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एक गोरैया की
जगह खाली है आज लड़की कॉलेज में जूलोज़ी की प्रोफ़ेसर है और लड़का बैंकर । एक डोर के टूटते ही सात स्वर भी छन्न से बिखर गए । लड़के को मालूम हुआ है कि लड़की इसी शहर में है और उसने फोन करके लड़की को घर आने का निमंत्रण दे डाला है । लड़की एक बार में मान गयी है ।
लड़की लड़के के घर उससे मिलने आई है । लड़का बेचैन है,
ठीक वैसे ही जैसे दस साल पहले हुआ करता था । लड़की सहज है .. मानो कभी कुछ
था ही नहीं । बस ठंडा ,संक्षिप्त ,औपचारिक वार्तालाप । लड़का लड़की की आँखों में गहरे झांककर देखता है। लड़की आँखें नीची कर लेती है। लड़का बस ये जानना चाहता है कि क्या आज भी वह उससे प्रेम करती है ? लड़का यह भी बताना चाहता है कि वह एक पल को भी उसे नहीं भूला । मगर एक ऐसे पुल के दो किनारों पर दोनों खड़े हैं जो पूरी तरह से ध्वस्त हो चुका है । अब पार करना कैसे भी संभव नहीं । लड़का अचानक तेज़ी से उठकर अन्दर गया है । उसे तेज़ रुलाई आई है ।
लड़की की नज़रें अब कमरे में घूम रही हैं । एक टेबल पर काले रंग का लम्बी
पूंछ वाला बन्दर रखा हुआ है । लड़की ने गौर से देखा " अरे
,
ये
तो बिल्लू है "
लड़का बाहर आ चुका है । उसका नन्हा बेटा लड़की की गोद में बैठा हुआ है । थोड़ी
देर बाद बेटा अन्दर भाग गया है । लड़के के चेहरे पर एक सवाल है ।
एक
लम्बी खामोशी के बाद लड़की उठने लगी है । जाते जाते पीछे पलटकर कहा है
लड़की जा चुकी है । लड़का बेहद उदास बैठा है । तभी नन्हे बेटे की आवाज़ आई है
लड़का चौंक गया है । तभी एक पेपरवेट के नीचे दबा एक पेज मेज पर फड़फड़ाया है ।
"
इस
महावन में फिर भी एक गोरैया की जगह खाली है लड़के ने एक नज़र कमरे में बिखरे पड़े तमाम जवाबों पर डाली । बिल्लू को जोर से भींच लिया और रुंधी आवाज़ में कविता पढ़ने लगा। - पल्लवी त्रिवेदी
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