चे अच्छे हो गये थे । मिशेल बहुत खुश थी और
यह खुशी आज वह सिर्फ मैक के साथ बाँटना चाहती थी । और हाँ, एंजेला के साथ
भी । ग्रैण्डपा की मृत्यु से एंजेला कुछ गुमसुम हो गयी थी । इस समय एंजेला
को पूरी तरह संभालकर मैक ने उसकी बहुत मदद की थी । आज मिशेल पर सिर्फ मैक
का हक था । उसने जल्दी-जल्दी जेनी और प्रभा से विदा ली और किताबें लौटाने
के लिए लाइब्रेरी की ओर बढ़ गयी । काउन्टर में किताबें रखने से पहले उसने
आदतन पन्ने पलटकर देखा कहीं कुछ दबा तो नहीं है । एक मुड़ा हुआ कागज
फरफराकर नीचे गिरा । उसने नीचे झुककर कागज उठाया अरे, यह तो एंजेला की पहली
ड्राइंग थी । बेख्याली में उसने कागज को किताब में रख दिया था । एंजेला ने
माँ की तस्वीर बनायी थी । कम्प्यूटर के सामने बैठी मिशेल और टेबल पर बिखरी
किताबें । पिछली कई दिनों से या कहें तो एंजेला के होश संभालने के बाद से
ही मिशेल इसी रूप में तो उसे दिखी थी । सोलह यूनिट करते-करते उसे पूरे दो
साल लग गये थे और एंजेला अभी चार की भी नहीं हुई थी । उसे बच्ची पर बहुत
प्यार आया । मम्मा बच्ची पर ….. आज सुबह उसने कितनी मीठी चुम्मी दी थी …..
गॉड ब्लेस यू मम्मा …. 'ठीक वैसे बोली थी जैसे उसकी नानी उससे बोलती है…
कितनी केयरिंग है एंजेला …. ग्रैण्डपा तो उसके लिए बिल्कुल बच्चे थे जिन पर
वह खूब रोब गाँठा करती थी । उसे लगा कि वह एंजेला के लिए मफिंस और मैक के
लिए वाइन खरीद ही ले ।
सामान लेकर कार में बैठते-बैठते उसे ध्यान हो आया कि मैक चाहता है कि अब
दूसरे बच्चे के बारे में सोचा जाये । अब एंजेला को कम्पनी की जरूरत थी ।
मिशेल को लगा कि क्या भाई-बहन सचमुच में एक-दूसरे को कम्पनी दे पाते हैं ?
अभी एंजेला चार साल की है और जल्द ही स्कूल जायेगी और वहीं उसके दोस्त
बनेंगे । जब तक दूसरा बच्चा बोलने-खेलने लायक होगा तब तक एंजेला आठ साल की
हो जायेगी । एंजेला के लिए छोटा भाई या बहिन बन्धन नहीं हो जायेंगे. क्या
या सारे सम्बन्ध केवल बन्धन होते है ? बन्धन .. कभी उष्मा देने वाले तो कभी
..दम घोंटने वाले । क्या प्रभा भारतीय परिवारों और पति-पत्नी के सम्बन्धों
के बारे में जो बताती है वह सच है ….. कैसे कोई बिना किसी चाहत के बस
मजबूरी में सालों साल साथ रह पाता है ….. कितना दम घुटता होगा …. क्या माँ
के साथ बॉब को ऐसा ही लगने लगा होगा । माँ और डेविड के सम्बन्धों में
झरने-सी ताजगी थी । कैसे दोनों एक-दूसरे के मन की बात जान लेते थे ......
मैं कैसा भी व्यवहार करूं पर डेविड ने कभी माँ को इस बारे में कुछ नहीं कहा
। उल्टे एक बार तो उसने खुद सुना था डेविड को माँ को समझाते कि पिता से
अलगाव के दर्द ने उसे बिखेरकर रख दिया है । उसे एक फादर फिगर की सख्त जरूरत
है ........ शादी के बाद उसमें बदलाव आयेगा .... देखना वह कैसे एक पूरी औरत
की तरह अपने पति को प्रेम करेगी- पत्नी, माँ, मित्र सब ...... उसे मैक की
याद सताने लगी- 'मैक माई मैन,' माई लव- होठों ही होठों में बुदबुदायी वह
..... तो क्या मैक की बात मान ली जाये ..... दूसरा बच्चा प्लान कर लिया
जाये?
मैक को तो यह अच्छा ही लेगेगा ...... पर मिशेल ... कल तक मैरिल एन्ड लिंच
के लन्दन ऑफिस में काम कर रही मिशेल को एडिथकोविन के अन्डर ग्रेजुएट्स को
पढ़ाने का काम लेना पड़ेगा, बावजूद इसके कि उसके पास मैरिल एंड लिंच का ओपन
ऑफर है .... क्योंकि छोटे बच्चे के साथ इतना कम्पीटिटिव जॉब करना सम्भव
नहीं .... पर क्या खुद उसे यह अच्छा नहीं लगेगा .... पढ़ाना, रिसर्च करना
और बच्चों के साथ समय बिताना .... मैक के साथ घूमना-फिरना, मस्ती करना
..... कैरियर .... क्या भविष्य भी आज जैसा होगा .... कहीं तब उसे आज किये
का अफसोस हो ..... उसे सोचने का कुछ समय चाहिए शी मस्ट प्लान....पर बह खुद
से गोया जबाब तलब करने लगी.., “मिशेल तुम हमेशा भविष्य को लेकर इतनी आशंकित
क्यों रहती है...क्या यह पापा और माँ....नहीं बाब और माँ के संबंधों की मुझ
पर जकड़ का असर नहीं है...मुझे क्यों नहीं माँ और डेविट का प्रेम याद
रहता...झरने की तरह बहता प्रेम....विश्वास, सराहना और सेवा पर टिका
प्रेम... आखिर मिशेल तुम्हारा कोई वर्तमान भी तो है...मैक तुम्हारे प्रति
समर्पित है..उस समर्पण को खुल कर स्वीकार करो मिशेल...उसे भी निडर होकर
समर्पित प्रेम करो मिशेल..तुम डेविड का माँ के प्रति लगाव समझो....उसके
संकेतों को समझो...वह तुमसे वैसा ही प्रेम पाना चाहता है पगली?... तुम
एंजेला की भावनाओं को भी तो समझो....तुम तो घर में डेविड ओह नो पापा और तीन
तीन बच्चों के बावजूद अकेलापन ओढ़ कर बैठ गईं थीं ...पर एंजेला को एक साथी
चाहिए...कितना प्यार भरा है उसमें ..कितना मातृत्व..नहीं मिशेल तुम्हें
वर्तमान की डोर थामनी चाहिए...इसे सींचो मिशेल”.पर यह क्या उसे तो बस मैक
ही मैक दिखाई पड़ रहा है.... “आई मस्ट ग्रो टुगेदर विद
मैक...मैक...मैक...मैक...” उसके मन में गुदगुदी सी होने लगी...
X X X X
टाइमेस्टर खत्म होने के अगले ही दिन सौरभ सुबह से ही प्रभा के घर आकर जम
गया । उसी ने नाश्ता बनाया और खाना भी । दोपहर बीतते-बीतते दोनों माटिल्डा
बे की तरफ चल दिये । गर्मियों की शाम को माटिल्डा की रौनक देखते ही बनती है
। पूरे तट पर लोगों की भीड़ जम जाती है । एकान्त ढूँढते हुए वे कुछ आगे
निकल गये ।
सामने एक नौजवान लड़की एक बच्ची के संग बालू में बैठी घरौंदा बना रही थी
.... बच्ची बार बार घरौंदा बनाती बार बार तोड़ देती..खिलखिलाती हुई । प्रभा
को एकाएक हिमानी याद आ गयी । हिमानी नेपाल की थी । शुरू-शुरू में प्रभा कई
बार उसके साथ माटिल्डा की ओर घूमने आती थी । लड़के-लड़कियाँ को खुलेआम
चूमते, आलिंगनबद्व होते देख बौखला सी जाती हिमानी । कहती, "ये लोग बिना
शादी के बच्चे पैदा कर लेते हैं ....... अजीब बेशर्म समाज है यह ।" हिमानी
की याद आते ही प्रभा को लगा कि शायद यह लड़की भी अविवाहित है .... और यह
बच्चा नाजायज .... एकाएक झटका सा लगा ... जायज ... नाजायज .... पर दोनों
कितने खुश हैं और माँ .... शायद अविवाहित माँ... बच्चे के संग कैसे
निःसंकोच खेल रही है ... कितनी खुश यह और कितना खुश है बच्चा .... क्या
हमारे यहाँ के "जायज" बच्चे भी इतने खुश रहते हैं और शादीशुदा माँयें ऐसे
खेल पाती हैं बच्चों से ! अगर यह अकेली है तो क्या इसने सम्बन्धों के
उतार-चढ़ाव नहीं झेले होंगे - पर वह इसे बोझा बनाकर नहीं लादे हुए....
वर्तमान को जी रही है उसके पूरेपन के साथ बिना किसी अपराध बोध के .... वह
और उसकी बच्ची .... साथ-साथ जी रहे हैं .... पानी की तरह बहते हुए....
कितना जीवन है इनमें....
सौरभ ने पूछा, "क्या देख रही हो?"
"कितनी खुश हैं ये दोनों?"
अचानक बच्ची उठी और किलकारी भरते हुए पानी की ओर दौड़ी । माँ भी उसके पीछे
भागी …. दोनों पानी में छप-छप करने लगीं …।
"तुम भी पानी में उतरोगी ?" सौरभ ने पूछा ।
"नहीं !"
"क्यों अपने को यूँ बाँधे रखती हो तुम …. उस दिन कह रही थीं कि तुम्हारा
वजूद पानी की तरह है - जैसा बर्तन पाया वैसी ढल गयी । पर क्या सच में प्रभा
? क्या तुम सहज ढल जाती हो या ढलते हुए भी मन ही मन विद्रोह करती रहती हो…
वही विद्रोह तिर आता है पानी में अपनी कड़वाहट साथ लिये । प्रभा पानी बनना
ही है तो बहती नदी बनो न । क्यों बनना चाहती हो स्थिर पानी जो पड़े-पड़े
सड़ जाता है, गँधाने लगता है, सब कुछ को उसी बास में भर देता है ….।"
कहते-कहते सौरभ ने प्रभा के कन्धों को थाम लिया.
अचानक ही एक बाल सौरभ के पावों से टकराई. कुछ स्कूली बच्चे एकान्त पा कर
वहीं बॉल से कैचम-कैच खेलने लगे थे । सौरभ ने बॉल उठायी और मुस्कुराते हुए
उनकी ओर उछाली और खेल में शामिल होने का इशारा किया । लड़के-लड़कियों ने
उसे तुरन्त स्वीकार कर लिया । प्रभा उन सबको खेलते हुए देखती रही । कुछ देर
बाद सौरभ ने प्रभा को इशारा किया ओर बाल उसकी ओर उछाल दी. प्रभा ने चुन्नी
संभालते हुए बाल वापस फेंकी... सौरभ ने उसके पास फिर बॉल फेंकी … और फिर ….
अगली बार ग्रुप की दूसरी बच्ची ने बॉल प्रभा की ओर फेंकी । प्रभा चुन्नी
सम्भाल ही रही थी कि सौरभ दौड़ता हुआ आया और उसकी चुन्नी खींचकर अपने सिर
पर बाँध ली, जैसा कन्हैया "अब खेलो ।" चुन्नी के बिना प्रभा संकोच में पड़
गई और उसके हाथ सहज ही छातियों को ढंकते हुए मुंह पर टिक गए..सौरभ ने उसे
आंखों से इशारा किया...पर उसने अपने हाथ नहीं हटाए...वह नजदीक आया और
शैतानी से मुस्कुराता हुए बोला... “ऐ दे आर ग्रेट…” और फिर उसने आंख मार
दी...प्रभा शर्म से लाल हो गई पर उसी पल गेंद उसकी ओर आया..प्रभा ने गेंद
लोक ली और खेल बदस्तूर चलता रहा...रुका नहीं...
जाने कितना समय यूं ही बीत गया. थोड़ी देर पहले जो गुलाबी सूरज माटिल्डा के
उस पार पानी को छूने की कोशिश कर रहा था अब गहरा लाल होकर माटिल्डा बे के
तले पर चमक रहा था...
“नाओ यू औल इन्जाय....” कहते हुए बाल एक लड़के को थमा दी और प्रभा का हाथ
पकड़े बहाँ से आगे बढ़ गया....
पानी में खेलती बच्ची अब आगे आगे दौड़ रही थी और मां उसे पकड़ने का नाटक कर
रही थी..“ ओ कैच मी...माम कैच मी...रन फास्ट ” बच्ची की किलकारियाँ गूंज
रहीं थीं..
प्रभा को बेसाख्ता एक फूल दो माली का वो गीत याद आ गया- तुझे सूरज कहूँ या
चंदा तुझे दीप कहूँ या तारा...वह गुनगुनाने लगी..सौरभ ने हाथ पकड़ कर उसे
वहीं बेंच पर बिठा दिया और आंखें मूंद लीं...प्रभा की आवाज सचमुच मीठी
थी...वह गाती भी है यह तो उसे पता भी न था..
“ .. आज उंगली थाम के तेरी तुझे मैं चलना सिखलाऊं तू हाथ पकड़ना मेरी जब
मैं बूढ़ा हो जाऊं”.. ये पंक्तियाँ गाते गाते प्रभा की आवाज भर्रा गई..वह
रुक गई, “ओह मैं भावुक हो जाती हूँ..सौरभ जाने क्यों यह लाइन नहीं गाईं
जातीं मुझसे..” अचानक उसे कुछ ध्यान-सा हो आया, “ सौरभ आयम श्योर शी इज़ अ
सिंगल मदर...क्या यह बच्ची अपनी माँ के बुढ़ापे में इन दिनों को याद रखेगी
या ये भी उसे ओल्ड एज़ होम में पहंचा कर अपना पल्ला झाड़ लेगी..”
“सौरभ सुनो हमारे बच्चे तो हमें यूं ओल्ड एज़ होम में अकेला...”
सौरभ कुछ देर चुप रहा फिर ठहाका लगाते बोला, “ प्रभा हमारे बच्चे इधर उधर
की नकल क्यों करेंगे भला?.. हम उनके बच्चो के नैनी और नौकर होंगे तिस पर भी
बच्चों को बिगाड़ने के लिए रोज बातें सुनेंगे..हमारे और बूढ़े हो जाने पर
वे तो भारत की समृद्ध परंपरा का पालन करते हुए या तो रोज बरोज हमें
तासेंगे, हम पर अहसान जताएंगे या फिर हमें कुंभ के मेले में भटका
देंगे...ओल्ड एज होम में क्यों भेजेंगे भला...बेकार की फ़जीहत और बेकार का
रट्टा...”
सूरज डूब चूका था..लहरों के शोर से सारा तट भर गया था..
सूरज माटिल्डा के उस पार के पानी को छूनें की
कोशिश में लाल हुआ जा रहा था.
सुमन केशरी
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