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आखिर तुम
हो कौन ?
”क्या हुआ कविता ?”
कल तक जो सरगम के सात सुरों की तरह नए -नए
लिबास पहन कर उसके सामने इठला रही थी, खिलखिला रही थी । आज लाल आँखों में
क्रोध और क्षोभ भर कर यह उदास क्यों बैठी हैं? उसकी मारक शोखियाँ
देख- देखकर कल जिस पुराने आईने का मन युवा हो उठा था। आज वही आइना हैरान
है, उसको प्यार से पूछना चाहता है।
कविता अब भी सर एक तरफ झुकाए... सूखे होंठों को दांतों से काटती हुई आईने के सामने बैठी थी
।अभी एक तूफ़ान गुजर कर गया था । यह आईना तो साबुत है मगर मन के भीतर रखे
दर्पण पर ठेस लगी है और कितनी
किरचें टूट कर अंतस की नाज़ुक परतों में खुब गयी हैं । कितने और
कैसे-कैसे सपने टूट गये थे। अब यह किस किस को कैसे कैसे बताया जाए ।
इस आईने को भी क्या कहे वह? उसने आईने में खुद पर सरसरी निगाह डाली। कनपटियाँ
अब तक लाल थीं । शून्य को तकती आँखों में अब तक रुलाई ठिठ्की थी ।
रुलाई की दूसरी किश्त .... वह कोई
सिसकी नही ले रही थी फिर भी तेज धडकनों का शोर भीतर जैसे ज्वालामुखी फटने
जैसी आवाज़ें कर रहा था । चाक पड़ा था दिल कहीं जिस्म के पहलू में ।
डायनिंग टेबल पर नाश्ता वैसे ही रखा था । पराँठे के तीन ही टुकड़े खाए गये
थे । एक फ़ोन क्या आगया........ अविनाश ने अचानक बेबात ही घर का मौसम खराब
कर दिया था ।
यह पति - पत्नी के रिश्ते का मौसम भी क्या मुंबई के मौसमों जैसा होता
है? बारिश होती है, तो सारी सीमाओं को तोड़कर हर किनारे को पार कर गहरे समंदर
में भी बाढ़ ला देती हैं । जब उमस का मौसम होता हैं तो घर का कोना कोना इतना गरम
हो जाता है कि लगता है सूर्य देवता अपने सारे काम धाम छोड़ कर मुंबई में
छुट्टी मनाने आ गये हैं । मुंबई में सर्दी का मौसम ज्यादा नही होता है लेकिन फिर भी
सर्दी का मौसम दो दिन को भी दर्शन देता तो मुंबईकर आगे बढ़कर उसके लिए
बांहें फैला देते हैं।
कविता के घर बीती रात प्रेम की बरसात पहले तो रेशमी फुहार सी बरसी थी फिर जो खुल
कर बरसी तो सुबह तलक बरसती रही थी । सुबह मौसम बहुत सुहाना था । वह
गुनगुनाए चली जा रही थी ... रसोई हो कि बाथरूम उसका बिनाका गीतमाला चले ही
जा रहा था। बस फोन पर एक रिंग क्या बजी मानो बरसात के बीच बिजली ने
पेड़ पर गिर कर किसी फाख़्ता का आशियाँ ही झुलसा दिया हो ।
अब हर तरफ उमस ही उमस थी और दम घुट रहा था कविता का ।
आखिर उसका कसूर क्या है ?क्या इस मौसम की तल्खी की वो अकेली जिम्मेदार हैं
? कोई ऐसे भी करता हैं क्या ?
उसने ड्रेसिंग टेबल के आईने की तरफ देखा और मन ही मन पूछा
“ तुम तो जानते हो न सब ...मुझे भी तो जानते हो न जाने कब से "
तीन पल्ले वाला आइना जैसे गर्दन झुकाए शर्मिन्दा था ..आईने के साइड पल्ले
में उसके हनीमून की तस्वीरें ताजा हो आई .....
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पहाड़ों की रानी मसूरी उनका मीठे मधुमास की गवाह रही ।
सहस्त्रधारा ,मसूरी,ऋषिकेश हाथों में हाथ डाले दोनों दुनिया से बेखबर अपनी
ही दुनिया में खोये थे ।ऍफ़ आर आई की पिछली तरफ बनी एक बेंच पर अनेक जोड़ों
के नाम के बीच उसने भी अपने और पति अविनाश के प्रथम अक्षर बालों में लगाने
वाली पिन के द्वारा उकेर दिए थे ।
अविनाश उम्र में चाहे तीन बरस बड़े थे लेकिन धीर
गंभीर दिखते थे ।कविता चंचल शोख हिरनी सी थी और उसका मन आज भी किशोरावस्था
की दहलीज़ पर खडा था ।मसूरी के होटल मॉल पैलेस की अधेरी रात में शीशे के पार से छन कर आती
चांदनी में प्रेम की किसी नाजुक पल में अविनाश ने अचानक पूछा “ ए कवि, तुझ
पर तो बहुत लड़के मरते होंगे न ।“
पलट कर मुस्कुरा दी कवि “ क्यों ऐसा क्यों पूछ रहे ?”
“अरे ऐसे ही , मेरी कवि हैं ही इतनी प्यारी...पर अब तो तुम मेरी हो “
“बिलकुल... “ कहकर कविता ने अविनाश के भीगे बालों में फंसी बूंदो को
हाथ से झट्कार दिया।
लेकिन अविनाश ने फिर पूछ लिया ... " कोई तो होगा... एकतरफा ही सही...जो तुम
पर मरता हो या तुम किसी पर ... "
ऎसे पूछने पर वह अचानक बोल उठी “अरे
हाँ। था एक पागल, जिस पर
अपना दिल आया था “
“अच्छा जी !! कौन था, कहाँ रहताहैं अब ,क्या करता हैं ? “
अविनाश उत्सुकता से एकदम उठ बैठा और कविता की आँखों में आँखे डाल कर अगले
वाक्य को सुनने को बेताब लगा ।
कविता ने देखा यह आँखें प्यार और विश्वास से लबालब भरी थी ।इनके साथ तो अब
उम्रभर रहना हैं कितना चाहते हैं मुझको? अपने मन की सब अच्छी बुरी बातें तो
इनको बता ही देनी चाहिए न ।
पुरुष के चरित्र के भी ना जाने कितने छिपे हुए पहलू हैं।सबसे बड़ा गुण हैं
नाटकीयता और धैर्य ।किसी भी बात को कितने धैर्य से सुनकर बिना रियेक्ट
करें कई दिन तक रह सकते हैं।ऐसा नाटक कर सकते हैं कि उनको किसी बात का जैसे
कोई फर्क नहीं पड़ता हैं जबकि भीतर भीतर ज्वालामुखी सुलगता रहता हैं और
बरसों तक सुलगने के बाद भी कभी भी फट जाता हैं और उसका गर्म लावा कितना
नुक्सान करता हैं यह उसके आस पास रहने वाले ही बता सकते हैं ।
“था कोई पागल “सुनकर अविनाश का दिल तो धड़का ।कविता पर हाथों की पकड़ एक
सेकंड के सौंवे हिस्से के लिए थोड़ी ढीली तो हुई लेकिन पल भर में ही पकड़ और
कस गयी।
"बता ना "
“जाने दो न , मैं ही पागल थी , कभी भाइयों के अलावा किसी लड़के को इतना करीब
से देखा नही था न ।उसने जरा भाव क्या दिखाए हमको, हमने भी उसके भाव बढा
दिए थे ।“
अविनाश ने एक स्विच दबाया और साइड लैंप की रौशनी सीधा कविता के चेहरे पर
पड़ने लगी।
“एईईई,प्लीज़ लाइट ऑफ करों न” !!
“क्यों मुझे तो तुमको ऐसे देखना पसंद हैं , चल ना बता कौन था , कहाँ मिले ,
क्या करता था ... क्या क्या बातें करते थे ?”
“तुमको बड़ा मजा आ रहा हैं बीबी से उसकी आशिकी के किस्से पूछते हुए “
“तो हमने कभी इश्क नही किया न , कभी किसी ने घास ही नहीं डाली ।जॉइंट
फॅमिली में सबसे छोटा रहा तो घर आने जाने वाली पास पड़ोस की सब लडकियां बहन
ही थी .पढाई बॉयज स्कूल कॉलेज में हुयी ,पढ़ते पढ़ते जॉब मिल गयी और जॉब करने
के बाद से दादा जी शादी कर लो की रट लगाने लगे .मम्मी बुआ खोज में लग गये
और तुम अचानक नायब हीरे सी मिल गयी ।बताओ कहाँ हैं यहाँ किसी लड़की का
स्कोप?" अविनाश ने एक साँस में ही सब किस्सा बयां कर दिया
“बता ना , मुझे भी मजा आरहा हैं “
पलंग पर पेट के बल लेटकर कविता ने हाथ में अविनाश का हाथ पकड़ लिया .उसकी
लम्बी अँगुलियों को चूमते हुए बोली .....
" शादी में चचेरे ताया जी की बहू कुसुम भाभी मिली थी न आपको .वही मोटी
गुलगुली - सी जो जूते छिपाने की रस्म पर लड़कियों को ज्यादा पैसे माँगने पर
डांट रही थी ।उनका भाई था वो अनिरुद्ध ...हम भी गर्मीं की छुट्टी में दादा
जी के पास गाँव जाते थे वो भी अपनी बहन के घर आ जाता था । अब भाभी का भाई
था तो उसको अच्छे से पूछना बनता था न.. मेरी उसकी आदतें कुछ कुछ मिलने लगी,
पढने का शौंक, पेंटिंग्स बनाने का, बस गप्पे मारते रहते थे तो पता ही नहीं
चला ... गहरी आँखों से देखता वो कब मन में उतर गया मालूम ही नही चला ।"
कविता अपनी रौ में सब बताये चली जा रही थी .उसको पता ही नही चला कि अविनाश
उसके चेहरे के हर भंगिमाओ को अपने मन मस्तिष्क में एक तस्वीर या चलचित्र की
तरह सहेजता जा रहा हैं ।हर बात पर उसके चेहरे के रंग बदल रहे थे ।जब
कविता चुप हो जाती तो कहता ..
“अरे,फिर क्या हुआ ? बताओ ना |”
“ देख , मैं कोई पुराने ज़माने का पति नही हूँ ,हम दोनों दोस्त भी है न
.उम्रभर साथ रहना हैं सब मालूम होना चाहिए एक दूसरे के बारे में ...”
कविता ने करवट बदली “चलो सोते हैं न”
लाइट ऑफ कर अपनी बाहों को अविनाश के इर्द गिर्द समेटा और सोने का प्रयास
करने लगी थी ...दो मन खामोश थे और किसी तीसरे के बारे में सोच रहे थे ..कविता सोच रही थी मेरा कोई वादा तो नहीं था प्रेम का , आकर्षण ही था
,दोस्ती ही तो थी, कितना घमंडी सा था अनिरूद्ध । यह तो वो ही थी जो उसके
पीछे भागती रही ।हमेशा उसके काम करने तत्पर रहती ।
वो भी एक बॉस की माफिक उसको रुआब दिखाता .जा यह काम करके आ...तू तड़ाक करते
दोनों की छुट्टियां ख़त्म हो गयी थी और दोनों अपने अपने घर चले गये ।लेकिन
कविता को उसकी बातें बहुत याद रही ..
एक बरस बाद फिर कुसुम भाभी के बेटे के मुंडन पर अनिरूद्ध से फिर से मुलाकात
हुयी थी ।आते ही उसके सर पर चपत लगा कर बोला .....कैसी हैं, कुछ पढाई भी
करती हैं या दिन भर यह शिवानी अमृता प्रीतम मंटो संग गुजार देती हैं
......सबके सामने ही उसके सवाल उसे झेंपा गये।
जवाब छोटी बहन
ने दिया..इसके अलावा हमारे घर में पढाई ही कौन करता हैं? हम सब तो पांच
प्रश्न याद करते हैं कि भई सिर्फ पास ही होना हैं।
याद करते करते कविता तो सो गयी लेकिन उसको बाहों में लपेटे अविनाश की नींद
उड़ चुकी थी । इतनी मासूम सी शरारती शोख सी लड़की का कोई बॉय फ्रेंड था .ऐसा दिखता या
लगता नहीं था । यह दोनों तो कई बार मिलें ..कैसा रिश्ता रहा होगा ।इसके मन
पर तो उसकी छाप होगी ,मुझे तुलनात्मक रूप से देखती होगी ...न जाने कितने
सांप उस रात अविनाश की छाती पर लोट रहे थे और वो बैचेन होकर सो नही पाया
....
सुबह जब उसकी नींद खुली । आईने के सामने नहाकर खड़ी कविता बड़ी सी लाल बिंदी
और लिपस्टिक में फुलकारी का सूट पहने बहुत प्यारी लग रही थी । उस दिन के
बाद सब सहज रहा।
हनीमून खत्म हो गया लेकिन अब अविनाश चौकन्ना रहने लगे । कभी कविता एक
अजनबी सी लगती कभी प्यारी भोली गुडिया जैसी ...
कभी वह खुद को समझाता कि..कच्ची उम्र
में कोई लड़का अच्छा लगा तो क्या हुआ ? लेकिन उनका क्या कसूर .....उनको तो
वो लड़की चाहिए थी जो सिर्फ उनको प्यार करे ,ऐसा नही था उनकी लाइफ में कोई
लड़की नही आई लेकिन उन्होंने कभी किसी को पास भी नहीं आने दिया था सिर्फ
दोस्त बनकर आने वाली लडकियां थी ...
शादी के कुछ महीनों बाद तक अविनाश रात के अँधेरे पलों में अनिरूद्ध का जिक्र छेड देते
,कविता को लगता कि अविनाश एकदम सहज है .मासूम बडबोली सी कविता ने उनको कुछ
सच्चे कुछ झूठे किस्से भी सुनाने शुरू कर दिए .......।
“अरे उसने तुमको कभी छुआ नही ..”.
“लो हाथ पकड़ तो लेता था कि चल मेरा यह काम कर दे”..
“जैसे मैं छू लेता हूँ ऐसे नही छुआ “ कहकर अविनाश ने उसका मुंह चूम लिया
.......
“हटो !! ऐसे कैसे कोई छू सकता मुझे” .
“मैं नही मानता.’
“मत मानो’
“ बताओ ना” बार बार इसरार पर एक दिन कविता शेखी बघारते हुए कहानी बुनी और
अपनी (अ)प्रेम कहानी के अनगिनत सच्चे झूठे किस्से बयां कर दिए |
यह जो पुराने ज़माने में महिलायें ससुराल जाने से पहले लड़की को शिक्षा दिया
करती थी कि ससुराल में यह करना, वह नहीं करना , इस तरह रहना, इस तरह पति से
बात करना, इतना बताना, यह नहीं बताना, सब के मायने होते थे ,आजकल की
लडकियां बराबरी का हक मानती हैं,जबकि संवेदनाओ की कोई माप नही होती है कि
किस में कितनी संवेदनशीलता होती हैं।कोई माप ही नही होती हैं ।
अविनाश का मन भीतर कहीं गहरे में टूट गया ...वो अपनी कवि की जिन्दगी में
आने वाला पहला पुरुष नही हैं ...उसने एक बार कविता को जब कहा कि तुमने उसके
साथ शादी क्यों नही की?
उसकी मम्मी और बहने बहुत लालची किस्म के तेज तर्रार लड़ाकू थी ।उनके ससुराल
से कोई उनकी भाभी बने ऐसा कुसुम भाभी भी नहीं चाहती थी |
वैसे हम दोनों रिश्तेदारी वाले दोस्त ही तो थे ।कोई शादी की कमिटमेंट नही
थी , उसने कभी आय लव यू भी नही कहा था , बस मुझे पसंद था..हो जाती शादी तो
सही था , नही हुयी तो भी कोई बात नही |
“आप हो ना प्यारे से” .कहकर अक्सर कविता उसको प्यार करती थी ..
साल दर साल बीत रहे थे ,कविता अब गोलू मोलू ट्विन्स बेटियों की मम्मी बन
चुकी थी |
, अविनाश उसको कभी अकेले मायके नही भेजते थे।कभी मम्मी पापा का बहाना कभी
मेरा मन नही लगेगा।कभी भीड़ में बच्चों की केयर ना होने का अंदेशा कहकर
जाने ही नहीं देते थे ,साथ ही कार में लेकर जाते साथ ही लेकर लौट आते ।उनके
प्रेम में सरोबार कवि का भी मन मायके में नहीं लगता था ।
दिन भर सही रहने वाले अविनाश कभी कभी कोमल क्षणों में अजीब हो जाते थे ।कई
बार पूछते “उसकी याद आती हैं”
कविता का मन होता “कह दूँ क्यों आप उसको याद करते हो” ।
या कभी कभी कहती “ अरे किसकी “
कभी चिढ देती” ..”आती तो बहुत हैं लेकिन क्या करूँ आपके सामने छोटी हैं
उसकी यादें” दिल टीसता था कविता का ।
जैसे जैसे उम्र बढ़ रही थी ,अविनाश अब पहले से नही रहे थे।अक्सर छोटी छोटी
बातों पर नाराज हो जाना , उसकी कहीं बातों को अप्रत्यक्ष रूप से उसकी बहन
के साथ डिस्कस करना ,उसके आत्म सम्मान की परवाह ना करना कविता को अखरने लगा
था , कविता कभी अविनाश को उनके भविष्य को प्लान करने को कहती तो कई बार
तुनक पड़ते थे कि उसके साथ ब्याह होता तो तुझे भविष्य प्लान की जरूरत नही थी
न, वो अमीर बाप का लड़का बड़ा बिजनेसमैन आदमी हैं |
अविनाश वैसे बुरे इंसान नहीं थे ,उसकी छोटी छोटी ख्वाहिशो का ख्याल रखते थे
, खूब घूमने जाना , अच्छा खाना पीना कोई कमी नहीं थी घर में, बस
काम्प्लेक्स था कि कोई था जिससे कविता इम्प्रेस थी ....
अक्सर उसके परिवार की बाबत प्रश्न करते तो कविता झुंझला जाती कि मुझे क्या
मालूम ? ...कभी मायके से मिली ख़बरों को उसको बता देती कि उसका भी ब्याह हो
गया हैं
सब कुछ सही था बस भीतर कहीं अनिरुद्ध नाम का घुन्न अविनाश को खाए जा रहा था
|
,वो अपनी पत्नी की जिन्दगी का पहला पुरुष नही हैं और इसमें उसका कोई कसूर
नही हैं उसको ऐसी लड़की मिली तो क्यों मिली ..................
कभी कभी अविनाश को अपनी ही मानसिकता पर बुरा लगता था ,कविता ने घर परिवार
रिश्तो को सम्हालने में कोई कमी नही छोड़ी थी ,आने जाने वाले हर रिश्तेदार
अविनाश से पहले कविता को पूछते थे ,समाज में उनका जोड़ा आदर्श पतिपत्नी का
था ।
अचानक तेज बारिश की आवाज़ ने कविता को चौंका दिया ,प्रकृति भी शायद जानती थी
आज तूफ़ान आया था ।दर्द भरे मन के कोने को नेह की बारिश चाहिए थी ।अब माँ तो
सामने नहीं थी जिनके आँचल में मुँह छिपाकर रो लेती ।
आईने के सामने से उठकर कविता आँगन में तेज बारिश में खड़ीं हो गयी।,तेज
बारिश ,बादलों की गर्जना में कविता के सब आंसूं धुल गये |देर तलक आँखें बंद
किये वो आँगन की कुर्सी पर बैठी रही ....बारिश थी कि थमने का नाम ही नहीं
ले रही थी . आज प्रकृति भी उसके जलते मन पर बारिश की बूंदों से जैसे ठंडक
पहुंचा रही थी |
“ अविनाश आखिर क्योंउस बात को पकड़ कर बैठ गये हैं आज विवाह के १५ साल बाद
भी उनको अनिरूद्ध नाम से चिढ हैं ....
अविनाश खुद एक सम्पूर्ण पुरुष हैं इतना सब किया कविता ने उनके लिए , घर
परिवार के लिए उसकी कोई कीमत नही हैं ।
अविनाश जानते थे जब कविता जब भी मायके की जिद करती हैं उनको भी गुस्सा आ
जाता हैं और वो तब कुछ भी कह जाते हैं।बाकी कुछ भी कहो समझाओ, कविता किसी
की बात नही मानती समझती तो उसको चुप कराने का एक यही वाक्य होता था कि ...
अनिरुध के साथ होती ना तो पता चल जता .कैसे रखता तुझे ...पैसे को सोच कर
नहीं खर्च करना होता ,महारानी बनकर रहती ना, कहती पप्पा से अपने कि उसी के
घर ब्याह कर दो लेकिन उन्होंने भी दो दिन में निकाल बाहर कर देना था .उनको
मालूम हो गया होंगी तेरी जिद्दीपन की आदते .....तभी मना कर दिया होगा .|
..
बात कुछ भी नही होती थी .लडाई बच्चों की पढाई से काम वाली बाई के विषय की
होती।हर लड़ाई का अंत अनिरुद्ध के नाम से होता |
कविता का मन भी अब कई बार सोचता कि काश .अनिरूद्ध से ही हो जाती तो अच्छा
था .कम से कम इस तरह तो कोई नही सुनाता.खीर तो खिलाते हैं प्यार करके लेकिन
फिर उसमें राख भी डाल देते हैं ।ना खाए बनती ना फेंकते |
सब कुछ अच्छा हैं इस आदमी में ...बस यह अनिरूद्ध नाम का शक्की कीड़ा इसको ना
जाने क्यूँ डंक मारता रहता हैं ।
जवाब देने लगी थी न वो भी तो ....
“हाँ था तो था इश्क मेरा..... हाँ था वो तुमसे ज्यादा पढ़ाकू”
छोटी छोटी बातें उनके जीवन का रस ख़त्म कर रही थी।
मन के मौसम बहुत जल्दी बदल जाते थे .दिन में उसका नाम लेकर लड़ने बहस करने
वाले रात के अँधेरे में फिर एक दूसरे के गले लगकर “ओके अब से नहीं होगा ऐसा
.तू भी समझा कर ना”
.”आप भी ऐसे क्यों कहते हो “ पर ख़त्म कर बसंती प्यार में सरोबर सुबह जागते
थे . अजीब रिश्ता था
.तेरे ही साथ रहना हैं लेकिन ताने अब नहीं सहना हैं
मेरे साथ रहना होगा उसका नाम सहना होगा
जानते हो आज सुबह क्यों आया था तूफ़ान .कुसुम भाभी के बेटे का जनेऊ फंक्शन
का फ़ोन आया था ..उनकी एकलौती ननद स्वर्ग सिधार चुकी थी ।अब कविता को उस
फंक्शन पर बहन बनकर जाना था ...अविनाश जानते थे अनिरूद्ध अपनी बहन के घर
मामा का नेग लेकर अवश्य उपस्तिथ होगा .१६ बरस से जो मुलाकात नही हुयी थी अब
अवश्य होगी .
.”बस!!नहीं जाना हैं .................मैंने कहा नहीं जाना तो नहीं जाना
....”
“लेकिन जाना जरुरी हैं न ...भैया बार बार बुला रहे हैं ...”
“ जाओ जाओ अपनी जिन्दगी के पहले पुरुष से मिलने ....”
अविनाश हर स्त्री की जिन्दगी में पहला पुरुष पिता होता हैं जिनको वो सबसे
ज्यादा प्यार करती हैं
तंज तनाव आरोप प्रत्यारोप में बात इतनी बढ़ गयी कि तुम हो ही चरित्रहीन का
आरोप लगा दिया और बात को मौका मिल गया विकराल रूप धारण करने का |
वो दोनों उस आदमी का नाम लेकर इतने साल से लड़ रहे थे जिसको इस बाबत कुछ पता
ही नहीं था ।
कविता ने अपना मन इतना मजबूत तो रखा हुआ था कि उसको कोई भी अब अविनाश के
विकल्प रूप में प्रभावित भी नहीं कर सकता था ।
कितना खुश थी वो कि अनिरुद्ध अगर मिला तो उसके देखकर रश्क ही करेगा कि
कितनी स्मार्ट हो गयी हैं .. दोस्त थे हम ,कच्ची उम्र में जो दोस्ती थी तब
इश्क लगी थी, आज तो हंस कर भी हंसी नही आती उलटा गुस्सा आता हैं उस पर वो
उस पल को कोसती हैं जब उसने अविनाश को सब बकवास रूप में बताया था .जब इतना
कुछ था ही नही तब उसने भी नमक मिर्च लगाकर इश्क्क्बाज़ी के किस्से क्यों गढ़े
...........क्यूँ नही सोचा अविनाश भी एक इंसान हैं इसी समाज का वो हिस्सा
जो अपनी पत्नी का नाम भी किसी के मुंह से नहीं सुनना पसंद करता हैं ।यहाँ
तो बीबी ने दोस्त बता दिया |
अविनाश को न जाने क्यूँ काम्प्लेक्स या असुरक्षा की भावना घर कर गयी थी कि
वो कहीं कमतर तो नही या कविता उसको छोड़ तो नही जायेगी ।
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बारिश की बौछार अब धीमी हो गयी थी .....बाहर कार कब आकर रुकी कब अविनाश
उसके पीछे आकर खड़े हो गये उसको मालूम तब चला जब अचानक उसको कंधे पर एक
स्पर्श महसूस हुआ ।समझ गयी थी यह मजबूत हाथ वही हैं जो सुबह गुस्से में
नाश्ता भी खाकर नही गया |.गुस्से में उसको एक शब्द चरित्रहीन कहकर जाने
वाले को बाहर जाकर अफ़सोस हुआ होगा
उसने बंद आँखों से उस स्नेहिल स्पर्श को तल्ख महसूस कर लिया और पलट कर
अविनाश को कुछ कहने को पलटी
अविनाश की आँखों में भी आंसू थे . बारिश धीमे धीमे बरस रही थी
“सॉरी जान , मेरी जान मुझे पता नही क्या हो जाता हैं उसका नाम सुनकर ,
मैं उस के नामवाले किसी आदमी से भी सामान नही खरीदता ,मुझे इतनी चिढ हैं
आखिर उस आदमी को तुम्हारा प्यार क्यों नसीब हुआ जबकि तुम तो सिर्फ मेरे लिए
बनी हो |मुझे माफ़ कर दो मैंने सुबह गलत शब्द का प्रयोग किया तुम्हारे लिए ।
कहकर अविनाश ने कविता को कसकर गले लगा लिया ।देर तक दोनों भीगते रहे .मन
की सारी कलुषिता बारिश के साथ आंसुओ के ज़रिये बाहर निकली ..
“चल पागल अंदर चल, कल कुसुम भाभी घर भी जाना हैं न.देख बहन वाला नेग मिलेगा
तुझे तो मुझे मत भूल जाना ,साले से गर्म सूट लिये बिना नही आउंगा” ....
कहकर ठहाका लगाकर अविनाश ने माहौल को हल्का करने की कोशिश की
कविता अविनाश की बाहँ थामे कमरे में आ गयी .
“तुम कपडे बदलो तब तक मैं कार से पकोड़े गोलगप्पे निकाल कर लाता हूँ , मुझे
मालूम तुमको भी भूख लगी होगी , मेरे खाए बिना तुम कैसे खा लेती .”
कमरे में आइना भी मुस्कुरा उठा ... कविता ने कपडे पहन कर बिंदी लगाते हुए
आईने को प्यार से थैंक यू कहा और हाथ में शिफ्फोंन की साडी उठाकर चल दी
“ सुनो अविनाश यह साडी सही लगेगी ना”
“हाँ पहनो भाई , नीली साडी में तुम किसी कवि की कविता से कम थोड़े ही लगोगी
.....”
“फिर शुरू हो गये तुम!!”
कहकर कविता ने नकली गुस्सा दिखाया
मौसम फिर बादलों से घिर कर बदल गया था ...पल पल बदलता हैं मौसम कुछ पति
पत्नियों के रिश्ते का ....बताया था न ।
```
सुबह शांत थी /कविता कब सुबह उठकर रसोई में काम समेटने लगी थी ।उसको पता
ही नही चला ।आवाज़ लगाने पर भी कविता नही आई लेकिन उसके किसी से बात करने
के स्वर पर अविनाश खुद उठकर रसोई में गया .वहां कान पर हैडफ़ोन लगाकर कविता
मंसूरी हॉस्टल में रहती दोनों बेटियों से बात कर रही थी .दोनों स्कूल टूर
से वापिस लौट रही थी ।रास्ते में दिल्ली में उनको दो दिन रहने का मौका
मिला था ।मम्मी भी कुसुम मामी के घर आ रही हैं सुनकर दोनों खुश थी ।कविता
भी खुश थी बेटियाँ भी कुसुम के घर साथ चलेंगी ।
पांच घंटे की यात्रा करके कविता और अविनाश आखिर सीधा करनाल बायपास पर बने
उस फार्म हाउस में पहुँच गये।जहाँ जनेऊ का फंक्शन ।वहाँ जाकर पता चला कि
कुसुम भाभी तो आज ही अपने बेटे का रोका भी करने वाली हैं उनके बेटे ने एक
लड़की पहले से खुद ही पसंद की हुयी थी ...
अरसे बाद सबके गले मिलती कविता अविनाश का साथ छोड़ मायके की भीड़ में गुम हो
चुकी थी लेकिन अविनाश की नजरे कविता का पीछा करते हुए किसी ख़ास को खोज रही
थी लेकिन पह्चाने तो पहचाने कैसे ?
पहले तो कभी मिले नही थे और ......अचानक एक आवाज़ ने उसको चौंका दिया
.........
“क्या बात हैं , बड़ी स्मार्ट हो गयी हो ,सुना हैं पति को अँगुलियों के
इशारों पर नचाती हो , हमें नहीं मिलवाओगी उस खुशनसीब से “
कविता ने पलट कर देखा अनिरूद्ध खडा था ...............
लम्बे कद का अनिरूद्ध हद दर्जे तक मोटा हो चुका था खिचड़ी सफ़ेद बाल ,मोटा
पेट फिरोजी टी शर्ट और लूज़ जीन्स में अजीब बेढंगा लग रहा था .
.ईई!!! इस आदमी के साथ शादी हो जाती की कभी कभी खीज में कल्पना करने वाली
अपनी सोच पर उसको क्षोभ होने लगा .
“जी , बिलकुल मिलवायेंगे ,आप अपनी पत्नी से नहीं मिलवायेंगे? .....
“ ऐ अनिता , जरा इधर आ , कुसुम दीदी की ननद से मिल ,”
कहकर उसने एक महिला को बुलाया गोरी चिट्टी नेट की पारदर्शी साडी पहने एक
महिला अपना सुनहरा पर्स झुलाते आ खड़ीं हुयी .
.”क्या हैं!!! क्यों बुला रहे हो मुझे .पता हैं खाना शुरू हो गया, पहली
पंगत में खा लो फिर तो बचा हुआ ही खाना पडेगा ....मैंने सुबह से कुछ नही
खाया , रास्ते में भी आपने कुछ नही खिलाया |
अनिरुद्ध आग्नेय नजरो से अपनी पत्नी को घूर रहा था
“अविनाश आइये जरा “कहकर उसने आवाज़ लगायी
अविनाश ने आकर सौम्यता से हाथ मिला कर कहा .
"जी मैं हूँ कविता वाला अविनाश और आप ? "
"ओह तो आप हैं अनिरूद्ध जी .........आपके किस्से तो हमने हनीमून पर ही सुन
लिए थे ..."
कविता ने अविनाश की तरफ आँखे तरेरी
“तुम कभी नही सुधर सकते “
“अरे बाबा , आपके मित्र है आपकी चॉइस तो बड़ी अच्छी रही है शुरू से ....
कहकर अविनाश ने जोरदार ठहाका लगाया
लेकिन अनिरूद्ध की पत्नी का ध्यान खाना खत्म न हो जाए की तरफ था तभी
अनिरुद्ध की तेज रूखी आवाज़ से सब उसकी तरफ देखने लगे .....
“ अक्ल बंट रही होगी न तो तुम्हारी माँ कहीं खाना खा रही होगी , तभी तुमको
भी भूख पर कण्ट्रोल नहीं होता ।तेरे पापा ने पैसा दिखाकर शादी करा दी
हमारी वर्ना तुम तो किसी चपरासी के लायक भी नही थी।तुझे दीदी के बाद खाना
खाना हैं समझी ,पहले उनके मेहमान सम्हाल ”
खिसियायी सी अनिरूद की पत्नी उनको देखकर हाथ जोड़ने लगी " आइये आप लोग खाना
खा लीजिये "
मुस्कुराकर अविनाश ने कविता के पास आकर धीमे से कहा
“ कविता यार तुम इस बदतमीज़ अक्खड़ से कर लेती न शादी .बेचारे का पेट तो इतना
मोटा न होता .मुझे तो हमेशा वाक डाइट करवा कर स्लिम ट्रिम बनाये रखा
........”
“ आपको भी उसकी बीबी जैसी मिलनी चाहिए थी ना “
कविता ने भी चुटकी काटी ...
"बाप रे !! मेरी तो जिन्दगी खराब हो जाती .मुझे तो तीखी मिर्च ही पसंद अपनी
, लेकिन कुछ भी हो, आज सुकून मिल गया .यह मुलाकात तो कई बरस पहले कर लेनी
थी ....."
“ज्यादा मत बोलो अब “ कविता ने अविनाश की बाहँ थामी और कुसुम भाभी की तरफ
देख हाथ हिलाने लगी
“कविता कुछ भी तोप हो यह महाशय लेकिन आना तो तुमने हमारे ही ..... था न
“अच्छा अब चुप रहो .मैं रेस्टरूम में साडी ठीक करके आती हूँ “..
आइना साडी ठीक करती कविता को मुस्कुरा कर देख रहा था और अविनाश उस तीसरे
पुरुष को ..................जिसके लिए बेकार बीस साल से दोनों लड़ते आये थे
~~~~
खूब आवभगत हुई थी कविता की ,भाभी ने भी पूरा मान सम्मान नेग देकर कविता को
विदा किया था , बेटियां भी मामा मामी के मिलकर बहुत खुश थी ।अनिरुद्ध भी
सपत्नी कार तक विदा करने आया था।अविनाश तिरछी नजरों से बार बार कविता को
देख रहे थे|उसके मनोभावों को पढने का प्रयास करते अविनाश ने कार स्टार्ट की
और ..."अब चलो भी या यहाँ से सीधे कहीं और जाने का प्लान कर रही हो" कहकर
कविता को वापिस बुला लिया . एक बिटिया पापा के साथ आगे बैठ गयी तो दूसरी
बिटिया को लेकर कविता पीछे बैठ गयी ।कार के मिरर को एडजस्ट करके अविनाश ने
चलती कार में पत्नी के मनोभावों को पढने की कोशिश की |मायके से लौट रही
कविता बहुत खुश नजर आ रही थी।
बेटियाँ पापा से लगातार बातें किये जा रहे थे उनके पास अपनी ट्रिप की बहुत
सारी बातें बताने के लिए थी. अचानक "मुरथल में सुखदेव के ढाबे की लस्सी
पीनी हैं" कहकर बेटियों ने मनुहार करना ठुनकना शुरू कर दिया |
ढाबे में गज़ब की भीड़ थी ऐसा लगता था जैसे सारी दुनिया भूख से बेहाल हैं
बैठने के लिए जगह खोजनी होगी यहाँ तो एक टेबल पर अभी खाना आया नही होता कि
अगली टीम आकर खड़ी हो जाती हैं कि यह लोग खापी कर उठे तो हम यह जगह घेर
लेंगे ।बेटियों ने घूम फिर कर एक टेबल खोज ली जहाँ बैठे लोगो का खाना बस
ख़त्म ही होने वाला था ।
दोनों बेटियों ने आलू प्याज और गोभी के पराठें और पानीपत का अचार की फरमाइश
की और कविता ने सिर्फ लिम्का पीनी हैं कहकर अपना पर्स टेबल पर रख दिया ।दोनों खूब मस्ती करते हुए एक दूसरे की प्लेट से खा रही थी
।अविनाश किसी से
फ़ोन पर फोटो देख रहे थे कविता ने अविनाश की तरफ लस्सी की गिलास बढ़ा दिया
"पी लीजिये ना गर्म हो जायेगी " इसी बीच बच्चो की आपसी शरारत में कविता को
धक्का लगा और लस्सी अविनाश की शर्ट पर छलक गयी।फ़ोन हाथ में लिए अविनाश जोर
से चीख उठा ..
"यह क्या बदतमीजी हैं , सब्र नही हैं न , तुम थी ही उस उज्जड के लायक , इस
हरकत पर दो थप्पड़ लगाता और तुमको तुम्हारी जगह बताता ।पता नही ईश्वर ने यह
सेकंड हैण्ड पीस क्यूँ मेरी जिन्दगी में लिख दिया ................."
आसपास की टेबल पर खाना खाते लोग उनकी तरफ देखने लगे ।बेटियाँ भी एकदम चुप
हो गयी ।अपमान से कविता की आँखों में आंसुओं की बूंदे पलकों के कोरो तक आकर
अटक गयी ।
अवाक् कविता ढाबे के वाशबेसिन के उपर लगे आईने में अपनी शर्ट साफ करते
अविनाश को देख रही थी जिसमें उम्र भर इन्फीरियटी काम्प्लेक्स था और आज
सुपीरियटी कॉप्लेक्स से कविता को हीनता का बोध करा रहा |
समझ नहीं पा रही थी आईने में किसका अक्स है अविनाश का या ..... काका
- नीलिमा शर्मा
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