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खुशी की ठंड
उसका फोन था...
स्टेशन नहीं आएंगे आप...मिलने...
हां हां...कब है ट्रेन
वही...11.30 पर
अभी 10 हो रहे थे
स्टेशन पहुंचा तो पता चला कि गाड़ी छह घंटे लेट है।
उसका फोन आया...आप ही आ जाइए ना यहां, फिर साथ साथ चल चलेंगे आपके स्टेशन
तक
मैंने हिसाब लगाया...यार...आते आते तुम्हारी ट्रेन खुल जाएगी...
हां...यह तो है...
तीन घंटे लग जाएंगे यहां से...मैंने कहा
आखिर लेट ट्रेन लेट होती गयी। इस बीच मैंने कमरे पर आराम किया फिर चार
पराठे और सूखी सी सब्जी बना ली।
गाड़ी लेट हो रही थी। तो भूख लगी तो एक पराठा खा लिया। आखिर 10.30 रात में
गाड़ी पहुंचने वाली थी अब।
कुछ पहले फोन आया- खाना खाया है आपने...
नहीं यार...भागता तो रहा सारा दिन...साथ ले रखा है कुछ ...साथ खाएंगे
आवाज से मैं समझ गया कि उसने अपना खाना मंगा रखा है और अब यह कुछ मिनटों का
इंतजार उसे भारी पड रहा होगा। कोई भी काम शुरू करने पर इंतजार उसके बूते का
नहीं रहता। जब भी मिलना हो...उसका फोन ऐसे ही आता है...आप आ
जाइए...यहां...या...वहां...।
गाड़ी लगते ही मैं कंपार्टमेंट की ओर लपका- ए1-2 खोजता पास पहुंचा तो
दरवाजे के भीतर दो तीन उतर रहे लोगों के पीछे उसकी निगाहें मिलीं तो...खुशी
की चमक कौंधी...फिर वह आगे बढ़ी और दरवाजे पर गले से लग गयी...फिर मुझे
खींचती सी भीतर अपनी सीट पर ले आयी। वहां सामने की दो सीटों के यात्री
जोड़े एक-दूसरे पर लुढके से उंघ रहे थे।
क्या लाए हैं...मेरी पोलीथीन झपटते उसने कहा।
कुछ नहीं...एकाध पत्रिका है, किताब ,एक शाल पुराना सा और कुछ खाने को...बस।
झपटकर खाना निकालते हुए उसने अपनी रेलवे कैटरिंग से मंगायी थाली सामने की।
दो पराठों में एक वह खा चुकी थी। बाकी सब्जी,चावल,दाल शेष थी। उसका बचा
पराठा कच्चा सा था पर उसके लाड़ को देख मैं उसे अनदेखा कर खाने लगा,भूख थी
सो खाने में मजा आ रहा था। मेरे पराठे निकाल वह भी खाने लगी।
कितनी खुश थी वह।
कितनी अच्छी सब्जी है , आपने बनाई है...
हां अच्छा कुक हूं ना...हा हा हा
हां... पर पराठे तो मोटे हैं...
हां...
अगली बार पतले बना लाउंगा।
खाते पीते बीस मिनट बीत गये। डेढ पराठे खाये उसने बाकी चावल आदि मैंने
खाया।
...चाय पीएंगे ना... इसरार सा करते उसने कहा
हां...कोई चायवाला आए तो
रूमाल है...
हां...
रूमाल से हाथ पोंछते उसने कहा...इसे रख लूं
रूमाल ले नहीं पायी हडबडी में...
हां हां...
चलें ...बाहर चाय मिल जाएगी ...मैंने कहा
ठंड थी सो उसने लाल जैकेट डाल रखी थी। फिर भी वह ठंड से कांप रही थी। यह
खुशी की ठंड थी। फिर हम एक दूसरे के कंधे से लगे बाहर चाय ढूंढ रहे
थे...आगे पत्रिका के स्टाल के पास एक चाय काफी की दुकान भी थी। मैंने दो
चाय को कहा।
एक पानी की बोतल भी...। अब वह बीच बीच में जब तब जीभ को तेजी से बाहर-भीतर
निकालती बू-बू-बू सी हल्की तेज आवाज निकलने लगी थी। उसकी बच्चों सी यह हरकत
देख मैं भीतर से बहुत खुश हो रहा था। दरअसल वह बू-बू की आवाज उसकी खुशी की
आभिव्यक्ति थी जो समा नहीं रही थी,अंट नहीं रही थी
उसके भीतर।
उसी तरह जीभ लुबलुबाती कंधे से लगी वह अपने डब्बे तक आयी। फिर मेरा हाथ पकड
खींचती सी भीतर ले चली। एसी डब्बे का दरवाजा खोलती वह जिस तेजी से
मुझे खींचती भीतर घुस रही थी मैं डर रहा था कि मेरे दोनेां हाथों में थमें
चाय के कप छलकें ना।
पर वह सचेत थी सो भीतर जाते ही उसने दरवाजा थामा और मैं सकुशल भीतर जा
पहुंचा। सीट पर बैठ हम चाय पीने लगे। दो मिनट बाद मेरी मोबाइल ने अलार्म
बजाया। मैंने कहा अब दरवाजे पर आ जाएं हम।
क्या यार...आप भी...जवान हैं ...दौड़कर उतर जाइएगा।
पर आदतन मैं दरवाजे की ओर बढ गया।
फिर नीचे उतर गाडी के सरकने का इंतजार करने लगा।
गाडी नहीं बढी तो वह नीचे आ गयी।
अब बातें करते कभी वह बीच में हाथ मिलाती कभी गले मिलती...कभी...आस पास के
लोग उत्सुकता से निहार रहे थे।
इस बीच गाडी खिसकी तो वह उछल कर उपर चढ गयी। पर ट्रेन रूक गयी फिर।
हम फिर बाहर थे। इसी बीच एक बूढा मजदूर कंधे पर फावड़ा लिये पास आ चुपचाप
खड़ा हो गया।
उसकी आंखों में कुछ था कि मैंने चुपचाप दस का एक नोट उसकी ओर बढा दिया।
वह नोट ले आगे बढ गया।
...अरे आप तो बडे दानी हैं...
मैने भी आज सुबह एक को दस का एक नेाट दिया है..चहकी वह।
मैंने सोचा ...यह क्या बात हुयी।
फिर बोला। आपकी पर्स से निकाल लूंगा...दानी क्या हूं...बस वह लगी पर्स
टटोलने...
मैंने कहा...अभी हैं पैसे...।
आखिर गाडी ने सीटी दी...चलते हुए वह फिर गले से मिली...ओह यह क्या लबादा
डाल रखा है आपने ...ठीक से गले भी नहीं मिल सकते...।
आइए...फिर गले मिलिए...
ओह...चलिए गाडी तेज हो रही है...
फिर तेजी से वह गाडी पर चढ गयी...
बहुत अच्छा लगा ...आज आपसे मिलकर...
हां ...मुझे भी...।
अब तेजी से भागता मैं प्लेटफार्म की सीढियां चढ रहा था।...दूज का चांद अब
धुंघला रहा था...
तभी एक एसएमएस टपका...
...आपसे मिलकर ...जान में जान ...आ गयी...काबुलीवाले...।
-कुमार मुकुल
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