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मूमल

ड़का अपने फ्लैट में स्टडी में अपनी दोस्त के साथ बैठा हुआ है । म्युज़िक प्लेयर पर एक लोकगीत बज रहा है ।

" काली रे काली काजलिये री रेखड़ी रे

हांजी रे ,कालोड़ी कांठल में चिमके बीजली

म्हारी बरसालै मूमल हालै नी ऐ आलिजै रै देस ..."

लड़के की दोस्त उस हूक उठाती कच्ची माटी की सी कसक भरी आवाज़ के सौन्दर्य से अभिभूत है । अहा .. कैसी कोरी सौंधी आवाज़ , कैसे कलेजा चीरते सुर और कैसी अबूझ बेचैनी ।

" किसने गाया है ये गीत ? "

लड़का धुंए के छल्ले बनाते हुए जैसे किसी दूसरी दुनिया में गुम था .. दोस्त की आवाज़ से चौंका और राख एश ट्रे में झाड़ते हुए बोला

" इस आवाज़ की कहानी सुनोगी "

हाँ ..क्यों नहीं "

" आज से तेरह साल पहले एक इंजीनियर इस शहर में एक बड़ी बिल्डिंग का काम सुपरवाईज़ करने आया था । सुबह दस बजे से शाम सात बजे तक ईंट ,गारे ,सीमेंट ,लोहे के बीच घिरे रहने वाले उस नौजवान इंजीनियर एक दिन काम ख़त्म करके घर जाने की तैयारी में था तभी दूर आते लोकगीत के स्वर ने उसे ठिठका दिया । इंजीनियर आवाज़ की दिशा में चल पड़ा । सड़क के दूसरी ओर खाली पड़े मैदानों में बंजारों ने डेरा लगाया हुआ था ..उन्हीं की बस्ती से यह आवाज़ आ रही थी । इंजीनियर सम्मोहित सा बस्ती में पहुंचा । एक तम्बू के बाहर एक किशोर बंजारन चूल्हा सुलगाते हुए गीत गा रही थी । इंजीनियर दम साधे उसके कंठ से बहते अमृत को पीता रहा ..कब आँखें धुंधला गयीं ,पता न चला । जब लड़की की निगाह उस पर पड़ी तो वह एकाएक चुप हो गयी ।

" क्यों चुप हो गयीं ..गाओ ना "

वह सोलह सत्रह बरस की कई कलियों वाला काला लंहगा चोली पहने सांवली सी लड़की सकुचा गयी ।इंजीनियर ने ध्यान से लड़की को देखा । सांवलेपन पर मटमैली धूल की एक परत , गोल चेहरा , हाथों में कोहनी तक भरे सफ़ेद कंगन , हाथ में गोदना और रूखे ,कई दिनों के बिना धुले बाल । ऐसा कुछ न था कि उसे सुन्दर कहा जा सकता सिवाय उसकी आवाज़ के जादुई रिफ्लेक्शन के , जो उसके चेहरे पर भी छाया था । एक चुम्बकीय आकर्षण जो ख़ूबसूरती की नयी परिभाषा गढ़ रहा था ।

लड़की उसे यूं अपनी ओर देखता पाकर अन्दर भाग गयी । इंजीनियर वापस चला आया ।

अगले दिन से रोज़ शाम उस आवाज़ की डोर पकड़कर वह डेरे में पहुँच जाता । लड़की अब उससे खुल गयी थी ।

"ये कौन सा गीत गाती हो तुम ?" एक दिन इंजीनियर ने लड़की से पूछा ।

" ये मूमल है । जानते हो मूमल की कथा ? "

"नहीं जानता , सुनाओ "

" लोद्र्वा की राजकुमारी मूमल और अमरकोट के राजकुमार महेंद्र के प्रेम की कथा है जिसे हम गीतों में गाते हैं । रोज़ रात को ऊँट पर बैठकर महेंद्र काक नदी पार कर मूमल से मिलने जाया करता था । "

" हम्म .. अच्छी कहानी है । रोज़ सुनना चाहता हूँ मैं ये गीत, सुनाओ  "

लड़की जब मूमल गाना शुरू करती तब अपनी ख़लिश भरी दानेदार आवाज़ में खरज से सुर उठाती तब लगता था मानो कोई नदी परबत की गोद से एक पतली धार सी धीमे धीमे बहती आगे बढ़ रही है । आगे जब आलाप को लहराती हुई तार सप्तक पर पहुँचती तब इंजीनियर अचंभित सा बस उसे देखता रह जाता । उसके रोम रोम में एक सिहरन दौड़ जाती और जब वह आँखें बंद किये गाती लड़की को देखता तो बस आँखें न हटती थीं । उसके सुरों की कोमलता और पवित्रता उसके चेहरे पर नूर बनकर छा जाती । सुन्दरता के सारे तयशुदा मापदंड कुचलते हुए लड़की असाधारण ढंग से खूबसूरत हो उठती   तब मानो अल्ला जिलाइ बाई खुद आकर आसीस देतीं लड़की को ।लड़की ने अपना कोई नाम बताया था उस इंजीनियर को मगर वह एक दिन बोला -

" मैं तुम्हे मूमल ही कहूँगा आज से "

21 दिनों तक ये सिलसिला चलता रहा । लड़की के तम्बू के बाहर ज़रा दूर पर एक टेसू के पेड़ के नज़दीक सुरों की नदी में बहते बहते दोनों के बीच और भी जाने क्या पनपा जो कभी कहा न जा सका । बल्कि कभी समझा भी न जा सका ।

इक्कीस दिन बाद लड़का छुट्टी में अपने घर गया । हफ्ते भर बाद लौटा तो डेरा उठ चुका था । पागलों की तरह सारा शहर छान मारा , आसपास के शहरों में भी तलाश कर आया । मगर बंजारन जा चुकी थी । उसके पास कुछ शेष था तो टेप रिकॉर्डर में रिकॉर्ड की हुई उसकी आवाज़ ।

लड़के को उस दिन एहसास हुआ कि जैसे उसकी सबसे कीमती चीज़ को उसने खो दिया है । प्रेम था या कुछ और .. उसे कुछ नहीं पता । बस इतना जानता था कि उसके जीवन में एक शून्य आकर जमा हो गया है , एक गहरा ,खालीपन जिसे उस आवाज़ के अलावा कोई चीज़ नहीं भर सकती । "

लड़के की दोस्त जैसे कहानी सुनते सुनते उस बंजारन और इंजीनियर की अलबेली सी कथा में डूब गयी थी ।कहानी ख़त्म होते ही चन्द मिनिटों की खामोशी छाई रही कमरे में । केवल मूमल और उसकी आवाज़ गूँज रही थी ... अपनी आवाज़ से निकलकर दोनों की आँखों के सामने मूमल सजीव हो आई थी ।

" जायी रै मूमल लोद्रवाणे रै देस में ... "

और जानती हो , उसके बाद उन डेरों वाली ज़मीन पर हाउसिंग बोर्ड ने प्लाट काटकर बेच दिए। जिस जगह पर 21 दिनों तक इंजीनियर ने मूमल के गीत सुने थे ,उस टुकड़े को इंजीनियर ने खरीद लिया । आज जहां ये म्युज़िक प्लेयर रखा है ,वहाँ मूमल बैठा करती थी और जहां तुम बैठी हो ,वहाँ वो इंजीनियर एक बड़े पत्थर पर बैठकर सुना करता था "

कमरे की खिड़की के ठीक बाहर टेसू की शाख एकबार कांपकर स्थिर हो गयी थी ! कुछ फूल झरे थे जिनपर लड़के की नज़र देर तक ठहरी रही थी !

- पल्लवी त्रिवेदी

 

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